अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार।
दोस्तो, मैं इस साइट का दस वर्षों से नियमित पाठक हूँ और तहेदिल से इस साइट और लेखकों का शुक्रगुजार हूँ क्योंकि इसकी कहानियों ने मुझे कामकला में पारंगत बनाया है.
साथ ही मैं आप लोगों का गुनाहगार भी हूँ क्योंकि पिछले आठ वर्षों में मैंने अनगिनत अंतरंग संबंध बनाए हैं पर जब भी आप लोगों के लिए कुछ लिखना चाहा तो कंफ्यूज हो गया कि क्या लिखूं!
एक वाकया लिखता तो उससे बेहतर दूसरा याद आता … दूसरा लिखता तो तीसरा याद आता. इसी जद्दोजहत में कहानी धरी रह जाती थी।
खैर उम्मीद करता हूँ कि कहानी पढ़ने के बाद आप लोग मुझे माफ़ कर देंगे।
आइये अपने बारे में बताता हूँ. मैं नवनीत शर्मा पुणे से हूँ, छह फीट दो इंच हाइट का फिट और फुर्तीला इंसान हूँ. अतिशयोक्ति नहीं करूँगा पर मेरा औजार मेरी हाइट के अनुपात में ही है. छाती बालों से भरी है जो मेरे पार्टनर्स को बहुत पसंद आती है।
मैं एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पद पर एरोनॉटिकल इंजिनीयरिंग विभाग में हूँ। मेरी लंबाई, हाजिर जवाबी और मिलनसार नेचर के कारण मैं सभी को आसानी से आकर्षित कर लेता हूँ खासतौर पर लड़कियों और भाभियों को।
एक बात और बताना चाहूंगा दोस्तो … मुझे तसल्ली वाला सेक्स करना पसंद है, मैं मेरे पार्टनर को हमेशा प्यार, आदर और केअर के साथ हैंडल करता हूँ। एक बार सेक्स करना शुरू करता हूँ तो वक़्त का ध्यान नहीं रहता. मैं कहानी में शायद ये न बता पाऊँ कि मैं कितनी देर किस किया, कितनी देर ओरल किया और कितनी देर शॉट लगाये।
बस मेरे लिए मेरी और मेरे पार्टनर की तृप्ति ही सर्वोपरि होती है।
आइये ज्यादा बोर न करते हुए आपको अपनी देवर भाभी की कहानी पर ले चलता हूँ। मैं पुणे के खराड़ी एरिया में रहता हूँ यहीं मेरा ऑफिस भी है।
मेरे दूर के रिश्ते के भैया भाभी भी इसी एरिया में रहते हैं.
यह मुझे तब पता लगा जब मैं ट्रेन से पुणे आ रहा था और वो भी अचानक उसी ट्रेन में मिल गए। बहुत सालों पहले भैया से मिला था तब उनकी शादी नहीं हुई थी.
वो मुझे अपने साथ अपनी सीट पे ले गए जहां भाभी और उनकी दो साल की बेटी भी थी।
अब भाभी की खूबसूरती बयां करता हूँ. उनका रंग गोरा, न मोटी न पतली, शरीर में सभी जगह परफेक्ट अनुपात में माँस बँटा था। फिगर भी 34-30-32 का था। कुल मिला कर उन्होंने मेरे अंदर एक हलचल पैदा कर दी थी।
पर भैया के सामने होने के कारण मैंने कुछ जाहिर नहीं किया।
दिन भर का सफर भैया भाभी के साथ बातें करने, दूसरे रिश्तेदारों को याद करने और उनकी बिटिया के साथ खेलने में निकल गया।
इस तरह मैं उनसे काफी हिल मिल गया और वो भी मुझसे खुल गई।
हम सब ने अपने-अपने घर से लाया हुआ खाना मिलकर खाया और फिर मैं अपनी सीट पर आकर सो गया.
पर भाभी की सुंदरता ने मेरे अंदर आग सी लगा दी थी।
दोस्तो, जितनी आनंददायक चुदाई होती है उतना ही रोमांचक उसको हासिल करने का सफर भी होता है। प्रेयसी की छोटी से छोटी बात के मायने निकलना उसके इरादों को समझने की कोशिश करना, अपनी बात समझाने की कोशिश करना, इन सब में गांड फटी में रहती जब एक-एक कदम आगे बढ़ाते हैं कि कहीं बात बिगड़ न जाये और इज्जत का कचरा न हो जाये.
खैर इस दौर का भी अपना ही एक मज़ा है, रोमांच है।
अब आते हैं असल देवर भाभी कहानी पे:
मैंने भाई भाभी के घर आना जाना, बाहर साथ में घूमना फिरना शुरू कर दिया था. मेरा स्वभाव उन सबको बहुत पसंद आता था खासकर भाभी को।
मैं भाभी का बहुत ख्याल रखता था। हम दोनों की पसंद बहुत मिलती थी। धीरे धीरे व्हाट्सएप पे चैट और जोक्स शुरू हो गए। बहुत वाहियात तो नहीं फिर भी थोड़े-थोड़े दोअर्थी मेसेज आना जाना भी शुरू हो गए।
जब भी मैं उनके घर जाता उनके बाथरूम में टंगी उनकी ब्रा पेंटी को जरूर सूंघता, चूमता चाटता और अपने लंड पे रगड़ कर मुठ मारता।
उनकी बेटी थोड़ी बड़ी हो गई तो भाभी ने भी जॉब जॉइन कर लिया।
एक दिन भैया ने बताया कि उन्हें दो महीने के लिए लंदन जाना पड़ेगा। निर्णय यह हुआ कि भाभी जॉब जारी रखेंगी और बेटी को दादा दादी के पास भेज दिया जाएगा।
मेरे मन में लड्डू फूटना शुरू हो गए।
फिर वो दिन भी आ गया जब भाई को मैं ही एयरपोर्ट ड्राप करके आया भाभी साथ में ही थी।
लौट कर भाभी की सोसाइटी के नीचे ड्राप करके लौटने लगा तो वो बोली- एकदम से अकेले मुझे बुरा लग रहा है. आप थोड़ी देर रुक चाय पीकर चले जाना।
मैं मान गया और उनके साथ ऊपर चला गया उनके फ्लैट पर।
मैं भाभी को हंसाने की पूरी कोशिश कर रहा था पर भाभी कुछ उदास थी जो स्वाभाविक भी था।
इस दौरान मैंने भाभी की खूबसूरती को जी भर के निहारा जो उन्हें समझ में आ रहा था। चाय का राउंड हुआ तो मैं आने लगा हालांकि मेरा मन नहीं था आने के और उनका भी मन नहीं था मुझे वापस भेजने का।
फिर वो ही बोली- अब डिनर कर के चले जाना.
मैं थोड़ी न नुकुर करने के बाद मान गया.
पर इतनी देर हम दोनों क्या करते … मैंने सुझाव दिया- चलो मार्किट हो के आते हैं.
वो मान गई।
मैंने अपनी कार उनकी पार्किंग में लगाई और भाई की पल्सर लेकर मार्किट जाने लगे। अब भाई की गाड़ी और बीवी दोनों मेरे पास थे।
मुझे थोड़ा संकोच लग रहा था पर भाभी मेरे पीछे दोनों पैर डाल के बैठ गई। मैं बहुत खुश था। लेना तो कुछ था नहीं … ऐसे ही टाइमपास कर रहे थे हम लोग बाजार में घूमते फिरते।
इतने में बारिश का मौसम हो गया और हम लोगों ने घर लौटना ही ठीक समझा.
पर घर आते आते बारिश शुरू हो गई और हम लोग पूरे भीग गए। लिफ्ट में दाखिल हुए तब मैंने भाभी को देखा उनकी टॉप भीग कर उनके शरीर चिपक गयी थी और उनके जिस्म का एक-एक कटाव उभर के दिख रहा था।
मैं भी अंदर से धधक रहा था जो मेरे पैंट में साफ दिख रहा था और भाभी की नज़रों से छिपा नहीं था।
खैर हम दोनों फ्लैट में दाखिल हुए भाभी मुझे तौलिया देकर झट बाथरूम में घुस गई। इधर मैंने अपने पूरे गीले कपड़े उतार कर तौलिया लपेट लिया।
उतने में भाभी की बाथरूम से आवाज़ आई- भैया ज़रा मेरे कपड़े पकड़ा दो … बालकनी में सूखने डले हैं।
उन्होंने साफ साफ नहीं बोला कि ब्रा पैंटी भी चाहिए, बस ये बोली कि अंदर के कपड़े और गाउन दे दो।
मुझे मसखरी सूझी, मैंने पूछा- अंदर के मतलब?
तो वो बनावटी गुस्से में बोली- बाहर आकर पिटाई लगाऊँगी.
मैंने फिर चुटकी ली- भाभी जान, ऐसे ही बाहर आओगी क्या?
उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया और कहा- प्लीज जल्दी दे दो, ठंड लग रही है।
मैंने भी ज्यादा देर न करते हुए उन्हें ब्रा पैंटी और गाऊन दे दिया। मेरे मन से डर निकल चुका था, जब कपड़े दे रहा था तो मैं अंदर झांकने की कोशिश भी कर रहा था।
भाभी दरवाजे के पीछे सिमटी हुई थी पर उनकी पीठ, गांड और सीने के उभार थोड़ा दिख रहा था।
मैं गरम हो रहा था।
भाभी दो मिनट बाद बाहर आई. तब तक मैं तौलिये में ही खड़ा था और मेरा हथियार भी उठा हुआ था। भाभी मेरी बालों वाली छाती निहार रही थी।
मेरे सारे कपड़े गीले हो चुके थे तो भाभी ने भैया के कपड़े पहनने के लिए दिए। वो लगातार मुझे निहारे जा रही थी और मैं उन्हें!
जब वो कपड़े देकर कमरे से बाहर जा रही थी, तब अचानक पता नहीं कैसी उत्तेजना की लहर हम दोनों के शरीर में दौड़ी कि बिना कुछ कहे कुछ ही सेकण्ड्स में हम एक दूसरे से चुम्बक की तरह चिपक गए। हम एक दूसरे को अपने अंदर समा लेना चाहते थे।
आमने सामने से चिपकने के बाद मैंने उन्हें पीछे से दबोच लिया पर मेरी मेरी हाइट ज्यादा होने के कारण मुझे बहुत झुकना पड़ रहा था और उनसे सही से चिपक नहीं पा रहा था तो मैं वहीं फर्श पर पालथी मार का बैठ गया और भाभी को भी अपनी गोद में पीठ अपनी तरफ करके बैठा लिया। बैठते वक्त मेरा टॉवेल फैल गया और लंड बाहर निकल आया.
भाभी उसी पर बैठ गई. बैठते ही थोड़ा उचकी पर पोजीशन सेट करके मैंने वापस गोद में जकड़ लिया.
फिर शुरू हुआ चुम्बनों का सिलसिला!
उनके बारिश में भीगे बाल गालों और गले से चिपके हुए थे। मैं उन पर चुम्बनों की बौछार कर रहा था और मेरे हाथ उनके बूब्स मसल रहे थे. मेरे हाथों के ऊपर हाथ रखकर वो अपनी उत्तेजना को नियांत्रित करने की नाकाम कोशिश में लगी हुई थी।
बैठे बैठे ही मैंने उनकी गाउन कमर तक खिसका दी थी। पीठ गले और गालों पे किस करने के बाद हमारे होंठ आपस में मिल गए, वो अपना चेहरा पीछे मोड़ कर और मैं उनके चेहरे पर झुक कर न जाने कितनी देर तक किस करते रहे.
तभी मेरा दायां हाथ उनकी पैंटी में उतर गया। अंदर कामरस से भीगी चिकनी हुई चूत पर मैंने उंगलियाँ फेरनी शुरू की और भाभी मचलने लगी।
मैंने गले, गर्दन, होंठ बूब्स और चूत पर चौतरफा हमला बोल दिया था। हम दोनों पागल हुए जा रहे थे।
फिर थोड़ा रुककर भाभी को गाउन उतार कर बेड पर सीधे लिटा दिया। उनकी खूबसूरती देखने लायक थी.
मैं उनके ऊपर चढ़कर फिर उन्हें चूमने लगा।
चूमते हुए मैंने नीचे सरकना शुरू किया। माथा गाल, आंखें, होंठ से सीने पे आया उनको दूधघाटी को चूमते मसलते हुए उनकी ब्रा खिसका दी और उनके बेहद ही ख़ूबसूरत बूब्स को चूसने और मसलने लगा।
वो भी मेरा सर अपनी छाती में दबा रही थी।
मैं उनके अंडरआर्म को चूस और चाट रहा था। पसीने की हल्की सी गंध परफ्यूम और साबुन की खुश्बू के साथ मिलकर मुझे पागल किये दे रही थी।
फिर नीचे खिसकते हुए मैंने उनकी पैंटी पर दस्तक दी।
बहुत हद तक पहले ही गीली हो चुकी पैंटी मैं सूंघ रहा था. यह वही पैंटी थी जिसे मैंने कई बार बाथरूम में सूंघा और लंड पे रगड़ा था।
आखिर पैंटी को भाभी के शरीर से जुदा होना पड़ा। इस दौरान मेरा तौलिया जाने कब मेरा साथ छोड़कर फर्श पे पड़ा था. अब हम दोनों एकदम नंगे एक दूसरे के सामने थे.
फिर मैंने भाभी की जांघों को चूमना शुरू किया। वो कसमसाने लगीं.
मैंने धीरे धीरे उनके पैरों को खोलना शुरू किया और मुझे वो दिख ही गया जिसके लिए मैं बेचैन था। एक संकरी से लकीर थी जो जांघें फैलाने पर खुलकर अपना जादू दिखाने पर आमादा थी; हल्का भूरापन लिये भाभी की चूत बहुत ही खूबसूरत लग रही थी।
मैंने बिना देर किए अपना मुंह उनकी चूत पर लगा दिया। तुरंत खुशबूदार साबुन से नहाने और कामरस की मिश्रित सुगन्ध मुझे पागल कर रही थी।
मैंने अपनी जीभ से उन्हें चोदना शुरू किया। वो पागल हुई जा रही थी, मेरा सर दोनों जांघों के बीच में घुसा लेना चाहती थीं। वो अपनी एड़ियां मेरी पीठ पर घिस रहीं थी। मैं जीभ को नुकीला कर के उनकी गांड के छेद से लेकर ऊपर चूत के दाने तक घिस रहा था. बीच में चूत का छेद का स्टॉप पड़ता तो उसमें जीभ थोड़ी लपलपा देता।
ऊपर मेरे दोनों फावड़े जैसे हाथ उनके स्तनों का मर्दन कर रहे थे. उनके निप्पल्स को मैं मटर के दाने जैसा तीन उंगलियों से मसल रहा था। इन सब के सामने भाभी ज्यादा देर न टिक पाई और नमकीन कसैली सी रसधार छोड़ दी जिसे मैं पूरा गटक गया।
उन्होंने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया और मैं वापस उन्हें चूमता हुआ ऊपर की ओर बढ़ने लगा और बगल में लेट गया।
मेरा लंड छत की ओर तना हुआ था। मैंने उसे भाभी के हाथ में पकड़ा दिया। लंड पकड़ के वो मुझसे चिपक गई। फिर वो बेड के किनारे पैर नीचे करके बैठी और मैं अपना लंड उनके मुख के पास लेकर खड़ा था.
वो मेरा इशारा समझ गई पर उन्होंने नाक सिकोड़ कर मुँह में न लेने का इशारा किया।
मैंने जबरजस्ती नहीं की।
जो कामक्रिया स्वेच्छा से हो वही करनी चाहिए।
मैं फिर फर्श पर बैठ गया और उन्हें बेतरतीबी से सभी जगह चूमने लगा। हम दोनों का शरीर अब लंड और चूत का मिलन माँग रहे थे।
देर न करते हुए मैंने उनके पैर फैलाये और लंडराज को उनकी गुफा के मुहाने पर रख दिया। मध्यम ताकत के धक्के से मेरा लंड आधा उनकी चूत में घुस गया.
भाभी जान के मुख से प्यारी सी सिसकारी निकली ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
भैया दो महीने के लिए जाने से पहले उनकी अच्छी मरम्मत करके गए थे शायद।
एक और झटके के साथ मैंने पूरा लंड अंदर उतार दिया। फिर धकमपेल चुदाई का सिलसिला शुरू हुआ।
पता नहीं कितनी देर बाद हम दोनों देवर भाभी फ़ारिग़ होने को हुए। आंखें खोल कर एक दूसरे से इशारों में तय हुआ कि मैं उनके अंदर ही झड़ जाऊं।
कुछ धक्कों के बाद मैं झड़ने लगा, वो भी साथ ही आ गई ,फिर से एक दूसरे से को अपने अंदर समा लेने की कोशिश शुरू हुई। पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे में लिपटे पड़े रहे।
नज़र पड़ी तो घड़ी साढ़े दस बजा रही थी।
भाभी बोली- खाना बना लेती हूँ.
लेकिन मैंने बाहर ऑर्डर करके समय बचाने का सुझाव दिया।
वो मान गई।
मैंने ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया और हम फिर प्यार करने में जुट गए।
थोड़ी देर में खाना आ गया, एक दूसरे को प्यार से खाना खिलाने के बाद फिर सेक्स का दौर शुरू हुआ.
और सच कहूँ दोस्तो … मुझे याद नहीं कि रात कब तक ये दौर चला।
सुबह नींद खुली तो भाभी भी नींद से जागी हुई थी पर बेड पर साथ में लेटी थी।
वो दो दिन शनिवार रविवार थे और हमने छुट्टी का पूरा लुत्फ उठाया। फिर अगले दो महीने तो मेरी बेरोकटोक मज़े थे.
उसके बाद भी हम प्यार करने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे।
अफसोस कि अब भैया भाभी नोएडा शिफ्ट हो गये हैं और अब हम देवर भाभी के बीच फोन सेक्स और पुराने लम्हों को याद करने के अलावा कुछ नहीं होता।
देवर भाभी की गर्म चुदाई पर आप अपनी प्रतिक्रियाएं नीचे दिए मेल पर दे सकते हैं। आप लोगों के लिए अपनी कहानियों की पोटली में से फिर कुछ लेकर हाजिर होऊंगा. तब तक के लिए विदा।
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