पुलिस सेक्स की कहानी में पढ़ें कि मेरी बीवी को बाजार से ही थानेदार जी थाणे में ले गए. मैं जैसे कैसे पुलिस स्टेशन पहुंचा तो मैंने वहां क्या देखा?
फ्रेंड्स, मैं आपका स्वप्निल झा एक बार फिर से अपनी बीवी की चुदाई कहानी में स्वागत करता हूँ.
अब तक की सेक्स कहानी
मन्त्री जी के फार्म हाउस में मेरी बीवी
में आपने पढ़ लिया था कि मेरी बीवी को एक बार में लगातार 8-10 मर्दों से चुदने में कोई दिक्कत नहीं होती थी.
वो अति चुदक्कड़ हो चुकी थी.
अब आगे पुलिस सेक्स की कहानी:
लगभग दस दिनों तक ना किसी का कॉल आया ना कोई खुद आया.
पांच दिनों के बाद अरुणिमा की चूत में फिर से चींटियां रेंगने लगीं और उसने खुद मुझसे अपनी चूत चटवाई और बाद में मेरे लौड़े पर सवार होकर चुदवाना चालू कर दिया.
दस दिन बाद एक दिन अरुणिमा ने मुझसे कहा कि मैं शाम को शॉपिंग करने जाऊंगी, मुझे कुछ पैसे चाहियें.
मैंने उसे पैसे दे दिए और ऑफिस चला गया.
रात को आठ बजे मैंने उसे कॉल किया तो उसने बताया कि वो कहां पर है.
मैंने कहा- मैं ऑफिस से निकल ही रहा हूँ, तो तुमको लेता हुआ जाऊंगा.
जब मैं वहां के नजदीक पहुंचा, तो ठीक उसी टाइम बाइक का टायर पंचर हो गया.
मैंने बाइक को पंचर दुकान में खड़ा किया और अरुणिमा को कॉल किया.
पर भूलवश मैं मोबाइल चार्ज करना भूल गया था तो मेरे मोबाइल स्विच ऑफ हो गया था.
मैंने सोचा कि जब तक पंचर बन रहा है, तब तक किसी तरह से जाकर अरुणिमा को यहीं ले आता हूँ.
ये सोच कर मैंने उस तरफ चलना चालू किया.
जब मैं मोड़ पर पहुंचा तो देखा कि अरुणिमा एक जगह पर खड़ी है.
मैं उस तरफ चल दिया.
अभी दो चार कदम ही चला होऊंगा कि अरुणिमा के बगल में गुरबचन जी की गाड़ी आकर रुकी.
उन्होंने खिड़की से झांक कर अरुणिमा से थोड़ी देर बात की, फिर उतर कर आए और अरुणिमा को गाड़ी में बैठने को बोलने लगे.
अरुणिमा उनसे कुछ बात करके शायद मना कर रही थी, पर वो सुन ही नहीं रहे थे.
उन्होंने उसके हाथ से सामान लिया और गाड़ी के पीछे के सीट पर डाल दिया. उसके बाद उन्होंने गेट खोला और उसको बाजू से पकड़ कर अन्दर बैठा दिया.
मैं तेज कदम से उनकी तरफ जा रहा था, पर मेरे आधे रास्ते पहुंचने से पहले उनकी गाड़ी निकल गई.
मेरी बाइक पंचर थी और मोबाइल स्विच ऑफ, ना अरुणिमा को कॉल करने का विकल्प था, ना तुरंत उनके पीछे जाने का.
मैं पंचर दुकान पर वापस गया और कुछ मिनट के बाद वहां से निकला.
सबसे पहले अपने घर गया कि क्या पता गुरबचन जी उसको घर छोड़ गए हों.
घर पर ताला लगा था इसलिए बाइक मोड़ कर मैं उनके थाने की तरफ चल दिया.
लगभग तीस मिनट बाद थाने पहुंचा, तो उनकी गाड़ी बाहर ही खड़ी थी.
मैंने बाइक को खड़ा किया और गाड़ी में झांक कर देखा.
अन्दर अरुणिमा के सारे पैकेट रखे थे जो वो शॉपिंग करके लाई थी.
मैं थाने के अन्दर गया.
एक टेबल पर गुरबचन जी बैठ कर सिगरेट पी रहे थे.
दूसरे टेबल पर कुर्सी लगा कर उनका एक हवलदार बैठा था, जो कुछ लिख रहा था.
मुझे देख कर गुरबचन जी ने बुरा सा मुँह बनाया.
मैंने उनसे अरुणिमा के बारे में पूछा. मुझसे बोले- मुझे क्या पता अरुणिमा कहां है.
वो मेरे मुँह पर साफ़ झूठ बोल रहे थे.
मैं कुछ बोलने का सोच ही रहा था कि अचानक मुझे अरुणिमा की मादक सिसकारियों की आवाज सुनाई दी.
आवाज उधर से आ रही थी जिधर हवालात बना था.
सामने एक हवालात था, जो गेट से दिखता था. उसके बगल में दो और हवालात अन्दर के तरफ थे.
वहां तक जाने के लिए गलियारे से होकर जाना पड़ता था.
मैंने जैसे ही अन्दर जाने को कदम बढ़ाया, वहां बैठे हवलदार ने डपटा- कहां चले जा रहा है. तेरे बाप का ड्राइंग रूम नहीं है.
गुरबचन जी ने इशारे से उसे शांत रहने को कहा और मुझे इशारे से आगे जाने के लिए.
इसके साथ वो मुस्कुरा भी रहे थे और कमीनी हंसी से हंस भी रहे थे.
मैं धड़कते दिल के साथ अन्दर गया और गलियारे से होता हुआ अंतिम हवालात तक पहुंचा.
मुझे यकीन था कि अरुणिमा यहीं हैं, बस किस स्थिति में है, मुझे उसकी पुष्टि करना था.
अरुणिमा हवालात में ही थी.
एक बांस की बल्ली उसके सर के ऊपर रस्सी से दोनों तरफ से बंधी हुई लटकी थी. अरुणिमा के दोनों हाथ ऊपर करके उस बल्ली में डेढ़ फ़ीट के अंतर में बंधे हुए थे.
उसके पैर मुश्किल से फ्लोर को छू रहे थे और उसके दोनों टखनों को बांस की डेढ़ फ़ीट के बल्ली के दोनों कोनों पर बांधा गया था.
ये बोलने की बात नहीं है कि वो एकदम नंगी थी.
उसके अलावा हवालात में चार और लोग थे, जो पूरे नंगे थे.
दो उसके निप्पल्स को चूस रहे थे और मम्मों को मसल मसल कर मज़े ले रहे थे.
एक उसके सामने घुटनों पर बैठ कर उसकी चूत चाट रहा था और दूसरा जो बड़ी मुश्किल से नजर आ रहा था, वो उसके चूतड़ों को फैला कर गांड के छेद को चाट रहा था.
थोड़ी देर बाद अरुणिमा चिहुंकी और बोली- अरे यार चूत चाटो लेकिन काटो मत!
वो आदमी चूत चाटने लगा.
अरुणिमा फिर पीछे वाले से बोली- गांड चाट रहे तो चूतड़ों को काट क्यों रहे हो यार … दुःखता है.
तभी मुझे अपने कंधे पर गुरबचन जी का हाथ महसूस हुआ और मैंने उन्हें पलट कर देखा.
वो बोले- मैं इस तरह से इसे अकेले लाकर छोड़ना चाहता था. ये मेरी फंतासी थी और कमाल की बात ये है कि तेरी बीवी को ये सब करवाने में मजा आ रहा है. देख न किस मजे से चूत गांड चटवा रही है.
मैं भी अन्दर से सब समझ रहा था कि मेरी बीवी कितनी बड़ी चुदासी रांड हो गई है.
उधर गुरबचन जी कहे जा रहे थे- मैं अपनी सब रंडियों को एक बार तो कम से कम इस तरह चोदता ही हूँ.
मैं कुछ नहीं बोला.
गुरबचन जी ने एक हवलदार को बुलाया और उससे बोला- साहब को बैठाओ और चाय पानी करवाओ … और ये अन्दर आना चाहे, तो उसे रोकना मत. हवालात खोल, मुझे भी अन्दर जाना है.
हवलदार ने हवालात खोल दिया और वो अन्दर चले गए.
फिर हवलदार मुझे लेकर सामने के कमरे में आया और मुझे बैठा कर चाय लेने चला गया.
मैं थोड़ी देर रुका. फिर अन्दर जाकर झांका.
अन्दर गुरबचन जी अरुणिमा की गांड मार रहे थे और बाकी लोग उसकी चूचियों की मां चोद रहे थे. निप्पल्स को चूस काट रहे थे.
दो लोग घुटनों पर बैठ कर उसकी जांघों को चाट रहे थे. बीच बीच में वो दोनों उसकी चूत को भी चाट लेते.
ऊपर वाले दोनों उसके निप्पल्स और मम्मों के साथ खेल रहे थे और बीच बीच में ऊपर बढ़ कर उसके होंठों को सांस फूलने तक चूम लेते थे.
अरुणिमा मजे से ये सब करवा रही थी.
तभी हवलदार ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला- चलो चाय आ गई.
मैं अनमने ढंग से वापस गया और बैठ गया.
उसने पहले नाश्ता सामने रखा और खाने को बोला.
मैंने बिना मन से समोसे खाये और वो खुद बैठ कर समोसे खाने लगा.
फिर उसने पूछा- ये लौंडिया आपकी बीवी है?
मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो बोला- तुम कहां पचपन के लगने लगे और वो कहां कमसिन लौंडिया है. इसने तुझसे कैसे शादी कर ली.
फिर थोड़ा रुक कर खुद ही बोला- कॉलेज की माल जैसे लगती है. यहीं मेरे सामने नंगी हो रही थी. चोदने का मैं तो हो गया था, पर पहले बड़े साब लोग का फेरा हुआ, बाद में मेरा नम्बर लगा.
मैंने धीरे से कहा- चाय कहां है?
उसने कहा- आ रही है.
वहां बैठे बैठे मुझे आधा घंटा से ऊपर हो गया था. तब एक लड़का चाय लेकर आया. उसने हम दोनों को चाय दी और अन्दर चाय देने चला गया.
वो तुरंत वापस नहीं आया बल्कि पांच मिनट बाद आया. शायद लाइव चुदाई को देखने का मज़ा ले रहा था.
मैं चाय खत्म कर चुका था और वो कप उठा कर चलते बना.
चाय पीने के बाद हवलदार अपने काम में व्यस्त हो गया और मैं उसकी नजर बचा कर फिर से अन्दर की तरफ गया.
इस बार गुरबचन जी और दो और लोग साइड में खड़े होकर सिगरेट पी रहे थे और बाकी दो लोग एक साथ अरुणिमा की चूत और गांड चोद रहे थे.
अरुणिमा उन दोनों के बीच लगभग छुप गई थी और मुझे उसके चेहरे के हाव भाव दिख नहीं रहे थे.
हां बीच बीच में उसकी आवाज़ आ रही थी- आंह … धीरे करो यार लगती है … आंह थोड़ा धीरे … मेरी गांड अन्दर तक छिल रही है.
एक ने उसकी गांड पर चमाट मारते हुए पूछा- मजा आ रहा है, तू बस ये बता!
पुलिस सेक्स का मजा लेती हुई वो हंस दी और बोली- हां.
तभी गुरबचन जी के साथ खड़े एक की नजर मुझ पर पड़ी.
उसने मुझसे कहा- आ जा अन्दर और पैंट खोल कर झुक जा, तेरी भी गांड मार लेता हूँ. अब गांड तो गांड है, चाहे किसी की भी हो.
मैं एकदम से हड़बड़ा गया.
तो दूसरा बोला- नहीं सर, मुझे लगता है ये हमारा लंड देखने बार बार आता है. भोसड़ी के मुँह में लेकर चूसेगा क्या … मन हो तो आ जा अन्दर. वर्ना चुपचाप बाहर जा और उधर ही बैठ. हां हमारा लंड चूसना होगा या गांड मरवानी हो, तो चले आना.
मेरी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई और मैं वापस आ गया.
इसके बाद भी दो तीन बार अन्दर गया लेकिन बहुत किनारे से झांक कर तुरंत वापस आ जाता था.
कभी दो लोग एक साथ अरुणिमा की चूत गांड मार रहे थे तो कभी कोई अकेला उसकी चूत या गांड मार रहा होता.
रात में दस बजे से चोदना चालू किया गया था और चोदते चोदते एक बज गया था.
किसी ने अरुणिमा को दो बार चोदा, तो किसी ने तीन बार.
उसके बाद छक कर सब नंगे वापस आए.
सब आपस में बात कर रहे थे कि किसने उसकी गांड मारी और किसने उसकी चुत.
जब ये लोग आकर कपड़े पहनने लगे तो मेरी जान में जान आई की इनका और चोदने का मूड नहीं.
चार लोग तो कुछ ही देर में अपनी अपनी गाड़ी से निकल भी गए.
फिर गुरबचन जी हवलदार से बोले- प्यारेलाल तेरा नंबर आ गया, जा ऐश कर!
हवलदार अन्दर गया और थोड़ी देर में अरुणिमा की आवाज आई- भैया तेरा मूसल ना तो मेरी चूत में घुस पाएगा और ना मेरी गांड ले पाएगी.
हवलदार बोला- साली रंडी, लूंगा तो मैं दोनों ही … और कैसे नहीं जाएगा, मैं भी देखता हूँ.
उसके बाद कुछ मिनट तक अरुणिमा की दबी दबी चीख सुनाई देती रही.
फिर हवलदार बोला- देख रंडी घुस गया ना!
अरुणिमा की मरी कुतिया सी आवाज आई- भैया कबसे चुद रही हूँ. अब क्या मजा आएगा. एकाध दिन बाद मस्ती से ले लेना.
मगर वो नहीं माना और उसके बाद अरुणिमा की चुदाई की आवाजें सुनाई देती रहीं.
फिर शान्ति छा गई.
थोड़ी देर बाद अरुणिमा की आवाज आई- भैया कम से कम खोल तो दो. कबसे लटकी हुई हूँ.
हवलदार बोला- अभी रुक रंडी, अभी तेरी गांड भी मारनी है मुझे, खुली रही तो मजा नहीं देगी. बंधी ही रह अभी.
दो मिनट बाद फिर से अरुणिमा की घुटी घुटी चीख आने लगी जो अगले कुछ मिनट तक आती रहीं.
फिर हवलदार की आवाज आई- देख घुस गया ना गांड में भी, फालतू नाटक कर रही थी.
उसके बाद देर तक गांड चुदाई से निकलने वाली आवाजें आती रहीं और शायद झड़ने के बाद फिर से शान्ति छा गई.
अब हवलदार अपने कपड़े संभालता बाहर आ गया.
गुरबचन जी बोले- हां बे भड़वे! इससे पहले हम दोनों का लंड फिर से खड़ा हो जाए, ले जा अपनी रंडी को.
मैं अन्दर गया और उसको खोला.
उसे खोलते समय उसके बदन पर नज़र पड़ी तो जगह जगह दांतों के निशान साफ़ दिख रहे रहे थे.
कई जगह और निशान भी दिख रहे थे, उसके चूतड़ भी लाल हो गए थे और चूत भी सूजी दिख रही थी.
उसको खोलने के बाद मैं उसे सहारा देकर बाहर लाया और उसके कपड़े के बारे में पूछा.
गुरबचन जी बोले- ऐसे ही ले जा, अभी कौन मिलेगा रास्ते में. कोई मिल भी गया तो इस वेश्या को एकाध बार और चुदवा देना.
मैंने कुछ नहीं कहा और अरुणिमा को लेकर बाहर आ गया.
बाहर गुरबचन जी की गाड़ी से अरुणिमा के शॉपिंग के पैकेट निकाले और खोल कर देखा.
उस पैकेट में एक में अरुणिमा ने एक नाइटी खरीदी थी. मुझे उसके पहनने लायक वही लगी. मैंने वो नाइटी उसे पहनाई और बाकी पैकेट्स बाइक में लटका कर अरुणिमा को बैठा लिया.
उसने मुझे जकड़ लिया.
मैं बाइक लेकर घर की तरफ चल दिया.
शुक्र था कि रास्ते में ना कोई दिखा, ना मिला.
हम दोनों घर पहुंच गये.
मैंने अरुणिमा को गर्म पानी से नहलाया और उसके बदन पर क्रीम बाम वगैरह लगा कर उसको सुला दिया.
सुबह चार बजे से शाम के छह बजे तक अरुणिमा लगातार सोती रही, तब जाकर उसके शरीर में जान आई.
हालांकि उसको चलने फिरने में अभी भी दिक्कत हो रही थी.
दो तीन दिन तक दिक्कत होती रही फिर वो नार्मल हो गई.
गुरबचन जी से बचने के लिए मैंने अरुणिमा को निर्देश दे दिया कि अब वो अकेले बाहर ना जाए.
अरुणिमा खुद भी बाहर नहीं जाती थी.
मैं दिन में बीच बीच में कॉल करके उसका हाल चाल पूछ लेता था. धीरे धीरे दस दिन गुजर गए और किसी के मनहूस दर्शन नहीं हुए.
एक दिन मैं ऑफिस में बैठा था और लगभग ढाई बज रहे रहे थे. सोचा कि अरुणिमा को कॉल कर लूं. मैंने उसको कॉल किया, पर उसने फ़ोन नहीं उठाया.
मैंने चार बार और उसको कॉल किया, पर कोई जवाब नहीं.
किसी अनहोनी की आशंका के साथ मैं तुरंत ऑफिस से निकला और घर की तरफ भागा.
कुछ देर के बाद घर पहुंचा और दरवाजे की घंटी बजाई लेकिन दस मिनट तक घंटी बजने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला.
मेरे पास भी एक चाभी रहती थी, मुझे चाभी ख्याल आया.
उससे मैंने दरवाजा खोला और अन्दर गया.
जैसे ही ड्राइंग रूम में पहुंचा तो देखा अरुणिमा एकदम नंगी सोफा टेबल पर पड़ी हुई है. एक आदमी उसकी चूत चोद रहा था, दूसरा आदमी उसके दोनों हाथों को पकड़ कर दबा कर रखा था और उसके निप्पल्स और मम्मों से मज़े ले रहा था.
अरुणिमा का सर गले के पास से टेबल से थोड़ा नीचे लटका हुआ था, सो तीसरा आदमी उसके मुँह में अपना लंड डाल कर उसका मुँह चोद रहा था.
मुझे देख कर वो सब थोड़ा सकपकाए और अरुणिमा पर पकड़ ढीली की.
अरुणिमा ने तुरंत लंड अपने मुँह से निकाला और मुझे देखा.
मैंने सवालिया निगाहों से उसे देखा, तो उसने अपनी सांस सँभालते हुए कहा- ये तीनों विश्वेश्वर जी के ख़ास आदमी हैं. इसलिए मुझे चोदने के लिए उन्होंने इन सबको घर भेजा हुआ है. आपको बताना भूल गई थी और बताती भी तो कुछ बदल नहीं जाता, चुदना तो पड़ता ही.
एक तरीके से पहली बार अरुणिमा ने मुझे ताना मारा था और सही भी था, मेरी कायरता के कारण ये स्थिति बद से बदतर हो गई थी.
मैंने तुरन्त विश्वेश्वर जी को कॉल करके थोड़ा भड़क कर पूछा.
वो भी भड़क कर बोले- सुन बे भड़वे, तेरी रंडी को चुदवाने के लिए मुझे तेरी रजामंदी नहीं चाहिए. मेरे ख़ास आदमी हैं, जो भेज दिए. इतना क्या हाय तौबा मचा रहा है?
इतना बोल कर उन्होंने फ़ोन काट दिया. वो लोग अब भी मुझे देख रहे थे और रुके हुए थे.
मैंने कुछ नहीं कहा, तो जिसका लंड अरुणिमा के मुँह में था, उसने दोबारा अपना लंड अरुणिमा के मुँह में डाल दिया और चोदने लगा. जो उसकी चूत चोद रहा था, उसने भी लंड पेलना चालू कर दिया.
मैं ख़ामोशी से बाहर आ गया और एक चाय के दुकान पर बैठ कर एक घंटा टाइम पास किया.
फिर वापस गया तो देखा कि अरुणिमा कुतिया की तरह टेबल पर है और दो लोग उसका मुँह और गांड मार रहे.
मैं बेडरूम में जाकर लेट गया और तीस मिनट बाद आकर देखा कि एक तो जा चुका था, पर दो मर्द अरुणिमा को खड़ा करके उसकी चूत और गांड एक साथ चोद रहे थे.
मैं थोड़ी देर रुका. जब दोनों साथ में झड़ गए और अपने कपड़े पहन कर निकल गए, तब मैं भी शांत हो गया.
अरुणिमा बाथरूम गई और नहा कर बेडरूम में आकर सो गई. उसने ना मुझसे कुछ कहा, ना कोई बात की.
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