नमस्कार दोस्तो, मैं नरसिंह प्रधान, अपनी एक कहानी लेकर प्रस्तुत हूँ. लेकिन मेरे इस कहानी के पात्र मेरे स्कूल के सह शिक्षक श्रीमान शंकर कुमार झा हैं. ये कहानी मैं उनकी जुबानी लिखूँगा ताकि आप लोगों को इसका ज्यादा मजा मिल सके. मैं अपना परिचय आपको अपनी अगली रचना में दूँगा.
ये कहानी एक पराई औरत से सालों बाद वासना की तृप्ति होने के ऊपर लिखी गई है. इसमें मैंने लिखा है कि कैसे एक स्कूल के विधुर शिक्षक को उसके पड़ोस में रहने वाली एक कामकाजी महिला ने अपने पति से दूर होकर एक गैर मर्द के रोजमर्रा जीवन में साथ दिया और कैसे उसकी अतृप्त वासना की आग को अपने लुभावने जिस्म से ठंडा किया.
आज हम बात कर रहे हैं, शंकर कुमार झा की, जो स्कूल में शिक्षक तो हैं ही, साथ ही उनकी खुद की गौशाला भी है. वो मेरे हमउम्र के ही हैं.. यही कोई 50 साल के मोटे तगड़े, कुछ 6 फिट के तंदरुस्त आदमी. झा जी की थोड़ी तोंद निकली हुई है, बड़ी बड़ी मूँछें आंखों में चश्मा लगता है. उनको दो औलादें हैं, एक लड़का और एक लड़की, दोनों की शादी हो चुकी है. उनके लड़के को एक बेटा भी है, जो अभी कोई डेढ़ साल का होगा. झा जी की पत्नी का निधन कुछ बीमारी के कारण 8 साल पहले हो चुका है. चलिए जानते है झा जी की आपबीती उनकी जुबानी.
मैं शंकर कुमार झा … आपसे मुखातिब हूँ. यह बात कुछ 6 महीने पहले की है. हमारी गौशाला से सटे मकान में कोलकाता से एक बंगाली परिवार रहने को आया था. पति पत्नी और उनका एक बेटा (नितेश उम्र 18-19). उनके बेटे का दाखिला जमशेदपुर के एनआईटी कॉलेज के बी.टेक. में हुआ है और वो हॉस्टल में ही रहता है. पति का नाम रमेश, उम्र 48 की है. वो एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते हैं और ज्यादातर घर से बाहर ही होते हैं. उनकी पत्नी, कौशल्या, उम्र 45 साल, हॉउस वाइफ के साथ एक एलआईसी एजेंट भी है. वो बहुत हँसमुख और मिलनसार महिला है. उसका रंग गोरा है, लगभग 5 फ़ीट 5 इंच की ऊंचाई. उभरे हुए सुडौल स्तन, मस्त ठुमकते हुए नितम्ब, कमसिन चिकनी कमर, रसीले होंठ.. वो एक भरी पूरी औरत है. उसे देख कर मानो बदन में बिजली सी दौड़ जाती है. मन करने लगता है कि उसे बांहों में लेकर खूब प्यार करूँ.. प्यार करूँ से मतलब, उसकी जमके लूँ.
पड़ोसी होने की वजह से वो अक्सर हमारे घर आया करती थी और मेरी बहू से भी उसकी अच्छी खासी मित्रता हो गयी थी. वे दोनों टीवी देखना, बाजार जाना साथ ही करने लगी थीं.
मैं हमेशा की तरह स्कूल से छुट्टी के बाद गौशाला की देख रेख करता हूँ और रात को खाना खा कर हो सके, तो गौशाला में बने कमरे में ही सो जाता हूँ. मुझे चाय पीने की बहुत आदत है और कौशल्या मेरी पड़ोसन काफी अच्छा चाय बनाती है मैं हमेशा चाय के बहाने उसका रूप निहारने उसके घर चला जाता था. उसे भी चाय पीते वक्त मुझे कंपनी देना अच्छा लगता था. हम काफी बातें करते थे, वो मुझसे काफी घुल मिल गयी थी. शनिवार के दिन हमारे स्कूल की छुट्टी जल्दी हो जाती है.
एक दिन स्कूल से निकलने के बाद घर आया, तो देखा कि कौशल्या हमारे घर में अकेली थी.
“क्या बात है कौशल्या जी, आप अकेली हैं.. क्या ऑफिस की छुट्टी है आपकी? और मेरी बहू रानी कहां गयी?”
“जी.. आज मेरी छुट्टी है, आपके बेटे और बहू बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास रूटीन चेकअप के लिए गए हैं. आपकी बहू ने कहा था कि आप स्कूल से जल्दी आ जाएंगे, सो उसने मुझसे थोड़ा घर का ध्यान रख लेने को कहा है. आप फ्रेश हो जाइए, मैं आपके लिए खाना परोस दूंगी.
“अरे नहीं नहीं.. आप क्यों तकलीफ करती हो.. मैं खुद ले लूंगा.”
“कोई परेशानी नहीं है, आप फ्रेश होके आइए, मैं खाना गर्म करती हूँ, वरना फिर कभी चाय नहीं पिलाऊंगी.”
“ठीक है जी.. लेकिन आप अपने लिए भी निकाल लो, दोनों साथ ही खा लेंगे.”
खाना परोसने के दौरान मेरा सारा ध्यान कौशल्या की बड़े बड़े रसीले स्तनों पर ही था. वो भी खुले मिजाज की महिला मानो जानबूझ कर अपने जिस्म का मुजाहिरा कर रही थी. जैसे रूप की धनी कुछ छींटों की बरसात कर रही हो.
अब करें क्या … बस फिलहाल देख कर ही थोड़ी आंख सेंक लो, पर मन ने तो खजाना लूटने की तय कर ली थी. इस औरत की कुछ बात ही अलग थी, इसे देख कर ही उत्तेजना चरम सीमा पर आ जाती है. सारा ज्ञानपीठ, समझ बूझ, आत्मसंयम सब दरकिनार हो जाता है और मैं वासना की भूख में डूब जाता हूँ. हो भी क्यों ना.. 8 वर्षों से मैंने किसी स्त्री को आंख उठा कर नहीं देखा था, लेकिन कौशल्या की मिलनसारिता और हँसमुख मिजाज ने मुझसे बातें करना सिखा दिया था. उसका ये व्यवहार मुझे उसके कुछ ज्यादा करीब ले गया था.
अब मैं मन ही मन बस कौशल्या के बारे में सोचने लगा था. उसके बारे में सोच कर रोज दो बार बाथरूम में हस्तमैथुन करता था. मन बड़ा असंतुष्ट रहता था. अब मुझे अकेलेपन का अहसास होने लगा था. मेरे अन्दर का उत्तेजित जानवर, बस कौशल्या पर टूट पड़ना चाहता था. पर करें क्या.. वो किसी और की धर्मपत्नी है और मैं एक विधुर हूँ.
तब भी कौशल्या को देख कर लगता ही था कि वो अपने यौन जीवन से काफी असंतुष्ट है.. और हो भी क्यों ना, पति तो उनके हमेशा बाहर ही होते हैं. हफ्ते में एक दो बार ही आना जाना होता है.
आप जानते ही हैं कि 35 से 55 वर्ष के बीच की आयु यौन जीवन की सब से कामुक अवस्था होती है. खैर.. जो भी है सो बस सामने है.
खाना खाने के बाद कौशल्या भी अपने घर चली गयी. मैं भी आराम करने चला गया. इस बीच बच्चे भी आ गए. शाम हो चुकी थी और मैं हमेशा टहलने को बाहर जाता हूँ. थोड़ी सैर करने के बाद मैं चाय पीने कौशल्या के घर चला गया.
“आइए आइए मास्टर जी, घर वाले आ गए?”
“जी कौशल्या जी, बस आपके जाने के कुछ देर बाद ही आ गए थे.”
“रुकिए मैं अभी चाय बनाकर लती हूँ, मास्टर जी आप हमेशा की तरह शक्कर ज्यादा ही लेंगे ना?”
“जी हां कौशल्या जी.”
कुछ देर बाद हम दोनों चाय की चुस्की लेते हुए बातें करने लगे.
“मास्टर जी इस उम्र में इतना मीठा लेना अच्छी बात नहीं है.”
“अब क्या करें, आदत से मजबूर हूँ, मेरी चिन्ता करने वाली तो कब का मुझे छोड़ कर चली गयी. घर वाले तो हैं, पर जीवन साथी की जगह कौन ले सकता है. उसकी कमी तो खलती ही है.” ये कहते हुए मैं थोड़ा उदास सा हो गया.
“अरे..रे आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं. ये सब बातें सोच कर मन उदास मत करिए, ऐसी कौन सी कमी है, जो हम सब मिलकर पूरी ना कर सकें.”
“अब आपसे क्या कहूँ कौशल्या जी, जाने दीजिए.”
“क्या मास्टर जी, मुझे लगा हम हमउम्र हैं … आपसे इतना घुल मिल गए हैं कि दिल की बातें जाहिर कर सकते हैं, पर शायद आप हमें अपना नहीं मानते हैं.”
“अच्छा … पता नहीं ये कहना शायद आपसे उचित ना हो, पर आप एक विवाहित 45 साल की महिला हैं, तो पता ही होगा. हमारी जो उम्र की अवस्था है, जिसमें हम ज्यादा उत्तेजित और कामुक समय काल में होते हैं, उसमें जीवन साथी की क्या भूमिका होती है?”
“हां … मैं समझ सकती हूँ, आपके पास जीवन साथी न होने का दुःख है और मुझे जीवन साथी होके भी वो सुख नहीं है. ये सब किस्मत की बात है. वैसे एक बात पूछूँ … इतने समय बाद आप ये सब ख्याल मन में क्यों ला रहे हैं?”
मैंने जरा मुस्कुरा कर ताना कसा- क्या बताऊं कौशल्या जी, सब आपकी चाय की गलती है.
वो भी मजे में मूड में हंस कर बोली- लो अब मैंने क्या किया मास्टर जी?
“कौशल्या जी आपके हाथ की चाय मुझे हमेशा मेरी पत्नी की याद दिला देती है, इसी लिए मैं हमेशा चाय पीने आपके घर आ जाता हूँ … आपको परेशान करने.”
“आप हमेशा ऐसा क्यों कहते हो, परेशान करने … मुझे कोई आपत्ति नहीं है आपको चाय पिलाने में … और चलो इसी बहाने आपसे इतनी बातें भी हो जाती हैं.”
“वैसे आपकी और मेरी बहू की काफी जमती है, फिर मुझसे बात करने के बहाने क्यों जी?”
“आप भी ना, अरे दो औरतों … और एक औरत और मर्द के बीच बात का फर्क अलग ही होता है.”
“वैसे आपके पति देव से भी फ़ोन पे बातें तो होती ही होंगी क्यों?”
“अरे कहां.. उनको काम से फुरसत ही नहीं है, कभी फ़ोन कर लो तो बस झिड़क कर फ़ोन काट देते हैं.”
“कोई बात नहीं कौशल्या जी, आप मेरा नंबर रख लो.. जब जी करे, फ़ोन करिये कुछ हेल्प चाहिए भी तो आप बता सकती हो, मेरा भी मन लगा रहेगा.”
इस बार मैं मन ही मन खुश हो रहा था.
“सच में मास्टर जी! चलो अच्छा है और एक बात आप प्लीज मुझे कौशल्या जी या आप करके मत बोलिए, सिर्फ कौशल्या और तुम भी कह सकते हैं.”
“ओके, पर क्या मैं आपको रानी बुला सकता हूँ? वो क्या है ना … मैं प्यार से अपनी बीवी को रानी कहता था, मुझे आपमें मेरी पत्नी की झलक दिखाई पड़ती है.. इफ यू डोन्ट माइंड?”
“हां क्यों नहीं.. लेकिन अकेले में ही … बाहर ये सब अच्छा नहीं लगेगा, ये चीजें अपने पास तक ही रखिएगा, मैं एक घरेलू औरत हूँ.”
“हां मेरी रानी, मैं समझ सकता हूँ. ओके मैं चलता हूँ, चाय के लिए शुक्रिया.”
आज मैं ख़ुशी ख़ुशी अपने घर को निकल गया, आज मैं बहुत खुश था, मेरी कौशल्या से जो वासना की इच्छा थी, उस पर में एक सीढ़ी ऊपर चढ़ गया था. अब बस मुझे उसे अपनी बातों में रिझाना था.
अगले दिन मुझे कौशल्या का फ़ोन आया- हैलो मास्टर जी … मैं कौशल्या.
“क्या बात है रानी साहिबा, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?”
“धत्त … ऐसे क्यों बोलते हैं, वो मैं कह रही थी कि क्या आप मुझे स्कूल के बाद पिक करने मेरे ऑफिस आ सकते हैं? क्या है ना आज ऑटो नहीं चल रहे हैं.”
“हां क्यों नहीं रानी … मैं जरूर आ जाऊंगा, कितने बजे छुट्टी होगी तुम्हारी?”
“यही कोई 5 बजे, आप आओगे ना?”
मैं थोड़े रोमांटिक मूड में बोला- अरे तुमने बुलाया और हम चले आए.
ठीक 5 बजे मैं बाइक लेकर उसके ऑफिस के नीचे पहुँच गया. वो धीरे से मेरे पीछे बाइक पर बैठ गयी. मुझे बहुत मजा आ रहा था. सालों बाद कोई औरत मेरे साथ बाइक पर बैठी थी. उसने भी जोर से मेरी कमर को पकड़ा हुआ था. मैं भी जानबूझ कर आगे का ब्रेक लगा देता, जिसे वो मेरे और करीब आ जाती. उसके स्तन के अंगूर मुझे मेरी पीठ पर साफ महसूस हो रहे थे. उसका दायां हाथ मेरे कमर से होता हुआ हल्के से मेरे लिंग को छू रहा था जो मुझे और उत्तेजित कर रहा था.
कौशल्या को साफ समझ आ रहा था कि उसके स्पर्श से कैसे मेरा लिंग पैंट में तन के तंबूरा हो रहा था. वो जानती थी कि मैं उससे क्या चाहता था, पर जानबूझ कर अनजान बनती थी.
अब मैं रोज कौशल्या को उसके ऑफिस लेने जाता था, हम साथ ही घर आते थे. ऐसा कुछ हफ्ते तक चला. बातें करना घूमना फिरना, हम कई बार मूवीज भी देखने गए. दोनों को एक दूसरे की अच्छी कंपनी मिलती थी.
अब कौशल्या को भी मेरे साथ टाइम बिताने की आदत सी हो गयी थी, पर वो सब कुछ एक सीमित दायरे में होता था. उसने मुझे इतनी छूट नहीं दी थी कि मैं उससे कुछ कर पाऊं.
एक बार अपने मोहल्ले के एक मित्रों के साथ बैठकी (मदिरा पान) कर रहा था. अब शराब के नशे में आदमी क्या बोल जाए, कुछ ठीक नहीं होता. और हुआ भी कुछ ऐसा ही … मेरे मित्र ने मुझसे पूछा- क्या बात है मास्टर जी … आपकी तो निकल पड़ी है, आपकी पड़ोसन तो कितनी जबरदस्त है, एकदम खरा सोना … आपने कुछ चान्स मारा कि नहीं, बाइक में तो खूब घुमाते हो, कभी बिस्तर में मजे लिए?
मैंने भी थोड़ी सहजता से जबाब दिया- नहीं यार, वो एक पतिव्रता महिला है, मुझे नहीं लगता कि वो कभी किसी गैर मर्द के साथ हमबिस्तर होना चाहेगी. मन तो मेरा भी है, लेकिन करूँ क्या?
तब मेरे मित्र ने मुझे सुझाव में कहा- देख यार, कोई भी पराई औरत खुद तुझे नहीं कहेगी कि आओ और मुझे चोद दो, इसके लिए तुम्हें ये जानना होगा कि तुम्हारा स्पर्श उसे अच्छा लगता है या नहीं … अगर कोई आपत्ति नहीं है, तो फिर मजे ले लो.
दारू की बैठकी खत्म होने के बाद हम अपने अपने घर को निकल पड़े लेकिन मैं सीधे कौशल्या के घर चला गया. मैंने थोड़ी ज्यादा पी रखी थी. कौशल्या अपने रसोई में खाना पका रही थी.
मैंने जोर से आवाज लगाई- कौशल्या जी, ओ मेरी रानी.
वो भागते हुए रसोई में से बाहर आई और बोली- कौन है … अरे मास्टर जी आप हो. बैठिये ना, मैं चाय लेके आती हूँ.
फिर वो रसोई में चली गयी, मैं भी उसके पीछे पीछे रसोई में चला गया.
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कहानी जारी है.