सम्मोहन से पत्नी का कायाकल्प किया

सम्मोहन से पत्नी का कायाकल्प किया


हसबैंड वाइफ पोर्न कहानी में पढ़ें कि मैंने लव मरीज की. शादी से पहले बीवी ने सेक्स नहीं करने दिया था. पर शादी के बाद भी वो ठंडी ही रही. मैं प्यासा रह जाता था.
नमस्कार दोस्तो, अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है हसबैंड वाइफ पोर्न की।
मैं एक शादीशुदा, बहुत ही कामुक आदमी हूँ, जिसकी कल्पनाओं में अपनी पत्नी, और पराई औरतों और लड़कियों के लिए वासना की कहानियाँ चलती रहती हैं।
मैं वैसी ही कुछ कहानियाँ आपके साथ बाँटना चाहता हूँ, और आशा करता हूँ कि उनसे आपकी वासना भी वैसे ही भड़के जैसी मेरी भड़कती है।
सारी कहानियाँ काल्पनिक हैं लेकिन पात्र असल ज़िंदगी से प्रेरित हो सकते हैं।
पढ़ने के बाद आप जो भी टिप्पणी करेंगे, उनका सम्मान करते हुए मैं अपना लेखन बेहतर करने का पूरा प्रयास करूँगा।
मेरी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी।
एक कारण उसका शायद यह था कि मेरे पापा की नौकरी ऐसी थी, उनका तबादला बहुत जल्दी-जल्दी होता था।
तो किसी भी जगह 2-3 साल से ज़्यादा पैर टिके ही नहीं।
नुकसान यह हुआ कि ज़्यादा लम्बी दोस्तियाँ नहीं हुई, लेकिन फ़ायदा ये हुआ कि जगह – जगह के रोचक लोग मिले, और किताबों से दोस्ती गहरी हुई।
ऐसे ही एक रोचक व्यक्ति थे वर्मा अंकल।
वैसे तो सरकारी कर्मचारी थे, लेकिन पढ़ने – लिखने के शौक़ीन थे और सम्मोहन विद्या के जानकार।
उन्हें मुझसे बात करके बहुत ख़ुशी होती थी।
हम दुनिया – जहान की बातें करते।
शायद उन्हें भी अपने जैसा कोई और इंसान उस सरकारी कॉलोनी में नहीं मिला होगा।

एक दिन मैंने उनके पास सम्मोहन की किताबें देखीं और उस पर बात करनी शुरू की।
मेरी रुचि देख कर उन्होंने मुझे सम्मोहन – विद्या सिखाई, ख़ासकर आत्म-सम्मोहन, जिसका फ़ायदा मुझे अपने स्कूल की पढ़ाई में बहुत मिला।
लेकिन कॉलेज जाने के बाद ये सब छूटता चला गया।
नए दोस्त, नए अनुभवों ने सब भुला दिया।
पापा का भी फिर से तबादला हो गया और फिर वर्मा अंकल से मुलाक़ात नहीं हुई।
कॉलेज में आरती से प्यार हुआ और फिर शादी।
शादी से पहले हमने सेक्स नहीं किया था क्योंकि इस मामले में आरती के ख्याल रूढ़िवादी थे।
गले लगना और चूमने से ज़्यादा उसे शादी से पहले ठीक नहीं लगता था।
ये मेरे लिए थोड़ा भारी पड़ता था क्योंकि मैं तो बहुत ठरकी इंसान था, लेकिन पोर्न और अश्लील साहित्य के सहारे वो समय भी निकाल लिया।
नतीजा यह हुआ कि शादी के बाद मेरे अरमान काफ़ी थे।
सोचा था कि सुबह-शाम बीवी के साथ सेक्स करेंगे।
काफ़ी सारे अरमान तो हनीमून पर ही चकनाचूर हो गए।
समझ में आ गया कि आरती के पास संस्कार ज़्यादा और ठरक कम थी।
2-3 दिन में एक बार सेक्स उसके लिए बहुत ज़्यादा था।
जब तैयार होती, तब साथ दे देती थी लेकिन पहल नहीं करती थी।
मुद्राओं में मिशनरी से आगे बढ़ना उसे पसंद नहीं था।
मैंने कई तरह से पूछा कि उसकी क्या इच्छायें हैं, कैसी फ़ैंटसी हैं, क्या कामुक हरकतें अच्छी लगती हैं, पर कुछ ज़्यादा पता नहीं चला।
लंड चूसने में एकदम नेचुरल थी लेकिन उसके लिए कभी-कभार ही राज़ी होती थी।
चूत चटवाने के लिए मना कर देती थी।
कामुक अंतर्वस्त्र पहनने में असहज महसूस करती थी।
ख़ैर, मैं भी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं था।
कई सालों तक काफ़ी प्रयास किया आरती को खोलने का … थोड़ी सफलता भी मिली।
लेकिन थोड़ी सी सफलता के लिए इतनी ज़्यादा मेहनत लग रही थी कि मेरी कोशिशें कम होती गई।
फिर सेक्स महीने में एक बार, फिर 2-3 महीने में एक बार से होते हुए साल में 2-3 बार की कगार पर आ गया।
मैं फिर से पोर्न और अश्लील कहानियों के सहारे जीने लगा।
ज़िंदगी में बदलाव आया 30 की उमर में।
उस साल 2 बातें हुईं।
पहला, आरती ने पार्ट-टाइम MBA चालू किया.
और दूसरा हमारे जीवन में पिंकी और पम्मी आए।
पिंकी और पम्मी लुधियाना से थे।
कॉलेज स्वीट्हॉर्ट, जिनकी 2 साल पहले ही शादी हुई थी।
पम्मी हँसमुख और पिंकी चुलबुली।
पम्मी मेरी कम्पनी में मेरा जूनियर था, 24 साल का जवान लड़का।
ये लोग दिल्ली में नए थे तो मैंने और आरती ने इनकी काफ़ी मदद की थी।
इसलिए पिंकी और पम्मी से अच्छी दोस्ती हो गई थी।
दोनों हमें काफ़ी मान देते थे।
पिंकी पम्मी से 2 साल छोटी थी।
छरहरा बदन, मादक गोलाइयाँ, तीखे नैन – नक़्श।
ड्रेसिंग सेंस भी अच्छा था, हमेशा सूट, जींस या ड्रेस पहनती थी।
पहली बार जब देखा तो देखता रह गया था।
वो भी हँस पड़ी थी मुझे इस हालत में देख कर!
पर उसने कभी बुरा नहीं माना, हमेशा मुझसे हंसी-मज़ाक़ करती थी, पास में बैठ जाती थी, जब भी मिलते तो दिल से गले लगाती।
पम्मी और आरती ने कभी कोई ऐतराज नहीं किया।
मेरी नीयत ज़रूर ख़राब हो गई थी।
कैसे ना होती?
प्यासे के सामने पानी रख दोगे तो मन नहीं ललचाएगा?
हम लोग कभी घर पर दारू पार्टी करते, तो मैं कभी – कभी पिंकी के गालों को चूम लेता।
ऐसे माहौल में पम्मी भी आरती से मौक़ा देख कर चिपक जाता।
पर बात कभी इससे आगे नहीं बढ़ी।
हाँ, ये ज़रूर था कि ऐसी दारू पार्टी के बाद मैं और आरती कभी सेक्स करते, तो मैं आँखें बंद करके पिंकी की कल्पना कर रहा होता।
और आरती?
क्या वो भी तब चुदवाते हुए पम्मी के बारे में सोचती थी?
और क्या पिंकी – पम्मी भी हमारे बारे में सोचकर चुदाई करते होंगे?
उनका पता नहीं … पर ये सब सोच-सोच के मेरा दिमाग़ ज़रूर ख़राब हो जाता।
अपने अरमानों को ठंडा करने के लिए मैं फिर से आरती के साथ ज़्यादा सेक्स करने की कोशिश करने लगा।
आरती साथ देने की कोशिश करती थी लेकिन दिन में ऑफ़िस और शाम को MBA की क्लास लगाने के बाद उसके पास दम ही नहीं बचता था।
जिन दिनों उसकी क्लास नहीं होती थी, उन दिनों या तो होमवर्क होता था, या पढ़ाई करनी होती थी।
उसकी ऐसी हालत देख कर मैंने भी उसे परेशान करना छोड़ दिया और इस बात पर ध्यान लगाया कि आरती की जिंदगी कैसे आसान बना सकूँ।
घर के कामों के लिए नौकर – चाकर थे तो मैं उसके काम और पढ़ाई और बाकी चीजों में मदद करने की कोशिश करने लगा।
“यार! पढ़ाई ही नहीं हो रही!” एक दिन उसने किताब पटकते हुए कहा- सारी आदत ही छूट गई है।
“कोई बात नहीं” मैंने कहा- करते – करते आदत भी फिर से बन जाएगी। थोड़ा टाइम लगेगा बस!
“अरे टाइम ही तो नहीं है! ये लोग तो धड़ाधड़ होमवर्क, असायन्मेंट, क्विज़, टेस्ट, लिए जा रहे हैं। क्लासें इतनी तेज़ी से भाग रही हैं, कि कुछ मिस किया तो कवर करना नामुमकिन। ऊपर से ऑफिस का काम अलग! ये कौन सी मुसीबत मोल ले ली मैंने?”
“शांत हो जाओ, और मुझे ये बताओ कि सबसे बड़ी दिक्कत क्या है अभी?”
“बताया तो! पढ़ने का रूटीन ही नहीं बन रहा। इतनी सारी चीजें एक साथ चल रही हैं कि पढ़ने बैठो तो ध्यान भटकता रहता है।”
“इसका हल शायद मैं कर सकता हूँ।”
“कैसे?”
“मेरा बचपन में पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगता था। किताबें पसंद थीं, पर स्कूल की नहीं। तब पड़ोस के एक अंकल ने सम्मोहन का इस्तेमाल करके मदद की थी। इसी दौरान मुझे भी ये विद्या सिखाई थी।”
“सम्मोहन, मतलब जादू – टोना?” आरती ने हँसते हुए पूछा।
“जादू नहीं मेरी जान, ये भी विज्ञान है।”
“अच्छा जी? क्या विज्ञान है? हमें भी बताओ।”
“तुमने कॉलेज में मनोविज्ञान पढ़ा था ना? उसमें क्या बताते हैं? एक चेतन मन होता है और एक अवचेतन! सम्मोहन अवचेतन मन से बात करने का एक तरीका है।”
“मतलब?”
“मतलब चेतन मन हर बात की चीर-फाड़ करने का, किंतु-परंतु, अगर-मगर करने का काम करता है, जो कि ज़रूरी काम है, लेकिन कई बार यही काम दिमाग़ को अपनी मंज़िल से भटका देता है। दूसरी ओर अवचेतन मन तर्क पर नहीं चलता। एक बार कोई बात इसमें घुस गई, तो ये उसको सही मान के उस पर चलने लगता है। उदाहरण के लिए, ‘ठंडा मतलब कोका-कोला’ स्लोगन ही ले लो। चेतन मन कहेगा कि क्या बकवास है। ठंडी तो बहुत सारी चीजें होती हैं, सिर्फ़ कोका-कोला थोड़े ही है। इसलिए मुझे जब ठंडा पीना है, तो मैं सबसे अच्छा ठंडा खोजूँगा। लेकिन अगर अवचेतन मन ने मान लिया कि ‘ठंडा मतलब कोका-कोला’, तो फिर जब आपको ठंडा पीने का मन होगा, तो बिना कुछ सोचे कोका-कोला पीने की तलब लगेगी।”
“समझ गई। तो इस सब का पढ़ाई और सम्मोहन से क्या ताल्लुक़ है?”
“तुम्हारा मन पढ़ाई में इसलिए नहीं लग रहा क्योंकि जब तुम पढ़ने बैठती हो, तब दस ख्याल आते हैं। तुम्हें लगता है कि कई और काम हैं करने को! अभी ये पढ़ के टाइम ख़राब तो नहीं कर रही हो? कुछ और तो नहीं करना चाहिए? है ना?”
“हाँ। होता तो है।”
“ये तुम्हारे चेतन मन की करामात है। लेकिन अगर सम्मोहन से तुम्हारे अवचेतन मन में ये बात डाल दी जाए कि सुबह जल्दी उठ कर तुम्हें 2 घंटे पढ़ना है, तो फिर तुम्हारा मन तुम्हें उतना परेशान नहीं करेगा। पढ़ने की आदत लगने में आसानी होगी।”
“अगर सही में ऐसा हो जाए तो बहुत ही बढ़िया होगा। क्या तुम अभी ये कर सकते हो?”
“हाँ, लेकिन ये एक बार की बात नहीं होती। अवचेतन मन में कोई भी बात अच्छे से बिठाने के लिए बार-बार करना पड़ता है। और मैंने कई सालों से ये किया नहीं है, तो पता नहीं कितना समय लगेगा। इसलिए तुम्हें थोड़ा धीरज रखकर कम-से-कम लगातार 10-15 दिन सम्मोहन करवाना होगा।”
“ठीक है। मैं तैयार हूँ। चलो! अभी करते हैं।”
उस दिन मैंने पहली बार आरती को सम्मोहित किया।
जितनी आसानी से वो सम्मोहित हो गई, देख कर मुझे भी आश्चर्य हुआ।
हफ़्ते-भर में ही असर दिखने लगा।
आरती का पढ़ाई का रूटीन बन रहा था और उसकी परेशानियाँ कम होती जा रही थीं।
अपनी काबिलियत पर मेरा भी भरोसा बुलंद हो गया था और अब दिमाग में शैतानी विचार भी आने लगे।
शायद सम्मोहन से मेरी सेक्स-लाइफ का उद्धार हो जाए!
कोशिश करने में क्या हर्ज है?
तो अगले सम्मोहन के सेशन से मैंने पढ़ाई की बातें करने के बाद आरती से सेक्स की बातें करना शुरू की।
मैंने उसे ये निर्देश दिए:
1. आज से तुम्हारा रोज़ मुझसे सेक्स करने का मन करेगा।
2. जब तुम्हारा सेक्स करने का मन करे, तब तुम पहल करके मेरा मूड बनाओगी।
3. सेक्स करते समय तुम एकदम बेशर्म हो जाओगी।
4. ऑफ़िस और कॉलेज में भी ख़ाली समय में तुम मुझसे सेक्स करने की कल्पना करती हो।
5. तुम्हें मेरा लंड चूसने का मन करता है।
6. तुम्हें मेरा लंड चूसने में बहुत मज़ा आता है।
7. तुम्हें कामुक वस्त्र पहनना अच्छा लगता है।
8. सेक्स करते समय लंड, चूत, गांड, चुदाई, जैसे गंदे शब्द और गालियाँ तुम्हें उत्तेजित करते हैं।
पहले कुछ दिन तो कुछ नहीं हुआ।
फिर एक दिन मुझे ऑफ़िस में आरती का फ़ोन आया।
मैंने फोन उठाया तो उधर से उसके हाँफने की आवाज़ सुनाई दी ‘आआआह … अनु!’
“आरती? क्या हुआ? तुम ठीक तो हो।”
“हँ … हाँ … ठीक हूँ। तुम अकेले हो? बात कर सकते हो?” आरती की आवाज़ में ऐसा नशीलापन था जो मैंने आज तक नहीं सुना था।
मेरे सामने पम्मी ही बैठा था।
उसका पर्फोर्मंस रिव्यू चल रहा था, जिसमें मैं उसकी इस बार की ख़राब परफोर्मेंस के बारे में बात कर रहा था।
आरती के फोन से उसे निकलने का बहाना मिल गया- सर, लगता है भाभीजी की कोई इमर्जन्सी है। आप उनसे बात कर लीजिए। मैं अभी चलता हूँ।
उसने कहा।
मैंने सर हिला के उसे जाने की अनुमति दी और अंदर से अपने कैबिन का दरवाज़ा बंद कर लिया।
“हाँ बोलो आरती, अब अकेला हूँ।”
“ओह अनु! तन – बदन में आग लगी हुई है। तुम्हारी बहुत याद आ रही है। कुछ करो ना!”
मेरा लंड अब तक मेरी पैंट टाइट कर चुका था।
“कहाँ हो अभी? क्या कर रही हो?” मैंने अपनी आवाज़ में मादकता का पुट देते हुए कहा।
“ऑफ़िस के बाथरूम में हूँ। ईयरफ़ोन लगा कर एक हाथ से चूत और दूसरे हाथ से मम्मे दबा रही हूँ।”
मेरी साँसें अटक गयी।
इतनी बेबाक़ी से आरती ने कभी बात नहीं की थी।
“सेल्फ़ी भेजो।” मैंने कहा।
उसकी कराहटों की आवाज़ थोड़ी दूर हुई और फिर मेरे फ़ोन पर मेसेज आया।
मैंने खोल कर देखा तो उसने सेल्फ़ी नहीं, चूत में उँगली करती हुई पाँच सेकंड की विडियो ही भेज दी थी।
“कैसी लगी?” उसने पूछा।
“लंड खड़ा हो गया मेरी जान! इस गीली-गीली चूत पर तो मेरे लंड का ही हक़ है।”
“आह! तो आ कर डाल दो ना इसमें अपना लंड … तरस रही है ये निगोड़ी चूत उसके लिए।”
“चलो वीडियो कॉल करते हैं।”
मेरे बोलने की देर थी कि उसने वीडियो कॉल कर दिया।
क्या नजारा था! आरती बंद टॉयलेट सीट पर बैठी थी। ऊपर स्लीवलेस कुर्ता, जिसके सामने के बटन खोल के ब्रा ऊपर और मम्मे बाहर। टाइट पजामी एक पैर से पूरी उतरी हुई, और दूसरे पैर में अटकी हुई, और उसी के ऊपर लाल पैंटी झूल रही थी। टाँगें चौड़ी करके रंडी की तरह बैठी थी मेरी प्यारी बीवी। बाल बिखरे, आँखों में हवस।
“लंड कहाँ है तुम्हारा? तुमने तो कहा था कि खड़ा हुआ है।” उसने कराहते हुए कहा।
मैं मुस्कुराया और खड़े-खड़े ही अपनी बेल्ट खोलने लगा।
जैसे ही मैंने पैंट का बटन और ज़िप खोली, मेरी पैंट नीचे गिर गयी।
टाइट काली अंडरवेयर में मेरे लंड का आकार साफ़ दिख रहा था।
मैंने अंडरवियर के ऊपर से ही अपने लंड को पकड़ कर सहलाया।
“ओह! कितना बड़ा और मोटा हो गया है ये! मत तड़पाओ ना! दिखा दो अपना लंड।”
“नहीं। अभी ये तुमसे नाराज़ है। बाहर नहीं आना चाहता।” मैंने धीरे – धीरे अपनी शर्ट के बटन खोलते हुए कहा।
खुली शर्ट के अंदर मेरा मांसल शरीर, अंडरवियर के पीछे मेरा लंड आरती को पागल कर रहे थे।
“क्यों? मैंने क्या किया?”
“इतने लम्बे समय से तुम इसके साथ खेली नहीं हो, इसलिए नाराज़ है।”
“ओहो! आय एम सॉरी बाबू। प्लीज़ बाहर आ जाओ। मैं तुम्हें खुश कर दूँगी।”
“बाबू नहीं, मालिक! इसे खुश करना है तो इसकी ग़ुलामी करनी पड़ेगी; इसकी रंडी बनना पड़ेगा।”
“बनूँगी, मैं आपकी रंडी बनूँगी मेरे मालिक! आपकी ग़ुलामी करूँगी। आज के बाद आपको कभी हाथ का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। मेरा मुँह और चूत हमेशा आपके लिए खुले हैं।”
“और गांड?” मैंने पूछा।
मैंने कभी आरती की गांड मारने की कोशिश नहीं की थी लेकिन आज सही मौक़ा था ये बात उठाने का।
“हाँ गांड भी! मेरा हर छेद आपका ही तो है मालिक! आपकी ग़ुलाम के हर अंग पर आपका पूरा हक़ है। अब ग़ुस्सा थूक के सामने आ जाओ।”
“ठीक है रंडी, तो ये ले, कर ले दर्शन अपने मालिक का!” ये कहकर मैंने अपना अंडरवीयर नीचे खिसका दिया।
मेरा सख़्त लंड अब आरती की आँखों के सामने था।
आरती ने पीछे हो कर अपनी टाँगें हवा में उठा ली- लीजिए मालिक! ये रहे मेरे तीनों छेद आपकी ख़िदमत में!
“तेरे तीनों छेदों की खबर तो मैं घर पर लूँगा रंडी! चल अब दिखा अपने मालिक को की तेरी चूत कितनी रसीली है। समझ कि मेरा लंड वहाँ है, और चोद इसे बेरहमी से।”
ये सुनते ही आरती ने साइड में कहीं फ़ोन टिकाया, और फिर कैमरे के सामने आकर अपने एक हाथ से अपनी चूत का दाना रगड़ने लगी और दूसरे हाथ की उँगलियाँ अपनी चूत में चलने लगी।
यह नजारा देखते देखते मैं भी तेज़ी से मुठ मारने लगा।
मेरे लंड में इतनी सख़्ती सालों बाद आई थी।
ऐसा लग रहा था कि लोहे की रॉड पर हाथ चला रहा हूँ।
“आऽऽह!” चीखें निकालती हुई आरती झड़ गयी और बाथरूम की दीवार के सहारे निढाल हो गयी।
उसकी आवाज़ सुनकर मेरा भी छूटने लगा।
अपना माल फ़र्श पर गिरा कर मैं भी अपनी कुर्सी पर गिर गया।
हसबैंड वाइफ पोर्न के बाद जब हम दोनों की साँसें संयत हुई तो हमने एक दूसरे को देख कर एक तृप्ति भरी मुस्कुराहट दी और फ़ोन काटा।
इसके बाद क्या हुआ, आरती के साथ मेरा रिश्ता कैसे बदला, और पिंकी और पम्मी को कैसे मैंने अपने जाल में फँसाया, ये मैं आगे की कहानियों में लिखूँगा।
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