सेक्स की सुगंध, सेक्स के कितने रंग

सेक्स की सुगंध, सेक्स के कितने रंग

प्यारे दोस्तो, आज आपके लिए पेश हैं, कुछ छोटी छोटी कहानियाँ, इन कहानियों को पढ़ कर कर आप हाथ से तो नहीं कर सकते!
क्योंकि कहानियाँ बहुत छोटी हैं। कहा कम गया है, ज़्यादा आपकी सोच पर छोड़ा गया है, सिर्फ सेक्स की सुगंध आपके सूंघने के लिए छोड़ी है। बाकी आप अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल कीजिये।

सेक्स की खुशबू

मेरा नाम निशिता है, मैं मुंबई में रहती हूँ। अभी अभी शादी हुई है। सेक्स का मेरा पहला अनुभव मेरी सुहागरात को ही हुआ। मगर उस रात के बाद मुझे सेक्स इतना पसंद आने लगा कि मैं हर वक़्त सेक्स के ही सपने देखती हूँ।

एक दिन घर में मैं अकेली थी, पति ऑफिस गए थे। मैंने सिर्फ एक पतली सी नाईटी पहनी थी। मुझे पता था कि इस नाईटी से मेरा सारा बदन झलक रहा था, मगर मुझे घर के अंदर किस का डर था तो मैं आराम से नाश्ता करके लेट गई और टीवी देखने लगी।
काम वाली बाई सरला अभी आई नहीं थी।

तभी बेल बजी, मुझे लगा शायद सरला आई होगी, दरवाजा खोला तो सामने पड़ोस का लड़का खड़ा था।
मैंने पूछा- अरे राहुल तुम? क्या चाहिए?
वो बोला- हमारे कुछ गेस्ट आने वाले हैं, मम्मी ने बोला है, आप वो अपना क्राकरी सेट दे दें।

मैंने देखा बात करते वक़्त उसने मेरी नाईटी में से मेरे बूब्स को कई बार घूर कर देखा मगर मैंने इगनोर करके उसे अंदर बुलाया।
क्राकरी सेट किचन में बनी अलमारी में सबसे ऊपर पड़ा था, मैंने अलमीनियम की सीढ़ी लगाई, ऊपर चढ़ गई।

मगर ऊपर अलमारी में क्राकरी सेट काफी पीछे को करके पड़ा था। मैंने अपना एक पाँव तो सीढ़ी पर टिकाये रखा और दूसरा पाँव अलमारी की शेल्फ पे टिका कर हाथ बढ़ा कर क्राकरी सेट का बॉक्स
खींचने लगी।
तभी मुझे ध्यान आया ‘हे भगवान, मैंने यह क्या गलती कर दी। मेरी दोनों टाँगों के बीच में 3 फीट का फर्क था, और मैंने कोई ब्रा या पेंटी नहीं पहनी थी। राहुल से मैं 5 फीट ऊपर खड़ी थी, और मेरी दोनों टाँगे खुली थी। तो क्या राहुल ने नीचे से मेरा सब कुछ देख लिया होगा’

मैं एकदम से संयत हो कर पीछे को मुड़ी और नीचे देखा। नीचे तो राहुल का लंड उसकी निकर में तना हुआ था।
बेशक मैंने देख लिया मगर फिर भी इस बात की तरफ ध्यान न देकर, मैंने राहुल से कहा- राहुल क्राकरी सेट बहुत पीछे पड़ा है मुझे अंदर घुस कर निकालना पड़ेगा.
राहुल बोला- कोई बात नहीं भाभी, आप आराम से निकाल लो।

‘आराम से…’ मैंने सोचा, इसका मतलब वो भी मेरा बदन देखना चाहता है।

मैंने अंदर घुस कर क्राकरी सेट निकाला। मगर जब मैंने अपना सर अलमारी से बाहर निकाल कर राहुल को देखा, वो तो अपनी निकर से अपनी लुल्ली निकाल कर उसे फेंट रहा था।
मैंने कहा- ओए राहुल, ये क्या कर रहा है?
वो बोला- भाभी जो मैंने देखा है, उसके बाद तो इसके बिना चैन नहीं आ सकता, आपको मेरा करना बुरा लगता है, तो आप कर दो।

मैं सीढ़ी से नीचे उतरी और उससे बोली- अच्छा, मैं कर दूँ, क्यों, बदमाश कहीं का, मगर बात सुन ले मेरी, इससे ज़्यादा कुछ नहीं, पक्का?
वो खुश होकर बोला- पक्का भाभी!
मैंने फिर से उसे कहा- सिर्फ आज, और सिर्फ इतना ही जितना तूने कहा है, बस, और कुछ उम्मीद मत रखना मुझसे, और किसी से बात भी नहीं करना!
कह कर मैंने उसकी 4 इंच की लुल्ली पकड़ ली।

सेक्स की महक

मेरा नाम अरुण दीवान है और मैं कॉलेज में प्रोफेसर हूँ, इंग्लिश पढ़ाता हूँ। कॉलेज में को-एजुकेशन है, लड़के लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं।
क्लास में कुछ बच्चे होशियार हैं, मगर कुछ नालायक भी हैं। इन्हीं नालायक बच्चों में एक है कृति।
बच्चे शब्द मैं इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूँ क्योंकि अब मेरी उम्र 48 साल की हो चुकी है और मेरे सारे स्टूडेंट्स 19-20 साल के हैं। मेरा अपना बेटा भी इसी उम्र का है।

एक दिन मैं क्लास ले रहा था, वैसे तो मैं हमेशा खड़े रह कर ही लेक्चर देता हूँ। मगर मैंने देखा के कृति सबसे आगे वाली बेंच पर बैठी है, अचानक मेरी निगाह नीचे को गई तो मैंने देखा, बेंच के नीचे कृति की दो खूबसूरत, सफ़ेद संगेमरमर जैसे टाँगें मुझे नजर आई।
सच कहूँ तो एक बार तो मैं अपने लेक्चर के बारे में ही भूल गया।

आज कृति एक मिनी स्कर्ट पहन कर आई थी, खड़े होने पर तो घुटने से थोड़ी सी ऊंची थी, मगर जब बेंच पर बैठ गई तो नीचे से उसकी दोनों जांघें साफ साफ दिख रही थी। अब क्लास में था, 40 आँखें मुझे घूर रही थी, तो सबके सामने तो मैं बार बार उसे नहीं देख सकता था।
मगर मैं फिर भी अपनी कुर्सी पर बैठ गया, और बहाने से 3-4 बार मैंने कृति की मस्त जांघें देखी, और कृति ने भी मुझे ताड़ लिया कि मैं बेंच के नीचे से उसकी टाँगें देख रहा हूँ।

उसके बाद तो ये रोज़ का ही रूटीन हो गया। कृति की रोज़ ही नई स्कर्ट होती और मैंने रोज़ उसकी गोरी चिकनी जांघों को बहाने से ताड़ना।
मगर मुझे लगने लगा के कृति का यूं मुझे अपनी टाँगें दिखाना कोई इत्तेफाक नहीं, वो सब कुछ जान बूझ कर सब कुछ कर रही है।

फिर मंथली टेस्ट में कृति का प्रदर्शन बहुत खराब रहा, मैंने सोचा अगर इस पर डोरे डाल कर देखूँ, क्या पता बात बन जाए, और मुझे 40 साल की औरत की बजाए एक 20 साल की लड़की को चोदने का मौका मिल जाये।
एक दिन मैंने कृति से कहा- देखो कृति, अगर ऐसे ही तुम फ़ाइनल टेस्ट में लिख कर आई तो मुझे डर है कि तुम फेल न हो जाओ।
वो बोली- सर, मैं फेल नहीं होना चाहती, आप मेरी मदद करो, मुझे चाहे ट्यूशन दो, मगर मुझे पास होना है, आप मुझे पास करवाओ।

मुझे उसकी बात कुछ अपने फायदे की लगी, मैंने कहा- ओ के, मैं देखूंगा मैं क्या कर सकता हूँ, मगर तुम्हें भी कुछ करना पड़ेगा।
वो बोली- मुझे क्या करना पड़ेगा?
मैंने कहा- अगर मैं आउट ऑफ द वे जाकर तुम्हें पास करवाऊँगा, तो तुम्हें भी मेरे लिए कुछ न कुछ आउट ऑफ द वे करना पड़ेगा।
कह कर मैंने उसकी टी शर्ट में कैद उसके दो गोल गोल बूब्स को घूरा।

वो शायद मेरा इशारा समझ गई, बोली- सर मैं किसी भी हद तक आउट ऑफ द वे जाने के लिए तैयार हूँ।
मैंने कहा- फिर ठीक है, क्या कर सकती हो आउट ऑफ द वे जा कर, अपने दिल से पूछ कर बताओ?
कहते हुये मैंने अपनी हाथ में पकड़ी हुई किताब को उसके बूब पर टच किया।
वो बोली- सर पिछले 10 दिन से रोज़ मिनी स्कर्ट पहन कर आपके सामने बैठ रही हूँ, पर आपने सिर्फ आज देखा, मैंने इतने दिनों में एक बार भी नीचे से पेंटी नहीं पहनी, मैंने तो आपको खुली ऑफर दी है, मगर आप ही नहीं पकड़ पाये।

सच में मुझे खुद पर बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई कि कितना चूतिया हूँ मैं… वो मुझे साफ इशारा कर रही है, और मैं समझ ही नहीं पाया।
मैंने कहा- सिर्फ देखने दिखाने से काम नहीं चलेगा, बहुत आगे तक जाना पड़ेगा।
वो मेरे और करीब आ कर बोली- सर, जहां तक आपका दिल चाहे, वहाँ तक ले चलिये।

मेरे तो हाथ पाँव ठंडे हो गए, मैंने आस पास देखा, कोई नहीं था, मैंने हिम्मत करके उसकी टी शर्ट में से उभरे हुये उसके बोबे के निपल को मसल कर कहा- तो कब?
वो बोली- आप चाहो जब, मैं तो अभी भी तैयार हूँ, पूरी तरह से शेव करके आई हूँ, एक भी बाल नहीं है मेरे जिस्म पे, सर से पाँव तक एकदम चिकनी!
मेरा तो हलक सूख गया, मुझे समझ नहीं आ रहा था, मैं क्या करूँ, इसको अभी कहीं ले जाऊँ, या फिर किसी दिन का प्रोग्राम बनाऊँ।

सेक्स की लपट

मेरा नाम गुरशरन जग्गी है। मेरे पति बैंक में मैनेजर हैं। पहले तो हम मुंबई में रहते थे, मगर बाद में केरल में ट्रान्सफर हो गई।
हम दोनों मियां बीवी और दोनों बच्चे ले कर केरल शिफ्ट हो गए।

मेरे पति अक्सर कहते हैं- गुरी, तेरे को देख कर न ऐसा लगता है, जैसे तेरे बदन से न सेक्स के लपटें उठ रही हो, तुझे देखने के बाद खुद पे काबू रखना मुश्किल हो जाता है।
मैं भी ये बात मानती हूँ, सिर्फ चेहरे से ही नहीं, पूरा बदन भी मेरा बहुत खूबसूरत है।
मेरे पति के दोस्त और बहुत से हमारे रिश्तेदार मेरी तरफ आकर्षित हैं, होली पर मेरे साथ हमेशा वो बदतमीजी करने के कोशिश करते हैं, बहुतों ने तो की भी है, मगर मैंने इस बात का कभी बुरा नहीं माना, अब रंग लगाने के बहाने वो अगर मेरे गाल सहला गया, या फिर मौका देख कर मेरे बोबे दबा गया, तो कौन सा कुछ उखाड़ कर ले गया। मैं भी हंस कर टाल जाती हूँ.

मगर यह भी बात है कि हर होली पर मेरे साथ बदतमीजियां भी बढ़ती जा रही हैं।
खैर मुझे भी गैर मर्द का छूना अच्छा लगता है, तो मैं भी मजा ले लेती हूँ।

चलो अब केरल चलते हैं। तिरुवनन्तपुरम पहुँच कर हम अपने घर गए, मेरे पति ने पहले आकर यहाँ पर एक मकान का इंतजाम कर लिया था। हमारे पड़ोस में भी जो मिस्टर रामालिंगम रहते हैं, वो भी मेरे पति के साथ ही बैंक में जॉब करते हैं। बेशक भाषा की थोड़ी दिक्कत थी, मगर हम किसी न किसी तरह से काम चला लेते थे।

मैंने एक बात नोट की, रामालिंगम भी मुझे बड़ी भूखी नज़रों से देखता था। कभी कभी तो मुझे लगता था कि ये आगे बढ़ेगा और मुझे दबोच लेगा।
6 फीट का काला मगर बलिष्ठ आदमी, चौड़े कंधे, देखने में भी बहुत ताकतवर सा लगता था।

अब मुझे तो पकड़े जाने की आदत सी थी, अगर वो मुझे दबोच भी लेगा तो मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा।

एक दिन उन्होंने हमें अपने घर खाने पे बुलाया, हम सब तैयार होकर शाम को उनके घर पे पहुंचे। उन्होंने टेरेस पे डिनर का इंतजाम किया था।

जैंट्स तो पहले ड्रिंक्स शुरू कर दी, लेडीज और बच्चों के लिए कोल्ड ड्रिंक्स थी।

बड़े खुशगवार मौसम में हमने डिनर किया। खाना खाकर हम टेरेस पे ही टहल रहे थे, बच्चे सब नीचे खेल रहे थे। हम चारों बैठे बातें कर रहे थे, तभी अचानक बिजली चली गई, ऐसा लगा जैसे सारे शहर की ही बिजली चली गई हो। बिल्कुल घुप्प अंधेरा हो गया।

मिस्टर रामालिंगम ने अपनी पत्नी से कुछ कहा, मगर मुझे सिर्फ कैन्डल ही समझ आया। वो तो भागी नीचे कैन्डल लेने, मगर उसी अंधेरे में एक मजबूत हाथ आया जिसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और फिर मेरे हाथ में कुछ नर्म मोटी सी चीज़ आई।
अब शादीशुदा औरत हूँ, मैं पहचान गई, ये तो लंड था। मगर न ये हाथ की पकड़ मेरे पति की थी, और न ही ये लंड मेरे पति का था।

उसने अपना लंड मुझे पकड़ाया और मैंने पकड़ लिया। मेरे पति को शायद ज़्यादा चढ़ गई थी, वो चुपचाप बैठे थे, इस सब से बेखबर कि उनकी पत्नी की इज्ज़त खतरे में है।

मिस्टर रामालिंगम ने मेरे पति से कुछ पूछा, मगर कोई जवाब नहीं आया, तो फिर उसी मजबूत हाथ ने मेरी गर्दन पीछे से पकड़ी और मुझे आगे को झुकाया, मैं आगे झुकी तो मिस्टर रामालिंगम का लिंग मेरे होंठों से टकराया, और अगले ही पल मैंने वो मोटा लंड अपने मुंह में लिया और लगी प्यार से चूसने!

मिस्टर रामालिंगम बैकलेस ब्लाउज़ में मेरी नंगी पीठ सहलाने लगे। पता नहीं मिसेज रामालिंगम को अभी तक कैन्डल क्यों नहीं मिली थी।

सेक्स की भूख

मेरा नाम सूरज है, मैं 25 साल का हूँ। अभी तक न शादी हुई है, न ही जॉब लगी है। इसी लिए गाँव छोड़ कर अपनी बहन के पास शहर में रहता हूँ।
दीदी की उम्र 39 साल है, उनके दो बच्चे हैं, बेटी बड़ी है अल्का, 18 वर्ष, और बेटा छोटा है उत्कर्ष 16 वर्ष।

ज़्यादा समय मेरा नौकरी की तलाश और घर के कामों में दीदी का हाथ बटाने में गुज़रता है। ज़्यादा कोई दोस्त नहीं हैं मेरे… इक्का दुक्का है, वो भी घर के बाहर के बस!
बहन का घर है, जवान भांजी है, इस लिए किसी को भी कभी घर में नहीं लाता। दिल तो बहुत करता है कि अपनी नौकरी हो, अपना घर हो, सुंदर सी बीवी हो।
मगर सभी सपने सच कहाँ होते हैं।

जब कब ज्यादा आग लगती है तो मुट्ठ मार लेता हूँ।

वैसे एक दोस्त है मेरा, जिससे मैं कभी कभार मिल लेता हूँ, वो क्रोस्सी है। क्रोस्सी मतलब जो लड़का होकर भी लड़कियों जैसे कपड़े पहने, वैसे ही हरकतें करे!
लंड बहुत अच्छा चूसता है।

वो तो कहती है, मतलब कहता है कि मेरी गांड भी मार लो, मगर मेरा दिल इन कामों के लिए नहीं मानता। इसलिए उससे कम ही मिलता हूँ।

अब जब सुबह उठते ही लंड खड़ा हो तो उसको बैठाने के लिए भी कोई जुगाड़ चाहिए और जब और कोई जुगाड़ न हो तो अपनी हथेली अपनी सहेली!

एक दिन ऐसे ही बाथरूम में मैं मुट्ठ मार रहा था, अचानक खिड़की के बाहर मैंने अल्का को देखा।
टाईट जीन्स और टी शर्ट में वो बहुत ही सेक्सी लग रही थी। शायद छुप कर किसी से फोन पर बात कर रही थी और बहुत हंस रही थी, शरमा भी रही थी।

मुझे लगा शायद अपने बॉयफ्रेंड से बात कर रही होगी।

मगर मेरे हाथ में तो और काम था, मैं अल्का को देख कर ही मुट्ठ मारने लगा, उसके गोल गोल ताज़े ताज़े बने बोबे, कटावदार कमर, गोल बड़े बड़े चूतड़, या कह लो भारी गांड, मोटी जांघें!
मैं सोचने लगा अगर अल्का नंगी हो तो देखने में कितनी सेक्सी लगे।

अल्का को नहीं पता था कि उसका मामा उसके कुँवारे बदन को कितनी गंदी निगाह से देख रहा था, और उसके बारे में बुरा सोच सोच कर अपना लंड फेंट रहा था।
इसी कश्मकश में मेरा पानी छूट गया। ठंडा सा होकर मैं बाथरूम से बाहर आ गया।

दिन बीता, रात आई। खाना खा कर सब सो गए।

रात के करीब 2 बजे होंगे, मेरी आँख खुली, मुझे कुछ हरकत महसूस हुई।
मैंने अंधेरे में देखने की कोशिश की, मगर बिना कुछ दिखे ही मैं पहचान गया। ये तो अल्का है, मगर इसने मेरा लंड क्यों पकड़ा हुआ है। मेरा लोअर और चड्डी दोनों नीचे खिसका कर ना जाने अल्का कब से मेरे लंड से खेल रही थी।

पहले तो मैंने सोचा कि इसे डांट दूँ, मगर जब एक जवान लड़की, एक जवान लड़के के लंड के साथ खेल रही हो, तो हटाने का दिल किसे करता है।
मैं चुपचाप लेटा रहा और मजा लेता रहा।

पहले तो अल्का सिर्फ मेरे तने हुये लंड को हिला डुला कर ही देख रही थी। उसने सीधे हाथ में मेरा लंड पकड़ रखा था, और उल्टे हाथ से शायद अपनी चूत को सहला रही थी। खेलते खेलते उसने मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया।
उम्म्ह… अहह… हय… याह… क्या नज़ारा आया मुझे!

अब तो मैंने पक्का सोच लिया कि जैसे भी हो, एक न एक दिन मैं इस अल्का की बच्ची को चोद कर ही रहूँगा।
मेरे लंड से कुछ देर खेल कर चूस चास कर वो चली गई।
यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

मगर मेरे तन बदन में आग लगा गई। मैंने फिर से उसके नाम की मुट्ठ मारी और सो गया।

अगले दिन मेरे मन में बड़ी हलचल थी, मैं सोच रहा था, अल्का से बात कैसे करूँ, अब वो भी लंड लेना चाहती है, और मेरा ही लंड लेना चाहती है, तो क्यों न उस से बात ही कर लूँ।

मगर कैसे करूँ, यही समझ नहीं आ रहा था।

मौका देख कर और हिम्मत जुटा कर मैंने अल्का से पूछ ही लिया- रात को कहाँ कहाँ घूमती हो, आराम से सो नहीं सकती?
वो पहले तो मेरी बात सुन कर चौंकी, फिर थोड़ा सा शरमाई, मगर संभल कर बोली- रात को कहाँ घूमना, मैं तो सो रही थी।

मैंने कहा- तो यहाँ वहाँ क्या मैं घूम रहा था, मेरे बिस्तर पर क्या करने आई थी?
कहने को तो मैंने कह दिया, मगर मेरी गांड फटी पड़ी थी, अगर ये उल्टा चली गई, तो मेरे लिए जूतों का इंतजाम पक्का!

मगर वो बोली- देखो मामू, हम सब को भूख प्यास सब लगती है, मुझे भी लगी तो मैं भी अपनी भूख मिटाने गई थी।

मैं उसका मतलब समझ गया, मैंने कहा- तुम्हारी भूख तो मिट गई, मैं क्या करूँ?
वो बोली- आप अपना देखो, कैसे करना है क्या करना है।

मैंने कहा- और अगर मैं ये कहूँ कि हम दोनों मिल कर अपने नाश्ते पानी का इंतजाम कर लें तो?
वो मुस्कुरा दी, उठ कर अपने कमरे में चली गई।

मैं उठ कर पहले दीदी के रूम में गया, वो बैठी सब्जी काट रही थी, उसके बाद मैं अल्का के रूम में गया।

वो दीवार से लगी खड़ी थी। मैं उसके पास गया, उसके बिल्कुल सामने जा कर खड़ा हो गया।
कुछ देर हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे, फिर अचानक दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ लिया। दीवार के उस तरफ दीदी पेट की भूख का इंतजाम कर रही थी, दीवार के इस तरफ एक मामा और एक भांजी पेट से नीचे की भूख को शांत करने का हल ढूंढ रहे थे।
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