मेरी कहानियों और मेरे कमैंट्स से प्रभावित होकर किसी शनाया नाम की लड़की ने, जो इसी मंच की एक पाठिका है, ईमेल के द्वारा मुझे यह कहानी भेजी है. इस कहानी की सत्यता की मैं कोई गारंटी नहीं देता.
शनाया ने जैसी कहानी मुझे भेजी, वैसे ही हिंदी अनुवाद के साथ आपके सामने लाया हूँ, शायद आपको पसंद आये!
कहानी के पढ़ने के बाद आप मुझे अपने विचार भेजेंगे, मुझे इंतज़ार रहेगा.
राहुल श्रीवास्तव
आप मेरी सभी कहानियाँ इस कहानी के शीर्षक के नीचे लिखे मेरे नाम पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं.
आगे आप शनाया की देसी कहानी उसी के शब्दों में पढ़ें!
मेरा नाम शनाया है, मैं मुंबई शहर में रहती हूँ, मेरी उम्र इस वक़्त 27 साल है और ये वाकया मेरे साथ अभी कोई 6 महीने पहले घटित हुआ, मैं इस अन्तर्वासना साइट की सभी कहानी रोज़ पढ़ती हूँ और काफी सालों से पढ़ती हूँ.
मुंबई शहर की हूँ तो थोड़ी मॉडर्न भी हूँ पर सेक्स जैसे मामले में थोड़ा पुराने विचारों की हूँ, शायद मेरी पारिवारिक सोच का परिणाम हो.
मैं बहुत गोरी तो नहीं, फिर भी मेरा रंग साफ है, 34-28-34 मेरे बदन का साइज है, मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती हूँ जो बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स में है.
सेक्स स्टोरी पढ़ती हूँ तो लाज़मी है कि उनका असर भी मेरी जिंदगी में होता होगा… पर कभी हिम्मत नहीं हुई कि शादी से पहले मैं सेक्स कर लूँ. पर मैंने कर लिया, सच कहूं तो बहुत दर्द हुआ लेकिन बर्दाश्त किया. जब किसी छोटे से छेद में कोई मोटी सी चीज़ डाली जाएगी तो उस छेद का क्या हाल होगा ये आप समझ सकते हो. हल्की सी पिन चुभती है तो हम चीख पड़ते हैं, यहाँ तो मोटा सा लंड घुस रहा है तो दर्द तो होगा ही… शायद इस स्थिति से हर लड़की को एक बार गुजरना पड़ता है.
मैं रोज़ की तरह घर से ऑफिस जाती थी तो एक शख्स जो मेरे से कुछ बड़ी उम्र के थे, रोज़ ट्रेन में मिला करते थे, अनजान थे मेरे लिए, उनकी उम्र शायद करीब 40 साल की होगी. हम दोनों की ट्रेन एक, समय एक और जगह एक!
धीरे धीरे हम दोनों ही एक दूसरे को नोटिस करने लगे. करीब एक साल तक ऐसा ही चलता रहा हम दोनों एक दूसरे के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे. कई बार स्टोरी पढ़ते वक़्त उनको सोच कर चूर में उंगली जरूर की.
ऐसे ही एक दिन किसी कारणवश ट्रेन लेट थी काफी… तो वैसे ही उन्होंने पूछ लिया- टाइम क्या हुआ है?
और इस तरह हमारी बातचीत भी शुरू हो गई. तब पता चला कि उनका नाम आशीष है, वो विधुर थे, उम्र 37 साल और एक बेटा है जो दादी के साथ रह कर पढ़ाई कर रहा है मुंबई में.
वो मेरे घर के पास ही एक 2 बी एच के फ्लैट में अकेले रहते हैं, खाना वो ऑफिस की कैंटीन में ही खाते थे.
खैर जान पहचान बढ़ी तो एक दूसरे को जानने समझने भी लगे, ऑफिस के बाहर, ट्रेन के अलावा भी मिलने लगे, कभी मॉल या फिर कभी मूवीज या कभी किसी रेस्टोरेंट में. सही कहूँ तो हम दोनों को एक दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था.
इस तरह काफी महीने निकल गए, हम लोग एक दूसरे से काफी खुल से गए पर लिमिट उन्होंने कभी क्रॉस नहीं की. आशीष एक सज्जन पुरुष थे, कभी निम्न स्तर की बात नहीं करते थे, अच्छी पोस्ट पे थे, काफी विषयों पे वो बात कर लेते थे. फायनांस उनका पसंदीदा विषय था. उन्होंने मुझे बताया कि कैसे और कहाँ पैसा इन्वेस्ट करूं जिसका मुझे 6-7 महीनोन में काफी फायदा भी हुआ.
ऐसे ही एक दिन हम दोनों की छुट्टी थी तो हमने घूमने का प्लान बनाया. करीब 12 बजे हम दोनों मिले और मूवी देखने चले गए. फिल्म के दौरान गलती से मेरा हाथ उनके हाथों में चला गया, मैंने तुरंत पीछे खींचा भी पर देर हो चुकी थी आशीष ने मजबूत हाथों में मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरी तरफ एक बार देखा और फिर फिल्म देखने लगे जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो.
पूरी फिल्म में मेरा हाथ उनके हाथ में था हम दोनों की हथेली पसीने से तर-बतर! इस दौरान मेरा मन भटक गया, पहली बार था कि कोई पुरुष मेरा हाथ पकड़ रहा था, उसके हाथों की पकड़ उसकी मजबूत मर्दानगी की अहसास दिला रही थी. मेरे दिल में अन्तर्वासना की कई सारी कहानियों के फ़्लैश बैक चलने लगे, मेरे जिस्म में एक गर्मी सी भरने लगी, तनाव सा आ गया, चूचियों में भारीपन आ गया, जांघों के बीच कुछ गीलापन भी आ गया.
मेरा मन अब फिल्म में नहीं था, पता नहीं मैं क्यों कमज़ोर पड़ने लगी… मैंने एक दो बार कोशिश की, फिर भी आशीष ने हाथ नहीं छोड़ा. यह पहला मौका था कि हम दोनों एक दूसरे को टच कर रहे थे, उनका दूसरा हाथ भी मेरे हाथ को सहलाने लगा, मैं पिघलने लगी. कोशिश भी की पर कामयाब नहीं हुई हाथ छुड़ाने में. उनके सहलाने से मेरे जिस्म में तनाव सा आ गया, पहले मर्द का स्पर्श; आशीष की हरकतें थोड़ी वाइल्ड हो गई, उन्होंने मेरे को अपने पास कर लिया, दूसरे हाथ से मेरी बाँहों को सहलाने लगे. हम दोनों की नज़र स्क्रीन पर थी पर दिल कहीं और था.
मुझे भी अच्छा लग रहा था; बीच बीच में वो मेरी कमर को भी सहला देते. मैं गर्म हो गई थी और समर्पण भी कर चुकी थी, मेरे को अब कुछ और चाहिए था; जी हाँ कुछ और…
फिल्म खत्म हुई तो मैं उनसे नज़र नहीं मिला पा रही थी.
हाल से निकल कर उन्होंने एक जगह से खाना पैक करवाया और मुझे लेकर अपने फ्लैट में आ गए, मैं एक दो बार पहले भी उनके फ्लैट में आ चुकी थी तो मेरे मन में कोई डर सा नहीं था; फिर भी मेरा दिल कहा रहा था कि शनाया ‘आज कुछ जरूर होगा.’
हम दोनों ने खाना खाया, फिर मैंने कॉफी बनाई और लिविंग रूम में बैठ के टीवी चालू कर दिया. हम बातें कर रहे थे, बीच में उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और साथ में बैठा लिया. दिल आशीष का भी बैचैन था और शनाया का भी यानि मेरा भी; बस एक हल्की सी झिझक या यह कहो एक मर्यादा की लकीर थी जो हम दोनों जी नहीं पार कर पा रहे थे परन्तु कुछ चाहते जरूर थे.
आशीष ने फिर से मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया, मेरी आँखो में देखा, मैंने शर्म से आँखें झुका ली, आशीष ने उसको मेरा समर्पण समझा और मेरी कमर में हाथ डाल के अपने पास कर लिया; इतना पास कि मुझे उनके जिस्म की मदहोश कर देने वाली गंध का अहसास होने लगा, मैंने अपने जीवन में ऐसी गंध को महसूस नहीं किया था.
बेशक वो मेरे से बड़े थे पर मैं उस मर्दानी खुशबू के आगे अपने को बेबस मसहूस करने लगी. क्या करती… पहली बार था! और पहला पुरुष स्पर्श सब कुछ उत्तेज़ना से भरा था, मैं कमज़ोर पड़ रही थी.
‘उफ्फ…’
पुरुष ही पहल करता है तो आशीष ने भी पहल कर दी, मेरे गाल को प्यार से चूमा, मैं सिहर सी गई. गीले होंठों के स्पर्श से और फिर मेरे गालों को दोनों हाथों से पकड़ कर मेरे लरज़ते होंठों पे अपने होंठ रख दिए; उफ्फ्फ… कितना गर्म स्पर्श!
कितनी देर हम ऐसे ही रहे, मुझे पता नहीं… पर जब हम दोनों अलग हुए तो हम दोनों की सांसें बेकाबू थी. जहाँ मैं शर्म से आंखें झुका कर बैठी थी, वहीं आशीष मेरे चेहरे को कामुक अंदाज़ से निहार रहे थे.
मेरा तो पहली बार था ये सब… पर आशीष अनुभवी थे परन्तु काफी सालों से सेक्स से दूर थे तो वो भी कुछ कम उत्तेजित नहीं थे. उनकी पहल मेरे को कमज़ोर कर गई. सच ही है, लड़की तब तक मज़बूत होती है जब तक उसको पुरुष स्पर्श न करे पर उसके स्पर्श के बाद सब कुछ खत्म सा हो जाता है और ऐसी फीलिंग उसी के साथ आती है जिसके साथ आप सहज और सुरक्षित महसूस करे! और वो आपकी इच्छाओं का दिल से सम्मान करे!
ऐसा ही कुछ मेरे साथ था.
मैं आशीष के साथ सहज और सुरक्षित महसूस करती थी पर जो कुछ हुआ शायद मेरी भी सहमति थी.
उस दिन आशीष आगे नहीं बढ़े पर हम दोनों ही समझ गये कि आगे और भी बहुत कुछ दोनों के बीच संभव है.
दिन निकलते रहे, हम दोनों रोज़ ट्रेन टाइम पे मिलते, थोड़ी बहुत बातें करते और अपने काम पे चले जाते.
फिर एक दिन वो नहीं आये, फिर दूसरे दिन भी नहीं आये तो मैं ऑफिस से हाफ डे लेकर उनके घर गई. तो देखा कि उनको बुखार है.
मुझे गुस्सा आया कि फ़ोन तो कर सकते थे पर कैसे इतनी मुलाकातों के बाद भी हम दोनों ने एक दूसरे का फ़ोन नंबर नहीं लिया था.
“थी न अजीब सी बात?”
खैर वो दो दिन में बिल्कुल ठीक हो गए. इस बीच मैं रोज़ उनके पास जाती, उनके खाने और दवा का भी ख्याल रखती. शायद कोई भी होता वो ये सब करता और मैं तो एक लड़की हूँ और एक लड़की या स्त्री जो अपने से ज्यादा दूसरों के सेवा में अपना जीवन निकल देती है.
शनिवार मेरा ऑफिस नहीं होता फिर भी मैं घर से ऑफिस की बात करके उनके पास सुबह ही आ गई. मैंने लाल रंग का पटियाला अनारकली सूट पहना था और हल्का मेकअप भी किया था. आशीष भी पूर्ण रूप से स्वस्थ थे, नाश्ता मैं घर से लाई थी, उनको मेरे आने की कोई उम्मीद नहीं थी तो वो सिर्फ शॉर्ट्स में थे जो मुझे लगा कि शायद डोरबेल के आवाज़ सुन कर ही पहना था.
उनके बदन के ऊपर का हिस्सा पूर्णतया बिना कपड़ों के था. ‘उफ्फ… बालों से भरी चौड़ी छाती… बाजू की मजबूत मसल्स, चौड़े और सुडौल कंधे, थोड़ा पेट निकला था, उस पर से गहरी नाभि, सीने से नीचे शॉर्ट्स के अंदर जाती एक बालों से भरी सीधी रेखा, क्लीन शेव घनी मूछें…
उफ्फ्फ कितने सेक्सी लग रहे थे आशीष! दिल मेरा भी डोल गया.
लाल रंग मेरे ऊपर अच्छा लगता है, साथ में मैचिंग ब्रा और पैंटी, हल्का मेकअप होंठों पे लाली माथे पे बिंदिया… मैं भी सुबह सुबह आशीष से कम सेक्सी नहीं लग रही थी.
मैंने चाय बनाई और हम दोनों ने साथ में नाश्ता किया, फिर साथ में बैठ कर बाते करने लगे.
मेरा दिल कर रहा था कि आशीष मुझे चूमें, सहलायें.
आशीष को भी मेरी स्थिति का आभास हो चला था, वो मेरे पास आ गए फिर और पास इतने पास के मुझे उनके जिस्म के वही गंध महसूस होने लगी, मेरी आँखें बंद होने लगी कि तभी उनके गर्म होंठों का अहसास हुआ, मेरे हाथ उनकी नग्न पीठ पे चले गए और हम दोनों एक दूसरे के होंठों का रस पीने लगे. कभी आशीष मेरे निचला होंठ तो कभी ऊपर का होंठ चूसते रहे, कभी तो दोनों होंठों के एक साथ चूसने लगते. मेरे हाथ उनकी नग्न पीठ को तो कभी सर के बालों को सहला रहे थे.
मेरी ब्रा के अंदर का तनाव बढ़ गया था कि तभी उनके हाथों को अपनी चूचियों पे महसूस किया. मैं मदहोश हो रही थी. पहले हल्के से, फिर जोर से वो मेरी चूचियों को दबाने लगे, मैं कसमसाने लगी.
पर फिर वो अलग हो गए… मैं अपनी सांसों पे काबू करने में लगी रही, मेरी चूचियां तेज़ी से ऊपर नीचे हो रही थी. मैं समझ गई कि वो शायद अपनी हरकत को जरूरत से ज्यादा बढ़ जाना महसूस कर रहे हैं; तब मैंने पहल की और उनके छाती के बालों को सहलाने लगी; बीच बीच में उनके निप्पल को मसल देती.
पर वो उठ खड़े हुए.
क्यों?
उन्होंने मुझे उठाया और अपने बलिष्ठ बांहों में उठा कर बैडरूम के तरफ बढ़ चले, मैंने भी शर्म से उनसे लिपट कर अपनी आँखें बंद कर ली.
बैडरूम में आशीष ने धीरे से मुझे लिटा दिया, मेरा दुपट्टा न जाने कहाँ गिर गया था.
मैंने भी खुल कर उनके स्वागत में अपनी बाँहों को फैला दिया, कुछ ही पलों में उनका जिस्म मेरे जिस्म के ऊपर बिखर सा गया; मैं उनके बोझ तले दबी थी जो हर लड़की और स्त्री की नियति है कि वो अपने प्रियतम के भार को महसूस करे!
आशीष बेसब्र हो गए, उन्होंने मुझे हर जगह चूमना शुरू कर दिया, आंख, गाल, गर्दन, क्लीवेज हर जगह… तो हाथों से मेरी चूचियों को मसलने लगे.
मैं होश खो बैठी… उफ्फ्फ्फ़ आअह्ह्ह आह की मंद सिसकारियाँ हम दोनों को उत्तेजित कर गई.
धीरे धीरे मेरे कुरते के अंदर उनके हाथ प्रवेश कर गए, मेरे नंगे जिस्म पर मरदाना हाथों का स्पर्श… ‘उफ्फ…’ मैं बयां नहीं कर सकती उस सनसनाहट का आपसे!
मेरी ब्रा की स्ट्रिप में रुके हाथों ने एक बार टटोला और फिर ब्रा के हुक को खोल दिया. सभी कुछ मेरी मर्ज़ी से हो रहा था.
उन्होंने कुछ पल रुक कर मुझे उठाया और मेरे कुरते को ऊपर करने लगे. मैंने भी शर्म और लाज से भरी आँखों को झुका कर सहयोग किया, कुछ ही पलों में वो कुरता और ब्रा एक साइड में उन्होंने रख दिये.
मेरी नग्न चूचियाँ उनके सामने थी जिन्हें मैंने हाथों से छुपा के रखा था. मुझे धीरे से लिटाकर मेरी बगल में लेट कर आधे मेरे ऊपर आ गए, उनकी मज़बूत जाँघे आधी मेरे ऊपर थी.
और फिर मेरे दोनों हाथों को मेरी चूची से हटा एक चूची को मुँह में भर कर एक बच्चे की भांति चूसने लगे.
‘ओफ़्फ़…’ क्या अहसास था… क्या सिहरन थी!’
कितने गर्म होंठ… धीरे धीरे मेरी चूची उनके मुँह में समा गई.
उनके चूसने का अंदाज़ इतना अच्छा था कि मैं होश खो बैठी, कभी वो मेरे निप्पल को दांतों के बीच दबा के काटते, कभी खींचते.
“उफ्फ मैं मर जावां…”
‘आअह उफ्फ्फ्फ़ ओह्ह्ह आह्हः अह्ह्ह…’ की आवाज़ ही निकल रही थी. जब वो मेरे निप्पल को काटते, मेरे मुँह से निकल ही जाता- उई मा माँ माँ… धीरे से यार लगती है!
वो तो कुछ अलग ही मूड में थे और मैं भी! मेरे हाथ न जाने कब उनकी पीठ पे कस गए और उनको बाँहों में लेकर जकड़ लिया.
मुझे मेरी जांघों के बीच उनके लंड का अहसास हुआ. ‘आह्ह्ह्ह कितना गर्म था वो…’ न जाने क्यों मैं आतुर हो गई.
पहला अहसास जो शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.
मेरे बाकी कपड़े उतरते चले गए, मेरा सहयोग आशीष को मिल रहा था, कभी वो मुझे सहलाते तो कभी मुझे प्यार करते, चूमते, कभी बेदर्द बन के मेरे जिस्म को रगड़ देते. मेरे बर्दाश्त के बाहर था माहौल, मैं बस आँखें बंद कर के हर पल का आनन्द ले रही थी. कुछ पल के लिए सब कुछ शांत सा हो गया, समझ में नहीं आया तो हल्की आँखों को खोल के देखा तो वो अपने वस्त्र उतार रहे थे. शॉर्ट्स और अंडरवियर एक साथ उतार दिया.
उफ्फ… अचानक कुछ भूरे रंग का उछल के बाहर आया बिल्कुल तन्नाया हुआ ओह्ह “लंड” ऐसा होता है क्या??
मैंने डर के मारे आँखें बंद कर ली. आशीष मेरे ऊपर आ गए, हम दोनों ही सम्पूर्ण नग्न थे जिस्म की गर्मी, मैंने भी अपने जांघों को खोल के उनको सहयोग किया.
पहली बार बुर के पास एक मज़बूत सुडौल लंड को महसूस किया था, मेरी बुर की लकीर में लंड चिपक सा गया, आह्ह क्या नैसर्गिक अहसास… पहले कभी पूर्णतया विकसित लंड आँखों के सामने तो आया नहीं था, सिर्फ xxx फिल्मों में ही देखा था. काफी बड़ा लगा, कुछ टेड़ा सा लंड, उस पे नसें उभरी दिख रही थी और उसका मुंड गुलाबी सा आधा झांक रहा था.
डर भी लग रहा था और देखने का, छूने का भी मन कर रहा था. पर स्त्री सुलभ लज्जा मुझको रोक रही थी.
मेरे अंदर मादक से अंगड़ाई जन्म लेने लगी, सोच रही थी कि इतना विशालकाय लंड मेरी छोटी सी कुंवारी बुर में कैसे जायेगा.
आशीष मेरे ऊपर लेट कर मेरी चूचियों को चूसने लगे… आअह जिस्म में तरंग दौड़ने लगी… नीचे अजीब सी सनसनी सी हो रही थी. चूचियों चूसते हुए उनके हाथ मेरे को सहला कर मुझे और मेरे जिस्म गर्म कर रहे थे, मैं उस मुकाम पे आ गई थी जहां से वापस लौटना मुश्किल था.
मेरे जिस्म को चूसते चूसते वो नीचे को बढ़ने लगे, नाभि के अंदर जीभ का अहसास, जांघों का सहलाना, बुर के ऊपर का चुम्बन, उफ्फ… बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मेरी बुर से पानी से भीग चुकी था. तभी मुझे मेरी बुर पे कुछ गीला गीला सा अहसास हुआ. शर्म से मेरी आँखें बंद थी… पर जिस्म गर्म था, चाह दिल में थी कि आशीष मेरी प्यासी बुर में लंड डाल दें!
पर मैं कह नहीं पाई.
बुर पे जीभ का अहसास… बहुत प्यार से आशीष मेरी बुर चाट रहे थे. ये उत्तेज़ना के पल मैं सह न पाई और मेरी बुर ने पानी छोड़ दिया. यह मेरा पहला परम आनन्द का अहसास था. मेरी सासों अस्त व्यस्त हो रही थी, हर साँस में मेरी चूचियाँ उठ और गिर रही थी. मैं आनन्द से सराबोर थी, मेरी आँखें बन्द थी, मैंने आशीष के हाथों और जीभ को सब कुछ करने दिया.
मैं भरपूर जिस्म की एक सम्पूर्ण नारी थी तो मुझे आनन्द भी भरपूर मिल रहा था.
देसी कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: मुंबई की शनाया की कुंवारी बुर की चुदाई-2