कहानी का पहला भाग: मेरी सहेली मेरे ग्रैंडफादर से चुद गयी-1
“ओह नो … इट्स हॉरिबल..” मेरे मुख से निकला. अन्दर जो हो रहा था उसे देख कर मैं शॉक्ड रह गयी थी. अन्दर मेरे दादा जी मेरी सहेली सोनल के पास बैठे थे और अपना हाथ उसकी पैंटी के अन्दर डाल दिया था. मैं अन्दर गयी तो वह शर्मिंदा होकर रूम से बाहर चले गए थे.
मैंने सोनल की तरफ देखा, तो उसका गाउन अभी भी उसकी कमर के ऊपर था. उसकी पैंटी चूत की जगह पर गीली हो गई थी. मैंने अपना हाथ उसकी पैंटी के ऊपर से ही चूत पर रखा, उसकी गर्म चूत का रस मेरी उंगलियों पर लगा. मैंने अपनी उंगली नाक के पास ले जाते हुए सूंघा. उसकी रस की मादक गंध मुझे मदहोश करने लगी. उसी उंगली को नीचे ले जाकर मैंने अपने मुँह में डाला और चूसने लगी.
‘उम्म …’ क्या मस्त स्वाद था उसके रस का.
मैंने फिर से मेरा हाथ उसकी चूत पर रखा, तो उसने भी अपना हाथ मेरे हाथों पर रखा. उसकी भी नींद खुल गयी थी. हमारे पास ज्यादा वक्त भी नहीं था, तो मैंने अपना हाथ उसकी चूत पर से हटाया और उसे उठाया.
वह भी झट से ऐसे उठ गई जैसे कि पहले से ही जगी हुई हो. फिर वह नहाने के लिए अपने घर चली गयी.
मैं दिन भर उसी बारे में सोचती रही. सोनल से नजर मिलने में भी अब मुझे शर्म आनी लगी थी. दादाजी ने जो कांड कर रखा हुआ था. क्या पता उस वक्त वह नींद में ना हो और उसे पता चल गया हो कि दादाजी उसके साथ क्या कर रहे थे.
मेरा तो सोच सोच कर दिमाग फट रहा था. पर एक आशा भी थी कि शायद उसने दादाजी को देखा ही ना हो. क्योंकि उसने देखा होता तो उसने उनका विरोध भी किया होता.
उधर दादाजी भी दिन भर मुझसे मुँह छुपाते फिर रहे थे. दोपहर को खाना भी कम खाया था. वे कुछ कहना चाहते थे, पर कह नहीं पा रहे थे. वे कहेंगे तो भी क्या कहेंगे … माँ पापा को मत बताना, वो तो मैं वैसे भी नहीं बताने वाली थी.
इसी सोच में शाम हो गयी, फिर मैंने रात का खाना बनाया और खा कर साफ सफाई की. दिन भर घर के बाहर ही नहीं निकली और जब रात को टीवी देख रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बजी.
दरवाजा खोला तो बाहर सोनल खड़ी थी- अरे नीतू, तुम दिन भर आज बाहर दिखी ही नहीं … क्या कर रही थी दिन भर?
“अरे कुछ नहीं यार … घर की साफ सफाई कर रही थी, आओ ना अन्दर!” मैं अभी भी उससे नजरें चुराकर बात कर रही थी.
वह घर के अन्दर आ गयी और हम दोनों सीधे अपनी रूम के अन्दर चले गए. आज, कल की तरह फ़िल्म देखने की इच्छा नहीं हो रही थी. सुबह की दादाजी की हरकतों की वजह से मैं बहुत नर्वस थी. सोनल को भी वह बात खटकी और उसी ने बातें करना शुरू किया- क्यों नीतू, आज इतनी शांत क्यों हो?
“अरे कुछ भी तो नहीं है.” मैं नकली मुस्कुराहट चेहरे पर लाकर बोली.
तब तक वह मेरे पीछे आकर खड़ी हो गई, उस वक्त मैं बेडशीट बदल रही थी- मैं आ गयी … ये तुम्हें पसंद नहीं आया क्या?
सोनल बोली.
“ऐसा कुछ नहीं.” मैं बोली.
“फिर क्या बात है?” वह थोड़ा मुस्कुराते हुए बोली.
“छोड़ो भी ना …” सुबह के बारे में उससे कैसे बात करूँ … कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
उसने अचानक ही मुझे पीछे से बांहों में भर लिया और मेरे चुचों पर हाथ रख कर मसलना शुरू कर दिया. उसने अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिए और मुझे चूमने लगी. उसकी गर्म सांसें मेरी गर्दन पर महसूस होने लगीं. बेडशीट तो मेरी हाथों से कब की फिसल गई थी और मैंने आंखें बंद करके अपना सिर ऊपर कर दिया.
तभी उसने अपना हाथ पीछे से मेरी चूत पर रखकर कहा- तुम कल की दादाजी की हरकत की वजह से नाराज हो क्या?
मैं एक पल के लिए तो चौंक गई कि सोनल ये सब कह रही है मतलब उसकी रजामंदी से ही दादाजी वो सब कर रहे थे.
मैंने सामान्य होकर कहना शुरू किया- सॉरी यार … मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि मेरे दादाजी ऐसी हरकत करेंगे.
“इट्स ओके डियर … होता है कभी कभी … मैंने तुम्हें कुछ बोला क्या? तुम क्यों शर्मिंदा हो रही हो?” यह कहकर उसने मेरे स्तनों को जोर से भींच लिया और अपने स्तनों को मेरी पीठ पर दबा दिया.
“चलो वो सब भूल जाओ … जो हो गया सो हो गया … अब एक पोर्न फिल्म देखते हैं, मैं यह फ़िल्म खास राकेश के पास से लाई हूँ.”
मुझे वैसे ही बांहों में पकड़ कर वो टेबल के पास ले गयी, फिर लैपटॉप चालू करके उसने पेनड्राइव को लगा दिया. खुद कुर्सी पर बैठ कर मुझे अपनी गोद में बिठाया. जब तक फ़िल्म चालू नहीं हुई, तब तक वह मेरे चुचों से खेलती रही और मेरे ग़ालों पर किस करती रही.
फ़िल्म शुरू हो गयी, अभी फ़िल्म में उस लड़की के कपड़े भी नहीं उतारे थे, तब तक तो सोनल ने मेरा गाउन जांघों तक ऊपर खींच लिया था और मेरी पैंटी पर कब्जा जमा दिया था. उस फिल्म में एक बूढ़ा आदमी एक जवान लड़की को कैसे पटाता है और कैसे चोदता है, वह दिखाया गया था. मुझे उस फिल्म में दादाजी ही चुदाई करने वाले मर्द समझ आ रहे थे.
सच में ये बहुत ही मादक फ़िल्म थी. मेरी चूत ने लिसलिसा सा पानी छोड़ना चालू कर दिया था. उस फिल्म की वजह से वैसे ही चूत में आग लगी हुई थी.
ऊपर से सोनल की मेरी चूत पर घूमती हुई उंगलियों की वजह से मेरी चूत गर्म हो कर पानी छोड़ने लगी.
फिर हम दोनों बेड पर आ गईं और हम दोनों ने कल की तरह दो तीन घंटे मस्ती की. बाद में हमें नींद आने लगी, तो हम दोनों भी एक दूसरे की बांहों में सो गईं.
रात को तीन बजे मेरी नींद खुली, वैसे तो मैं आधी नींद में ही थी. मैंने घूमकर बाजू में सोई सोनल के बदन पर हाथ डाला तो पता चला कि वह बेड पर नहीं है. मुझे लगा कि शायद वह बाथरूम में गयी होगी, तो मैं फिर से सोने का प्रयास करने लगी. लगभग दस मिनट हो गए लेकिन सोनल अभी तक वापस नहीं आई थी.
फिर मैं ही उठ गई “किधर गयी चुड़ैल…” मैं मन ही मन उसे गाली देते हुए उसे ढूंढने लगी. सभी जगह सन्नाटा था, बाथरूम की तरफ देखा तो बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद था. मतलब वह बाथरूम के अन्दर नहीं हो सकती थी. बेडरूम के दरवाजे की तरफ देखा, तो वह खुला हुआ था. मैं दबे पांव बेडरूम से बाहर निकली, बाहर ठंड पड़ी हुई थी. मैंने इधर उधर देखा, दादाजी के रूम का दरवाजा खुला हुआ था और अन्दर से टेबल लैंप की लाइट बाहर आ रही थी. मैं दबे पांव वहां पर गयी. दरवाजे के अन्दर झाँक कर देखा तो मुझे मेरे ऊपर विश्वास नहीं हो रहा था.
अन्दर दादाजी शांति से सोये हुए थे और सोनल उनके बेड के पास स्टूल पर बैठी हुई थी. उसका हाथ उनकी लुंगी के ऊपर से दादाजी का लंड सहला रही थी. बीच बीच में वह दादाजी के जांघों को सहला रही थी. यह दृश्य सुबह देखे हुए दृश्य से बिल्कुल विपरीत था. मैं उसे बिना कुछ टोके सिर्फ देखती रही.
कुछ देर उसने दादाजी के लंड को धोती के ऊपर से ही सहलाया. उनकी धोती में बन रहा तंबू मैं बाहर से देख सकती थी. दादाजी की भी उस पर कुछ प्रतिक्रिया नहीं थी, ना वो हिल रहे थे, ना उनकी आंखें खुली हुई थीं.
इसकी वजह से सोनल की हिम्मत बढ़ गई और उसने धीरे धीरे दादाजी की धोती ऊपर उठानी चालू कर दी. सोनल ने उनकी लुंगी घुटनों तक ऊपर उठा दी. उनके पैरों के बाल अब साफ साफ दिखने लगे. धीरे धीरे सोनल ने लुंगी उनके जांघों के भी ऊपर सरका दी और उनकी जांघों पर अपनी उंगलियां घुमाने लगी. उसने हल्के से उनके लंड पर अटकी हुई लुंगी को उंगली से निकाल कर उनके पेट पर धकेल दी.
आश्चर्य की बात यह थी कि दादाजी ने लुंगी के अन्दर कुछ भी नहीं पहना था. सोनल ने हल्के से अपनी उंगलियां उनके लंड पर घुमा दीं.
अब दादाजी की नींद टूटी और उन्होंने अपनी आंखें खोलीं. सोनल को सामने देख उन्हें आश्चर्य हुआ, पर उनके नींद से जगने पर सोनल को कुछ भी फर्क नहीं पड़ा. सोनल का हाथ अपने लंड पर देखकर उन्होंने अपनी आंखें बड़ी की, पर उन्होंने उसके हाथ को अपने लंड से हटाया नहीं. उल्टा उन्होंने उसे स्टूल पर से उठाया और बेड पर अपने पास बिठा लिया.
सोनल मेरी और पीठ करके बैठी थी और उसका पूरा ध्यान दादाजी के लंड पर था. दादाजी का हाथ लगातार सोनल की पीठ सहला रहा था, तो सोनल का हाथ दादाजी का लंड सहला रहा था.
दादाजी ने अपना हाथ सोनल की पीठ से सीने पर ले गए और उसके कड़क स्तन को जोर से मसल दिया.
“आह … धीरे …” सोनल इतना ही बोली और नीचे झुक गई. उसके होंठ अब दादाजी के लंड के एक इंच नजदीक आ गए थे. सोनल की जीभ उसके होंठों से बाहर निकली और दादाजी के लंड के सुपारे पर घूमने लगी.
दादाजी ने ही अपने दोनों हाथ सोनल के गाउन के ऊपर से ही दोनों स्तनों पर रखे और उनको मसलने लगे.
वैसे सोनल ने दादाजी का लंड छोड़ा और उठकर अपना गाउन उतार दिया. अब वह दादाजी के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी, ब्रा पैंटी तो मेरे बेड पर ही पड़ी थी. उसका जवान नंगा बदन देख कर दादाजी की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने सोनल को फिर से बेड पर बिठाया.
अब सोनल दादाजी की तरफ मुँह कर के बैठ गयी, दादाजी ने उसके नंगे चुचों को हाथों में पकड़ कर मसलने लगे और सोनल भी उनके सीने पर के सफेद बालों में उंगलियां घुमाने लगी. दादाजी अपना हाथ उसकी गर्दन के पीछे ले गए और सोनल के सिर को अपनी तरफ खींचा. सोनल के गुलाबी होंठ अपने होंठों पर रखकर उसका रसपान करने लगे.
कुछ देर तक किस करने के बाद दादाजी ने सोनल के सिर को छोड़ा, खुद खड़े हुए और सोनल को बेड पर लिटाकर खुद स्टूल पर बैठ गए. अपने हाथ सोनल की जांघों पर रख कर उसकी जांघें खोल दीं. दादाजी की उंगलियां अब सोनल की टांगों पर घूमने लगीं, फिर धीरे धीरे जांघों पर जा पहुँची. उसकी त्रिकोणीय खजाने पर उगे छोटे छोटे बालों में उंगलियां घुमाने में उनको बहुत मजा आ रहा था और वही मजा उनके चेहरे पर भी झलक रहा था.
जैसे ही दादाजी ने उंगली सोनल की चूत पर रखी, तो सोनल ने अपनी कमर को नीचे से उठा दी. दादाजी ने अपने अंगूठे और उंगली से सोनल की चूत की पंखुड़ियां खोलीं, तो सोनल की चूत का दाना उनके सामने आ गया. सोनल की खुलती बंद होती चूत को दादाजी ने अपनी एक हाथों की उंगलियों से खोल कर रखा था और दूसरा हाथ उसकी चूत की तरफ बढ़ा दिया. उसकी चुत के दाने को दादा जी ने उंगलियों से सिर्फ स्पर्श किया और अचानक ही सोनल की कमर उछल पड़ी.
दादाजी ने उसकी कमर को जोर से पकड़ कर उसके दाने को मींजना चालू कर दिया.
बाहर यह सब देखकर मेरी हालत खराब हो रही थी, मैं गाउन पर से ही मेरी चुत को सहला रही थी. बीच बीच में गाउन ऊपर कर के चुत के अन्दर उंगली करती पर. फिर से गाउन नीचे कर देती … ये सोच कर कि न जाने कब दोनों में से किसी की नजर मुझ पर पड़ जाए.
दादाजी ने सोनल के दाने को छेड़ती हुई उंगली को अपने मुँह में डाली और गीली की, फिर उस उंगली को सोनल की चूत में घुसानी शुरू कर दी. धीरे धीरे अन्दर घुसाते हुए आधी उंगली, फिर धीरे धीरे पूरी उंगली सोनल की चूत के अन्दर पेल दी. अब दादाजी अपनी उंगली उसके चुत के अन्दर बाहर करने लगे, सोनल भी नीचे से कमर हिलाते हुए अपनी चुत दादाजी की उंगली से चुदवाने लगी.
जब उसकी चुत से पानी निकालने लगा, तो दादाजी ने दूसरे हाथ की उंगली पर वह पानी लिया और उस उंगली को चाटने लगे. फिर दादा जी ने अपनी दूसरी उंगली को उसकी बुर में पेलना जारी रखा.
कुछ देर उनका खेल ऐसे ही चलता रहा, लेकिन फिर सोनल उत्तेजना के चरम पर पहुंच गयी और अपनी दोनों टांगें भींच कर झड़ने लगी. दादाजी ने उसका पूरा रस निकाल दिया था. दादाजी का तना हुआ लंड अभी भी मेरी नजरों के सामने था, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा था कि इस उमर में भी किसी का लंड खड़ा हो सकता था और वह भी इतना कड़क. उनके लंड के ऊपर की टोपी तो बहुत ही बड़ी थी, मैं उनके लंड को देख ही रही थी.
तभी वे अपनी जगह से उठे और सोनल के पास जाकर लेट गए. अब सोनल की बारी थी, सोनल ने अपना हाथ उनके लंड पर रखा और उसके साथ खेलने लगी. उनका खड़ा हुआ लंड देखकर वह बहुत ही उत्तेजित हो गई थी, उसकी नजरें अभी भी दादाजी के किसी बड़े आंवले के जैसे सुपारे पर ही टिकी हुई थीं.
सोनल अब दादाजी के पेट पर सर रख कर सो गई, उसका मुँह दादाजी के लंड की तरफ ही था. उसने आगे बढ़कर दादाजी के लंड पर अपनी जीभ घुमाई, तो दादाजी के लंड में हुई थरथराहट मुझे बाहर तक दिखाई दी. धीरे धीरे सोनल के होंठ दादाजी के लंड को आगोश में लेना शुरू कर दिया और लंड को चूसने लगी.
उधर बाहर मैं अपना गाउन ऊपर उठा कर मेरे चुत के दाने को ज़ोरों से घिसना शुरू कर दिया था. अन्दर सोनल को दादाजी के सुपारे को मुँह में लेकर चूसते देख कर उत्तेजना से मेरी आंखें बंद होने लगी थीं. जब मेरी आंखें खुलीं, तब तक तो सोनल ने दादाजी के लंड को पूरा का पूरा अपने मुँह में ले लिया था. दादाजी भी नीचे से धक्के दे करके सोनल का मुँह चोद रहे थे.
सोनल ने अब उनका लंड अपने मुँह से बाहर निकाल लिया था. फिर वो उनके ऊपर चढ़ते हुए अपनी चुत दादाजी के लंड के ऊपर ले आयी. उसका मुँह दादाजी की तरफ था, उनकी आंखों में देखते हुए उसने एक हाथ से उनके लंड को अपनी चुत की दरार पर रखा और उनके लंड पर बैठ गई. चार पांच बार ऊपर नीचे करने के बाद आखिरकार दादाजी का पूरा लंड सोनल की चूत के अन्दर चला गया.
अब सोनल की उठक बैठक की कसरत शुरू हो गयी. पूरे कमरे में उनकी सिसकियों की आवाजें गूंज रही थीं. सोनल के कमर के हिलने की स्पीड बढ़ती जा रही थी, जोर ज़ोर से उसके नितम्ब दादाजी के बदन पर टकरा रहे थे. कुछ देर ऐसे ही तूफानी चुदाई करने के बाद वह अचानक से रुक गई, शायद दादाजी का पानी सोनल की चूत में ही गिर गया था और सोनल भी उसी वक्त झड गयी थी. सोनल अब आगे झुक कर दादाजी के सीने पर गिर गई.
कुछ देर बाद सोनल ने अपना मुँह ऊपर उठाया और अपने होंठ दादाजी के होंठों पर रख दिये. थोड़ी देर चूमने के बाद सोनल दादाजी के ऊपर से उठी और अपने कपड़े पहनने लगी.
मैंने घड़ी में देखा तो रात के साढ़े चार बजे थे, मैं भी दबे पांव वहां से निकल कर अपने रूम में आकर सो गई. मैंने जो भी देखा था, मुझे उस पर विश्वास नहीं हो रहा था … पर सब सच था.
थोड़ी देर बाद सोनल भी रूम में आ गयी, दरवाजे की कुंडी लगाकर बेड पर आकर फिर से मेरी बांहों में आकर सो गई.
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