हरामी मास्टरजी- 5

हरामी मास्टरजी- 5

Xxx बुर की चुदाई का मजा लें अब … मास्टर ने गाँव की देसी कुंवारी चूत वाली लड़की की वासना कैसे जगायी और उसे नंगी करके कैसे चोदा?

सभी पाठकों को एक बार फिर से मेरा प्रणाम!

दोस्तो, आपने हरामी मास्टरजी की कहानी के चौथे अंक
बेटी ने बाप को चुदाई करते देखा
तक रामेश्वर की कामुक प्रवृत्ति और ज्ञानचंद की मनोदशा को भली भांति जान लिया था।
ज्ञानचंद ने रामेश्वर को हवेली की नौकरानी को चोदते हुए देख लिया था।

अब ज्ञानचंद के मन में कई दिनों से दबी इच्छा उसको बेचैन किए जा रही थी। उसने ज्योति के लिए भी इस तरह की स्थिति पैदा कर दी उसने भी पहली बार किसी मर्द को किसी औरत को चोदते हुए देख लिया था। वह मर्द कोई और नहीं, बल्कि उसका अपना पिता रामेश्वर ही था।

अब आगे की कहानी :

किसी तरह ज्योति अपने मन में मची उथल-पुथल को अपने सामान्य किए चेहरे के पीछे छिपाए स्टडी रूम में पानी का गिलास लेकर पहुंची।
भले ही वह सामान्य होने का दिखावा कर रही थी लेकिन ज्ञानचंद पहुंचा हुआ खिलाड़ी था।

उसने ज्योति के माथे पर आए हल्के पसीने और उसके चेहरे पर उड़ रही हवाइयों को पढ़ लिया था और अंदाजा लगा लिया कि उसका तीर सही निशाने पर लगा है।

ज्ञानचंद अपनी योजना पहले से तैयार कर चुका था।
उसने ज्योति को पास बैठने के लिए कहा और पाठ को दोहराने के लिए कहा।

ज्योति दोहराने लगी।
लेकिन अब ज्योति की जीभ कई बार लड़खड़ा जाती थी।

किसी तरह उसने पढ़ाया गया पाठ दोहराकर खत्म किया।

अब ज्ञानचंद ने मानव प्रजनन की प्रक्रिया को विस्तार से पढ़ाना शुरू किया।
वह बिना किसी संकोच के लिंग के योनि में प्रवेश करने की बात करते हुए ज्योति को पढ़ा रहा था।

साथ ही ज्योति के चेहरे को भी पढ़ रहा था, जिस पर शर्म और संकोच के भाव साफ देखे जा सकते थे।
लेकिन यहां पर ज्ञानचंद ने एक बात पर गौर किया कि ज्योति की नजर ज्ञानचंद की जांघों के बीच में बार-बार जा रही थी।

ज्योति पहली बार लिंग के दर्शन करके आई थी जिसने उसके मन में लिंग को बार बार देखने की लालसा सी पैदा कर दी थी।

ज्ञानचंद को राह अब और आसान लगने लगी।
चुदाई तो वो भी देखकर आया था और मन ही मन उत्तेजित भी था।
उसके लिंग में पहले से ही आधा तनाव बना हुआ था।

फिर ज्योति के देखे जाने पर लिंग तेजी से आकार लेने लगा और धोती को ऊपर उठाने लगा।
उसने धोती को इस तरह से व्यवस्थित किया था कि ज्योति को लिंग के दर्शन हो सकें।

हुआ भी वैसा ही!
ज्योति लिंग को देखने का प्रयास कर रही थी और ज्ञानचंद के अकड़ते लिंग पर उसकी नजर पड़ गई।
उसने एकदम से नजर हटा ली।

ज्ञानचंद ये मौका चूकना नहीं चाहता था।
वो बोला- ज्योति, अगर तुम्हारे मन में कुछ सवाल हैं तो तुम बेझिझक पूछ सकती हो। तुम मुझे अपने शिक्षक के साथ ही अपना मित्र मानकर भी पूछ सकती हो, मैं वादा करता हूं कि सभी बातें मेरे और तुम्हारे बीच में ही रहेंगी क्योंकि तुमको पास करवाने की जिम्मवारी मैंने उठाई है और मैं नहीं चाहता हूं कि तुम मेरे पढ़ाए किसी विषय में फेल हो जाओ।

ज्योति सोच में पड़ गई; उसकी सांसें भारी होने लगीं।
उधर ज्ञानचंद के लिंग में धोती के अंदर बार बार झटके लग रहे थे जिससे उसका लिंग धोती को बार बार उछाल रहा था।

ज्ञानचंद ने फिर कहा- तुम संकोच को छोड़ दो, तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि तुम्हारे मन में कुछ सवाल हैं। लेकिन तुम शर्म के मारे शायद पूछ नहीं पा रही हो।
ज्योति- नहीं मास्टरजी, शर्म की तो कोई बात नहीं है।
ज्ञानचंद- तो फिर कौन सी बात है?

अब ज्ञानचंद ने एक और प्रयास किया और ज्योति का हाथ अपनी जांघ पर ऱखवाते हुए कहा- देखो, तुम व्यर्थ ही घबरा रही हो। मैं तुम्हारा टीचर हूं और तुम्हारी हर शंका को दूर करना मेरा फर्ज है। क्या तुम लिंग और योनि के बारे में सब कुछ जानती हो कि ये अंग आपस में कैसे एक दूसरे के साथ मिलकर नए जीवन को पैदा करते हैं?

ज्योति ने नहीं में सिर हिला दिया।

ज्ञानचंद- कोई बात नहीं, यही तो मैं चाहता हूं कि तुम बताओ कि तुम्हें क्या जानना है। देखो, हम इस तरह से समझते हैं कि मैं एक मर्द यानि नर हूं और तुम एक स्त्री यानि मादा हो। नर जब मादा की योनि में लिंग को प्रवेश करवाता है तो उसे संभोग कहते हैं और नर के लिंग से निकला वीर्य तथा मादा की योनि से आया अंडाणु मिलकर नए जीवन की रचना करते हैं और भ्रूण बनता है।

ज्योति का हाथ जांघ पर रखे जाने से ज्ञानचंद का लिंग बुरी तरह से फड़फड़ाने लगा था।
उससे अब रहा न गया तो उसने धोती को हटा दिया और उसका 7 इंची मूसल लंड फनफनाते हुए बाहर दिखने लगा।

ज्योति ने देखा तो उसका चेहरा लाल हो गया और उसने शर्म से अपना चेहरा ढक लिया।

ज्ञानचंद ज्योति को किसी भी तरह से चुदाई के लिए तैयार करना चाहता था और उसके लिए उसे खोलना बहुत जरूरी था।

वो बोला- ज्योति अगर तुम ऐसे शर्माओगी तो सीखोगी कैसे? लड़कियों को भला कब ऐसा मौका मिलता है कि वे सब कुछ इतने खुले तौर पर सीख सकें। क्या तुम इसे छूकर नहीं देखना चाहोगी?

ज्योति ने शर्म के मारे कुछ नहीं कहा लेकिन मना भी नहीं किया।
ज्ञानचंद ने थोड़ा जोखिम लिया और उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रखवा लिया।

ज्ञानचंद ने हाथ को अपने हाथ से दबा लिया था इसलिए ज्योति हाथ वापस नहीं खींच पाई।
वो बोला- देखो, जब ये इस अवस्था में होता है तो स्त्री की योनि में प्रविष्ट हो जाता है। तुम आंखें खोलकर इसे देख सकती हो।

ज्योति ने धीरे से आंखें खोलीं और लिंग को देखने लगी।
ज्ञानचंद- घबराओ नहीं, यह सब सामान्य प्रक्रिया है। सम्भोग प्रकृति की देन है और सब इसका पालन करते हैं। क्या तुमने कभी संभोग किया है ज्योति?

ज्योति ने नहीं में सिर हिला दिया।
ज्ञानचंद- तो अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें बहुत अच्छे ढंग से इसके बारे में सिखा सकता हूं। लेकिन तुम्हें मेरी मदद करनी होगी। क्या तुम करोगी मेरी मदद?

कुछ देर पहले ही ज्योति चुदाई का जबरदस्त नजारा देखकर आई थी।
उसकी योनि में कुलबुलाहट मची हुई थी इसलिए उसने हां में सिर हिला दिया क्योंकि उसकी जिज्ञासा और उत्तेजना अब सहज ही शांत होने वाली नहीं थी।

ज्ञानचंद ने कहा- ज्योति, मैं तुम्हें सिखाने के लिए तैयार हूं लेकिन ये वादा तुम्हें भी करना होगा कि ये बात तुम्हारे और मेरे बीच ही रहे।
ज्योति ने फिर से हां में सिर हिला दिया।

अब ज्ञानचंद ने उसे लेटने के लिए कहा।
ज्योति उसके सामने आराम से लेट गई।

ज्ञानचंद बोला- ज्योति, तुम्हारे पास योनि है और मेरे पास लिंग है। ये दोनों जब आपस में मिलते हैं तो संभोग शुरू होता है। अब मैं तुम्हें यह एक बार करके दिखाऊंगा।

उसने ज्योति का पजामा नीचे सरका दिया।
ज्योति उत्सुकतावश ज्ञानचंद की ओर देख रही थी।
वो थोड़ी असहज भी थी।

ज्योति के दूधिया कोमल बदन को ज्ञानचंद ने देखा तो उसके मुंह से लार टपकने लगी।
फिर उसने ज्योति की पैंटी को भी उतार दिया।
ज्योति की कुंवारी चूत अब ज्ञानचंद के सामने थी।

वो धीरे से उस पर हाथ फेरते हुए बोला- योनि द्वार में लिंग प्रविष्ट करवाने का एक तरीका होता है। लेकिन उससे पहले योनि को तैयार करना पड़ता है।
कहते हुए लगातार वह ज्योति की चूत पर हाथ फेरता रहा जिस पर अभी तक ढंग से रोएं भी नहीं आए थे।

ऐसी कोमल, कुंवारी चूत को पाकर ज्ञानचंद धन्य हो गया था।
उसने सहला सहलाकर ज्योति को उकसा दिया।

अब ज्योति खुद ही बोल पड़ी- अब आगे मास्टरजी?
ज्ञानचंद मुस्कराया और बोला- योनि में जब पहली बार लिंग जाता है तो इसकी झिल्ली खंडित हो जाती है जिसमें काफी दर्द भी होता है, लेकिन यह सामान्य प्रक्रिया है जिससे हर कुंवारी लड़की गुजरती है। अब मैं तुम्हें लिंग प्रवेश कर दिखाने जा रहा हूं।

ज्ञानचंद ने धोती खोल दी और नीचे से पूरा नंगा होकर ज्योति के ऊपर आ गया।
ज्योति भी जैसे उत्सुक लग रही थी।

ज्ञानचंद ने लिंगमुंड को ज्योति की छोटी सी चूत पर लगाया और रगड़ने लगा।

धीरे धीरे ज्योति की उत्तेजना भी बढ़ने लगी।
ज्ञानचंद बोला- क्या तुम तैयार हो ज्योति?
ज्योति ने हामी भर दी।

ज्ञानचंद ने हल्का सा जोर दिया और लंड का टोपा चूत में सरकाने की कोशिश की।
लेकिन चूत बहुत टाइट थी और टोपा फिसल गया।
ज्ञानचंद- जब ऐसे लिंग फिसल जाए तो समझो चिकनाई की कमी है।

फिर उसने चूत पर थूक लगाया टोपे पर भी थूक लगा दिया।
उसने अबकी बार लिंग टिकाकर थोड़ा जोर से धक्का दिया तो लिंगमुंड ने ज्योति की कुंवारी चूत को भेद दिया।

टोपा फंस गया और ज्योति उचक गई।
ज्ञानचंद- दर्द हो रहा है ज्योति?
ज्योति ने लाल हुए चेहरे से हामी भरी।
उसकी आंखें दर्द में बंद हो गई थीं।

वो बोला- ये शुरुआती दर्द अगर तुमने झेल लिया तो आगे तुम्हें इससे कई गुना ज्यादा आनंद मिलेगा।

उसने अब धक्का न देकर ज्योति को टीशर्ट उठाने के लिए कहा।
ज्योति के अमरूद नंगे हो गए।
ऐसी दूध सी सफेद चूची और उन पर हल्के गुलाबी रंग के निप्पल ज्ञानचंद ने शायद पहली बार ही देखे थे।

वो ज्योति के ऊपर आकर उसकी चूचियों को सहलाने लगा और फिर पीना शुरू कर दिया।
मर्द का पहला स्पर्श पाकर ज्योति भाव विभोर होने लगी।
वो धीरे धीरे योनि का दर्द भूलने लगी।

अब उसके हाथ मास्टरजी के सिर पर आ गए थे और वो उसको प्यार से सहला रही थी।
फिर दोनों के अंदर कामवासना की अग्नि भड़क उठी और ज्ञानचंद ने ज्योति के होंठों को चूसना शुरू कर दिया जिसमें ज्योति ने भी पूरा साथ दिया।

होंठों का रस पीते हुए ज्ञानचंद बीच बीच में ज्योति की योनि में धक्का भी लगा देता था जिससे ज्योति मुंह के अंदर ही ऊंह्हह … करके रह जाती थी।

धीरे धीरे करके ज्ञानचंद ने आधा लिंग उसकी योनि में प्रवेश करवा दिया और फिर वो उस कुंवारी कली को चोदने लगा।
ज्योति को दर्द तो हो रहा था लेकिन पहली चुदाई का अहसास लेने में वो ऐसी खो गई थी कि दर्द को भूलने लगी थी।

ज्ञानचंद का मोटा लिंग उसकी चूत में रगड़ खाते हुए अंदर बाहर हो रहा था।

ऐसी चूत का स्वाद ज्ञानचंद को मदहोश किए जा रहा था।
ऐसा कुंवारा यौवन, ऐसी टाइट चूत और गुलाबी निप्पलों वाली उस कमसिन लड़की को चोदते हुए ज्ञानचंद स्वयं को दुनिया का सबसे भाग्यशाली इन्सान समझ रहा था।

ज्ञानचंद ने नीचे देखा कि ज्योति की चूत से खून निकल कर उसके बाहर आ गया था और लंड पर भी लग गया था।

इसके बारे में उसने अभी ज्योति से जिक्र नहीं किया।
वह लगातार ज्योति को चोदता रहा।

कुछ देर की चुदाई के बाद ज्योति अब खुद मास्टरजी को अपने ऊपर खींचने लगी और उनके लबों के रस को चूसने लगी।

अब ज्ञानचंद की स्पीड बढ़ गई और वह तेजी से ज्योति की चूत मारने लगा।
ज्योति को फिर से दर्द होने लगा तो उसने मास्टरजी की पीठ को जोर से जकड़ लिया।

ज्ञानचंद उसके होंठों को चूसते हुए तेजी से चूत में लंड को पेलता रहा और फिर एकदम से उसने लंड को बाहर खींच लिया।

लिंग बाहर आते ही उससे वीर्य की तेज पिचकारी निकली और ज्योति के श्वेत स्तनों पर जाकर गिरने लगी।
उसने सारा वीर्य ज्योति के स्तनों पर उड़ले दिया।
फिर वो शांत हो गया।

ज्योति ने उठकर योनि पर खून के निशान देखे तो वो रोने को हुई लेकिन इससे पहले ज्ञानचंद ने उसको अपनी बांहों में ले लिया और उसे चूमने लगा।
वो ज्योति को साथ लेकर वहीं लेट गया और उसको सहलाने लगा।

धीरे से उसने बताया कि कुछ नहीं हुआ है, सब सामान्य है। यह पहले संभोग में होता ही है।
ये सुनकर ज्योति को थोड़ी सांत्वना मिली।

फिर उन दोनों में सम्भोग को लेकर बहुत सारी बातें हुईं।

उसके बाद ज्योति ने एक बार फिर से ज्ञानचंद के लंड से चुदाई करवाई और फिर वो सो गए।

ज्ञानचंद अपने मकसद में कामयाब हो चुका था।

धीरे धीरे उसने ज्योति को चुदाई की ऐसी लत लगा दी कि अब उसे ज्ञानचंद और उसके लंड के सिवाय कुछ नहीं दिखता था।
पढ़ाई के साथ ही चुदाई भी रोज होने लगी लेकिन गर्भ की सावधानी भी पूरी बरती जा रही थी।

चुदाई का रस मिला तो ज्योति का पढ़ाई में भी मन लगने लगा।
वो मेहनत से पढ़ती और उस मेहनत का ईनाम ज्ञानचंद के लंड से चुदाई के रूप में मिलता।

ज्योति दसवीं कक्षा में पास हो गई और रामेश्वर की खुशी का ठिकाना न रहा।

फिर जब तक ज्ञानचंद उस गांव में रहा उसने वहां की चूतों का खूब रस लिया जिसमें रामेश्वर की बेटी ज्योति की चूत भी शामिल थी और उनकी हवेली की नौकरानी की भी।
रामेश्वर भी किसी मौके को नहीं छोड़ता था और जहां चूत मिल जाती चोद देता था।

आपको यह कहानी कैसी लगी, अपने कमेंट्स में जरूर लिखें।
आप सबकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

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