हाय, मेरा नाम रसिका है, मेरी उम्र 45 साल की है. मैं मुंबई में सासू माँ और अपनी बेटी के साथ रहती हूँ. मेरे पति गुजर गए हैं.
ये उस रोज की बात है, जब मैं और सासू माँ एक शादी में गए थे. शादी में काफी मेहमान आए हुए थे.
सासू माँ ने मुझे आवाजें देते हुए बुलाया- अरे रसिका बहू … इधर आओ तुझे हमारे बड़े कुंवर साहब से मिलवाती हूँ.
वो जैसे ही करीब आए, सासू माँ ने इशारा किया, मैंने तुरंत ही अपने चेहरे पर घूंघट ले लिया.
सासू माँ ने कहा- रसिका बहू इनसे मिलो, ये हमारे खानदान के बड़े कुंवर साहब हैं.
मैंने तुरंत ही उनके पैर छुए.
सासू माँ ने कहा- देखा … जरा पहचानो उनकी उम्र क्या होगी?
मैं कुछ नहीं बोली.
सासू माँ ने कहा- इनकी उम्र 70 साल की हो गई है, पर लगते हैं क्या ये 70 के?
मैं हमारे बड़े कुंवर साहब के बारे में आप सभी को बता देती हूँ.
कुंवर साहब की उम्र 70 साल थी, लेकिन वे इतनी उम्र के लगते ही नहीं थे. एकदम तंदुरुस्त … 6 फीट उंची हाईट होगी. दिखने में जैसे साधू बाबा थे. उनके लंबे सफेद बाल, दाढ़ी सफेद छाती के नीचे तक थी. रौबीला चेहरा … उनकी एक अलग ही पर्सनॅलिटी थी.
सासू माँ ने कहा- सुनो रसिका, कुछ दिनों के लिए कुंवर साहब हमारे घर रहने आने वाले हैं, ये कुछ बिजनेस के काम के लिए आने वाले हैं.
मैंने कहा- कुछ दिन क्या कुंवर साहब … बल्कि कितने भी दिन और महीनों के लिए आ जाइए, घर आप ही का है, हम क्या … घर में सिर्फ तीन ही तो लोग हैं.
कुंवर साहब ने कहा- रसिका बहू, आपको कुछ एतराज तो नहीं, मैं करीब 6 महीने तक रहूँगा.
मैंने कहा- नहीं जी … भला हमें कौन सा एतराज … बल्कि हमें आपकी सेवा करने का अवसर मिलेगा.
फिर हमने थोड़ी देर बातें की.
अब मैंने मेरी साड़ी का पल्लू घूंघट की जगह सिर पे ले लिया था. मैं देख सकती थी कि कुंवर साहब बातें करते वक्त घूर घूर से मुझे ऊपर से नीचे तक देख रहे थे. हम दोनों ने थोड़ी देर बातें कीं, तभी मुझे किसी ने आवाज देकर बुलाया और मैं वहां से चली गयी.
एक दिन मैं बेटी को लेकर स्कूल से घर आयी, तो देखा तो सामने कुंवर साहब बैठे थे. हमने एक दूसरे को देखा.
तभी सासू माँ ने इशारा किया और मैंने साड़ी का पल्लू फिर से ऊपर कर लिया और अपने सिर से घूंघट की तरह ले लिया. फिर थोड़ी बातें बातें करके चाय बनाने अन्दर आ गयी.
सासू माँ अन्दर आईं और बोलीं- रसिका बहू, कुंवर साहब के सामने हमेशा घूंघट ओढ़ कर ही जाना.
कुछ दिन ऐसे ही गए. कुंवर साहब सुबह जाते और शाम को आते, मैं ही उनको चाय और खाना देती थी. वो हमारे घर अलग रूम में रहते थे.
एक दिन ऐसा हुआ रात को मुझे कुछ आवाज आयी, देखा तो कुंवर साहब रसोई में चाय बना रहे थे.
मैंने कहा- अरे कुंवर जी, मुझे जगाया होता, मैं बना कर दे देती.
कुंवर साहब ने कहा- नहीं रसिका बहू, आपको तकलीफ क्यों दूँ, मेरा काम तो देर रात तक चलता है.
मैंने कहा- अरे तकलीफ किस बात की, सासू माँ ने देख लिया, तो वो मुझे डांटेगीं, चलिए मैं ही चाय बनाती हूँ.
उस दौरान मैं घूंघट लेना भूल गयी. फिर मैं ही उन्हें रोज देर रात चाय बना कर देने लगी.
कुछ दिन ऐसे ही गए, लेकिन जब जब मैं कुंवर साहब के पास जाती, वो हमेशा मुझे वासना की नजरों से देखते थे. ये मुझे मालूम चल गया था. मैं भी घूंघट ओढ़े ही उनके सामने जाती.
वैसे साड़ी तो मैं वैसे नॉर्मल ही पहनती थी. मेरी ऊँचाई 5 फीट 4 इंच, फिगर की बताऊं, तो 41 के बड़े भरे हुए स्तन है, जिन पर मैं 38सी की ब्रा पहनती हूँ. इससे मेरे स्तन एकदम कसे हुए रहते हैं. वैसे भी मेरे स्तन एकदम भरे हुए बड़े और गोल हैं. पति की मृत्यु के बाद किसी ने छुए ही नहीं थे, इसलिए पूरे शेप में एकदम तने हुए थे. मेरी कमर 34 की और 45 इंच के भारी चूतड़ों के बीच गुलाबी गांड एकदम कसी हुई थी. मैं एकदम भरी हुई औरत हूँ. मैं घर में एकदम संभाल कर नॉर्मल साड़ी ही पहनती थी.
कुछ ही दिनों में मेरे बड़े देवर जी आ गए.
सासू माँ तीन महीने मेरे साथ … और तीन महीने देवर जी के साथ रहती हैं.
मैं सासू माँ का सामान बांध कर चली गयी. मेरे जाने से पहले सासू माँ ने मुझसे कहा- बहू, कुंवर साहब का ख्याल रखना, कोई शिकायत और तकलीफ नहीं होनी चाहिए … और हां हमेशा घूंघट लेकर ही उनके सामने जाना.
मैंने कहा- हां माँ जी … उन्हें कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा, आप बिल्कुल चिंता ना करें.
फिर सासू माँ निकल गईं.
अब हम घर फिर से तीन लोग रह गए थे. मैं, मेरी छोटी बेटी और कुंवर साहब.
कुछ दिन हमारे दिन नॉर्मल ही गए, लेकिन उस दौरान मेरे में और कुंवर साहब में काफी बातें होने लगी थीं.
एक दिन एक रात मैं खाना लेकर उनके रूम में गयी. अचानक से न जाने क्या हुआ कि कुंवर साहब का खाना गिर गया.
कुंवर साहब बोले- सॉरी रसिका.
मैंने कहा- कोई बात नहीं, मैं सब साफ कर देती हूँ.
मैं जमीन पर गिरा हुआ खाना साफ करने लगी. कुंवर साहब बेड पे ही बैठे थे. वो मेरी हरकतों को देख रहे थे. मैं घूंघट में ही थी, सब समझ रही थी.
मैंने खाना साफ किया और कुछ ही देर में दूसरी खाने की थाली कुंवर साहब को दे दी. इसके बाद मैं अपने रूम में जाने लगी. कुंवर साहब के इस कमरे में सामने आईना लगा था. मैं देखा, मेरे ऊपर घूंघट जरूर था, लेकिन मेरा पल्लू काफी नीचे आया हुआ था. मैं समझ गयी कि कुंवर साहब ने मेरे मम्मों को खूब देखा होगा.
दूसरे दिन मेरी नींद खुली. मैंने एक नजर कुंवर साहब के रूम में डाली.
मैंने देखा कि कुंवर साहब अपना लंड हिला हिला कर मेरे नाम से मुठ मार रहे थे. वो बोल रहे थे- आह रसिका एक बार लंड लगाने दे … आह एक बार चोद देने दे. मैं भी सेक्स का भूखा हूँ और मैं जानता हूँ कि तू भी सेक्स की भूखी है, बस एक बार लंड लगा लेने दे.
मैं सोचने लगी, मेरा मन डोलने लगा. कुंवर साहब का लंड अब भी बहुत मस्त था. फिर भी मैं लाज का पहरा न तोड़ सकी.
अब मैं जब रसोई में होती, तो कुंवर साहब अन्दर रसोई में किसी ना किसी बहाने से आ जाते. उनकी घूरती हुई नजर मेरी समझ में आ रही थी.
एक दिन मेरा जन्म दिवस था. ये कुंवर साहब को मालूम था. मैं बेटी को स्कूल से लेकर आयी. मैं अपने रूम में गयी, तो देखा, तो बेड पे एक बॉक्स रखा था, ऊपर ‘हैप्पी बर्थडे टू यू रसिका’ लिखा था.
मैंने वो डिब्बा खोला और देखा तो अन्दर ढेर सारी साड़ियां थीं. मैंने ठीक से देखा, तो सब साड़ियां नेट वाली थीं … यानि ट्रांसपेरेंट साड़ियां थीं. उनके साथ में कुछ ब्लाउज भी थे, उन ब्लॉउजों में बटन नहीं थे. उनको बांधने के सामने से डोरियां थीं. यानि डोरी वाले ब्लाउज थे. उस तरह के ब्लाउज को खोलने के लिए डोरी भर खोलनी पड़ती थी. सारे ब्लाउज काफी तंग दिख रहे थे. वो साड़ियां अगर मैं पहनूंगी, तो अन्दर का मेरा बदन उभर कर दिखेगा.
मैं समझ गयी कि कुंवर साहब क्या चाहते हैं.
शाम को कुंवर साहब आए और अपने रूम में चले गए.
मैं भी चाय लेकर उनके रूम में गयी. कुंवर साहब ने कहा- हैप्पी बर्थडे रसिका, गिफ्ट मिला क्या?
मैंने कहा- शुक्रिया कुंवर साहब. हां जी मिला.
कुंवर साहब ने कहा- फिर कब पहनोगी?
मैंने कहा- हां जी पहनूंगी बाद में!
मैं इतना कह कर अपने काम के लिए चली गयी. मैं समझ गयी कि आज रात जरूर कुछ होने वाला है.
उसी दिन मेरी एक सहेली मेरे जन्म दिन पर मुझे बधाई देने आयी थी. उसकी बेटी भी उसी के साथ आई थी. जब वो अपने घर गई, तो साथ में उसकी बेटी जिद करके मेरी बेटी को भी अपने घर ले गयी.
अब रात हम दोनों ही अकेले रह गए थे. मैं और कुंवर साहब. रात को मैंने सब दरवाजे खिड़की बंद किए.
करीब 10 बज कर 30 मिनट हुए होंगे, मैंने साड़ी पहनी, लेसवाला ब्लाउज भी पहना. सच में काफी तंग था. मैंने खुद को आईने में देखा, तो मुझे अपने आपको देख कर शर्म आ रही थी. नेट की साड़ी और ऊपर से लेसवाला ब्लाउज, इसमें से मेरे मम्मे तो आधे से ज्यादा बाहर ही दिख रहे थे.
मैंने खाने की थाली लगाई और कुंवर साहब के कमरे की ओर गयी. मैंने घूंघट डाला हुआ था. कुंवर साहब खड़े हुए, काफी देर तक मुझे देखते रहे और आगे बढ़ कर उन्होंने अपने रूम का दरवाजा बंद कर दिया.
फिर कुंवर साहब ने मेरे हाथ से खाने की थाली ली और बाजू में रख दी. पूरे कमरे में अंधेरा था, सिर्फ टेबल लैंप चालू था. थोड़ी देर वो वैसे ही खड़े थे, मैं एकदम चुप थी, घूंघट में थी.
फिर उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे मम्मों की ओर बढ़ाए. अपने दोनों हाथों से मेरे मम्मे दबाने शुरू कर दिए. मैं चुप थी. कुंवर साहब मेरे आमों को जोर जोर से दबाने लगे. उन्होंने मेरा घूंघट ऊपर कर दिया और मुझे किस किया. वे फिर से मेरे मम्मे दबाने लगे.
मुझमें चुदास भरने लगी थी. कुंवर साहब ने मेरा ब्लाउज की डोरी खींच दीं और ब्लाउज को खोल दिया. मेरी साड़ी उतार दी. वे फिर से मेरे मम्मे दबाने लगे. अब साथ ही में ही कुंवर साहब मेरे मम्मों की नोकों को चूसने लगे.
मुझे बड़ी गुदगुदी हो रही थी और मजा भी आ रहा था. फिर कुंवर साहब ने मुझे बेड पे ले लिया और खुद नंगे खड़े हो गए.
हम दोनों कुछ नहीं बोल रहे थे. कुंवर साहब ने मुझे पूरी नंगी कर दिया. हम दोनों नंगे हो चुके थे.
कुंवर साहब ने मुझे बेड पर लेटा कर मेरे पैर फैला दिए और मेरे ऊपर चढ़ गए. कुंवर साहब ने अपना बड़ा और मोटा लंड मेरी चुत के ऊपर लगाया और धक्के देने लगे.
हम दोनों कुछ नहीं बोल रहे थे, लेकिन मेरे मुँह से कामुक आवाजें आनी लगीं ‘आह … ओह …’
उनके धक्के चालू थे और जोर जोर से वे मुझे चोदे जा रहे थे. उनका लंड बड़ा मोटा था. कोई 6 इंच से भी ज्यादा लंबा और मोटा लंड था. मैं अपनी चुत में लंड की मोटाई और लम्बाई को महसूस कर रही थी.
उनकी साधू बाबा जैसे लंबी दाढ़ी मेरे मम्मों को सहला रही थी. इससे मुझे मजा आ रहा था. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं किसी साधू बाबा से चुदवा रही हूँ.
उनके धक्के अभी लग ही रहे थे कि उन्होंने बोलना शुरू कर दिया.
उनके भी मुँह से आवाजें आ रही थीं- रसिका बहू, तुम क्या मस्त माल हो … जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था, तभी मुझे तुझे चोदने का मन हो गया था.
मैं कुछ नहीं बोल रही थी. कुंवर साहब की 70 की उम्र में भी उनका भारी शरीर और बड़े लंड के धक्के मैं झेल रही थी. मुझे भी चुदाई में बहुत मजा आ रहा था.
वो मुझे धकापेल चोद भी रहे थे और बोल भी रहे थे- मैं भी काफी टाईम से सेक्स का भूखा था, पत्नी के देहांत के बाद मैंने अपने आपको अकेला पाया और बिजनेस में ज्यादा व्यस्त हो गया. आज काफी टाईम के बाद तुझसे जो सुख मिल रहा है, वो मैं कभी नहीं भूल सकता.
अब मैं भी उनके आगोश में आ गयी थी, मेरी कमर अब नीचे से उछल कूद करने लगी थी. अपने कुल्हे हिला हिला कर मैं भी अब उनका साथ देने लगी.
मैंने कहा- उम्म्ह… अहह… हय… याह… कुंवर जी आप इस उम्र में भी इतने जवान हो, एक बात पूछूं?
कुंवर साहब- हां पूछो.
मैं- क्या मैं आपको बाबा बोल सकती हूँ??
कुंवर साहब- क्या बाबा जी का लेना ज्यादा पसंद आता है रसिका?
मुझे हंसी आ गई. मैंने बोला- अअअअ … आआआह … बाबा चोद दो.
अब मेरे मुँह से भी सेक्सी आवाजें आने लगीं.
कुंवर साहब ने कहा- हां बेटी क्यों नहीं … तुम मुझे बाबा बोल सकती हो.
उनको क्या पता मैं उन्हें साधू बाबा के रूप में देख रही थी.
मैंने कहा- ओओह … हां. … बाबा प्लीज़ और चोदो मुझे … प्लीज़ प्यास बुझाओ अपनी बेटी की … बाबा जी … आह प्लीज़ और चोदो मुझे … आपका लंबा मोटा लंड मेरे अन्दर तक घुसेड़ दो मेरी चुत में … और जोर से बाबा जी प्लीज़ चोदो मुझे.
कुंवर जी भी बोलने लगे- हां बेटी ले ये ले मेरा लंड … और ले मेरा लंड खा जा पूरा … आह ले ले अपनी प्यासी चुत में.
उनके धक्के और तेज हो गए. मैं भी अपने चूतड़ों को हिला हिला कर बाबा जी का साथ देने लगी.
काफी देर चुदायी चली और कुंवर साहब का पानी मेरी बुर में घुसने लगा. दोनों को खूब मजा आया. काफी देर तक कुंवर साहब मेरे ऊपर पड़े रहे.
फिर एक बार हम दोनों में चुदायी हुई. उस रात कुंवर जी ने मुझे तीन बार चोदा.
दूसरे दिन हमारी नींद खुली. घर की सब खिड़कियां बंद ही थीं. मैंने कुंवर साहब को चाय दी और कहा- नहाने का पानी तैयार है कुंवर जी.
उनकी तरफ देखते देखते मैं बाथरूम में चली गयी और जाते जाते साड़ी बाहर ही उतार दी.
वो भी समझ गए. मैं अन्दर ही ब्लाउज और साये में थी.
वो बाथरूम में अन्दर आ गए. उन्होंने मेरे कपड़े उतारे … शॉवर चालू किया. अपने लंड को साबुन लगाकर मुझे नीचे कुतिया जैसे बैठने को बोला.
फिर कुंवर साहब ने मेरे चूतड़ों और गांड में भी साबुन का पानी घुसाया. मेरी गांड चिपचिपी कर दी. मैं समझ गयी कि आज कुंवर साहब पीछे का मजा लेने वाले हैं.
फिर कुंवर साहब ने अपने लंड का सुपारा मेरी गांड के छेद पर रखा और गांड में घुसा दिया. मैं बिलख गई, पर मेरे पति ने मुझे गांड मार कर भी चोदा था, इसलिए दो तीन झटकों में ही गांड ने डिस्को करना शुरू कर दिया.
काफी देर तक कुंवर साहब ने मेरी गांड मारी. फिर अपना पूरा पानी मेरी गांड में छोड़ दिया. मेरी गांड उनके गर्म पानी से पूरी भर गयी. मुझे काफी तकलीफ हुई लेकिन मजा भी आया.
सासू माँ के इन तीन महीने की गैरमौजूदगी में हम दोनों ने बहुत चुदाई की.
फिर सासू माँ आ गईं, कुंवर साहब के भी जाने का टाईम आ गया.
एक दिन मैंने सासू माँ और कुंवर साहब की बात को सुना.
सासू माँ ने कहा- क्यों कुंवर जी. … कैसे कटे दिन? काम हुआ? आपका और जो मैंने कहा था वो?
कुंवर जी ने सासू माँ को कहा- हां सब काम हुआ … मेरा और आपका दोनों का काम हो गया. रसिका बहू को जो सुख चाहिए था, वो भी दे दिया.
यह सुन कर मैं हैरान हो गयी. यानि मेरी चुदाई सासू माँ और कुंवर साहब का प्लान था. हां लेकिन एक बात है, सासू माँ में मुझे ये बात बाद में कभी महसूस नहीं होने दी कि वो उनका ही प्लान था.
दो ही साल में कुंवर साहब का देहांत हो गया और उन्होंने अपनी जायदाद का थोड़ा हिस्सा बेटी के रूप में मेरे नाम भी कर दिया था.
ऐसी थी मेरी और कुंवर साहब की चुदाई की कहानी … जो कि मेरी सास ने प्लान की थी.
इस सेक्स कहानी पर आप मेल कर सकते हैं. पर शब्दों का चयन अच्छा होना चाहिए.
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