मौसी की चूत में घुसा मेरा लंड- 4

मौसी की चूत में घुसा मेरा लंड- 4


भाबी की चूत की कहानी मेरे दोस्त की बीवी के साथ सेक्स की है. उसे मैंने दो साल पहले चोद कर गर्भवती किया था. अब दोस्त ने मुझे बेटे के जन्मदिन पर बुलाया तो …
हैलो फ्रेंड्स, मैं हर्षद मोटे एक बार फिर से अपनी कहानी के अंतिम भाग में आपका स्वागत करता हूँ.
पिछले भाग
दोस्त की मौसी को अगले दिन फिर चोदा
में अब तक आपने पढ़ा था कि देविका मौसी दिन में मेरे पास आ गई थीं और एक बार मैंने उनकी चूत चुदाई का मजा ले लिया था. चुदने के बाद मौसी ने मुझसे उसकी किसी तमन्ना के बारे का था.
अब आगे भाबी की चूत की कहानी:
देविका बोली- हर्षद, तुम्हारे लंड का अमृत मुझे जी भरके पीना है.
मैंने कहा- बस इतना ही ना देविका … इससे तो मुझे कोई एतराज नहीं है, लो पी लो और अपनी आखिरी तमन्ना भी पूरी कर लो. ना जाने हम फिर कब मिलेंगे.
देविका बोली- हर्षद यहां नहीं, तुम बेड पर लेट जाओ.
उसने खड़ी होकर मुझे पकड़ा और उठा दिया.
मैं बेड के किनारे बैठ गया. मेरा बाक्सर घुटनों के नीचे ही था.
देविका मेरे पास आयी. उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरी जीभ को अपनी से लड़ाने लगी.
मुझे बहुत मजा आ रहा था. साथ में देविका ने अपने दोनों हाथों में मेरा मूसल पकड़ा और सहलाने लगी.
हम दोनों भी एक दूसरे की जीभ चूस चूसकर कामुक होने लगे थे. हम दोनों ने कुछ मिनट रसपान करने के बाद एक दूसरे को वासना से देखा.
देविका ने मुझे लिटा दिया और मेरे दोनों पैर फैला कर बीच में खड़ी हो गयी.
उसने अपने दोनों हाथ से लंड पकड़ा और नीचे झुककर अपने मुँह से ढेर सारा थूक मेरे लंड के सुपारे पर छोड़ दिया.

फिर उसने अपने दोनों हाथों से लंड को पूरा गीला और चिकना बना दिया.
अब देविका मेरे चिकने सुपारे पर अपनी जीभ गोल गोल घुमाने लगी.
उसकी नाजुक जीभ के स्पर्श से मैं मदहोश हो रहा था और सिसकारियां लेने लगा था- ओह देविका, बहुत गुदगुदी हो रही है. बहुत मजा आ रहा है. कितना अच्छा चूसती हो तुम!
तो देविका भी जोश में आकर लंड मुँह में लेने लगी थी.
लेकिन लंड मोटा और लंबा होने के कारण वो पूरा लंड मुँह में नहीं ले पा रही थी.
तब भी उसने आधे से अधिक लंड अपने मुँह में ले लिया था.
मेरा लंड पूरा गीला हो गया था. देविका कामुक होकर लंड अन्दर बाहर कर रही थी.
मैं भी मदहोश हो रहा था. मैं अपने दोनों हाथों से देविका का सर पकड़ कर आगे पीछे करने लगा.
कुछ मिनट की इस मुँह चुदाई के बाद मेरा लंड चरम सीमा पर पहुंचने वाला था.
मैंने देविका से कहा- अब मैं थोड़ी देर में झड़ने वाला हूँ देविका!
तो वह बोली- ठीक है.
वो अपने दोनों हाथों से मेरी जांघें सहलाने लगी, साथ में लंड मुँह में तेज गति से अन्दर बाहर कर रही थी.
अब तो देविका ने मेरी गांड के छेद पर भी अपनी उंगलियां फिराने लगी थी तो मैं और ज्यादा मदहोश होने लगा था.
मैं जोर जोर से देविका का सर अपने लंड पर दबाने लगा.
देविका भी पूरी तरह से कामवासना में डूबने लगी थी. वो मेरी गांड के छेद पर अपनी उंगली दबाने लगी.
मुझसे रहा नहीं गया और बड़बड़ाने लगा- आंह देविका आ गया मैं … आह मैं अब झड़ने वाला हूँ जान … और जोर से चूस ले.
बस उसी पल मेरे लंड ने कुछ तेज पिचकारियां देविका के गले में गहराई में मार दीं और मैं झड़ गया.
देविका ऐसी तेजी से मेरा वीर्य पी रही थी, जैसे वो बरसों से प्यासी हो.
मैं आंखें बंद करके निढाल होकर लेटा रहा. देविका मेरा लंड चूस चूसकर पूरा वीर्य पी रही थी.
इतने में सरिता भाभी दरवाजे पर आकर खड़ी होकर सब देखने लगी.
अधखुली नजरों से मैं भाभी को देख रहा था लेकिन देविका को कुछ पता नहीं था.
तब मैं देविका से बोला- ओह देविका … कितना मस्त चूस रही हो तुम … ऐसे ही चूसते रहो … मजा आ रहा है.
मैं जानबूझ कर कह रहा था.
भाभी ये सब देखकर अपनी चूत साड़ी के ऊपर से ही सहलाने लगी. शायद वो ये सब देखकर कामुक होने लगी थी. शायद उसकी चूत भी गीली हो गयी थी.
उनको हम दोनों की चुदाई की कहानी याद आ रही होगी.
देविका ने चूस चूस कर पूरा लंड साफ करके चिकना बना दिया. अब उसने मेरा लंड मुँह से निकाल कर अपने दोनों हाथों मे ले लिया और सहलाने लगी.
वो बोली- हर्षद, आज मैं तुम्हारे लंड का अमृत पीकर धन्य हो गयी. क्या मस्त स्वाद है तुम्हारे अमृत का … मैं जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगी हर्षद … जी भर गया मेरा.
उधर भाभी खड़ी होकर अपनी चूत सहला रही थी.
अब देविका खड़ी हो गयी और अपने ब्लाउज के हुक लगाने लगी तो उसकी नजर दरवाजे पर खड़ी सरिता पर गयी.
देविका ने शर्माकर पूछा- तुम कब आयी सरिता?
सरिता ने मुस्कुराकर कहा- बहुत देर से आयी हूँ और मैंने सब कुछ देख भी लिया है. मौसी, अब तुम्हारी प्यास बुझ गई हो, तो नीचे आ जाओ, रसोई में कुछ मदद करो. मैं इधर का सब ठीक ठाक करके आती हूँ.
देविका बिना कुछ कहे नीचे चली गयी.
मैं उठने लगा तो सरिता मेरे पास आकर बोली- तुम कहां जा रहे हो हर्षद. अभी मेरा काम बाकी है.
ऐसा बोलते हुए सरिता ने अपने दोनों हाथों में मेरा लंड पकड़ लिया और सहलाने लगी.
उसका मुलायम हाथ मेरे लंड को लगते ही फिर से मेरा लंड फड़फड़ाने लगा.
मैं सरिता को आपने ऊपर खींचकर चूमने लगा, तो सरिता भी मेरे होंठों को चूसने लगी.
मैंने घड़ी देखी तो सवा बारह बज चुके थे.
मैं सरिता की चूचियां सहलाने लगा.
सरिता बोली- हर्षद, मेरे पास समय कम है … जल्दी से अपना मूसल मेरी गीली चूत में पेल दो.
मैंने उठकर सरिता को बेड पर सुलाया और उसकी साड़ी कमर तक ऊपर कर दी. फिर उसकी पैंटी निकाल दी और उसकी गांड के नीचे एक तकिया रख दिया. उस तकिया के ऊपर एक कपड़ा फैलाकर रख दिया.
अब मैं उसकी जांघों के बीच अपने घुटनों के बैठ गया.
मैं सरिता की जांघों को दोनों तरफ फैलाकर सहलाने लगा तो सरिता सिहर उठी.
तकिया की वजह से सरिता की चूत ऊपर उठकर फूल गयी थी.
सरिता ने अपने दोनों हाथों से अपनी चूत की दोनों फांकों को फैलाकर रखा.
मैंने अपने मुँह से ढेर सारा थूक सरिता की चूत पर छोड़ दिया. अपने लंड पर भी ढेर सारा थूक छोड़कर मैंने लंड और चूत को लबालब कर दिया.
मैंने अपने हाथों से पकड़ कर लंड का सुपारा सरिता की चूत के खुले हुए मुँह पर रख दिया और थोड़ा सा रगड़ कर एक जोर का धक्का मार दिया.
मेरा आधे से अधिक लंड सरिता की चूत की दीवारें चीरता हुआ अन्दर पहुंच चुका था.
सरिता सीत्कारने लगी. उसकी मेरा लंड अन्दर लेने की ख्वाहिश उसे गरमाए हुई थी.
फिर वो मेरा जबरदस्त धक्का सह नहीं पायी और वो झड़ गयी.
उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और बड़बड़ाने लगी- उई मां उफ्फ ऊऊँ आह आ स् स् स्ह स्ह हर्षद … सच में तुम बहुत जालिम हो यार … इतनी जोर से धक्का देकर भी कोई डालता है क्या?’
मैंने सरिता के होंठों को चूमते हुए कहा- क्या करूं सरिता. तुम्हारी इतनी चिकनी, गुलाबी और कसी हुई चूत देखकर मैं अपने लंड पर काबू नहीं कर सकता.
सरिता मेरी पीठ और गांड को सहलाकर बोली- हां हर्ष,द मैं तुम्हारी मजबूरी समझती हूँ … लेकिन तुम्हारा मूसल इतना बड़ा है तो तकलीफ तो मेरी चूत को ही होगी ना जान.
कुछ मिनट हम दोनों ऐसे ही एक दूसरे को सहलाते रहे और सेक्सी बातें करते रहे.
थोड़ी ही देर बाद सरिता नीचे से अपनी गांड ऊपर नीचे करने लगी.
सरिता अब बचा हुआ लंड अपनी चूत में लेना चाह रही थी.
मैंने उसी कामना को समझा और अपनी पोजीशन लेकर मैं घुटनों के बल बैठ गया और लंड को सुपारे तक बाहर निकाल लिया.
इससे सरिता की चूत से निकला चूतरस बाहर बहने लगा. मेरा लंड रस से पूरा सराबोर हो गया था.
मैंने अगले ही लंड को धक्का देकर और अन्दर पेल दिया.
सरिता तकिया के कारण उठी हुई थी तो वो ये सब देख रही थी. वो मेरा पूरा लंबा और मोटा लंड अन्दर बाहर होते देख रही थी.
अब मैंने अपनी गति बढ़ा दी, तो लंड और चूत गीली होने के कारण पचा पच फच फचाक फच पचाक की कामुक आवाजें निकलने लगी थीं.
पूरे रूम में चुदाई का मधुर संगीत गूंजने लगा था.
मैंने अपना पूरा लंड अन्दर डाल दिया था. सरिता आंखें फाड़कर सब देख रही थी और वो पूरी तरह से कामवासना में डूबने लगी थी.
कुछ देर ऐसे ही धुंआधार चुदाई के बाद मैं अपनी चरमसीमा पर पहुंचने वाला हो गया था.
मैंने सरिता से कहा- अब मैं झड़ने वाला हूँ सरिता.
तो सरिता भी बोली- हां डार्लिंग, मैं भी नजदीक ही हूँ. रगड़ दो मुझे … आह हम दोनों साथ में ही झड़ेंगे.
मैं सरिता की बात सुनकर और जोश में भाबी की चूत में धक्के मारने लगा.
कुछ तगड़े धक्के मारने के बाद मेरे लंड ने रस की पिचकारियां मारना चालू कर दीं.
मेरे लंड की गर्म पिचकारियों का अहसास सरिता ने अपनी चूत में करते ही मुझे अपने ऊपर खींच लिया और वो भी झड़ गयी.
हम दोनों ने एक दूसरे को अपनी बांहों में कस लिया और थककर निढाल होकर एक दूसरे की बांहों में समा गए.
कुछ मिनट तक हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे.
थोड़ी देर बाद सरिता बोली- हर्षद अब उठो … मुझे नीचे जाना पड़ेगा.
मैं उसको चूमकर उसके ऊपर से उठकर बाजू में लेट गया. सरिता उठकर बैठ गयी. हम दोनों का कामरस चूत से बाहर बहकर तकिये पर बिछे कपड़े पर फैलने लगा था. उसकी चूत से मलाई की मोटी धार बहती हुई बड़ी ही कामुक नजारा पेश कर रही थी.
सरिता ने कुछ पल उस धार को देखा और मुस्कुरा कर कपड़े से अपनी चूत पौंछकर साफ कर दी.
फिर उसने मेरा लंड भी साफ कर दिया.
सरिता कपड़ा लेकर बाथरूम में गयी और अपनी चूत धोकर बाहर आ गयी.
मैं बेड के नीचे खड़ा हो गया था. सरिता के वापस आते ही मैं उसे अपनी बांहों में कसकर चूमने लगा.
सरिता झूठे गुस्से से बोली- हटो हर्षद, मुझे बहुत काम है … प्लीज़ छोड़ दो मुझे.
ऐसा कहती हुई वो अपनी चूत को मेरे लंड पर रगड़ भी रही थी.
मैंने सरिता से कहा- सरिता, अगर तुम फिर से प्रेग्नेंट हो गयी तो?
सरिता ने हंस कर जबाब दिया- कोई बात नहीं हर्षद. मैं भी यही चाहती हूँ. वैसे भी सोहम को भाई या बहन चाहिए ही है. तुम्हारी दो दो निशानियां मेरे पास रहेंगी.
ये बात सुनकर मैंने सरिता को और जोर से कसकर चिपका कर चूम लिया.
सरिता ने अपने दोनों हाथों से मेरे लंड को रगड़ा और बोली- बहुत जान है तुम्हारे इस मोटे लंड में हर्षद. आज शायद मैं प्रेग्नेंट हो ही जाऊंगी. ना जाने तुम अब कब आओगे यहां.
मैंने सरिता को चूमते हुए उसकी गांड को सहलाकर कहा- अगर तुम्हारी यही तमन्ना है, तो तुम जरूर प्रेग्नेंट हो जाओगी सरिता!
सरिता ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में दबाया और जोर से मसलती हुई बोली- अब छोड़ दो मुझे हर्षद!
वो मेरी बांहों से अलग हो गयी और उसने अपनी पैंटी पहन ली, साड़ी ठीक करके वो नीचे चली गयी.
मैंने घड़ी देखी, तो एक बज चुका था.
मैं नंगा ही बाथरूम में गया और नहाकर तैयार होकर नीचे आ गया.
खाना तैयार हो गया था.
सरिता भाभी और देविका मौसी, टेबल पर थालियां रखकर खाना परोस रही थीं.
सब लोग बैठ गए.
मैं अपने पिताजी के पास बैठ गया.
उनके बाजू विलास के पिताजी और उनके साथ सोनाली के ससुर बैठे थे.
मेरे पास बाद में देविका आकर बैठ गयी.
सभी बैठने के बाद हमने खाना चालू कर दिया. मेरे सामने सरिता बैठी थी. उसके चेहरे पर अलग सी खुशियां छायी थीं. वो बहुत खुश थी.
वो शर्माकर मेरी तरफ देखने लगी तो मैंने मुस्कुराकर आंख मार दी.
ये देख कर सरिता का चेहरा शर्म से लाल हो गया.
इधर देविका अपना पैर मेरे पैर पर रखकर सहला रही थी.
मैंने देविका की तरफ देखा तो वो भी शर्मा गयी.
सब लोग बातें करते हुए खाना खा रहे थे.
अब मैंने अपना दूसरा पैर लंबा करके सामने बैठी सरिता के पैर पर रख दिया तो सरिता मेरी तरफ देखकर शर्मा गई.
वो आंखों से ही मुझे चुप बैठने को कह रही थी.
थोड़ी ही देर में सबका खाना खत्म हो गया और हम लोग बाहर बैठकर बातें करने लगे.
सरिता भाभी और देविका मौसी अपना काम निपटाकर हमारे साथ शामिल हो गईं.
इतने में सोहम के रोने की आवाज आयी तो सरिता भाभी भागकर अन्दर गयी और सोहम को बाहर लेकर आ गयी.
उसने मुझे सोहम को पकड़ा दिया. सोहम मेरे पास आकर मेरी गोद में बैठ गया.
वो मेरे साथ खेलने लगा.
सब लोगों को देखकर सोहम खेलने में मन लगाने लगा था.
थोड़ी देर बाद वो मेरी मम्मी की गोद में बैठकर खेलने लगा.
मैंने फिर से घड़ी देखी तो तीन बज चुके थे.
मैंने मम्मी से कहा- मम्मी, आपके और पिताजी के कुछ कपड़े बैग में रखने हैं, तो दे दो. हमें चार बजे निकलना है.
मम्मी ने कहा- हां हर्षद, हम दोनों के कुछ कपड़े हैं … चलो मैं तुम्हें देती हूँ.
इतना कहकर मैं मम्मी के साथ में हॉल में आ गया और उनसे कपड़े लेकर ऊपर आ गया.
रूम में पहुंच कर बैग में मैंने सब कपड़े भर दिए. मेरे भी कपड़े अपने बैग में भर दिए और दोनों बैग लेकर नीचे आ गया.
मैंने कार की डिक्की में सामान मजा कर रख दिया.
तब तक सरिता भाभी सबके लिए चाय बनाने रसोई में गयी.
मम्मी ने भी सबको बता दिया था कि हम लोग चार बजे निकल रहे हैं.
थोड़ी देर में सरिता भाभी चाय लेकर आयी और उसने सबको चाय दी.
चाय खत्म करने के बाद देविका मौसी ने सब चाय के कप बटोरे और किचन में चली गयी.
सरिता भाभी हल्दी कुमकुम लेकर आयी.
उसने मम्मी के माथे पर हल्दी कुमकुम लगाकर उनका अभिवादन किया और मम्मी के गले लगकर रोने लगी.
मम्मी ने उसके सर को सहलाकर कहा- अरे सरिता बेटी, रो क्यों रही हो. हम फिर आयेंगे यहां. ये भी हमारा ही घर है ना. विलास भी हमारे बेटे जैसा ही है ना!
उन्होंने अपने रूमाल से सरिता के आंसू पौंछ दिए.
फिर सरिता भाभी ने पिताजी को नमस्कार किया और पिताजी ने पांच सौ का नोट सरिता के हाथ में देकर कहा- बेटी सरिता इस पैसे से सोहम के लिए कुछ खिलौने खरीद लेना. बड़ा प्यारा बच्चा है सोहम. हमें उसकी याद हमेशा आएगी.
मैंने सोहम को ले लिया और उसकी दोनों गालों की पप्पी ले ली.
फिर मम्मी ने उसे लेकर ढेर सारी चुम्मियां लीं और पिताजी ने भी उसे नहीं छोड़ा.
अब हम सब निकलने लगे. मम्मी और पिताजी सबको बाय करके कार में बैठ गए.
मैं भी सबको बाय करके अपनी ड्राइविंग सीट पर बैठ गया.
सरिता भाभी और देविका मौसी कार के पास आकर मम्मी से बोलीं- आराम से जाना और पहुंचते ही फोन करना.
चार बज चुके थे.
हम फिर से बाय करके निकल पड़े.
शाम छह बजे हम अपने घर पहुंच गए.
घर पहुंचते ही मैंने विलास और सरिता भाभी को फोन करके बताया कि हम सभी आराम से घर पहुंच गए हैं.
दोस्तो, ये थी मेरी भाबी की चूत की कहानी. आपको कैसी लगी, जरूर बताएं. कुछ गलती हो गई हो … तो मुझे माफ कर देना.
जल्द ही मैं अपनी नयी कहानी आपके मनोरंजन के लिए लेकर आऊंगा. तब तक के लिए मेरा प्यार भरा नमस्कार.
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