बस का सफ़र, किराये का कमरा और देसी भाभी की चुदाई

बस का सफ़र, किराये का कमरा और देसी भाभी की चुदाई

मेरी सेक्सी कहानी कहानी बस में मिली एक देसी भाभी की चुदाई की है. बात थोड़ी पुरानी है, ट्रांसफर के बाद बस से मेरठ जा रहा था, उदास था, न जाने कैसा सफर होगा।

बस चलने को हुई तो एक परिवार चढ़ा… लगभग 37 साल की देसी सी भाभी, 40 साल का तंदुरुस्त आदमी और एक युवा लड़की।
एक साथ सीट न खाली होने पर मुझसे आदमी बोला- भाई साहब, आप उस सीट पर चले जाइए, हम एक साथ इस सीट पर ए़़डजस्ट हो जाएंगे।
मैं मान गया।

अपना सामान सेट करने में उसने एक बैग मेरी सीट के ऊपर लगा दिया और परिवार सीट पर सेट हो गया, खिड़की की तरफ लड़की, बीच में भाभी और मेरे करीब सीट के कोने पर आदमी।

बस चली..
आधे घंटे बाद लड़की को उल्टी आने लगी।

आदमी ने पानी की बोतल उसे दी तो भाभी सीट से उठकर मेरी ओर आई और बैग उतारने लगी।
उसने अपने दोनों हाथ उठाए तो उसके जिस्म को देख मेरा लंड खड़ा हो गया। गोल मस्त चूचियाँ, पतली कमर जिस पर गहरी, रसीली गोल नाभि, साड़ी इस तरह से बांधी थी कि अश्लील नहीं लग रही थी।
लेकिन हाथ उठाते ही भाभी की नाभि दिख जाती।

बैग उतारते वक्त उसकी कमर और नाभि मेरी आंखों से दो इंच की दूरी पर थे। इस सेक्सी सीन को देख मेरी गहरी सांस छूट गई, नाक से निकली गर्म हवा उसकी नाभि से टकराई तो थरथरा उठी उसकी कमर… अचकचा कर भाभी ने मुझे देखा तो मैं खिड़की से बाहर देखने लगा।
उसे लगा मानो स्वाभाविक तौर पर ऐसा हुआ होगा।

तभी बस ड्राईवर ने ब्रेक मारी, भाभी मेरी ओर गिरने को हुई तो मेरा मुंह उसकी नाभि से जा चिपका।
मैंने भी मौके पर जीभ निकाल कर उसकी नाभि में घुसा दी। आधे सेकेंड से इस मामले में मैंने अपनी जीवन की सबसे सुंदर नाभि को चूमा और चाट भी लिया।

वह संभली और बैग लेकर अपनी सीट की ओर आदमी को थमाया। दूसरे हाथ से उसने साड़ी ठीक की और उंगलियाँ नाभि पर फिराई मानो सहला रही हो… नाभि में गीलापन पाकर वह झेंप सी गई और साड़ी ठीक कर अपनी सीट पर चली गई।
अब वो देसी भाभी बीच बीच में मेरी ओर देख कर हल्के से मुस्कुरा उठती… उसे मेरी शरारत पसंद आई थी.

लड़की को उल्टी होने लगी तो मैंने जेब से हाजमोला की गोली आदमी को दी और कहा- खट्टा खाने से उल्टी नहीं आएगी। अभी बस में नींबू पानी वाला आए तो एक नींबू ले लेना।
इससे हमारे बीच बातचीत होने लगी।

मैंने उसे अपने ट्रांसफर की बारे में बताया।
उसने पूछा- रहोगे कहां?
मैंने कहा- किराए पर कमरा लूंगा।

हमारे बीच नंबरों का आदान-प्रदान हुआ और बस मेरठ पहुंच गई।
वो अपने रास्ते और मैं अपने।

मैंने आफिस ज्वाइन किया और होटल में एक कमरा ले लिया। किराए पर कमरा ढूंढते ढूंढते दिन बीतते गए, सफलता नहीं मिली।

ऐसे में दोपहर में मोबाइल बजा, अनजाना नंबर था, कॉल पिक की तो वही आदमी था।
सामान्य बातचीत के बाद उसने पूछा- किराए पर कमरा मिला या नहीं?
मैंने वास्तविकता बताई तो उसने कहा- अगर ठीक लगे तो मेरे घर में एक कमरा खाली है।

मेरी आंखों के सामने वो देसी भाभी की सैक्सी नाभि नाच उठी, मैंने उसका पता पूछते हुए शाम को आने को कह दिया।
शाम को पहुंचा तो घंटी बजाते ही दरवाजा उसी भाभी ने खोला, पीले रंग की साड़ी बेहद करीने से पहन रखी थी, चूचियाँ पूरी तरह से छिपी थी। कमर और नाभि भी नहीं झलक रही थी।

मैंने नमस्ते की, उसने मुस्कुरा कर अंदर आने को कहा।

वो चार कमरों का घर था, बाहर के हिस्से वाले कमरे में मुझे रहना था जिसका एक दरवाजा सड़क पर खुलता था। दूसरा मेन गेट था, उसके आगे टायलेट।
कमरे से एक दरवाजा आंगन में खुलता था। बाहर वाले कमरे से लगा हुआ एक और कमरा था जो पता लगा कि उनके बेटे और बहू के लिए थे। अंदर के एक कमरे में मिंया-बीवी और तीसरे कमरे में बेटी रहती थी।

बातचीत अच्छी रही और हजार रुपये महीने में वे मान गए।

चाय-पानी के दौरान वह भाभी बार-बार मुस्कुरा कर मुझे देख रही थी।

आदमी का नाम महेश था, भाभी का सुमन और बेटी का आशा। उनके बेटे का नाम राकेश था और वह शक्ल से ही गांडू लग रहा था। उसकी बीवी का नाम नहीं पता चला। दुबली-पतली सामान्य सी थी।
बेटी के चेहरे पर दाग थे और वह और भी सामान्य थी, शरीर थोड़ा तना हुआ जरूर था।

विदा लेते वक्त महेश ने कहा- आज ही सामान लेकर यहाँ आ जाइए।
मैं मान गया, वापस आने की बात कहकर निकलने लगा तो सुमन और महेश बाय करने आए।
दरवाजे से पलट कर हाथ हिलाया तो सुमन की कमर दिख ही गई। पल्लू थोड़ा चढ़ा हुआ था लिहाजा एक चूची का साइज दिखा और उससे भी अच्छी उसकी आधी कमर जिसमें पल्लू और साड़ी के बीच दबी रसीली नाभि।

बहरहाल सामान लेकर मैं उस कमरे में शिफ्ट हो गया।
रात नींद नहीं आई, सुबह जल्दी उठ कर फ्रेश हो गया। सुमन भी नहा-धो चुकी थी।

अपने कमरे में दरवाजे के पास कुर्सी पर बैठते ही घर का काफी हिस्सा दिखा जिसमें ड्रेसिंग टेबल भी थी।
तभी सुमन चाय लेकर ड्रेसिंग टेबल तक पहुंची, कप रख कर साड़ी ठीक करने लगी। अभी तक पेट पर बंधी साड़ी को उसने नीचे किया तो नाभि दिखने लगी। सांस अंदर खींचकर उसने अपने जिस्म को निहारा और कप लेकर मेरे कमरे की ओर बढ़ी।
मैं सामान्य होकर बाहर देखने लगा।

अंदर आते ही गुड मोर्निंग हुई। चाय का कप पकड़ा कर उसने पल्लू ठीक किया तो कमर दिखने लगी।
एक घूंट चाय का पिया तो वह बोली- कैसी लग रही हूं?
मैंने कहा- नंबर वन।

थोड़ा पास आकर बोली- बहुत दिन बाद यह साड़ी निकाली है, ठीक है ना…
मैंने उसकी कमर पकड़कर पास खींचा तो मुंह बस के हालात की तरह उसकी कमर के पास आ गया।
मैं बोला- साड़ी बहुत सुंदर तरीके से पहनती है आप!

मेरी सांसें उसके नर्म मुलायम पेट से टकराईं तो वह सिहर उठी। सांस अंदर खींची तो साड़ी एक सेंटीमीटर और नीचे सरक गई।
मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने उसकी नाभि चूम ली। उसके प्रतिरोध नहीं किया तो कमर पकड़कर चाटने लगा। पूरे पेट पर जीभ फिराई और हौले से उसके चूत़ड़ दबाए।

वह कसमसाने लगी तो मेरे हाथ उसी कमर से होते हुए उसकी चूचियों तक जा पहुंचे। तभी घर में खटपट हुई तो वह चिहुंक कर पीछे हटी और वापस चली गई।
इतने में मेरा लंड पजामे में खड़ा हो गया।
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उसकी बहू नहाने जा रही थी, वह बोली- बेटी, कप़ड़े धोकर नहाना, बाथरूम में मत छोड़ना।
बहू हामी भरकर अपने कपड़ों के साथ बाथरूम में गई तो घर में सन्नाटा छा गया। महेश और राजेश नौकरी पर जा चुके थे और आशा स्कूल!

समय काटे नहीं कट रहा था, मन कर रहा था कमरे में घुसकर उसे चोद डालूं।
पर पहला दिन, घर में आसरा छिनने के डर से कमरे में ही बैठा रहा।

एक मिनट बाद सुमन फिर आई, कमरे में घुसते ही मैंने उसे पकड़कर चूमना शुरू कर दिया। वह लता की तरह मुझसे लिपट गई। होंठ बहुत नर्म थे उसके, चूसने में बड़ा मजा आ रहा था। एक हाथ कमर से लिपटा रखा था औऱ दूसरे हाथ से उसकी चूचियाँ सहलाने लगा… ठोस, गुदाज चूचियाँ।
ब्लाउज उसका बिना बटन वाली शनील का था, मैंने उसे ऊपर सरकाया तो चूचियाँ छलक उठीं… गोरी-गोरी चूचियाँ, उन पर गुलाबी निप्पल!
मैं उन्हें पागलों की तरह चूमने, चूसने लगा, वह धीमे-धीमे आहें भरने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’

सरकते हुए मैं उसके पेट को चाटने लगा, नाभि में जीभ घुमा-घुमा कर चूसने लगा। मैंने दोनों हाथ उसके चूत़ड़ों पर रखे और भींच कर अपनी ओर खींचा, फिर साड़ी ऊपर कर चूमते हुए उसकी चूत पर आ गया।
उसने अपनी चूत भी शेव कर रखी थी। मैंने जुबान फिराई तो वह ठंडी सांसें छोड़ने लगी। चूत चाटते हुए मैंने अपनी जीभ अंदर घुसेड़ दी, उसका चेहरा लाल हो गया।

मैं खड़ा हो गया और उसके चेहरे को चूमने लगा। वह बैठने लगी और पजामे पर चेहरा रगड़ने लगी।
मैंने देर न करते हुए पजामा सरकाया तो लंड फनफना कर उसके चेहरे से जा टकराया। उसने हौले से सुपारे को चूमा और धीरे से अपने मुंह में ले लिया।
यह जन्नत का एहसास था मेरे लिए!

हौले-हौले मैं भी अपना लंड उसके मुंह में ठेलने लगा, वह भी रच-रच कर लंड चूसने लगी।
तभी मुझे ध्यान आया कि उसकी बहू बाथरूम से निकल सकती है, मैंने इशारे से यह बात बताई तो वह उठ कर उसी कुर्सी पर झुक गई, मैंने साड़ी उठाई और पीछे से अपना लंड उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया।

अभी धक्का देने ही वाला था कि बाथरूम की सिटकनी खुलने की आवाज आई।

बिजली की गति से हम अलग हुए, अपने कपड़े ठीक कर वह कमरे से निकल गई, पास ही पड़ी झाड़ू उठाकर वह सफाई करने लगी।

बहू आधे-अधूरे कपड़ों में अपने कमरे में चली गई।

सुमन झाड़ू लगाते हुए मेरे कमरे में झांकने लगी तो मैं लंड निकाल कर कस-कसकर मुठियाने लगा।
उसने कहा- मेरे लिए बचा कर रखो।

मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैं झड़ने को हुआ तो उसने इधर-उधर देखा और लपक कर कमरे में आ गई, वीर्य की धार को उसने गिरने से पहले ही अपने मुंह में लंड ले लिया, झटके ले ले कर लंड झड़ने लगा और वो चुस्की ले ले कर उसे पीने लगी।
कुछ ही पलों में उसने चूस-चाट कर लंड साफ कर दिया और चटखारे लेते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ चली।
वह भी गर्म हो गई थी।

बहू से कपड़े धोने जाने की बात कह कपड़े उठाने लगी। शायद बाथरूम में जाकर वह उंगली से खुद की आग शांत करती। लेकिन तभी बहू ने मंदिर जाने की बात कही, पूजा का सामान उठा कर जाने लगी।
बहू के जाते ही उसने दरवाजे में कुंडी लगाई। मैं देख रहा था कि चुदास के मारे वह लगभग दौड़ते हुए मेरे कमरे में घुसी।
मैंने उसे बांहों में भर लिया, झड़ चुके लंड ने फिर सिर उठाना शुरू कर दिया था।

इस बार मैंने उसकी चूचियाँ कस कर दबाई, उमेठी तो वह कराहने लगी। मैंने उसकी साड़ी खींच कर कुछ पलों में उतार दी, पेटीकोट उतारने की छोड़ उसके उसे बांहों में लेकर मसलने लगा।
वह भी झुक कर मेरे लंड को मुंह में लेकर चुभलाने लगी, लंड फिर सलामी देने लगा।

मैंने पेटीकोट ऊपर किया और बैड पर लिटाते हुए उसकी जांघों में घुस गया, चूत में लंड घुसा तो उसके मुंह से आह निकल गई, वह खुद नीचे से कमर उचकाने लगी, इससे लंड अपने आप अंदर बाहर होने लगा।
मैंने पेटीकोट अलग कर दिया, देसी भाभी की बल खाती कमर देख मेरी उंगलियाँ उसकी कमर और चूचियों पर घूमने लगीं। उसके होंठ मैंने कस कर चूसे।

अगले दस मिनट तक मैं जानवरों की तरह उसे चोदता रहा, फिर झड़ने हुआ तो उसने बाहर ही झाड़ने को कहा।
मैंने पूरा वीर्य इस बार उसके मखमली, मुलायम पेट पर उगल दिया, उसकी पूरी नाभि वीर्य से भर गई।

मैंने अपने हाथों से पूरे सीने, पेट और कमर में अपने वीर्य से मालिश कर दी।
उसके चेहरे पर गजब की संतुष्टि के भाव थे।
हम एक दूसरे को चूमते जा रहे थे।

देसी भाभी की चुदाई की मेरी सेक्सी कहानी कैसी लगी, मुझे बताएँ!
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