हरयाणा सेक्स देसी कहानी में एक डॉक्टर ने किराये पर कमरा लिया. मकान मालिक की बहू को बच्चा नहीं हो रहा था. तो डॉक्टर ने उनकी मदद कैसे की?:
हाय मेरे दोस्तो,
मैं आपका मित्र अजय.
मेरी पिछली कहानी थी: ट्रेन में मिली भाभी की चुदाई
अब मैं फिर से आपके लिए एक नई कहानी लेकर हाजिर हूं।
यह हरयाणा सेक्स देसी कहानी तब की है जब मेरा दाखिला हरियाणा के रोहतक मेडिकल कॉलेज पी जी गायनी में हुआ था।
मैंने कॉलेज ज्वाइन कर लिया।
दो दिन तो कालेज के गेस्ट हाउस में रहा, फिर वहां के स्टाफ की मदद से एक बंगले का आधा हिस्सा जिसमें 2 कमरे रसोई लेट बाथरूम थे, किराए पर ले लिया।
मकान के आधे हिस्से में आंटी अन्कल रहते थे; बुजुर्ग थे।
दोनों सरकारी टीचर की नौकरी से रिटायर हुए थे; अच्छी पेंशन मिलती थी।
उनका एक बेटा है. वह दिल्ली में किसी प्राईवेट कंपनी में छोटी पोस्ट पर काम करता है।
शादीशुदा है, शादी को 3 साल हो गए, कोई बच्चा नहीं हुआ।
पत्नी उसके साथ ही रहती है।
हर रविवार को दोनों आते हैं।
ये सब आंटी ने बताया।
एक दिन मैं अस्पताल से आया तो मैंने देखा कि आंटी के बेटा बहू आए हैं।
आंटी ने मुझे अपने पास चाय के लिए बुलाया।
मैंने देखा कि लड़का लगभग 26 या 27 साल का पतला दुबला सा था।
मुझे देख कर नमस्ते किया।
मैं कुर्सी पर बैठ गया।
इतने में उसकी पत्नी साड़ी पहन कर घूंघट करके ट्रे में चाय लेकर आई।
क्योंकि वहां उसके ससुर भी बैठे थे इसलिए घूंघट किया था।
आंटी बोली- हमारे यहां यह प्रथा है।
बहू चाय रख कर चली गई।
अंकल न जाने क्या सोच कर अपनी चाय का कप लेकर दूसरे कमरे में चले गए.
कहने लगे- ओ रंजीता बहू, मैं बाहर बरामदे में जाता हूं तुम लोग बैठ कर बात करो।
बहू बाहर आकर अपनी सासू जी के पास बैठ कर चाय पीने लगी।
बेहद खूबसूरत, उम्र लगभग 22 या 23 की रही होगी।
साड़ी बलाऊज में रंजीता गजब की लग रही थी।
उसके कसे कसे बोबे उनकी घुंडियां बलाऊज से बाहर आने को मचल रही थी।
आंटी बोली- डा साहब, हमारे रमेश की शादी को 3 साल से अधिक हो गए कोई खुश खबर नहीं मिली। हमने खूब इलाज करवाया पर कोई फायदा नहीं हुआ।
मैंने कहा- किससे इलाज करवाया?
तो बोली- दाई से!
मैं उन्हें हैरान होकर देखने लगा।
आंटी बोली- आप तो बच्चे और महिलाएं के डाक्टर हो, बताओ क्या करें?
बहू झेम्प रही थी; शर्म के मारे उसकी गर्दन झुकी हुई थी उसका चेहरा लाल हो गया था।
मैंने कहा- रमेश जी, आपने अपना टेस्ट करवाया।
तो वह बोला- नहीं।
मैंने पूछा- आपने रंजीता जी का टेस्ट करवाया?
तो बोला- नहीं।
मैंने कहा- पहले दोनों के टेस्ट करवाओ। कल दोनों अस्पताल आ जाना। मैं टेस्ट लिख दूंगा, लैब में करवा भी दूंगा।
रमेश बोला- मेरी छुट्टी नहीं है। मैं रंजीता को छोड़ जाता हूं, आप इसके पहले करवा दो। मैं अगली बार छुट्टी लेकर आऊंगा, तब करवा लूंगा।
मैंने कहा- ठीक है आंटी जी, कल सुबह 10 बजे कमरा नंबर 14 में रंजीता जी को लेकर आ जाना!
कह कर अपने कमरे में चला गया।
बता दूं कि मेरे बेड रूम का दरवाजा दूसरे कमरे के दरवाजे में खुलता था जो दूसरी तरफ से बंद रहता था।
वो रंजीता रमेश का बेडरूम था जो अंदर से कुंडी लगा कर बंद रखते थे।
आंटी अंकल का सोने का कमरा बिलकुल अलग था जो कि कोठी के पिछले हिस्से में था।
खैर सुबह रमेश दिल्ली चला गया।
मैं आंटी जी को मेरा मोबाइल नंबर देकर सुबह 8 बजे अस्पताल चला गया और कह कर गया कि अस्पताल आकर मुझे फोन कर लेना।
करीब सवा दस बजे आंटी अपनी बहू रंजीता को लेकर आई।
मैंने अपनी असिस्टेंट को उसके साथ भेज कर लैब में टेस्ट करवाने भेज दिया।
करीब दो घंटे बाद सारे टेस्ट हो गए।
मैंने उन्हें घर भेज दिया।
शाम को मैं अस्पताल से घर आया।
मैं चाय बनाने जा ही रहा था कि रंजीता चाय का कप लेकर आई।
मैंने कहा- इसकी क्या जरूरत थी मैं अपनी चाय खाना खुद ही बना लेता हूं।
वह बोली- कोई बात नहीं डाक्टर साहब!
फिर रंजीता बोली- मेरी रिपोर्ट कब आएगी?
मैंने कहा- आते ही बता दूंगा।
फिर वह चली गई।
रात करीब 12 बजे मुझे मेरे कमरे में कुंडी खुलने की आवाज आई।
मैं उठा तो देखा कि रंजीता अपने बेडरूम से मेरे बेडरूम में दाखिल हुई है।
मैंने आश्चर्य से उसे देखा।
उसने अपना हाथ मेरे मुंह पर रख कर कहा- डाक्टर साहब, मेरी रिपोर्ट में कोई कमी हो तो प्लीज मेरी सास को मत बताना। नहीं तो वे मुझे घर से निकाल देंगी। मुझे रोज रोज बांझ कह कर ताने मारती हैं। वे अपने बेटे की दूसरी शादी करने के चक्कर में हैं।
उसने आगे बताया- सच तो यह है कि रमेश मुझे संतुष्ट नहीं कर पाते। बस थोड़ी देर में ही झड़ जाते हैं। यह बात मैं किसी से कह भी नहीं सकती। पर न जाने क्यूं मुझे आप पर विश्वास है। मुझे ऐसा लगता है कि आप मेरी गृहस्थी बचा लोगे।
यह कह कर रंजीता मेरे पैरों में गिर गई।
मैंने उसे अपने दोनों हाथों से बाजू पकड़ कर उठा लिया।
उठते ही वह मुझसे लिपट गई; उसकी कड़क छाती मेरे सीने से लग गई।
मेरा शरीर उसके स्पर्श से झनझना उठा।
मैंने उसके होंठों पर होंठ रख कर चुंबन ले लिया; फिर उसे अपने बेड पर लिटा लिया।
हे भगवान … क्या गदराया बदन था।
मुझसे रहा नहीं गया. मैंने बलाऊज के ऊपर से ही उसके चूचे दबाने शुरू कर दिए।
वह भी कसमसाने लगी।
मैंने उसके बलाऊज के बटन खोल दिए।
क्या मस्त बोबे थे!
उसने अंदर लाल रंग की ब्रा पहन रखी थी।
कुछ देर तक तो मैं उपर से दबाता रहा फिर मैंने उसके ब्रा के हुक खोल दिए।
उसके दोनों कबूतर आजाद हो गए।
मेरा अनुमान गलत निकला उसके चूचे की साईज 34 इंच थी। मुझे वो अछूते लग रहे थे शायद रमेश ने इन्हें ढंग से दबाया भी नहीं होगा।
मैं रंजीता के दोनों स्तन अपने दोनों हाथों में लेकर चूसने लगा।
गोरे गोरे सफेद दूध से बोबे पर हल्के भूरे रंग के चूचे चूसने में बहुत मजा आ रहा है।
मेरे चड्डी में मेरा लण्ड खड़ा हो गया था।
मैं उसकी चूचियों को चूस रहा था तो वह सिसकारियां भरने लगी, अपना हाथ मेरी चड्डी में डाल कर मेरे लंड को मसलने लगी।
मेरा बुरा हाल हो रहा था।
मैंने उसको अपने लंड को चूसने को कहा तो उसने मना कर दिया, कहा- मैंने कभी नहीं चूसा है।
तब मैंने कहा- मुंह में लेकर देखो, बहुत मजा आएगा।
बड़ी मुश्किल से उसने मेरा लंड अपने मुंह में लिया और थोड़ी ही देर में उसे अच्छी तरह से चूसने लगी।
मैं उसके पेटीकोट ऊपर करके उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा तो उसने हाथ हटा दिया।
कहने लगी- मैं पीरियड से हूं, आज ही शुरू हुआ है।
मेरे खड़े लंड पर चोट हो गईं।
फिर उसने मेरा लंड सपड़ सपड़ करके चूस चूस कर मेरा वीर्य निकाल दिया और गटक गई।
मेरा निकलने के बाद मैं निढाल होकर बिस्तर पर लेट गया।
वह रोज शाम को चाय लेकर आती।
अंकल आंटी को मुझ पर कोई शक नहीं था।
एक दिन रमेश रोहतक आया उसने कहा- डाक्टर साहब, मेरा टेस्ट करा दो!
मैंने कहा- ठीक है, कल सुबह अस्पताल आ जाना।
अगले दिन वह अस्पताल आया।
मैंने उसका टेस्ट करवाया।
रिपोर्ट में समय लगता है तो मैंने उसे घर भेज दिया, कहा- रिपोर्ट आते ही मैं देख लूंगा। उस हिसाब से दवाई दे दूंगा। चिंता मत करो, मैं सब ठीक कर दूंगा।
शाम को रमेश वापस दिल्ली जाने वाला था।
अब वह अपनी पत्नी को साथ ले जाने की बात करने लगा।
तो आंटी ने मुझसे पूछा।
मैंने कहा- रंजीता की रिपोर्ट नहीं आई है। रिपोर्ट आने के बाद इलाज शुरू करना है। बाक़ी आपकी जैसी मर्जी!
रमेश समझ गया, रंजीता को छोड़ कर चला गया।
दो दिन निकल गए, रंजीता की रिपोर्ट आ गई।
सब नॉर्मल थी।
रमेश के वीर्य के स्पर्म काउंट बहुत कम थे।
मैंने आंटी को बता दिया- इलाज में समय लगेगा पर दोनों को बच्चा जरूर होगा, यह मेरी गारंटी है।
घर में सब खुश हुए।
रात को रंजीता मेरे पास आई बोली- सर मेरी रिपोर्ट में कोई कमी तो नहीं है?
मैं बोला- है … पर मैं ठीक कर दूंगा। तुम्हारी चूत का छेद बहुत छोटा है इसे चौड़ा करना पड़ेगा। फिर सब ठीक हो जाएगा।
मैंने जान बूझ कर झूठ बोला था क्योंकि मुझे उसे चोदना था।
यदि मैं सही बता देता कि तुम में कोई कमी नहीं रमेश में है तो वह कह सकती थी कि उसका इलाज कर दो।
और शायद वह चूत मरवाने से मना भी कर सकती थी।
मैंने कहा- आज तो तुम्हें जन्नत की सैर करा दूंगा.
रंजीता बोली- अभी भी खून आ रहा है।
मैंने कहा- कोई नहीं, कल से दवा शुरू कर दूंगा।
मुझे पता था विटामिन डी की कमी से पीरियड के समय बढ़ जाता है। खून भी ज्यादा आता है।
मैंने उसे बेड पर खींच लिया, उसके बलाऊज के बटन खोल कर बोबे दबाने लगा.
वह बोली- धीरे धीरे करो, मुझे दर्द होता है।
फिर मैंने उसकी ब्रा भी खोल दी; उसके चूचों को दबाने लगा।
मैं उसके चूचों को मुंह में भर कर चूसने लगा।
मेरी खुरदरी जीभ से चाटने पर उसके चूचों की घुंडियाँ कड़क होने लगी।
भैया मैंने तो दे चूस दे चूस मचा दी।
अचानक से मुझसे छूट कर बोली- मेरी चूत का छेद बड़ा तो हो जायेगा?
मैं बोला- वो तुम मुझ पर छोड़ दो।
फिर से मैं उसके चूचों को मुंह में भर कर चूसने लगा।
मेरी चड्डी में मेरा लंड खड़ा होने लगा।
मैंने उसके चूचों को चूसते चूसते उसके एक हाथ में अपना लंड पकड़ा दिया।
उसने उसे मुट्ठी में भर कर आगे पीछे करने लगी।
मेरा लंड लोहे की रॉड की तरह कड़ा हो गया था।
उसने पहली बार कहा- हाय दईया … इतना बड़ा! रमेश का तो इससे आधा भी नहीं है।
और आज वह बिना कहे ही मेरा लंड अपने मुंह में लेकर चूसने लगी।
वह लंड के टोपे पर जीभ फिरा रही थी तो मेरे शरीर में सिरहन दौड़ रही थी।
मैं भी जोर लगा कर उसके मुंह को चोदने लगा, आगे पीछे करने लगा।
मेरा लंड उसके गले तक घुस गया था।
उसको सांस लेने नहीं आ रही थी।
आंखों में आंसू थे।
तभी मैंने अपना स्पीड बढ़ा दी और कुछ ही देर में मैं उसके मुंह में झड़ गया।
मैं बेड पर लेट गया और उसे अपनी बगल में लिटा लिया।
वह मेरे सीने पर हाथ फेर रही थी।
मैं उसकी चूचियों से खेल रहा था।
थोड़ी देर बाद मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया।
अब मैंने उसे बेड पर उल्टा लिटा दिया और उसकी पैंटी दोनों टांगों के बीच से उतार दी।
वह कहने लगी- मुझे पीरियड आ रहे हैं, खून आ रहा है। प्लीज आज मत करो।
मैंने कहा- नहीं करूंगा। सिर्फ तुम्हारी गांड में डालूंगा।
वह बोली- मैंने आज तक पीछे से नहीं किया है।
मैं बोला- गांड में डालने से चूत का छेद बड़ा हो जाता है जो बच्चा पैदा करने में बहुत काम आता है। तुम्हें बच्चा नहीं चाहिए।
वह बोली- हां।
मैंने कहा- तो जैसा मैं कहता हूं, चुपचाप वैसे ही करो।
उसने कहा- ठीक है।
वह अपनी दोनों टांगों चौड़ी करके घोड़ी बन कर उलटी हो गई।
मैंने अपने लंड का टोपा उसकी गांड के मुंह पर रख कर धीरे से दबा दिया।
लंड फिसल कर उसकी चूत में घुस गया।
मैंने तुरंत बाहर निकाला।
फिर बेड के सिराने पर रखी तेल की शीशी उठाई और अपने हाथ से लंड पर तेल लगाया।
अपनी एक उंगली से उसकी चूत पर लगाया, अंगुली उसकी चूत में घुसा कर अच्छी तरह से घुमाई।
उसे थोड़ा दर्द हुआ, वह आह करके रह गई।
मैं जगह बना रहा था।
मैंने अपने लंड का टोपा उसकी गांड पर फिट करके एक हल्का सा धक्का लगाया।
वह चीख उठी- उई मां मर गई … निकालो इसे … बहुत दर्द हो रहा है।
मैंने कहा- रंजीता, बर्दाश्त करो। तुम्हारी चूत में जगह बनाने के लिए जरूरी है. मैं तुम्हारे भले के लिए कर रहा हूं।
उसने अपने होठ दबा लिए।
फिर मैंने एक जोर का धक्का दिया मेरा पूरा लंड उसकी गांड में घुस गया।
वह जोर से चीखी- उई मां मर गई … बचाओ मुझे!
मैं थोड़ा रुका।
वह शांत हुई।
फिर मैं ताबड़ तोड़ धक्के पे धक्का लगा कर उसकी गांड मरने लगा।
उसे भी मजा आने लगा।
मैं उसकी गांड में लंड डाल कर अपने दोनों हाथों से उसकी चूचियां पकड़ कर दबा रहा था।
धीरे धीरे मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी।
मैं बोला- जानू मैं झड़ने वाला हूं, बताओ कहां निकालूं?
उसने कहा- अंदर ही छोड़ दो।
मैंने तेजी से झटके मारते हुए उसकी गांड में अपना रस छोड़ दिया।
जैसे ही मैंने अपना लंड उसकी गांड से बाहर निकाला फच् की आवाज आई।
उसकी गांड से थोड़े खून और मेरे वीर्य का मिश्रण बेड पर फैल गया।
वह बेहोश सी हो गई थी।
मैंने उसे बेड पर लिटा कर कपड़े से उसकी गांड और चूत पौंछ कर साफ की।
फिर सेनेट्री नेपकिन ठीक से लगा कर उसको पेंटी पहना दी।
कुछ देर बाद मैंने उसके मुंह पर पानी के छींटे मारें।
तब जाकर वह होश में आई।
उसको ब्रा और बलाऊज पहना कर उसके कमरे में उसे अपने दोनों हाथों से उठा कर उसके बेड पर लिटा कर आया।
उसके बाद मैंने अपनी बेडशीट बदली।
गंदी बेडशीट एक तरफ डाल दी।
आगे की कहानी अगले भाग में!
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कहानी का अगला भाग: मकान मालिक की बहू को बच्चे का सुख दिया- 2