दोस्त भाभी की X कहानी मेरे ऑफिस के सामने बुटीक वाली भाभी की है. मेरी उससे दोस्ती हो गयी थी. लेकिन एक दिन मैंने फोन पर सेक्स की बात कर दी तो वो …
दोस्तो, मैं आर्यन कुमार आपको अपने ऑफिस के नीचे एक लेडिज दुकान में बैठने वाली माधुरी भाभी की सेक्स कहानी सुना रहा था.
कहानी के पहले भाग
बुटीक वाली सेक्सी भाभी का गर्म जिस्मhttps://www.freesexkahani.com/antarvasna/x-bhabhi-ki-hindi-kahani/
में आपने पढ़ा कि मैं भाभी की जवानी को लेकर उसे चोदने का सपना देखने लगा था. भाभी भी मेरी तरह देखने लगी थी. उस दिन रात को मैंने माधुरी भाभी को याद करके मुठ मारी और सो गया.
अब आगे दोस्त भाभी की X कहानी:
जब सुबह आंख खुली तो मेरा लंड पैंट में बम्बू की तरह खड़ा होकर सलामी दे रहा था.
मैंने अपने अंडरवियर में हाथ डाला तो अन्दर गीला और चिपचिपा सा लगा.
मैंने देखा तो मेरे लंड ने शायद रात को माधुरी को सोचते सोचते अपना माल दुबारा भी निकाल दिया था.
मैं मन ही मन हंसते हुए बाथरूम में गया और नहा धोकर ऑफिस चला गया.
ऑफिस के बाहर देखा तो माधुरी बाहर खड़ी मेरे ऑफिस की तरफ देख रही थी, शायद वो मुझे ही ढूंढ रही थी.
मैं भी आते आते उसे ही देख रहा था.
तभी उसकी नजरें मेरी नजरों से मिल गईं.
दोस्त भाभी स्माइल करती हुई मेरे पास आयी और बोली- मुझे माफ़ करो दो, कल तुम्हारा चार्जर देना भूल गयी और जब याद आया तो तुम्हारा ऑफिस भी बंद हो गया था. फिर मेरे पास तुम्हारा नंबर ही नहीं था और इसी वजह से तुम्हें कॉल भी न कर सकी.
मैंने भी कहा- हां मैंने अब तक मोबाइल चार्ज नहीं किया.
उसने फिर से माफी मांगी और कहा- आगे से ऐसा नहीं हो … मैं इस बात का ध्यान रखूंगी. अगर तुम्हारा चार्जर मेरे पास ही रह गया और तुम चले गए तो मैं तुम्हें कॉल करूंगी. तुम अपना नम्बर मुझे दे दो.
मैं यही तो चाहता था कि कैसे भी करके उसका मोबाइल नंबर मुझे मिल जाए और बातों बातों में मैं उसे चुदाई के लिए पटा सकूँ.
मेरे मन लड्डू फूट रहे थे.
मैंने भी उससे कहा- मुझे शायद कल रात को यही ख्याल आया था कि काश तुम्हारा मोबाइल नंबर होता तो मैं भी तुमसे रात को बात कर पाता.
माधुरी ने अपना नम्बर मुझे दिया और मेरा मोबाइल नंबर आपने मोबाइल में आयशा के नाम से सेव कर लिया.
मैं समझ गया कि उसने ऐसा क्यों किया था.
दोस्तो, दरअसल एक बात मैंने आपसे नहीं बताई, वो ये थी कि माधुरी का जो अफेयर चल रहा था उस गांव वाले के साथ, उससे उसका झगड़ा हो गया था.
झगड़े की बात की खबर उसके पति को लग गयी थी और उस गांव वाले लड़के ने माधुरी को थप्पड़ मारा था.
इस बीच में उस गांव वाले लड़के की और माधुरी के पति की लड़ाई हुई थी.
उसी वजह से बात बढ़ गई थी और अब उन्हें ये दुकान तीन महीने में छोड़नी थी क्योंकि वैसा ही उस दुकान के ओनर से अग्रीमेंट भी था और कुछ वजह झगड़ा भी हो गया था.
मैं उस बात से बहुत दुखी था कि तीन महीने बाद मैं माधुरी को नहीं देख पाऊंगा.
लेकिन ख़ुशी इस बात की ज्यादा थी कि अब मेरे पास उसका मोबाइल नंबर था और उससे भी ज्यादा ख़ुशी की बात ये थी कि उसने मेरा मोबाइल नंबर आयशा के नाम से सेव किया था.
इसका मतलब वो मेरे से दोस्ती रखना चाहती है और साथ ही साथ किसी को पता न चले, इस लिए लड़की के नाम से सेव कर लिया था.
वो मुझसे सिर्फ दोस्ती का रिश्ता चाहती है या और भी कुछ चाहती है, ये अभी साफ़ नहीं था.
मगर तब भी मैं बहुत खुश था कि चलो मोबाइल चार्जर की वजह से अब मेरा टांका माधुरी से भिड़ जाएगा और मेरे लंड को भी एक नयी चूत का स्वाद मिल पाएगा.
मैंने प्यारी सी स्माइल देते हुए माधुरी के हाथ से आपने चार्जर लिया और ऑफिस आ गया.
आते ही मैंने अपने फ़ोन को चार्जिंग पर लगाया और अपना काम करने लगा.
काम करते करते मोबाइल की घंटी बजने पर मैं बार बार अपना फ़ोन चैक कर रहा था क्योंकि मुझे हर बार ऐसा लगता कि माधुरी का मैसेज आया होगा या फिर कॉल होगी.
लेकिन हर बार या तो किसी कंपनी वालों का मैसेज ही आता.
ऐसे ही वो पूरा दिन निकला.
मेरा सारा ध्यान माधुरी के मैसेज पर लगा था, पर उसका मैसेज नहीं आया.
रात को भी जैसे ही खाना खाकर मोबाइल लेकर बैठा तो मुझे लगा कि शायद वो अभी मैसेज करेगी.
इसी आशा में मैं उस रात को एक बजे सो सका.
सुबह उठते ही मैंने वापस से अपने फ़ोन को चैक किया लेकिन माधुरी का कोई मैसेज नहीं था.
फिर मैं ऑफिस चला गया और ऑफिस के बाहर माधुरी की दुकान की तरफ देखने लगा.
आज उसकी दुकान में उसका पति और माधुरी की दुकान के बगल में रहने वाली उसकी दो सहेलियां थीं.
माधुरी नहीं दिख रही थी और न उसकी उसकी गाड़ी दिख रही थी.
मैंने आधा घंटा इंतजार किया लेकिन मुझे वो कहीं नजर नहीं आ रही थी.
फिर मुझे ऑफिस के काम से फील्ड में जाना था तो मैं चला गया.
दोपहर को जब मैं बाइक चला रहा था, अचानक मेरे फ़ोन की रिंग बजी.
मैं बाइक चलाते वक़्त इयर फ़ोन लगाता हूँ, तो मैंने कॉल उठा ली और बात करने लगा.
‘कौन बात कर रहा है?’
उधर से आवाज आयी- कहां हो तुम … आज ऑफिस नहीं आए क्या?
मैंने समझ तो लिया था कि ये माधुरी की आवाज है.
मगर तब भी मैंने उससे पूछा- आप कौन बात कर रही हैं?
तो उसने कहा- अरे मेरा नंबर सेव नहीं किया क्या? मैं बोल रही हूँ.
मैंने भी बोला- अरे माधुरी तुम … मैं गाड़ी चला रहा हूँ इसलिए फ़ोन देख नहीं पाया … बोलो न!
तो उसने कहा- सॉरी मैं तुम्हें कल मैसेज नहीं कर पायी क्योंकि अब दुकान शिफ्ट करनी है, तो मैं थोड़ा बिजी थी.
ऐसे ही हमारी बात हो रही थी.
तो बातों बातों में उसने पूछा कि वटपूजा के दिन मैं कैसी लग रही थी? तुमने तो मुझे देखा ही नहीं और न कुछ कहा.
बस यही बात थी कि मेरे मुँह से निकल गया- कमाल की माल लग रही थीं, तुम्हारी लाल साड़ी में तुम एकदम सेक्स की देवी लग रही थीं. तुम्हारी पीठ पर ब्लाउज़ … आह मैं तुम्हारी ब्रा देख कर तो बस पागल ही हो गया था. तुम्हारी मचलती हिचकोले लेती कमर … ऊपर से तुम्हारी भरी हुई गांड और जब भी तुम झाड़ू लगने झुकतीं तो तुम्हारे बड़े बड़े संतरे देख कर मेरे अन्दर की कामवासना भड़क जाती. तुम्हारी लेगिंग्स में से तुम्हारी जांघें और उसमें कमर से फंसी हुई पैंटी का आकार ऊपर से देख कर ऐसा लगा कि बस तुम्हें वहीं पटक कर चोद दूँ.
गलती से आवेश में मैं एकदम से ये सब बोल गया.
मैं ये भूल गया था कि अब तक मैंने उसे पटाया भी नहीं … और न ही हमारी इतनी अच्छे से बात हुई थी.
मेरे मुँह से ये सब सुनते ही उसने कहा- क्या … तुम ऐसे देखते हो मेरी तरफ?
मैं कुछ कह पाता, इससे पहले वो जोर जोर से भड़कने लगी और बोली- मैं कोई ऐसी वैसी औरत लगती हूँ तुम्हें? तुमने मेरे बारे मैं ऐसा सोचा कैसे कि तुम मुझसे ऐसी बात करने लगे?
अब मैं बोला- सॉरी गलती से मेरे मुँह से निकल गया प्लीज ऐसा कुछ नहीं है.
लेकिन माधुरी मुझ पर बस बरसी जा रही थी और बात करते करते एकदम से उसने फ़ोन काट दिया.
मैंने उसके फ़ोन पर कॉल बैक की लेकिन उसने फ़ोन बंद कर लिया था.
मुझे बहुत बुरा लगा कि साला ऐसे कैसे एकदम से मैंने उससे ये सब बोल डाला.
फिर डर भी लगा कि कहीं ऑफिस जाकर उसने मेरी शिकायत किसी से की तो मेरा काम उठ जाएगा.
मैं डर के मारे उस दिन शाम को सीधा घर चला गया.
अब मेरी हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि मैं माधुरी को कॉल करूं.
फिर भी मैंने डरते हुए उसे सॉरी का मैसेज भेज दिया और अपना मोबाइल बंद करके सो गया.
सुबह उठते ही मैंने अपने फ़ोन को शुरू किया और देखा. लेकिन न तो उसका कुछ रिप्लाई आया था और न ही कोई मिस कॉल का मैसेज आया था.
मैं बहुत परेशान हो रहा था क्योंकि अब तो मुझे ऑफिस जाना ही था.
मैं डरते डरते ऑफिस चला गया.
मैंने देखा माधुरी की शॉप खुली थी और वो अन्दर साफ़ सफाई कर रही थी.
मैं जल्दी से बाइक पार्क करके अन्दर चला गया और अपनी जगह पर जाकर काम करने लगा.
मुझे जल्दी से ऑफिस का काम करके फील्ड पर जाने की जल्दी थी. मैं सोच रहा था कि अगर माधुरी की तरफ से कुछ हुआ तो लफड़ा हो जाएगा.
इसी डर से मैं ऑफिस के बाहर आया, तो सामने से उसी वक़्त माधुरी भी झाड़ू लगाने बाहर निकली.
मेरी नजरों से उसकी नजरें मिलीं. मैंने नीचे देख कर जल्दी से बाइक चालू की और वहां से चला गया.
मेरा दिल बहुत जोर से धड़क रहा था.
मैं ऐसे ही वहां से डरते डरते अपनी फील्ड में निकल गया.
दोपहर को मेरा काम खत्म हो गया, पर मेरी ऑफिस जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी.
इसलिए मैं हिंजेवाड़ी आईटी पार्क के एक पार्क मैं जाकर बैठ गया और अपना फ़ोन देख कर सोचने लगा कि माधुरी ने कोई मैसेज तो नहीं किया.
उसका कुछ रिप्लाई भी नहीं था.
मैं बहुत परेशान था और सोच रहा था कि साला ऐसी भी क्या जल्दी थी कि मैंने उसे बिना पटाए बिना कुछ सोचे ऐसा बोल दिया. जुबान पर कण्ट्रोल भी कर न सका. मेरा काम बनने से पहले ही बिगड़ गया. मैं अपनी किस्मत को दोष देने लगा और वहीं बैठे बैठे मैं अपना टिफ़िन खोल कर खाने लगा.
ऐसे बैठे बैठे पार्क में कुछ लड़कियों को, भाभियों को, आंटियों को देख कर आंखें सेंकने लगा.
तभी मेरे फ़ोन की रिंग बजी.
मैंने देखा तो माधुरी का ही कॉल था. मैंने ख़ुशी के मारे जल्दी जल्दी मैं एक ही रिंग में फ़ोन उठाया और मैंने सीधा बोला- सॉरी सॉरी यार … मेरे से गलती हो गयी. मेरे कहने का मतलब वो नहीं था.
तो माधुरी ने कहा- हां वो तो मैं समझ गयी.
मैंने उसकी टोन समझ कर कहा- सच में ऐसा नहीं है माधुरी.
लेकिन वो कुछ सुनने के मूड में नहीं थी.
उसने कहा कि अगले महीने से मेरी शॉप दूसरी जगह शिफ्ट होगी, तुम मुझे कॉल या मैसेज मत करना. मुझे ही करना होगा तो मैं करूंगी.
मैं कुछ बोलता, इससे पहले उसने फ़ोन रख दिया.
मैं और भी ज्यादा अपसैट हो गया कि अब तो अगले महीने से माधुरी की जवानी को चखना तो दूर, अब तो देखना भी नसीब नहीं होगा.
फिर मैं ऑफिस आ गया और माधुरी की शॉप को ही देखने लगा. वो अन्दर कुछ लेडीज कस्टमर्स के साथ बातचीत कर रही थी.
मैं उसे देखे जा रहा था.
अचानक उसकी नजर कांच की दरवाजे से मुझपे पड़ी तो मैं नीचे देख कर ऑफिस के बाहर टहलने लगा.
मैं छुप छुप कर उसको ही देख रहा था और वो भी कभी कभी लेडीज कस्टमर्स बात करते करते कांच से मुझे देख रही थी.
ऐसे ही उस दिन मैं निराश होकर घर आ गया.
मैंने सोचा कि काश एक बार के लिए उसकी चूत का रस पीने मिल जाता, तो कितना मजा आता.
ऐसा सोचते हुए मैं माधुरी की सेक्सी काया को अपने दिमाग में सोचते हुए बिस्तर पर लेटे लेटे कब सो गया, पता ही नहीं चला.
सुबह उठा, तो मेरे लंड महाराज ने अपना सारा लावा छोड़ा हुआ था.
शायद वो भी माधुरी की चूत के दर्शन के लिए बेकरार था … लेकिन अब कर भी क्या सकता था.
मेरी जल्दबाजी के कारण मेरे सारा खेल बिगड़ गया था.
ऐसे ही मैं अब हर रोज ऑफिस जाते दुबारा से माधुरी को रोज देखने लगा था और वो भी हमेशा मुझे देखती रहती.
ऐसे ही एक माह बीत गया.
एक दिन शाम को जब मैं ऑफिस से निकला तो मैंने देखा कि माधुरी के पति ने पूरी शॉप खाली कर दी थी और सारा सामान एक गाड़ी में रख कर दूसरी जगह जा रहा था.
मैं कुछ देर वहीं अपनी बाइक के पास रुका रहा लेकिन मुझे माधुरी कहीं नजर नहीं आ रही थी.
पूरी तरह से निराश व मायूस होकर मैं अपने घर चला आया कि साला अब तो आंखें भी सेंक नहीं सकता.
मैं हर रोज ऑफिस जाता तो उसकी शॉप को देखता और हमेशा माधुरी को सोच कर अपने तने हुए लंड का लावा निकाल कर लंड को शांत कर लेता.
इस तरह से मैंने बहुत बार ऑफिस में भी माधुरी को सोच कर मुठ मारी.
रात को बिस्तर पर जाते ही मेरा हाथ लोअर में चला जाता. आंखें बंद कर माधुरी की चूचियां, उसकी भरी हुई जांघें और गोलमटोल गांड दिखती.
मैं बस ऐसे ही अपने लंड को हिलाकर सहला कर शांत कर लेता था.
ऐसे ही करीब करीब तीन महीने हो गए थे.
एक दिन रात को अचानक मेरे फ़ोन की रिंग बजी.
देखा तो माधुरी का फ़ोन था.
मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना नहीं था.
मैंने उसका फ़ोन उठाया और बात करने लगा. मैंने माधुरी से कहा कि शुक्रिया तुमने फ़ोन किया. मैं डर गया था कहीं तुम मुझसे नाराज तो नहीं हो.
उसने कहा- तुम भी तो मुझे ऐसी नजर से देखते हो?
मैंने कहा- नहीं, वो तो मैं बता रहा था कि तुम कैसी लगती हो. तुम्हारी तारीफ करने के चक्कर में मेरे मुँह से ऐसा निकला था. मुझे माफ़ कर दो.
माधुरी बोली- पहले मुझे ये बताओ कि क्या तुम्हारे ऑफिस के सभी लोग मुझे ऐसे ही देखते हैं?
मैंने झट से कहा- अरे नहीं, सिर्फ मैं ही देखता हूँ तुम्हें!
वो बोली- क्या?
मेरे मुँह से जल्दी जल्दी में फिर से ये निकला तो मैं फिर से पछताने लगा.
मैंने एक पल रुक कर कहा- सॉरी सॉरी.
माधुरी ने कहा- चलो अब और बताओ कि क्या क्या सोचते हो मेरे बारे में? मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ?
उसकी ये बात सुनकर मेरे दिमाग में हलचल मच गई कि इसका मतलब ये हुआ कि माधुरी को भी मेरे मुँह से अपनी तारीफ़ सुनने का मन है या वो भी मेरी उस सोच से खुश थी जिसमें मैंने उसे चोदने की बात कही थी.
खैर … अब जो भी था, वो मुझे जानना था कि क्या माधुरी मुझसे सैट होने को राजी है. क्या उसकी चुत मेरे लंड से चुदने को मचल रही है.
ये सब मैं दोस्त भाभी की X कहानी के अगले भाग में लिखूंगा.
आप मुझे मेल करें.
[email protected]
दोस्त भाभी की X कहानी का अगला भाग: बुटीक वाली सेक्सी भाभी के जिस्म का मजा- 3