मेरी पाठिका की कामवासना पूर्ति- 2

मेरी पाठिका की कामवासना पूर्ति- 2


लड़की की गांड चुदाई का मजा मैंने होटल में लिया. वो जवान लड़की मर्द के असली सुख से वंचित थी। कड़क लंड से उसकी गांड चूत चोदकर मैंने उसकी प्यास बुझाई।
दोस्तो, मैं कसम आपको अपनी प्रशंसिका विदिशा की कहानी बता रहा था कि कैसे वो मुझसे मिलने के लिए मेरे शहर आयी थी।
पिछले भाग
पाठिका के साथ होटल में मुखमैथुन का मजा
में आपने देखा कि हम दोनों एयरपोर्ट से सीधे होटल में चले गए जहां पर रूम में उसने मुझे लंड चुसाई का मजा दिया।
विदिशा को स्वर्ग की सैर करवाने की बारी मेरी थी। विदिशा को मैंने नंगी करना शुरू कर दिया।
अब आगे लड़की की गांड चुदाई का मजा:
धीरे-धीरे उसके पैरों को चूमते हुए जैसे ही होंठ उसकी पतली और एकदम चिकनी जाँघों पर पड़े वो सीत्कार उठी- मत तड़पाओ … प्लीज डाल दो अंदर, आग सी लगी है!
विदिशा ने मेरे लन्ड को कसकर पकड़कर अपनी चूत के पास लगा दिया।
फिर मैंने उसके स्वर्ग द्वार पर अपने हाथों से दस्तक दी और चूत द्वार को हल्का सा खोला।
चूत के दरवाजे हल्के पतले और लाल रंगत लिए हुए थे। चूत द्वार के चारों तरफ उगी हुई हल्की-हल्की काली झाड़ियां चूत द्वार के सौंदर्य को और ज़्यादा बढ़ा रहीं थीं।
जैसे ही चूत द्वार की पंखुड़ियों को हल्का सा खोला, अंदर का चूत मार्ग एकदम गुलाबी और गीला था।
ना जाने कितनी बार विदिशा ने आज चूत मार्ग को चूत रस से भर लिया था।
उसकी चूत रस से भरी हुई थी।
दो उंगलियों को मैंने चूत के अंदर प्रवेश करवाया तो विदिशा चिहुँक उठी- अरे उँगली नहीं … लन्ड डालो प्लीज!
लेकिन आज मैंने उसे तड़पाने की ठान रखी थी।

उधर लन्ड महाराज अंदर जाने के लिए उतावले हो रहे थे।
मैंने अपनी नाक उसकी चूत के पास रखकर उसकी चूत की महक सूंघी, एक मदहोश करने वाली महक ने मुझे उसकी चूत पर होंठ रखने को मजबूर कर दिया।
जैसे ही मेरे होंठों ने उसके चूत के होंठों को छुआ विदिशा हिल सी गयी और मेरा सिर जांघों में दबोच लिया।
विदिशा का पूरा शरीर थरथराने लगा। उसके समतल पेट में कम्पन होने लगा और वो अपनी गांड को हल्के से उछालने लगी। मैंने उसकी चूत की दोनों फांकों को जीभ से अलग किया और दोनों फाँकों को मुँह में भरकर चूसना शुरू किया।
“अरे! उई माँ मर जाऊँगी! प्लीज मत करो ऐसा … आह … आह … प्लीज मान जाओ आह!”
विदिशा चुदने के लिये मिन्नतें करने लगी और मेरे लन्ड को हाथों से मरोड़ने लगी।
मैं उसकी चूत की फाँकों को मुँह में भरकर खींचता तो वो चूतड़ उठा देती, उसकी चूत बहुत कसी हुई थी।
फिर मैंने उसकी पूरी चूत को मुंह में भर लिया और जीभ उसकी चूत के छेद में घुसा दी।
जैसे ही जीभ विदिशा की चूत के अन्दर घुसी, उसके मुँह से मधुर सीत्कार निकलने लगे।
विदिशा के कामुक सीत्कारों से कमरे का माहौल संगीतमय हो गया।
मैंने उसकी चूत का रस पीना शुरू कर दिया जैसे ही मैं उसकी चूत को चूसता, वो अकड़ जाती और उसकी गांड का छोटा सा छेद भी सिकुड़ जाता।
अब विदिशा की कामुकता चरम पर थी और उसकी चूत जलती हुई भट्टी बन चुकी थी जो गर्म गर्म लावा उगल रही थी।
उसकी चूत से पानी निकलना बंद ही नहीं हो रहा था, मैंने उसकी चूत को बहुत करीब और ध्यान से देखा और उसके छेद में दो उंगलियां घुसा दीं।
विदिशा हिल गयी और चिल्लाने लगी।
मैंने दूसरे हाथ से उसका मुँह बन्द कर लिया और अपने होंठ उसके बूब्स पर रख दिये।
फिर धीरे-धीरे उंगलियों से उसकी चूत की चुदाई शुरू कर दी। दोनों उंगलियों को चूत की दीवार से रगड़ कर मैं अंदर-बाहर कर रहा था, चूत के अंदर का रास्ता छल्लेदार था।
जैसे ही उंगलियों को चूत से रगड़ते हुए बाहर खींचता विदिशा अपनी गांड को उठा देती।
कुछ देर पहले विदिशा की चूत एकदम चिपकी हुई थी लेकिन अब उसकी चूत का छेद साफ दिख रहा था।
मेरी दोनों उंगलियों ने अपना काम कर दिया था; उसकी चूत अब लन्ड को लेने के लिए तैयार थी।
चूत का रस बहकर उसकी गांड के छेद को गीला कर रहा था।
मैंने एक उंगली उसकी चूत में और दूसरी उंगली उसकी गांड में घुसा कर आगे-पीछे करना शुरू कर दिया।
“आह आह … हहह हहह … मर गई मम्मी … आह निकाल लो उंगली गांड से … प्लीज … आह … बहुत दर्द हो रहा है!
विदिशा कामुकता से भरी भारी आवाज में सिसकारने लगी।
उसकी आवाज अत्यंत मादक होती जा रही थी।
वो चोदने के लिए निवेदन करने लगी।
उसकी तड़प देखकर मैंने अपने होंठ उसकी जलती चूत पर रख दिये और एक साथ दोनों उंगलियां उसकी गांड के छेद में घुसा दीं।
अचानक हुए इस हमले से विदिशा के मुँह से चीख निकल गई लेकिन मेरे हाथ उसके होंठों पर ही थे।
चूत-रस ने उसकी गांड के छेद को गीला और चिकना कर दिया था इसलिए दोंनो उंगलियां बड़े आराम से अन्दर बाहर जा रहीं थीं।
मैंने होंठों से उसकी चूत को सहलाना और जीभ से चूत-रस चाटना शुरू कर दिया।
अब विदिशा पर मुझे दया आने लगी और मैंने एक तकिया उठाया और विदिशा को अपनी गांड थोड़ी उठाने को बोला।
उसकी आँखों में एक चमक आ गयी।
उसने झट से अपनी गांड को उठा दिया और मैंने तकिया उसकी गांड के नीचे लगा दिया।
गांड के नीचे तकिया लगते ही उसकी चूत का द्वार और गुदाद्वार हल्का सा और खुल गया।
हल्के काले बालों से ढकी हुई प्यारी सी चूत अंदर की तरफ गुलाबी रंगत में सराबोर सी दिख रही थी।
उसकी गांड का छेद भी हल्की सी सिकुड़न के साथ खुल रहा था।
अब मेरे लिए ये मुश्किल हो रहा था कि पहले कौन से छेद का उद्घाटन करूँ … क्योंकि दोनों ही छेद मुझे आमंत्रित कर रहे थे।
मैंने प्रवेश कराने से पहले दोनों छेदों की स्वामिनी विदिशा से अनुमति माँगी।
“कौन से छेद में लोगी पहले? आगे या पीछे?” मैंने पूछा।
“मेरी चूत बहुत प्यासी है जानू लेकिन आप गांड के छेद से शुरुआत करो और बाद में मेरी चूत को फाड़ के रख दो।”
एक बार फिर मैंने उसकी गांड के छेद को उसकी चूत के पानी से गीला और चिकना किया। फिर थोड़ा सा चूत का पानी लन्ड के मुंड पर लगाया और लन्ड को गांड के छेद पर रख दिया।
विदिशा की साँसें तेज चलने लगीं और इधर लन्ड महाराज ने आक्रमण की पूरी तैयारी कर ली।
मैंने धीरे-धीरे लन्ड को गांड के छेद में घुसाना शुरू किया।
उसकी गांड सच में बहुत टाइट थी और लन्ड का अगला भाग चिकनाई के साथ गांड में घुस गया।
विदिशा के मुँह से दर्द भरी आह निकल गयी लेकिन उसने मुझे रोका नहीं।
अब मैंने लन्ड को बाहर खींचा और उँगली से उसकी गांड में थोड़ा सा और चूत का पानी भर दिया और लन्ड को फिर से गीला करके उसकी गांड के छेद पर सेट किया।
इस बार हल्का सा धक्का मारा और लगभग एक तिहाई लन्ड गांड में घुस गया।
विदिशा आँखें बंद करके दर्द और आनंद की परम अनुभूति में खोई हुई थी।
फिर एक तेज धक्का और लगा और लगभग आधे से ज्यादा लन्ड गांड को चीरता हुआ अंदर घुस गया।
वो तिलमिलाने लगी और मैं रुक गया।
मैंने उसके नितम्बों को आहिस्ता-आहिस्ता सहलाना शुरू किया और उसके चूचकों को मुँह में भर लिया।
विदिशा स्वर्ग में विचरण कर रही थी।
वो नीचे के हिस्से में होने वाली गतिविधियों को भूल सी गयी और इसी बीच मैंने एक करारा धक्का मारा।
मेरा पूरा लन्ड उसकी गांड में समा गया।
मैंने सोचा भी नहीं था कि उसके पतले नितम्बों के बीच मेरा पूरा लन्ड समा जाएगा।
विदिशा ने दर्द से कराहते हुए मुझे अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया।
मेरे लन्ड की भी बुरी हालत हो गयी थी।
कुछ देर तक लन्ड को मैंने उसकी गांड में ऐसे ही रहने दिया।
विदिशा के चेहरे पर पसीने की बूंदें छलकने लगीं।
उसकी हालत खराब हो चुकी थी लेकिन वो संभोग के असीम सागर में गोते लगाने को बेताब थी।
मैंने थोड़ा थूक उसकी गांड के छेद में भर दिया और अपने लन्ड को आहिस्ता से बाहर खींचा।
ऐसा लगा मानो विदिशा की गांड की खाल भी लन्ड के साथ खिंच कर आ रही हो।
आधा लन्ड खींचकर मैंने फिर अन्दर पेल दिया।
जब मैंने 5-6 बार ऐसा किया तो गांड का रास्ता थोड़ा सा सुगम हो गया। फिर लन्ड को बाहर निकाल लिया और देखा तो विदिशा की गांड का छेद बड़ा हो गया था।
विदिशा आँखें बंद करके लेटी हुई थी; उसकी चूत से अभी भी सफेद चूत-रस बह रहा था।
मैंने कुछ सोचा और अपने तने हुए लन्ड को उसकी चूत के छेद पर रखा और कसकर एक धक्का मारा और पूरा लन्ड चूत को चीरता हुआ चूत की अंदरूनी दीवार से जाकर टकराया।
“आई … उई … मर गई … मार डाला। फाड़ दी मेरी चूत … मुझे नहीं करवानी है चुदाई … प्लीज छोड़िये … निकाल लो बाहर … अन्दर मिर्च सी लग रही है!”
विदिशा की आँखों में आंसू भर आये थे।
मैंने एक झटके से लन्ड बाहर निकाला और उसकी गांड में धीरे-धीरे से पूरा लन्ड डाल दिया।
लन्ड गांड के आखिरी पड़ाव से जाकर टकराया तो विदिशा के मुंह से एक आह निकल गयी।
मेरा पूरा लन्ड विदिशा की गांड में ऐसे फिट हो गया जैसे उसकी गांड मेरे लन्ड का साँचा हो।
उसकी गांड ज्यादा माँसल ना होने के कारण लन्ड में हल्का सा दर्द होने लगा। मैंने लन्ड को उसकी गांड से बाहर निकाल लिया।
“क्या हुआ बाहर क्यों निकाल लिया? अंदर अच्छा लग रहा था, प्लीज करो ना!” उसने हल्की कराहट में कहा।
“थोड़ा रास्ता और चिकना करना पड़ेगा जानू … नहीं तो आज लन्ड लाल हो जायेगा.”
मैं साथ में नारियल का तेल लेकर आया था। मैंने तेल की बोतल को बैग से निकाला, फिर मैंने हाथों में नारियल तेल लगाया और उसके गोरे-गोरे नितंबों पर मलना शुरू कर दिया।
विदिशा को नग्न नितम्बों पर तेल की मालिश करवाने में बहुत मज़ा आ रहा था। विदिशा को मेरे लक्ष्य का अनुमान पहले ही हो गया था।
मैंने धीरे-धीरे उसकी गांड के द्वार में नारियल तेल से सराबोर उंगलियां घुसानी शुरू कर दीं।
नारियल तेल की चिकनाहट उसे दर्द का अहसास नहीं होने दे रही थी और वो उस अनंत आनंद को भोगने में व्यस्त रही।
मेरी उंगलियों ने नारियल के तेल के साथ उसकी गांड का रास्ता थोड़ा सा सुगम कर दिया।
विदिशा अब इस अप्राकृतिक मैथुन का भरपूर आनंद ले रही थी।
मैंने उसके नितम्बों को चौड़ा किया और गांड के छेद को ध्यान से देखा और पाया कि छेद थोड़ा सा चौड़ा हो गया था।
फिर मैंने अपने तने हुए लन्ड को नारियल के तेल में डुबोकर लन्ड के टोपे को उसकी गांड के छेद पर रखा। विदिशा आनंद के सागर में गोते लगा रही थी इसलिए वो इस हमले से अंजान थी।
मैंने थोड़ा सा झुककर एक हल्का सा झटका मारा।
लन्ड गांड के छेद से फिसल गया।
मैंने थोड़ा सा नितंबों को चौड़ा कर फिर छेद पर निशाना लगाया।
इस बार लन्ड उसकी सँकरी गांड के छेद में आधे से ज्यादा घुस चुका था।
विदिशा के मुँह से हल्की सी आह निकल गयी और वो अकड़ सी गयी।
अब वो मेरे बाहर बचे हुए आधे लन्ड को हाथों से सहलाने लगी।
“अरे डरो मत जानू … वैसे भी तुम्हारी गांड तो अब खुल गयी है, अब तो गांड चुदाई के मजे लो.” मैंने कहा।
लेकिन वो नहीं मानी और मैंने लन्ड को फिर बाहर निकाल लिया और उंगलियों से गुदामैथुन जारी रखा।
नारियल का तेल उसकी गांड में अंदर तक भर गया था।
अब धीरे-धीरे विदिशा भी नितंबों को सिकोड़ने लगी।
उसे गांड के अन्दर हो रहे संकुचन से असीम आनंद की अनुभूति होने लगी थी।
मैंने उसकी चूत के नीचे दो तकिये लगा दिए जिससे उसके नितम्ब थोड़ा सा और उठ गए। मैंने गांड के छेद को थोड़ा सा चौड़ा किया और चिकने लन्ड को छेद में धीरे से घुसाना शुरू कर दिया।
इस बार विदिशा पूरा लण्ड लेने को तैयार थी।
जैसे-जैसे लन्ड अंदर जा रहा था, लन्ड को उतनी ही मेहनत करनी पड़ रही थी क्योंकि आगे गांड का छेद बहुत संकीर्ण था।
अथक प्रयास और विदिशा के भरपूर सहयोग से पूरा लन्ड उसकी गांड में पूरा समा गया और जैसे ही लंड का टोपा गांड के छोर पर जाकर टकराया, उसके मुँह से एक संतुष्टि भरी आह निकली।
मैंने धीरे-धीरे लन्ड आगे-पीछे करना शुरू किया।
कुछ समय के घर्षण के पश्चात उसकी गांड का रास्ता लन्ड के घर्षण के लिये सुगम हो गया था।
मैंने दोनों हाथों में उसके स्तनों को भर लिया और उनको निचोड़ने लगा।
अब विदिशा का दुबला पतला शरीर मेरे मजबूत शरीर में दबा पड़ा था।
मैंने उसके नितंबों को पकड़कर तेज-तेज धक्के लगाने शुरू कर दिये।
मेरे हर धक्के पर वो आह-आह करने लगी। उसके छोटे-छोटे स्तन भी धक्कों के साथ उछल पड़ते।
तेल की वजह से चुदाई की फच फच की आवाज और विदिशा की मादक आहें मुझे और जोश में भर रही थी।
चुदाई में उसको पूरा आनंद आने लगा था- और तेज … और आह आह अदंर तक डालो … फाड़ दो आज मेरी गांड … और तेज … और तेज आह आह!
वो धीरे-धीरे बड़बड़ाने लगी।
10 मिनट तक भरपूर गांड मरवाने का विदिशा ने पूरा आनन्द लिया।
मैंने स्खलन से पूर्व विदिशा से पूछा- अन्दर छोड़ दूँ या मुँह में लोगी?
“लंडामृत कौन मिस करेगा जानू आह! लेकिन प्लीज आज गांड में ही छोड़ो, मुझे देखना है कि गांड में कैसा लगता है गर्म-गर्म लावा!”
उसके मुँह से ये सुनकर मेरे धक्कों में और तेजी आ गयी।
अब हर धक्के में लन्ड उसकी गांड के आखिरी पड़ाव और चूत के दीवार से जाकर टकराता तो विदिशा गांड को थोड़ा सा उठा देती।
सच में लड़की की गांड चुदाई करने में बहुत मज़ा आ रहा था।
कड़क लन्ड और बेहद कसी हुई गांड का बेहतरीन संगम था।
जबरदस्त ठुकाई के बाद लन्ड ने आख़िरी धक्का मारा और गर्म-गर्म लावा उसकी गांड में भर दिया।
गर्म लावे ने विदिशा को असीम संतुष्टि प्रदान की।
फिर उसने तुरंत पलटकर पूरा लिंग मुँह में ले लिया, मानो वो सदियों से लंडामृत की प्यासी हो।
वो सब कुछ भूलकर लिंग को चूसने लगी, कभी मेरे अण्डकोषों को सहलाती रही।
उसने मेरा सारा वीर्य चाट-चाट कर साफ कर दिया और मैं लगभग निढ़ाल सा हो गया।
मैंने उसके गोरे नितंबों को देखा, उसकी गांड का छेद चौड़ा हो गया था और उसमें से सफेद वीर्य निकल रहा था।
टिश्यू पेपर उठाकर मैंने उसकी गांड के छेद में उँगली डाल कर पूरी गांड को साफ किया।
हम दोनों ही थक चुके थे।
मैंने विदिशा के नग्न बदन को बांहों में भर लिया और थोड़ा सा आराम करने का विचार किया लेकिन विदिशा की चूत में आग जल रही थी।
मुझे पता नहीं कब नींद आई लेकिन जब खुली तो पाया कि वो मेरे मुरझाये हुए लंड को मुंह में लेकर चूसे जा रही थी।
उसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे। वो हाथों में लन्ड भरकर मुठ मार रही थी और कभी अंडकोषों को मुंह में भरकर चूस रही थी।
जैसे ही लंड अपने पूरे तनाव में आया, मैंने विदिशा को सीधा पीठ के बल लिटाया, उसकी दोनों टांगों को घुटनों से मोड़कर थोड़ा सा चौड़ा कर दिया और उसकी चूत को होंठों से चूसना शुरू कर दिया।
मैंने जीभ को उसकी गांड के छेद से चूत के द्वार तक फिराना शुरू कर दिया।
जीभ चूत के अंदर जाती वो कांप उठती।
थोड़ी ही देर में चुदाई के लिए मिन्नतें करने लगी।
मेरे दिमाग में कुछ आया और मैंने उसे उठने के लिए कहा।
मैं उसे बाथरूम में ले गया और दोनों उभारों के ऊपर बियर डाल कर उसके चूचुकों को चूसने लगा।
आज उसके चूचुकों से बियर निकल रही थी; कत्थई घुंडियाँ तन कर खड़ी हो गयीं।
जी भरकर उसके निप्पल चूसने और उभारों को मसलने के बाद विदिशा को बैठने को बोला।
जैसे ही वो फर्श पर कूल्हों के बल बैठी, मैंने उसकी दोनों टाँगों को पकड़ कर अपनी जाँघों पर चढ़ा लिया।
अब उसकी चूत और मेरे लन्ड में बस 1 या 2 इंच का फासला रह गया।
विदिशा लन्ड लेने को बेताब हो चली थी।
मैंने बियर की बोतल को विदिशा के चूत के छेद में घुसा दिया।
जैसे ही ठंडी बियर उसकी चूत में गयी वो सकपका कर मेरे बदन से लिपट गई।
बियर उसकी चूत से बह निकली।
सच में बहुत कामुक दृश्य था।
इतने में मैंने होंठ चूत के छेद से सटा दिए और चूत रस और बियर के मिश्रित अमृत को पीने लगा।
आज बियर के टेस्ट में अलग बात थी।
जैसे ही चूत खाली होती मैं फिर उसमें बियर भर देता, सारी बोतल आज चूत में भरकर पी गया।
फिर मैंने उसको बाथरूम की दीवार से सटाकर खड़ा किया और उसका एक पैर पकड़ कर ऊपर उठा लिया।
अब उसकी चूत का आकार इस पोजीशन से थोड़ा बदल गया था।
उसकी चूत के दोनों होंठ हल्के से खुल गए थे और छोटी सी भग्नासा मानो चूत के द्वार से बाहर झांक रही हो।
इस बार मैंने उसकी चूत के छेद पर लन्ड रखकर एक जोरदार झटका मारा; पूरा लिंग एक बार में ही अंदरूनी दीवारों से जाकर टकरा गया।
वो चीख पड़ी और उसने मुझे कसकर पकड़ लिया।
मैंने उसके खड़े हो चुके छोटे-छोटे चूचुकों को चूसना शुरू कर दिया। अब लन्ड को उसकी उम्मीद से ज्यादा धीमे-धीमे आगे-पीछे करना शुरू कर दिया।
उसको मजा आने लगा और वो मेरे नितंबों को दबाकर लन्ड को और गहराई में ले जाने लगी।
इस पोजीशन में लन्ड उसकी चूत की दीवार से रगड़ कर अंदर-बाहर हो रहा था जिससे विदिशा को चुदाई का दोगुना आनंद मिल रहा था।
जैसे घर्षण बढ़ रहा था उसके नितंबों में भी उछाल आना शुरू हो गया था।
मैं बीच में धक्के बन्द कर देता तो वो नितंबों को उठा देती थी।
मैंने उसे स्लो मोशन में चुदाई कर बहुत तड़पाया।
फिर उसको घोड़ी बनने को बोला वो तुरंत बन गयी।
मैंने लन्ड उसकी चूत पर टिकाया और तेज गति से प्रहार शुरू कर दिया।
मेरे हर झटके के साथ उसके स्तन झूले की तरह हिल जाते थे।
मेरे हर धक्के पर वो आह-आह … और तेज … और तेज … जैसी कामुक सीत्कारें निकाल रही थी।
इतने में विदिशा की चूत ने रस छोड़ दिया और मुझे रुकने को कहा।
मैंने चूतरस से सना हुआ लन्ड बाहर निकाला।
लन्ड बाहर निकलते ही विदिशा ने लन्ड को मुँह में लेकर साफ कर दिया।
अब मेरी बारी थी।
मैंने उसकी दोनों टाँगें चौड़ी करके उसकी चूत का सारा चूतरस साफ कर दिया।
विदिशा को गोद में मैंने उठाकर बेड पर लाकर लिटा दिया।
मेरे खड़े लन्ड को देखकर विदिशा मेरे ऊपर चढ़ गई और उसने लन्ड के ऊपर तीव्र गति से उछलना शुरू कर दिया।
मेरा लन्ड भी विकराल आकार में आकर उसकी चूत की गहराईयों को नाप रहा था।
उसके उछलते हुए स्तनों को देखकर लन्ड और जोश में आ रहा था।
चुदाई का ये घमासान युद्व अब अंतिम चरण में था।
दोनों में से कोई भी योद्धा हार मानने को तैयार नहीं था।
उसकी चूत संकुचित होकर मेरे लन्ड को अंदर ही अंदर दबाने लगी।
पूरा बेडरूम आहों, कामुक सीत्कारों और शारीरिक घर्षण की मधुर आवाज़ों से गूँज रहा था।
अचानक विदिशा ने उछलने की गति बढ़ा दी।
अब मेरे लिए संयम रखना मुश्किल हो गया।
सच में इस चुदाई में विदिशा ने मुझे हरा दिया था।
अब वो हिंसक होकर अपने नितंबों से मेरी जांघों पर प्रहार कर रही थी।
वो अपनी गर्म चूत में लोहे जैसा लन्ड पिघलाना चाह रही थी।
एक वो क्षण आया जब दोनों का गर्म लावा एक साथ निकल पड़ा।
विदिशा निढाल होकर मेरे ऊपर लेट गयी।
मैंने उसके होंठों को चूम लिया।
“तुमने आज मेरी प्यासी चूत को तृप्त कर दिया … जो चरमसुख मुझे आज मिला है उसकी तो मैंने क़भी कल्पना भी नहीं की थी।” उसने मेरे बालों को सहलाते हुए कहा।
अब हम पूर्णरूप संतुष्ट हो चुके थे लेकिन थक भी चुके थे।
हम दोंनों नग्नावस्था में ही सो गए।
उसके बाद वो मेरे पास लगभग 15 दिन तक रही। मैंने उसे दिन-रात भोगा।
इन 15 दिनों में उसके हर अंग में एक भराव और माँसलता आ गयी थी।
अब उसके नितम्बों का घर्षण किसी भी पुरूष के पौरुष को चुनौती देने में सक्षम था।
विदिशा अब एक सम्पूर्ण स्त्री में परिवर्तित हो चुकी थी।
उसके साथ बिताये हर पल अविस्मरणीय धरोहर हैं मेरे लिए।
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