रिश्तेदारी में कुंवारी लड़की की बुर चुदाई- 2

रिश्तेदारी में कुंवारी लड़की की बुर चुदाई- 2


हॉट देसी बुर सेक्स कहानी गाँव में रहने वाली एक कुंवारी लड़की की गर्म बुर की पहली चुदाई की है. मजा लें कि कैसे मैंने उसे गर्म करके चोद दिया.
मित्रो, मैं भोगु पुन: आपकी सेवा में अपनी सेक्स कहानी का अगला भाग लेकर हाजिर हूँ.
हॉट देसी बुर सेक्स कहानी के पहले भाग
मामी की बहन और उसकी कमसिन ननद
में अब तक आपने पढ़ा था कि कामोत्तेजक दवा के कारण कमरे में ननद भौजाई एक दूसरे से गुत्थम गुत्था थीं.
अब आगे हॉट देसी बुर सेक्स कहानी:
चेतना उखड़ी सांसों से अपने बदन को शैली मामी के बदन से रगड़ रही थी.
मेरा मन मयूर के जैसे नृत्य करने लगा क्योंकि शायद सेक्स की गोली ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था.
शैली मामी धीमी-धीमी आवाज में कंट्रोल करती हुई चेतना को अपने आगोश में दबा कर रखने की कोशिश कर रही थीं.
समय की नजाकत समझ कर मैंने नजदीक रखे लोटे को लुढ़का दिया.
आवाज़ सुन शैली मामी बाहर निकल आईं तो मैंने पानी के लिए कहा.
उन्होंने दूसरे लोटे में पानी भर कर दिया परन्तु मैं लोटा पकड़ नहीं रहा था तो वो बोलीं- क्यों मेरी रात काली कर रहे हो, पानी पकड़ो और जाकर सो जाओ.

मैंने एक सवाल पूछा- मछलियां शाम को किसने खाईं?
उन्होंने कहा- हम दोनों ने.
अब मैंने शैली मामी की नंगी पीठ पर हाथ रख दिया.
मामी ने कुछ नहीं कहा तो मैं धीरे धीरे उनके कमरे की ओर बढ़ने लगा.
मैंने कहा- तुम दोनों पर सेक्स हावी हो गया है.
मामी एकदम से ठिठक गईं और उन्होंने कहा- शादी के बाद मैंने पत्नी धर्म निभाया है. मेरा प्यार सच्चा है … मुझ पर डोरे न डाल!
इस पर मैंने कमरे में सामने वासना से ऐंठती चेतना को दिखा कर शैली मामी से कहा- आप जाओ और अपना पत्नी धर्म निभाओ लेकिन आज चेतना की आग मुझे शांत करने सहयोग कर दो.
धुंधली रोशनी में मामी जी चेतना के कान में कुछ बड़बड़ा कर निकल गईं और बाहर से कमरे की कुंडी लगा कर अपने कमरे में अमरचंद के पास चली गईं.
मैं सावधानी से वासना की आग में जल रही चेतना को दोनों बांहों में भर सहलाने लगा.
मर्दाना कड़क आगोश पाकर चेतना मचल उठी और उसने तनिक भी प्रतिरोध नहीं किया.
मैंने पूछा- तुमको क्या हो गया है?
उसने कोई जवाब नहीं दिया.
जबकि सारा किया-धरा मेरा ही था.
मैं उसके रसीले होंठों को चूसने लगा और एक एक कर सारे कपड़े उतार कर उसे मादरजात नंगी कर दिया.
नंगी चेतना बार बार मुझसे लिपट रही थी इसलिए मैं असहज हो रहा था.
दूधिया रोशनी में चेतना की देसी काया दमक रही थी.
उसके छोटे छोटे दो रसीले नर्म चूचों पर गुलाबी निपल्स चूसने से ऐसे लाल हो गए थे, लगता था जैसे अभी खून टपक पड़ेगा.
पतली कमर के बीच गहरी नाभि के नीचे गोल कदली जैसी खूबसूरत गोरी-चिकनी जांघें संगमरमर की मस्त लग रही थीं.
चेतना की 32-28-34 की देह एक मूर्ति के जैसे लग रही थी.
उसकी जांघों के बीच बड़ा पाव की तरह फूली हुई कमसिन कुंवारी बुर, जिस पर सुनहरे मुलायम बाल मेरे होश उड़ा रहे थे.
धौंकनी जैसी चलती सांसों को थाम कर मैं उसके गुलाबी होठों को चूसने लगा.
दोनों चूचियों को मसलते हुए पूरे तपते बदन पर एक सांस में हाथ फेरने लगा.
जिससे वो तड़प उठी.
मैं छोटे छोटे चूचों और नाभि से होते हुए दोनों मांसल जांघों के बीच उतर आया.
अचानक हुए इस हमले से कुंवारी बुर एकदम से पूरी तरह से कांप गई.
शायद उसकी हॉट देसी बुर एक बार मदनरस छोड़ चुकी थी इसलिए तर हो गई थी.
आहिस्ता आहिस्ता उसकी बुर में अपने मुँह को लगा दिया.
फिर सीलपैक बुर के भीतर तक मैंने जीभ को डाल दिया.
तो आह्ह सी सी करती हुई चेतना ऐंठने लगी- आह्ह अन्दर तक मुँह लगा ठीक से लगातार चूसो नहीं … उन्ह … ये कैसी आग लगा दी है.
अब मैं उसकी दोनों टांगों को चौड़ा करके बीच में बैठ गया और पूरी संजीदगी से बुर में जीभ घुसेड़ कर चूसने लगा.
कमरे में चेतना की मादक सिसकारियां गूंजने लगीं और पांच मिनट में ऐंठती चेतना की देसी बुर से गर्म लावा बाहर निकल आया.
कुंवारी लड़की के मदनरस की खुशबू से वातावरण वासनामय होने लगा था.
उसके गुलाबी मुख मंडल पर जवानी की आभा रंग लेने लगी थी.
चेतना की देसी बुर ने दो बार झड़ कर इतना अधिक मदनरस छोड़ दिया था कि बुर के नीचे बिस्तर गीला हो गया था.
वासना से बोझिल आंखें बंद करके चेतना हवा में उड़ रही थी.
अब मैंने तनिक भी देर करना उचित नहीं समझा और अपने खूँटे जैसे खड़े सात इंच लम्बे लंड को बाहर निकाल कर उसकी बुर के मुहाने पर रख दिया.
बुर की गर्मी पाकर लंड में मस्ती आने लगी और मैं बुर की फांकों में लंड रगड़ने लगा.
मैं जितनी बार लंड रगड़ता, वो कमर उछाल कर लंड गटकने की असफल कोशिश कर रही थी.
मैंने उसके होंठों को अपने मुँह में ले लिया और होंठों को चूसते हुए लंड को बुर के मुहाने पर टिका कर ज़ोर का धक्का मार दिया.
इससे आधा लंड जलती बुर में दाखिल हो गया.
चेतना छटपटाती हुई ज़ोर से चीखने को हुई लेकिन आवाज बाहर निकल न सकी क्योंकि उसके मुँह को मैंने अपने मुँह में भर लिया था.
वो गुं गुं की आवाज करती रही और लंड अन्दर घुसता गया.
कुछ देर बाद वो तड़फ कर बोली- ओह छोड़ दो अहह … दईया … अहह मैं मर गईई उईई .. फट गई बुर मेरी रंडा … कुत्ता … साले हरामजादे … रुक ज़ा. मुझे जिंदा नहीं रहने देगा तेरा ये लंड है या भाला निकाल लो … मेरी बुर फट गई रे … छोड़ दो मुझे जाने दो … मैं तुम्हारे पांव पड़ती हूँ.
रोती हुई चेतना की आवाज सुनकर शैली आ गई.
वो बोली- भोगु, आवाज बाहर तक सुनाई दे रही है. अगर अम्मा ने दरवाजा खड़का दिया तो मजबूरन खोलने पड़ेंगे.
तब तक अन्दर कमरे में आ गई हम दोनों को मादरजात नंगे गुंथे हुए देख शैली मामी शर्मा कर जाने को हुईं.
मैंने उनका पेटीकोट पकड़ कर पूछ लिया- अमरचंद कुछ होश में आ गए क्या?
शैली मामी ने बिफरते हुए कहा- तुमने पता नहीं कितनी पिलाई है कि अब तक नाक बजाकर चित पड़े हैं. क्या तुम यहां मुझे सताने आए हो, मैं सुलग रही हूँ और तुम ठीक मेरी तरह पहली बार चेतना को भी धोखे में रौंद रहे हो.
मामी पैर पटकती हुई हाथ झटक कर अपने कमरे में चली गईं.
मैं जानता था कि चेतना को अगर आज़ छोड़ दिया तो फिर कभी नहीं चोदने को मिल सकता है.
मैंने फिर से उसको चूमना चाटना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे अपनी क़मर हिला कर पेलने लगा.
इससे चेतना के मुँह से रह रह कर मादक स्वर निकलने लगी थीं.
खटर-पटर की आवाज से खाट हिल रही थी इसलिए उसने दोनों टांगों को कंधे पर रख मेरे बाजू पकड़ लिए और मैंने उसे अपने लंड पर टांग नीचे फर्श पर लिटा दिया.
मैं उसके ऊपर चढ़ गया और चूमते हुए फिर से चेतना को पेलने लगा.
वो दर्द और आनन्द से मिश्रित बिलबिलाती हुई बार बार छोड़ देने की गुहार कर रही थी.
मैं सधी हुई रफ्तार में धक्के पर धक्के लगाए जा रहा था और इस तरह से मैंने धीरे धीरे पूरा लंड बुर में ठोक दिया.
उसकी आंखों में आंसू आ गए थे.
मैं खून से लथपथ बुर चोदने का मजा लेते हुए तेज गति से हचक हचक कर चोद रहा था.
अब वो मजा लेने लगी थी और मेरे लंड की हर एक चोट जब बच्चेदानी तक असर करती, तो मादक आवाजें निकालने लगी थी.
“उई मां क्या कर दिया है, कैसी जलन उठ रही है … आंह मेरी बुर तड़प रही है … और तेज करो … जल्दी जल्दी चोद हरामजादे … थक गया क्या भोसड़ी वाले … मेरी बुर में जैसे चींटियों ने हमला कर दिया है आंह दईया … कुछ करो नहीं तो मैं मर जाऊंगी.”
पांच मिनट में ऐंठती चेतना की बुर बरस गई, जो मैं अपने लंड पर गर्म गर्म महसूस कर रहा था.
फिर भी मैं बिना रुके बुर की धज्जियां उड़ाता रहा.
रहम के लिए मिन्नतें करती रही चेतना मुझसे लिपट गई थी.
आधे घंटे की घनघोर चुदाई के बाद ही मेरा वीर्य उसकी बुर की गहराई में बरस गया.
चेतना की बुर कट और छिलकर बुरी तरह घायल हो गई थी लेकिन जिंदगी में पहली बार चुद कर वो बिल्कुल खुश और संतुष्ट लग रही थी.
मैंने देखा कि चेतना की खून और वीर्य से सराबोर बुर की धारियां मोटी और सूज गयी थीं और वो पहले से ज्यादा सुंदर लग रही थी.
हम दोनों बिस्तर पर नंगे होकर लेट गए. उसकी चूचियों और चेहरे पर मेरे दांतों के निशान थे.
कुछ देर बाद मुझे फिर से चोदने का मन करने लगा.
एक बार मैंने फिर से उसको पकड़ लिया और मैंने उसकी चूत को रगड़ा, फिर उसकी चूत में उंगली की.
उसके बाद उसकी बुर और गांड में जीभ से चाटा.
अब मैंने फिर से उसकी चूत में लंड पेल दिया.
अभी भी लंड बुर में जकड़ कर जा रहा था लेकिन वीर्य से लबालब बुर चिकनी और मुलायम महासुख दे रही थी.
मैं उत्तेजना से बिना रहम के जोर जोर से झटके मार रहा था और हर झटके पर चेतना नीचे से गांड उठाकर जड़ तक लंड ऐसे गटक रही थी जैसे मुझे अपने अन्दर समा लेना चाहती हो.
चेतना झड़ने का नाम नहीं ले रही थी और सर्दियों में मुझे पसीना आने लगा था.
उसका ये रौद्र रूप देख मैं उत्तेजना नियंत्रित करने लगा क्योंकि मेरी हार निश्चित दिखाई दे रही थी.
मेरी सांसें उखड़ने लगी थीं.
लगातार 10 मिनट तक की चुदाई के बाद चेतना के चूतड़ भिंच कर सख्त होने लगे और उसने मेरी कमर में अपने दोनों पैरों से कुंडली मार ली.
उसी पल वो झड़ गई.
लंड पर गर्म बुर रस महसूस कर मैंने भी अपने वीर्य को बुर में खाली कर दिया.
एक साथ झड़ बहुत मज़ा आया.
अब पूरे थककर चूर हो गए.
हम दोनों आधे घंटे एक-दूसरे को पकड़ कर ऐसे बेहोश पड़े थे, जैसे शरीर में जान निकल गई हो.
अब बिल्कुल सामान्य महसूस कर रही चेतना शर्मा कर लाल होकर बोली- तुमने मेरी पूरी बेचैनी को शांत कर दिया. मेरे दोस्त आज तक मुझे कभी इस तरह की उत्तेजना महसूस नहीं हुई थी.
मैं बोला- अब के बाद जब भी जरूरत होगी, मैं ऐसे ही संतुष्ट कर दिया करूंगा.
फिर हम दोनों सो गए.
सुबह जब शैली मामी ने जगाया तो वो हम दोनों की नंगे बदन देख कर शर्मा गईं और चेतना की चूचियों को दबाती हुई पहली चुदाई की अनुभूति को जानने की कोशिश करने लगीं.
डरी सहमी चेतना एक शब्द भी नहीं बोली और घर में किसी और को नहीं बताने की मिन्नतें करने लगी.
चेतना की हालत ऐसी हो गयी थी कि वो पैंटी पहनने के लिए खड़ी भी नहीं हो पा रही थी.
तब शैली मामी ने बैठकर उसकी घायल बुर को देखा जो मुहाने पर कई जगह से कट गई थी.
मामी मुझे बुरा भला कहती हुई गालियां देने लगीं- बहनचोद, थोड़ी सी भी रहम नहीं की. कोई इस तरह भी चोदता है कि कमसिन बुर फट गई है. हरामजादे कब से बुर का भूखा था.
मैंने कान पकड़ कर गलती के लिए माफी मांगी और अपने कपड़े पहन लिए.
फिर मैंने शैली मामी के साथ गर्म पानी से चेतना की बुर साफ कर मलहम लगा कपड़े पहनाने में सहयोग किया.
चेतना को फिर से बिस्तर पर लिटा दिया.
उस दिन के बाद चेतना, शैली मामी और मेरे बीच सब कुछ खुल गया था.
अब अक्सर लगभग हर महीने मैं चेतना की चुदाई करने पहुंच ही जाता.
शैली मामी को चुदाई के लिए राजी करने में बहुत पापड़ बेलने पड़े.
वो सब फिर कभी फुर्सत में लिख कर भेजूंगा.
नमस्कार. मेरी हॉट देसी बुर सेक्स कहानी पर आपके मेल का इन्तजार रहेगा.
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