मेरे सभी प्यारे पाठकों के लंड को आपके अपने सरस की तरफ से नमस्कार और सभी खूबसूरत हसीन पाठिकाओं की नाजुक गुलाबी चूत को प्यार भरा चुम्मा. सभी खूबसूरत पाठिकाओं से अनुरोध है कि जिन्होंने भी अपनी चूत पर मेरी गर्म सांसों को महसूस किया हो, मुझे जरूर लिखें.
मेरी पिछली कहानी थी
कमसिन साली की मस्त चूत चुदाई
तो एक बार फिर आपका अपना सरस आपके सामने हाजिर है, एक नई और बेहतरीन कहानी लेकर.. जिसे पढ़कर सभी सम्माननीय पाठकों के लंड चूत चोदने को बेताब हो जाएंगे और सभी चुदासी पाठिकाओं की चूत लंड के लिए पानी छोड़ने लगेंगी.
यदि ऐसा होता है तो मुझे लिखना जरूर क्योंकि आपके ईमेल ही मेरा मार्गदर्शन हैं जो मुझे रोज एक नई कहानी लिखने कि प्रेरणा देते हैं.
आप सभी ने मेरी कहानी
मकान मालिक की बेटी का योनि भेदन
खूब सराही, जिसमें मैंने आपको लिखा कि मेरी जॉब बैंक में है और आजकल मैं गुजरात मैं हूं. अगर गुजरात का कोई भी पाठक या पाठिका मुझसे बात करना चाहे, तो मुझे मेल कर सकते हैं.
प्यारे दोस्तो, यह कहानी कुछ महीने पहले की है, जब मैं उत्तरप्रदेश से गुजरात आया था. गुजरात के बड़ोदरा में अपना कमरा किराए से लेकर रहने लगा. मेरे मकान मालिक अपने दूसरे मकान में रहते थे, जिस वजह से मुझे वहां परेशान करने वाला कोई नहीं था. लेकिन वहां भी एक परेशानी थी कि जब लंड को चूत की आदत लग जाए और ऊपर से तन्हाई हो तो आप समझ सकते हैं कि लंड की क्या हालत होती होगी.
बैंक में दिन तो बड़ी आसानी से निकल जाता था लेकिन परेशानी होती रात को. मुझे उत्तरप्रदेश के पुराने दिन याद आते और मैं तड़प कर रह जाता.
लेकिन कहते हैं ना कि जब किसी को मन से चाहो तो कभी कभी वो मिल ही जाता है.
ये कहानी है आपके अपने सरस और सरस के सामने वाले फ्लैट में रहने वाली तीन लड़कियों की.
सबसे पहले मैं आपका परिचय तीनों लड़कियों से करवा देता हूं. तीनों सगी बहनें हैं और एक से बढ़कर एक बला की खूबसूरत हैं. सबसे बड़ी का नाम रेवती पटेल, दूसरी रिंकी पटेल और सबसे छोटी प्राची पटेल है.
सबसे पहले मैं आपका परिचय रेवती पटेल से करवाता हूं. रेवती 29 साल की लड़की है, जो 32-30-32 के फिगर कि मालकिन है और बड़ोदरा के एक निजी कॉलेज में प्रोफेसर है. वो बहुत ही खुले और सुलझे हुए विचारों की लड़की है. आपको बता दूं कि मेरी बालकनी से रेवती साफ दिखाई देती, जब भी वो किसी काम से अपनी बालकनी में आती या छत पर जाती. उसने भी मुझे कई बार अपनी छत और बालकनी से मुझे गौर किया था, लेकिन वो सिर्फ एक अजनबी को पहली बार देखने वाला नजरिया था.
हम दोनों की मुलाकात और बातों का सिलसिला शुरू बैंक के जरिए ही हुआ. रेवती का खाता हमारी बैंक की उसी शाखा में है, जिसमें मैं पोस्टेड हूं.
एक दिन रेवती को अपने परिवार के किसी काम से एक बड़ी रकम निकलवाने की जरूरत थी लेकिन हमारी शाखा में नगदी की समस्या होने की वजह से कैशियर ने रेवती को नगदी निकालने के लिए मना कर दिया.
अब रेवती परेशान अवस्था में बैंक में खड़ी हुई थी और बार बार अपनी समस्या बता रही थी, साथ ही उम्मीद की नजर से मेरी तरफ़ भी देख रही थी. वो सोच रही थी कि मैं उसे पहचानता हूं तो शायद उसकी मदद करूंगा लेकिन मैं भी मामले को बढ़ने देना चाहता था ताकि सभी जगह से निराश होने के बाद जब वो मेरे पास आए और मैं उसकी मदद कर दूँ, तो वो मुझे कुछ भाव देने लगे और मेरी अहमियत उसे पता लगे.
कुछ देर बाद मैंने उसे मेरे केबिन की तरफ आते हुए देखा और मैं देखता हूं कि वो वाकयी मेरे तरफ ही आ रही है और कुछ देर बाद वो मेरे सामने खड़ी थी.
उसके चेहरे पर परेशानी साफ दिख रही थी और आंखों में मुझसे एक उम्मीद.
मैंने उसकी तरफ इस तरह से देखा, जैसे कि मुझे मामले का पता नहीं हो और मैंने सब कुछ यहां तक कि उसे नहीं पहचानने का नाटक करते हुए कहा- कहिए क्या काम है?
“सर, मुझे किसी आवश्यक काम के लिए कुछ पैसों की जरूरत है.. लेकिन कैशियर मुझे मना कर रहे हैं. अगर आज पैसों की व्यवस्था नहीं हुई तो बहुत परेशानी हो जाएगी, मैं आपके सामने वाले फ्लैट में ही रहती हूं.”
रेवती ने एक सांस में सब कुछ कह दिया और अपना चैक मेरे सामने रख दिया.
मैंने रेवती की तरफ देखते हुए उसे बैठने के लिए कहा और पानी पीने के लिए दिया. पानी पीकर रेवती ने मुझे धन्यवाद दिया तथा वो दुबारा मुझसे अनुरोध करने लगी. मैंने मुस्कुराते हुए उन्हें शांत रहने को कहा और कैशियर को बुलाकर रकम केबिन में लाने के लिए कह दिया.
थोड़ी देर में कैशियर ने पैसे लाकर रेवती को दे दिए. रेवती ने पैसे लेकर अपने हैंड बैग में रख लिए और मुझे धन्यवाद देकर अपने घर चाय पर आने का न्योता देकर चली गई.
आज मैंने रेवती को बहुत करीब से अनुभव किया था व उसकी जवानी को निगाहों से होकर निकाला था.
मैं मन ही मन उसे पाने की सोचने लगा. खैर सारे काम निपटाकर मैं बैंक से घर आ गया और कुछ दिन ऐसे ही निकल गए.
इस बीच एक दिन मेरी तबियत थोड़ी खराब हो गई और मैं बैंक से जल्दी घर आ रहा था. मैं बस स्टॉप पर खड़ा था कि मेरे सामने एक कार आकर रूकी, जिसके काले शीशे चढ़े हुए थे. मैं उसे नजरअंदाज करते हुए पास में बनी बेंच पर बैठ गया.
कुछ देर बाद कार का शीशा नीचे उतरा और एक खूबसूरत लड़की ने मुझे मेरे नाम से पुकारा. मैंने देखा तो वो रेवती थी. रेवती ने मुझे अपनी कार में आने का इशारा किया तो मैं कार के पास जाकर खड़ा हो गया.
रेवती ने कहा- कहां जा रहे हैं सरस.. और इतने परेशान क्यों लग रहे हैं? आज बैंक नहीं गए क्या?
मैंने रेवती को उत्तर देते हुए उससे पूछा- मेरी तबियत थोड़ी खराब है, इस वजह से बैंक से जल्दी आ गया हूं.. और बस का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन आप यहां कैसे?
“मैं अपने कॉलेज से आ रही हूं. आइए मेरे साथ चलिए, मैं आपको छोड़ देती हूं.”
मेरी तबियत भी खराब थी.. इसलिए मैंने धन्यवाद देते हुए रेवती का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. लगभग आधे घंटे का रास्ता था, लेकिन मैं अभी अपने आप को संभालने में व्यस्त था.
थोड़ी दूर चलने के बाद मैंने रेवती से कार रोकने के लिए कहा और जैसे ही रेवती ने कार रोकी, मैंने कार से उतर कर बाहर की तरफ भागते हुए वोमिट कर दिया. रेवती मेरी हालत देख कर चौंक गई, उसने गाड़ी से पानी निकाला.
मैंने अपने आप को ठीक किया और रेवती को एक बार फिर से धन्यवाद दिया तथा उनको हुई परेशानी के लिए माफी मांगी.
रेवती ने मेरा हाथ पकड़कर मेरी तबियत का मुआयना किया तो उसने पाया कि मुझे बुखार था. अब वो घर जाने की बजाए मुझे हॉस्पिटल ले जाने लगी, जिसके लिए मैंने मना किया.. पर वो नहीं मानी.
हॉस्पिटल से निकल कर रेवती मुझे सीधा अपने घर ले गई और कहने लगी- आप अकेले रहते हैं और आपकी देखभाल करने के लिए कोई भी नहीं है. बेहतर होगा आप तबियत ठीक होने तक हमारे साथ रहें.
रेवती के मम्मी पापा भी मुझे रुकने के लिए कहने लगे. शायद रेवती ने बैंक में मेरे द्वारा की गई मदद सबको बता रखी थी, तो सभी मेरी सेवा में लग गए.
मुझे ये सब देखकर थोड़ा अजीब लग रहा था और मैं बार बार उन्हें कह रहा था कि मैं ठीक हूं, थोड़ी देर सो लेने के बाद अच्छा फील करूंगा.
रेवती ने मुझे दवाई लाकर दी, जिसे खाकर मुझे नींद आ गई. जब मेरी नींद खुली तो रात के आठ बज रहे थे. मैंने रेवती को बुलाकर उससे जाने की इजाजत मांगी तो उसने अपनी मम्मी को बता दिया कि सरस जाने की कह रहे हैं.
रेवती की मम्मी ने कहा- आपकी तबियत ठीक हो जाए तो आप चले जाना, अभी खाना खा कर आराम कर लीजिए.
मैंने कहा- ठीक है.
कुछ देर बाद रेवती खाना लेकर आ गई और मुझे अपने हाथों से खाना खिलाने लगी.
ये एक बहुत ही अजीब सा अहसास था दोस्तो. उसके हाथ से खिलाया गया एक एक निवाला मुझे बीमारी से दूर और उसके करीब लाता जा रहा था. कभी कभी हम दोनों एक दूसरे की तरफ देखते और वो मुस्कुरा जाती. मैं उसकी आंखों में देखने लगा, जिनमें एक अजीब सा आकर्षण था.. जो मुझे उसकी ओर खींच रहा था.
खाना खाकर मैं बिस्तर में लेट गया और रेवती झूठे बर्तन लेकर चली गई.
थोड़ी देर बाद मैं जब वाशरूम जाने के लिए कमरे से बाहर निकला तो मैंने देखा कि रेवती अपने कमरे में अकेले बैठकर उसी थाली में खाना खा रही थी, जिसमें उसने मुझे खिलाया था.
इस नजारे ने मुझे चौंका दिया और मैं अपने कमरे में वापस आ गया. बिस्तर पर लेटे लेटे रेवती के बारे में सोचते हुए कब मुझे नींद आ गई पता ही नहीं लगा.
अगली सुबह जब मैं जगा तो अपने आप को स्वस्थ महसूस किया.
जब मैं घर आने के लिए निकल रहा था तो रेवती बोली- सरस, आज तो रविवार है आपकी छुट्टी भी होगी, तो आप आराम से फ्रेश होकर खाना खाकर चले जाना.
रेवती की मम्मी भी मुझसे रुकने के लिए कहने लगी, तो मैंने कहा कि मेरी वजह से आप पहले ही काफी परेशान हो चुके हैं. अब मैं आपकी वजह से स्वस्थ हूं.. तो मुझे इजाजत दीजिए.
रेवती के पापा बोले- आपने उस दिन रेवती को पैसे दिलवाकर हमारी अनजाने में जो मदद की थी, उसके सामने ये सब कुछ भी नहीं है सरस जी.
मैंने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है, वो मेरे काम का एक हिस्सा था.
अब रेवती के पापा और उसकी छोटी बहन भी मुझे रुकने के लिए कहने लगी. मैंने रेवती की तरफ देखा तो उसकी आंखों में मुझे रोकने के लिए एक अजीब सा अनुरोध था. मैं रेवती के अनुरोध को ठुकरा नहीं सका और मैं रुक गया.
खाना बनने तक मैंने और रेवती के पापा ने ढेर सारी बातें की. दोपहर तक खाना बन गया और मैं खाना खाकर अपने फ्लैट में वापस आकर सो गया.
शाम को रेवती मेरे फ्लैट पर आई और मेरी तबियत के बारे में पूछने लगी.
“मैं ठीक हूं..” कहते हुए उसके द्वारा किए गए फेवर के लिए मैंने उसे ‘थैंक यू..’ बोला.
“मुझे थैंक यू मत बोला करो सरस.. मुझे अच्छा नहीं लगता.” रेवती बोली.
रेवती मेरे कमरे में अस्त व्यस्त पड़े सामान को जमाते हुए बोली- कितना गन्दा रखते हो कमरे को. शादी कर लो तो इस परेशानी से निजात मिल जाएगी.
मैंने रेवती की तरफ देखते हुए कहा- शादी करने के लिए कोई आपके जैसी खूबसूरत लड़की भी तो मिले.
यह सुनकर रेवती तकिये के कवर को हाथ में लिए खड़ी की खड़ी रह गई और मुझे देखने लगी. निगाहों से उसके द्वारा मेरी तरफ फेंके गए सवालों के जाल को अपनी निगाहों के जवाब से सुलझाते हुए मैंने हामी भरी.
रेवती मुस्कुराते हुए बोली- आपका और मेरा कोई मेल नहीं है. हम चाहें तो भी एक नहीं हो सकते.
और वो अपने काम में लग गई. थोड़ी देर बाद उसने मुझे आवाज लगाई- सरस, जरा इधर आओ.
मैं रेवती के पास गया तो मुझसे बोली- ये खिड़की हमेशा खुली रखा करो.
“क्यों?” मैंने पूछा.
“वो जो सामने वाली खिड़की है. ना वो मेरे कमरे की है.” यह कहकर रेवती चुप हो गई और अपने घर चली गई.
कहानी जारी रहेगी मेरे दोस्तो. अपने प्यार भरे ईमेल मुझे भेजते रहिए. आप मुझे मेरे फेसबुक पर भी मिल सकते हैं.
सरसचंद्र मेरा फेसबुक आईडी है. यदि कोई भी मेरे पाठक या पाठिका मुझसे इधर मिलना चाहे या अपने मन की कोई बात बताना चाहे तो आपका सरस आपका स्वागत करता है. आपकी बात और मुलाकात सिर्फ सरस तक सीमित रहेगी, आपके सरस की तरफ से अपने प्रिय पाठकों को विश्वास के साथ आमंत्रण.
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कहानी का अगला भाग: मेरे सामने वाली खिड़की में-2