अन्तर्वासना के सभी पाठकों और पाठिकाओं को सुन्दर सिंह का नमस्कार। मैं लगभग 6 महीने से अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। यहाँ की कहानियाँ पढ़कर मुझे लगा कि मैं भी अपनी आप बीती घटनाएं यहाँ बता सकता हूँ। मित्रो, यह मेरी पहली कहानी है, कहानी की सभी घटनाएं सत्य हैं, केवल महिला पात्रों के नाम जरूर बदल दिए हैं क्योंकि मैं समझता हूँ शारीरिक सम्बन्ध और सुख अपनी जगह हैं और महिला का सम्मान अपनी जगह जिसको धूमिल नहीं किया जाना चाहिए।
मेरा नाम सुन्दर सिंह है, मैं ब्रजघाट (गढ़मुक्तेश्वर) जनपद हापुड़, उत्तरप्रदेश में रहता हूँ। मेरी लम्बाई 5 फुट 6 इंच है यानि न ज्यादा न कम रंग गोरा है। मेरे लंड का साइज़ 6 इंच है और गोलाई मैंने कभी नापी नहीं लेकिन लगभग 2 से 2.5 इंच के लगभग होगी।
वर्तमान में मैं एक अध्यापक हूँ लेकिन आज से 7 साल पहले दिल्ली के एक बहुत बड़े अस्पताल में बिलिंग विभाग में काम करता था। यह घटना तभी की है और यह मेरे जीवन की पहली सेक्सुअल बहुत ही प्यारी घटना थी.
उसके बाद कई और ऐसी सेक्सी घटनाएँ हुईं, यदि आपका प्यार मिला तो उनके बारे में भी बताऊंगा।
उस समय अस्पताल में मेरा प्रमोशन हुआ था और मुझे नाईट वैलीडेटर बना दिया गया था जिसके अनुसार मुझे लगातार तीन रात शाम 8 से सुबह 8 तक ड्यूटी करनी होती थी और उसके बाद लगातार दो दिन छुट्टी होती थी। दिन में तो अस्पताल में बहुत से अधिकारी रहते थे लेकिन रात के समय कोई नहीं रहता था। रात को नाईट वैलीडेटर ही सबसे बड़ा अधिकारी होता था।
मैंने अपना केबिन 9वीं मंजिल पर बनवाया था क्यूंकि 9 मेरा लकी नंबर है।
हर फ्लोर पर दो नर्सिंग स्टेशन हुआ करते थे ए और बी। मेरी केबिन नर्सिंग स्टेशन ए के पीछे थी। मुझे नाईट ड्यूटी की कोई आदत तो थी नहीं तो शुरू शुरू में बहुत दिक्कत होती थी। मैंने उसका उपाय सोचा और खाली समय में एक एडल्ट वेबसाइट से सेक्सी सेक्सी फोटो और वीडियो देखने लगा।
कुछ दिन बाद उसी नर्सिंग स्टेशन पर एक सीनियर नर्स रोजी की नाईट ड्यूटी लगी. उन लोगों की भी नाईट हमारे जैसे ही होती थी 3 नाईट उसके बाद 2 छुट्टी। पहली रात तो मैं नर्स रोजी को देखता ही रहा क्या गदर माल थी। यूं तो हम पहले भी मिल चुके थे जब मैं दिन में ड्यूटी करता था. लेकिन दिन में मरीजों के तीमारदारों को बिल समझाना और बनाने का इतना काम होता था कि कभी गौर ही नहीं किया।
आज पहली बार तसल्ली से उसको देख रहा था ऊपर वाले ने उस नर्स कितनी फुर्सत से बनाया होगा … सेक्स की साक्षात मूरत लग रही थी।
गोल गोरा चेहरा, छरहरा सेक्सी बदन … उस समय तक मुझे फिगर की कोई समझ नहीं थी, बस लड़कियों, भाभियों को और आंटियों देखकर इतना पता चलता था कि कौन आते हुए अच्छी लगती थी कौन जाते हुए अच्छी लगती थी और कौन आते जाते दोनों तरफ से अच्छी लगती थी। बाद में उसने अपना फिगर बताया था जो आपको आगे कहानी में पता चलेगा। अभी तो इतना कहूँगा कि वो आती हुई और जाती हुई दोनों तरफ से मस्त लगती थी।
बड़ी बड़ी नशीली कजरारी आँखें जो मदहोश करे जातीं थीं। हंसती थी तो दोनों गालों पर डिम्पल पड़ जाते थे।
नर्सों को बार बार मरीजों के पास जाना पड़ता है तो वो भी बार बार आ जा रही थी और मैं उसके मम्मे और ठुमकती हुयी गांड को देख रहा था। उसके मम्मे ऐसा लग रहा था मानो अपने आप पर गर्व महसूस करके तने हुए थे. और उसकी ठुमकती हुई गांड जैसे मुझे बुला रही हो कि आ जाओ और पकड़ लो मुझे।
कभी कभी हमारी नज़र टकरा जाती तो वो मुस्कुरा देती थी. मुझे लगता जैसे मेरी चोरी पकड़ी गयी हो और मैं अपनी नजरें घुमा लेता था।
ऐसे ही देखते देखते न जाने कब पूरी रात निकल गई पता ही नहीं चला. उस दिन मैंने कंप्यूटर पर कोई सेक्सी फोटो नहीं देखी। ड्यूटी ख़त्म करके मैं अपने कमरे पर आ गया और उसके बारे सोच सोचकर मुट्ठ मारकर सो गया।
अगली शाम जब ऑफिस जा रहा था तो सोच रहा था कैसे उसको पटाऊँ। जैसे ही मैं पहुंचा तो सबसे पहले यूनिफार्म लेकर चेंजिंग रूम की तरफ जा रहा था कि अचानक सामने से वो नर्स रोजी आती हुयी दिखाई दी. सफ़ेद टॉप और ब्लैक जींस में वो क़यामत लग रही थी. मन किया अभी जाकर बांहों में भरकर किस कर लूं लेकिन अपने जज्बातों को अपने अन्दर दफ़न करके मैं उसे आते हुए देखता रहा.
उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दी. बदले में मैं भी मुस्कुरा दिया। उसने भी अपनी यूनिफार्म ली और चेंजिंग रूम की तरफ चली गयी. मैं उसको लहराती गांड को देखता रहा।
जब वो चेंजिंग रूम में चली गयी तब मैं भी अपने चेंजिंग रूम में गया। मैं बस यही सोच रहा था कैसे उससे बात शुरू की जाए।
आज उसके पास कम मरीज थे तो वो नर्सिंग स्टेशन पर बैठकर अपने मोबाइल में गेम खेल रही थी। मैंने उसे गेम खेलते देखा तो सोचा यही सबसे बढ़िया रास्ता है। मैंने अपने कंप्यूटर पर रोड रेस वाला गेम डाउनलोड कर लिया और मॉनिटर को उसकी तरफ करके खेलने लगा।
थोड़ी देर बाद उसका ध्यान मेरी तरफ गया, गेम देखकर वो मेरे पास आई और गौर से देखने लगी। जैसे ही मेरा गेम कम्पलीट हुआ बोली- मुझे भी सिखा दो ये खेलना!
मैं तो बस यही चाहता था, मैंने उससे कहा- ठीक है, चलो मैं तुम्हें सिखाता हूँ.
वो एक कुर्सी लेकर मेरे पास बैठ गयी और मैं उसे गेम सिखाने लगा। बीच बीच में मौका पाकर मैं अपनी कोहनी से उसके चूचे हल्के से दबा देता था. हालांकि डर भी लगता था लेकिन लंड महाराज जो न कराये सो थोड़ा है।
फिर धीरे धीरे हम दोनों में बातें शुरू हो गयी। रोजी बोली- आप अपना मोबाइल नंबर दे दो, मैं घर पर जब गेम खेलूंगी, अगर कोई समस्या होगी तो तुमसे पूछ लूंगी.
मैंने ख़ुशी ख़ुशी उसे नंबर दे दिया और उसका मोबाइल नंबर भी ले लिया।
छुट्टी के दूसरे दिन उसका फोन आया- क्या हो रहा है सुन्दर साहब?
मैंने कहा- कुछ नहीं … बस तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था। लगता है गेम बढ़िया तरीके से सीख गयी हो?
“हाँ … जब आप सिखाओगे तो बढ़िया ही सीखूंगी.”
और भी थोड़ी नार्मल सी बात हुई और उसने फोन रख दिया। मैं बहुत खुश था क्यूंकि बात शुरू तो हो गई थी।
फिर हमारी लगभग रोज ही बात होने लगी थी. कुछ दिन बाद फिर से हम दोनों की नाईट ड्यूटी एक साथ लगी थी। हमने फोन पर बात की और एक साथ ही पहुँचे.
उसने मुझे देखा और शरमाकर मुस्कुरायी. मैं भी मुस्कुरा दिया फिर हमने अपनी अपनी यूनिफार्म ली और अपनी अपनी ड्यूटी पर पहुँच गए। उसने अपनी ड्यूटी मेरे फ्लोर पर ही लगवाई थी. जैसे ही मैंने उसे देखा, मेरा मन खिल उठा।
अगली दो रातें कब कैसे निकल गईं, पता भी नहीं चला. हम लोगों ने बहुत सारीं बातें कीं. तीसरी रात को मैं करीब 1 बजे कॉफ़ी पीने नीचे ग्राउंड फ्लोर पर जा रहा था तो मैंने उससे पूछा- तुम भी चलोगी?
तो बोली- चलो।
9वें फ्लोर से एक लिफ्ट सीधा ग्राउंड फ्लोर पर जाती थी बीच में कहीं नहीं रूकती थी।
रोजी बोली- इसी से चलते हैं, बीच में कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा.
कहकर शरमा गई।
मैं उसके साथ लिफ्ट में चला गया. जैसे ही लिफ्ट बंद हुयी मैंने हिम्मत की (हिम्मत इसलिए क्यूंकि इससे पहले कभी मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया था) और रोजी को खींचकर गले से लगा लिया। वो एक टूटी हुयी बेल के जैसे मुझसे लिपट गई। कुछ देर मेरे हाथ उसकी पीठ पर चले और फिर अपने आप मैंने उसके दोनों नितम्बों को अपने हाथों में ले लिया और दबाने लगा। मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए, वो भी मेरा साथ देने लगी.
तभी लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर पहुँच गयी और हमें अलग होना पड़ा। इतनी रात को अस्पताल में बहुत कम लोग होते हैं. मैंने देखा बाहर कोई नहीं है तो मैंने दोबारा लिफ्ट को 9वें फ्लोर के लिए चलाया जैसे ही दरवाजा बंद हुआ हम फिर एक दूसरे को किस करने लगे. मैं उसके नितम्बों को मसले जा रहा था.
कुछ ही देर में हम ऊपर पहुँच गए थे और तुरंत नीचे वापस आने लगे। मुझे लग रहा था मानो मुझे स्वर्ग की अप्सरा मिल गयी हो और मैं इन्द्र हूँ! उसे छोड़ने का मन ही नहीं हो रहा था।
अबकी बार जब हम नीचे आये और जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा खुला तो दो लोग सामने खड़े थे हम लोगों को बाहर निकलना पड़ा. मन ही मन में मैं उनको गालियाँ दे रहा था। हम लोग कॉफी पीकर वापस अपने फ्लोर पर चले तो फिर उसी लिफ्ट में गए और फिर से एक दूसरे को किस करने लगे. अबकी बार मैंने उसकी गर्दन पर भी किस किया. जैसे ही मैंने उसकी गर्दन पर चुम्बन किया, वो सिहर उठी और फिर हमें अपना मन मारना पड़ा क्यूंकि फिर से हम अपने फ्लोर पर पहुँच चुके थे।
तीसरी रात अब काटनी मुश्किल हो रही थी. मेरी केबिन चूंकि उसके नर्सिंग स्टेशन के पीछे ही थी तो मैंने उसे फोन किया अब हम एक दूसरे को देखकर फोन पर बात करने लगे।
मेरे दिमाग में एक आईडिया आया, आज हमारी आखिरी नाईट शिफ्ट थी तो सुबह पास के मॉल में मोर्निंग शो देख सकते हैं। मैंने ये बात रोजी को बताई तो वो बहुत खुश हुई।
सुबह जब हमारी शिफ्ट ख़त्म हुई तो अगली शिफ्ट को हैण्डओवर हमने आराम से दिया जिससे मॉल में समय से पहुँच सकें।
वो कपड़े बदलकर जब सामने आई तो मैं देखता ही रहा उसको … लाल कुर्ती और काली जींस में गजब लग रही थी।
मॉल में पहुँचकर हमने पटियाला हाउस फिल्म की टॉप रो की कार्नर सीटें ले लीं। हमें कौन सा फिल्म देखनी थी. जैसे ही फिल्म शुरू हुई हमने एक दूसरे को किस करना शुरू कर दिया. मेरे हाथ उसके मम्मों पर चल रहे थे, मैंने उसकी कुर्ती में हाथ डालकर उसके मम्मों को दबाना शुरू किया.
रोजी मस्त होती जा रही थी। मस्ती में उसने पैन्ट के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ लिया और उसे दबाने लगी. मैंने पैन्ट की चेन खोलकर अपना लंड निकालकर उसके हाथों में दे दिया।
वो मेरे लंड से खेलने लगी. मैंने उसके सिर पर हाथ रखकर अपने लंड की तरफ दबाया, रोजी बड़े प्यार से मेरे लंड को मुंह में ले गयी और लोलीपोप के जैसे जीभ घुमा घुमाकर चूसने लगी।
मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, थोड़ी ही देर में मेरे लंड ने उसके मुंह में पिचकारी छोड़ दी। उसने मुंह हटाने की कोशिश की लेकिन मैंने उसका सर अपने हाथों से दबा रखा था जिससे मेरा पूरा माल उसके मुंह में चला गया। उसको उल्टी सी होने को थी लेकिन उसने पूरा माल पी लिया.
और अचानक से रोजी ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. रोजी की जीभ मेरी जीभ पर घूमने लगी। मैं कभी उसके मम्मे दबाता तो कभी उसके नितम्ब दबाता था।
तभी फिल्म का इंटरवल हो गया, हमने अपने कपड़े ठीक किये और अपने अपने घर को चल दिए।
शाम को रोजी की कॉल आई.
मैंने पूछा- कैसा लगा आज?
उसने कहा- बहुत अच्छा लगा। कल का क्या प्रोग्राम है?
मैंने कहा- अभी तो कोई प्रोग्राम नहीं है, तुम आ जाओ तो बना लेंगे प्रोग्राम।
रोजी थोड़ा सोचते हुए बोली- कहाँ मिलेंगे?
मैंने कहा- मेरे रूम पर आ जाओ, दिन में यहाँ कोई नहीं होगा, मेरे सारे दोस्त अपने अपने ऑफिस में होंगे. बस मैं और तुम!
वो बोली- ठीक है, कल आती हूँ, मैं आते समय कॉल कर लूंगी, रास्ता बता देना।
मैंने कहा- ठीक है।
मैं मन ही मन बहुत खुश था कि पहली बार किसी लड़की के साथ सेक्स करने की पूरी पूरी उम्मीद हो रही थी।
मैं शाम को बाज़ार गया एक पॉवर कैप्सूल, कंडोम और आइसक्रीम ले आया। शाम को ही मैंने अपने लंड महाराज का मुंडन भी कर लिया जिससे झांटों की समस्या न रहे। अगले दिन का सोच सोचकर मैं बहुत खुश हो रहा था आखिर पहली बार चूत मिल रही थी। लंड महाराज तो फूले ही नहीं समा रहे थे। कई बार मन किया मुट्ठ मार लूं फिर सोचा रहने दो कल तो मिल ही रही है चूत कल ही पूरा दम दिखाऊंगा।
बस यहीं गलती कर दी ‘मुझे मुट्ठ मार लेनी चाहिए थी.’ ये बात अगले दिन समझ में आई।
अगले दिन सुबह 9 बजे तक मेरे सारे मित्र अपने अपने ऑफिस को निकल गए तो मैंने रोजी को फोन किया- कितने देर में आ रही हो?
वो बोली- तुम्हारे ही फोन का इन्तजार कर रही थी, बस दो मिनट में निकलती हूँ।
मैंने उसे रास्ता बता दिया मैंने कहा- मैं कॉलोनी के गेट पर ही तुमको मिल जाऊँगा।
हम लोग नीचे के पोर्शन में रहते थे और मकान मालिक ऊपर रहा करते थे। दस बजे के बाद तो केवल आंटी ही रहतीं थीं जो दिन भर टी वी देखा करतीं थीं। तो कोई समस्या थी ही नहीं!
मैं थोड़ी देर बाद पॉवर कैप्सूल खाकर कॉलोनी के गेट पर पहुंचकर रोजी का इन्तजार करने लगा।
कुछ समय बाद रोजी स्कूटी पर आती हुई दिखाई दी. लाल टॉप और काली लाल छींट की लॉन्ग स्कर्ट चेहरे पर काला चश्मा देखकर गाना याद आ गया ‘गोरे गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा …’
मैंने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया और वो स्कूटी लेकर मेरे पीछे पीछे आ गई. स्कूटी बगल वाले घर के बाहर खड़ी करके हम तुरन्त अन्दर चले गए. अन्दर आते ही मैंने कमरे को बन्द किया और उसे खींचकर अपने गले लगा लिया।
मेरे हाथ उसकी पीठ से होते हुए उसके चूतड़ों तक जा रहे थे, मैं उसके चूतड़ों को सहला रहा था। वो भी अपने हाथ मेरी पीठ, गर्दन और बालों में घुमा रही थी।
गले मिलकर हमें पता ही नहीं चला कि कब हम एक दूसरे के होंठों का रसपान करने लगे। उसके होंठ संतरे की फांकों जैसे रसीले थे। मेरे लंड महाराज पैन्ट फाड़कर बाहर आने को बेताब हो रहे थे लेकिन मैंने अपनी पैन्ट नहीं उतारी, मैं पहले रोजी को नंगी करना चाह रहा था।
होंठ चूसते हुए मैंने रोजी का टॉप उतार दिया. टॉप उतारते ही लाल ब्रा में कैद उसके मखमली दूध दिखाई दे गए। किस करते करते पहले तो थोड़ी देर ब्रा के ऊपर से ही धीरे धीरे उसके दूधों को सहलाने लगा फिर उसकी गर्दन को चूमता और चाटता रहा और रोजी मेरे बालों से खेल रही थी।
थोड़ी देर बाद मैंने उसकी ब्रा खोलकर उतार दी. अब उसके नंगे दूध मेरे सामने थे, मैंने एक दूध को अपने मुंह में लिया, उसके निप्पलों को ऐसे चूसने लगा जैसे अभी उनमें से दूध निकलेगा और दूसरे को हाथ से दबाने लगा।
कसम से यारो … ये लग रहा था जैसे मक्खन खा रहा हूँ.
जैसे ही मैंने उसके निप्पलों को चूसा, रोजी सीत्कार उठी- उम्म उम्म्ह… अहह… हय… याह… आअह!
दूध तो नहीं निकला लेकिन कसम से मजा आ गया।
रोजी के हाथ मेरे बालों में बहुत तेजी से घूम रहे थे। मैंने एक दूध के बाद दूसरे पर हमला बोल दिया. रोजी तड़प रही थी. अचानक मुझे ब्लू फिल्म के कुछ सीन याद आये तो मै उसके दूसरे दूध पर धीरे धीरे थप्पड़ लगाने लगा। उसे और भी मजा आने लगा रोजी की सिसकारियाँ बढ़तीं जा रहीं थीं। अब उसका एक हाथ मेरे बालों में था और दूसरा हाथ नीचे की तरफ बढ़ाकर उसने पैन्ट के ऊपर से ही मेरे लंड महाराज को पकड़कर सहलाने और दबाने लगी।
अब मैंने उसकी स्कर्ट को भी उतार दिया. स्कर्ट उतारी तो देखा उसने पेंटी भी लाल ही पहनी हुई थी। मैं पेंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को रगड़ने लगा। रोजी मेरे सिर को चूमे जा रही थी और बालों में बहुत तेजी से हाथ घुमा रही थी।
फिर मैंने उसको बिस्तर पर लिटाया और उसकी पेंटी भी निकाल दी। मेरे सामने साक्षात चूत थी जिसे अभी तक मैंने केवल ब्लू फिल्मों में या तस्वीरों में ही देखा था। हल्की सांवली दो फांकें जिनके बीच में गुलाबी चूत मैं सोचता था कि लोग कैसे चूत चूसते होंगे … घिन नहीं आती?
लेकिन दोस्तो, जब इतनी बढ़िया चूत सामने होती है तो जीभ अपने आप लपलपाती है।
मैंने भी अपना मुँह उसकी चूत पर लगा दिया और लगा चूसने। मुझे पता नहीं था कि कैसे चूसते हैं लेकिन फिर भी लगा रहा, जैसे जैसे मन किया वैसे वैसे चूसता रहा।
रोजी अपनी गांड उठा उठाकर चूत चुसवा रही थी तो इसका मतलब उसे भी अच्छा ही लग रहा था।
चूसना अच्छा लग रहा था लेकिन स्वाद समझ में नहीं आ रहा था।
थोड़ी देर बाद रोजी मेरे सिर को अपनी चूत में दबाने लगी। मुझे अच्छा भी लगा लेकिन सांस लेने में दिक्कत हो रही थी तो थोड़ी थोड़ी देर में अपना मुँह हटाता था और फिर लगाता था। कुछ देर बाद रोजी अकड़ने लगी और उसकी चूत से कुछ गाढ़ा पानी सा निकला। जैसे ही वो निकला मैंने समझा उसका मूत है तो मैंने अपना मुँह हटा लिया।
उसके बाद वो शान्त हो गई, मेरी तरफ देखकर मुस्कुराई और बोली- आज तुमने मेरा दिल खुश कर दिया!
इतना कहकर उसने मुझे अपनी तरफ खींचा और फिर से हम लोग किस करने लगे।
अब उसने मेरे कपड़े निकाल दिए. कमरे में अब हम दोनों ही नंगे थे. मैं फिर उसके दूध पीने लगा और साथ ही साथ दूसरे हाथ से उसकी चूत को सहलाने लगा। रोजी फिर से सिसकारियां लेने लगी. वो मेरे लंड महाराज को भी सहला रही थी और महाराज भी उसके हाथों को पूरी पूरी सलामी दे रहे थे झटके मार मारकर।
थोड़ी देर बाद रोजी नीचे को हुई और उसने अपने मुंह में मेरा लंड ले लिया और चूसने लगी. रोजी बिल्कुल ऐसे चूस रही थी जैसे फिल्मों में दिखाते हैं. वो पूरा लंड मुँह में लेती थी फिर जीभ को नीचे से ऊपर टोपे तक घुमाती थी। कभी कुल्फी के जैसे चूसती थी. ऐसा लग रहा था कि बस ये पल यहीं रुक जाए लेकिन जैसे ही मुझे लगा कि मेरा निकलने वाला है, मैंने रोजी को हटा दिया।
अब मैं रोजी के होंठों को भूखे भेड़िये के जैसे चूसने लगा और वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी।
कमरे में साँसों की इतनी तेज आवाज थी कि ऊपर वाली मंजिल पर अगर कोई थोड़ा सा ध्यान से सुनने की कोशिश करे तो आराम से सुन ले।
रोजी मेरा लंड पकड़कर अपनी चूत पर घिसने लगी तो मुझे ध्यान आया कि लंड को चूत में भी डालना है। रोजी की टांगें खोलकर मैंने अपना लंड रोजी की चूत पर सेट किया और एक हल्का सा धक्का दिया. चूत गीली थी तो थोड़ा सा लंड आसानी से चला गया.
रोजी ने हल्की सी सिसकारी ली ‘उस्स्स उस्स्स्स … स्स्स्स!
दो चार हल्के हल्के धक्के लगाने के बाद मैंने उसकी टांगों को अपने कन्धों पर रखकर अगला धक्का थोड़ा तेज लगाया तो पूरा लंड उसकी चूत में चला गया. अबकी बार उसके मुँह से हल्की सी चीख भी निकली ‘उईई उसस्स स्स्स ह्म्म्म…’ लेकिन चीख मस्ती वाली थी।
अब मैं तेज तेज धक्के लगाने लगा. मुश्किल से दो मिनट हुए होंगे और मेरा माल निकल गया, एक दो तीन पता नहीं कितनीं धार निकलीं होंगीं। मुट्ठ मारने में कभी इतना माल नहीं निकला जितना रोजी की चूत में निकला।
मैं हांफता हुआ रोजी के ऊपर ही लेट गया रोजी भी मुझे चूमने लगी।
थोड़ी देर बाद हम एक दूसरे से अलग हुए तो रोजी बोली- एक बार और करते हैं।
मैंने कहा- एक गड़बड़ हो गई, मैंने कंडोम तो पहना ही नहीं।
वो बोली- कोई बात नहीं, मैं गोली ले लूंगी।
हम दोनों फिर से एक दूसरे को चूमने लगे. थोड़ी देर बाद मैं नीचे को खिसक आया और उसको उल्टा कर दिया फिर उसके पैरों से लेकर उसके चूतड़ों और उसकी गांड से होता हुआ उसकी पीठ को चूमते हुए उसकी गर्दन चूमने लगा फिर सीधा किया और उसके गालों को चूमा और दूध पीने लगा।
रोजी जल बिन मछली के जैसे तड़प रही थी।
रोजी बहुत ही सेक्सी आवाज में बोली- सुन्दर, अब डाल भी दो … और न तड़पाओ।
मैंने भी उसको उठाया और बेड के नीचे खड़ा करके उसे बेड पर झुका दिया जिससे वो घोड़ी या यूं कहो कुतिया के जैसे हो गई. फिर मैंने अपना लंड उसकी चूत पर सेट किया और एक ही झटके में पूरा पेल दिया।
रोजी इसके लिए तैयार नहीं थी। उसके मुँह से दबी हुई चीख निकल गई और वो थोड़ा आगे को हो गई लेकिन मैंने उसकी कमर तुरंत पकड़ ली जिससे वो ज्यादा आगे नहीं हो पाई।
अब मैंने शुरू में धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू किया और फिर तेज कर दिए। रोजी भी अपनी गांड पीछे की तरफ करके मेरा साथ देने लगी।
कुछ देर बाद रोजी की टांगें कांपने लगीं और वो झड गयी लेकिन मेरा अभी नहीं हुआ था। रोजी बोली- अब मुझसे खड़ा नहीं हुआ जाएगा, तुम मेरे ऊपर आ जाओ।
मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसके होंठ चूमे, थोड़ा दूध पिया, फिर उसकी टांगों को अपने कन्धों पर रखकर अपना लंड उसकी चूत की गहराईयों में उतार दिया और तेजी से रोजी को चोदने लगा। अबकी बार करीब 10 या 12 मिनट तक चुदाई चली, फिर मैंने अपना माल रोजी की चूत में छोड़ दिया और उसके ऊपर लेट गया।
रोजी मेरे सिर को चूमने लगी और बोली- आज का दिन मैं कभी नहीं भूलूँगी।
थोड़ी देर बाद हम दोनों अलग हुए और मैं रोजी को उठाकर बाथरूम ले गया जहाँ उसने अपनी चूत की सफाई की.
फिर उसने कपड़े उठाये तो मैंने रोक दिया, मैंने कहा- ऐसे ही खाना खायेंगे।
रोजी मुस्कुराकर मान गयी बोली- अब तो तुम्हारा हुक्म मानना पड़ेगा।
हम दोनों ने नंगे ही एक दूसरे से चिपककर बैठकर खाना खाया। खाना खाते हुए भी बीच बीच में उसके दूध पी लेता था।
फिर हमने एक दूसरे को कपड़े पहनाये और मैंने उसे कॉलोनी के गेट तक छोड़ा। जब मैं वापस आ रहा था तो मुझे ऊपर मकान मालिक की बेटी दिखाई दी जो शायद आज कॉलेज नहीं गयी थी। वो मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी, मैं भी उसे देखकर मुस्कुरा दिया।
दोस्तो, कैसी लगी मेरी पहली सत्यकथा? जरूर बताएं, मुझे आपके ईमेल का मुझे इन्तजार रहेगा मेरी नर्स सेक्स स्टोरी पर। आपके मेल यह निश्चित करेंगे कि मैं अगली कहानियाँ लिखूं या नहीं!
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