दोस्तो, मेरा नाम रवि खन्ना है. मैं हरियाणा के जिला फरीदाबाद(दिल्ली के पास) के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ.
मैंने एम एस सी की है. मेरा कद 5 फुट 10 इंच है. मैं दिखने में अच्छा हूँ. बहुत सारी लड़कियां चोद चुका हूं तो मुझे अपने ऊपर काफी कॉन्फिडेंस है.
मेरे चाचा की लड़की है, उसका नाम कविता है. यह उसका बदला हुआ नाम है. कविता बचपन से ही मुझको अच्छी लगती थी. वो उम्र में मुझसे एक साल छोटी थी. गोरी चिट्टी तो वो बचपन से ही थी … जवान होते होते उसके बदन ने जो आकार लिया, तो लोग बस देख कर अपना लंड मसलते ही रह जाते थे.
जब वो 19 साल की थी, तभी से उसके चुचे एक शादीशुदा लड़की जैसे थे. उसकी गांड … आह … क्या कहूँ, जब वो चलती थी … तब उसकी गांड का एक पार्ट ऊपर जाता, तो दूसरा बहुत जोर से नीचे आता. उसके चूतड़ों की ये थिरकन देख कर लौंडों के लंड हिनहिना कर खड़े हो जाते थे. उसका कद 5 फुट 2 इंच का था. मैं साफ साफ बोलूँ तो मेरी चचेरी बहन चलती फिरती कयामत थी.
वो मुझको हमेशा मेरे नाम से बुलाती थी, भईया नहीं बोलती थी. शायद वो भी मुझको पसंद करती थी.
यह बात तबकी है, जब मैं बी एस सी में पढ़ता था और कविता 12वीं में थी. एक दिन मैं किसी काम से चाचा के घर गया. मैंने चाची को आवाज लगाई, वहां कोई नहीं था. मेरा मन हुआ अन्दर जाकर देखना चाहिए कि कोई है अन्दर या नहीं.
जब मैं अन्दर गया तो मेरी आँखें फ़टी की फटी रह गईं. क्योंकि सामने बैठी कविता मेरे भाई के लड़के को अपनी चूची पिला रही थी, जो लगभग उस समय दो साल का था. कविता की गोरी और मोटी चुचियों को मैं देखता ही रह गया.
कविता की नजर मुझ पर 2 सेकेंड बाद जब पड़ी, तो वो जल्दी से लड़के को हटा कर शर्ट को नीचे करने लगी.
मैं कविता के पास गया और उससे गुस्से से पूछा- ये क्या हो रहा था?
वो डरी हुई बोली- सॉरी रवि.
मैं बोला- सॉरी तो ठीक है … पर ये हो क्या रहा था?
तब वो थोड़ी हंसती हुई बोली- मैं बस देख रही थी कि बेबी को दूध कैसे पिलाते हैं.
मैं भतीजे को उठा कर बोला- अच्छा है, मैं चाची से कहता हूं. वो बताएगी अच्छे से कि बच्चों को दूध कैसे पिलाते हैं.
यह बोल कर मैं वहां से जाने लगा.
वो भाग कर मेरे सामने आई और बोली- प्लीज यार किसी से मत कहना … मम्मी मार डालेगी मुझको.
मैंने कहा- ठीक है … पर एक शर्त पर!
कविता बोली- बोलो क्या शर्त?
मैंने कहा- मेरे सामने इसको फिर से दूध पिलाओ … मुझे भी देखना है.
कविता ने कहा- नहीं.
मैंने कहा- ठीक है … मुझको जाने दो.
वो बोली- मम्मी को नहीं कहोगे ना?
मैंने कहा- अगर तूने, जो मैंने कहा, वो करोगी तो कसम से चाची से कुछ नहीं कहूँगा … और नहीं करोगी तो कसम से एक की दो कहूँगा.
इस पर कविता ने कुछ देर सोचा, फिर बोली- ठीक है.
वो बेबी को मुझसे लेकर बेड पर जाकर शर्ट के ऊपर से ही दूध पिलाने लगी.
तब मैंने कहा- शर्ट उतार कर पिला.
उसने मेरी तरफ गुस्से में देखा और सूट ऊपर किया और सूट नीचे जो ब्रा पहनी थी, वो भी ऊपर की. वो मुझसे पीठ कर के दूध पिलाने लगी. तब मैं बोला- कविता मुँह मेरी तरफ करो, देखूँगा तो मैं ही कि तू अच्छे से पिला रही है या नहीं.
वो कुछ सोच कर मेरी तरफ मुड़ी.
हे भगवान … मैं बस अपनी बहन को देखता ही रह गया. उसके गोरे गोरे चुचे जो रूम की कम रोशनी में भी चमक रहे थे … माहौल में सुनामी लाने पर उतारू थे. मेरे लोवर में पड़ा मेरा लंड ऐसा हो गया, जैसे अभी बाहर आ जाएगा. उस मदहोशी में मुझको पता ही नहीं चला कि मैं कब कविता के पास पहुंच गया. मैं बस उसके चुचों को ही घूरे जा रहा था.
तभी कविता की आवाज आई- बस हो गया … अब मम्मी से मत कहना.
मेरे दिमाग में आईडिया आया और मैं थोड़े गुस्से में बोला- नहीं, बच्चे को ऐसे दूध पिलाते हैं क्या?
कविता बोली- हां.
मैंने कहा- नहीं … ठीक से पिलाओ, नहीं तो चाची को पक्का बताऊंगा.
उसने कहा- और कैसे पिलाते हैं?
तब मैंने दबी और घबराई आवाज में कहा- मैं बताऊं?
कविता ने कहा- हां बताओ.
मैंने हाथों से उसके दोनों चुचे पकड़ लिए तो कविता घबरा कर खड़ी हो गई और बोली- पागल हो क्या … खुद पिला कर दिखाओ.
मैं बोला- पर दूध तो तेरी चुचियों में से निकलता है न!
वो बोली- नहीं निकलता है … तुम जाओ यहां से!
मैं बोला- ठीक है … अब चाची ही बताएगी!
वो घबराई सी बोली- ठीक है बताओ.
मैं उसकी तरफ मुड़ा अपने हाथ से उसका कमीज ऊपर किया, फिर ब्रा के ऊपर से थोड़े उसके चुचे मसले. वो गुस्से में मेरी तरफ देखे जा रही थी. तब मैंने उसकी ब्रा भी ऊपर कर दी और मुझसे जब नहीं रुका गया … तब मैंने अपने दोनों हाथों से उसके बड़े बड़े और सख्त चुचे पकड़ लिए और उनको जोर से दबा दिया. इससे कविता की चीख निकल गई.
मैंने उसको बेड पर बिठाया और खुद भी उसके पास बैठ कर उसके चुचों को मसलता रहा. मैंने कविता का चेहरा देखा. तो उसकी आँखें मस्ती से बंद थीं और चेहरे पर खुशी दिखाई दे रही थी. वक़्त का फायदा उठा कर मैंने उसकी एक चूची को अपने मुँह में ले लिया और उसको जोर जोर से चूसने लगा. मुझे मजा आ रहा था. मैं उसकी चूची को ऐसे चूसने लगा, जैसे में दशहरी आम चूस रहा होऊं. मैं बारी बारी से दोनों चुचियों को चूसता रहा. उसने भी अपने आप को मेरे हवाले कर दिया था.
फिर मेरा एक हाथ उसकी जांघों के बीच घूमने लगा. कविता ने अपनी टागें सिकोड़ लीं और बोली- चिराग रो रहा है.
तब मेरा ध्यान चिराग पर गया, जो रो रहा था.
मैंने कहा- ठीक है.
मैं उसके ऊपर से उठ कर बेबी को उठा कर जाने लगा. फिर मैंने गेट पर जाकर कहा- अभी नहीं सीखी हो दूध पिलाना तो चिराग को घर देकर वापस आकर सिखा दूँ?
कविता खड़ी खड़ी थोड़ी मुस्कुराई, तो मैं उसकी चुदास समझ गया.
मैं उसको आँख मार कर जल्दी से घर आ गया. मैंने जल्दी से चिराग को भाभी को दिया और जल्दी से चाचा के घर आ गया. मैंने वापस आकर देखा कविता उसी बेड पर बैठी थी. मैंने उसके पास जाकर थोड़ा डरते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा. जब उसने कोई आपत्ति नहीं जताई, तब मेरा हौसला बढ़ा और पीछे से ही मैंने उसके सूट में हाथ हाथ डाल कर उसकी चूची पकड़ ली.
फिर आगे जाकर उसको बेड पर लिटाया और उसका शर्ट उतार कर ब्रा भी निकाल दी अब उसकी चुचियों को खूब मसला और खूब दबा दबा कर चुसाई का मजा लिया. फिर एक हाथ से मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला और सलवार नीचे कर दी. उसने काली कच्छी पहनी थी. वो इतनी मस्त लग रही थी कि मेरा मन हुआ कि लंड को कच्छी में से ही पेल कर उसकी चुत में डाल दूँ.
मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रखे और किस करने लगा. देखते देखते वो भी मुझको किस करने लगी. मुझको उसकी तरफ से हरी झंडी मिलने के बाद मैं उठा और उसके पैरों के पास जाकर उसकी कच्छी उतार दी.
भाईयो, मैं अपनी बहन की चुत को देखता ही रह गया. उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं था …एकदम गोरी चूत मेरी आँखों के सामने चुदने को पड़ी थी. मैंने अपनी उंगली चुत की गोरी फांकों के बीच में डाली, जो अन्दर से गुलाबी थी.
मुझसे रुका नहीं गया और मैंने अपना लोवर बिना वक़्त गंवाए उतारा और कविता के ऊपर चढ़ कर उसे किस करने लगा. साथ ही मैं अपने लंड का दवाब उसकी नंगी चुत पर डालने लगा और ऊपर नीचे होने लगा.
खुद ब खुद मेरी बहन के हाथ मेरी कमर पर आ गए. उसने धीरे से मेरे कान में कहा- रवि, अब कुछ करो प्लीज.
मैं जोर जोर से ऊपर नीचे होकर झटके मारने लगा. ये सब बिना लंड चुत में डाले ही कर रहा था.
कविता से रुका नहीं गया और उसने खुद मेरा लंड पकड़ा और चुत पर लगा कर मुझको कहा- अब नीचे होकर पेल दे.
मैं जैसे ही नीचे हुआ, मेरा लंड चूत की दरार में एक इंच ही गया होगा कि वो बोली- रुको.
मैं रुका तो कविता बोली- दर्द हो रहा है … रहने देते हैं.
मैंने सोच समझ कर कहा- इसमें दर्द होता है … पीछे वाले में नहीं होगा.
उसके मुँह से निकल गया- तू भी …!
मैंने पूछा- क्या तू भी?
वो धीरे से बोली- मेरा मतलब तू भी मानेगा नहीं …
मैं हंस दिया और कहा- आज मजा लेने का मन है.
वो ये सुन कर चुप रही, मैंने उसे उठाया और बेड से उतर कर बेड पर हाथ रखवा कर कविता को घोड़ी बना दिया. ऐसा मैंने इसलिए किया … क्योंकि मुझको उसकी गांड ज्यादा पसन्द थी. अब उसकी गोरी और मोटी जबरदस्त गांड मेरे सामने थी. अपने मुँह से थूक लेकर उसके गांड के होल पर लगाया और उंगली से होल थोड़ा ढीला किया.
उसकी कामुक सिसकारियां निकल रही थीं.
मैंने अपने लंड पर भी थूक लगाया और गांड के छेद के निशाने पर रखा. अपने हाथ से उसके चूतड़ों को पकड़ा ताकि वो आगे को ना भागे. फिर निशाना साध कर एक जोर का झटका मारा तो मेरा आधा लंड कविता की गांड में घुस गया था.
वो दर्द से चीखी- आआहह … निकालो रवि … प्लीज रुका आआह … रवि फट जाएगी रुको … बस अब नहीं होगा मुझसे ये.
मैंने कहा- बस अब दर्द नहीं होगा, मैं रुक गया हूं.
कुछ पल रुक कर मैं अपने थूक से उसकी गांड के छेद को रसीला करता रहा. फिर लंड को धीरे धीरे गांड में अन्दर बाहर करने लगा. मैंने धीरे धीरे पूरा लंड उसकी गांड में अन्दर तक डाल दिया.
कविता की आँखों से आंसू आने लगे, पर शायद वो भी ये ही चाहती थी. मैं भी नहीं रुका, इतना मजा मुझको जिंदगी में कभी नहीं आया था. अब लंड तेजी से अन्दर बाहर होने लगा. मेरे हर झटके के साथ कविता के चूतड़ भी हिल रहे थे और कविता की कामुक सिसकारियां निकल रही थीं ‘हां रवि … अहा … रवि पूरा डालो अह … आआह … आई लव यू रवि …’
उसकी मस्ती को देख कर मेरा लंड और ज्यादा कड़क होकर अन्दर बाहर हो रहा था. कविता भी अब मजे में अपनी गांड मरा रही थी. उसकी चूत पानी पानी हो रही थी. मैंने लंड कविता की गांड से निकाल कर पीछे से ही उसकी चुत पर लगाया और अन्दर डाल दिया. मुझे मालूम था कि चूत में लंड जाते ही ये फिर से चिल्लाएगी, इसलिए मैंने पहले ही अपने हाथ से उसकी आवाज रोक ली, जो बहुत तेज निकली थी.
वो मुझको गालियां देने लगी- साले बहनचोद … फाड़ दी अपनी बहन की चूत बहनचोद कहीं के … कुत्ते … एक दिन में ही दोनों तरफ से फाड़ दिया.
मैं कुछ देर रुका रहा और उसकी चीखों को अनसुना करके अपने लंड पर चूत की गर्मी का मजा लेता रहा. कुछ देर रुकने के बाद मैं धीरे धीरे लंड को अपनी बहन कविता की चूत में अन्दर बाहर करने लगा.
अब उसको भी मजा आने लगा और वो बोलने लगी- अअअह … उहम्म … उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह … उम्मम्म रवि डालो … और तेज और तेज करो … अह मजा आ रहा है.
मैंने भी मन भर कर झटके मारे और बीस मिनट बाद वो झड़ने लगी. उसने मेरे लंड पर ही अपना सारा माल निकाल दिया. उसकी चूत पिघली, तो मेरा भी होने वाला था. मेरी भी रफ्तार बढ़ने लगी और उसे जोरों से चोदने लगा. उसकी हिलती मोटी गांड मेरा और मन खराब कर रही थी.
मेरा होने वाला था, मुझे भी पहली चुदाई के कारण ज्यादा कुछ नहीं पता था कि पानी कहां निकलना है. मैंने बिना सोचे समझे तेज धक्के मारते हुए लंड का सारा माल उसकी चुत में ही निकाल दिया.
कुछ पल बाद मैं कविता से अलग हुआ और कपड़े पहने. कविता ने भी पहन लिए बिना एक दूसरे से बोले हम लोग तैयार हो गए.
फिर मैं वहां से जाने लगा. तो मैंने उससे पूछा- पहले चूत और गांड किससे मरवाई थी?
कविता ने घबरा कर मेरी तरफ देखा और बोली- आपके बड़े भाई से.
मैं उसकी गांड और चूत मारते समय ही समझ गया था कि ये साली खेली खाई है. शुरू में ही जब उसने ‘तू भी …’ कहा था, शक तो मुझे तभी हो गया था कि इसकी किसी ने पहले ही ले ली है.
मैंने उससे पूरी कहानी जाननी चाही तो उसने मुझे बाद में बताने की कही. वो कहानी सारी उसने मुझको दूसरे दिन बताई, जो मैं आपको अगली बार बताऊंगा.
दोस्तो मेरी सच्ची कहानी कैसी लगी. मुझे जरूर बताना.
आपका रवि
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