वर्षा मेरे गांव की देसी सी लड़की है जो पास ही के मोहल्ले में रहती है। वो मेरे गांव की सबसे सुंदर लड़की है, उसे सब लड़के अपनी बनाना चाहते थे, पर वो किसी को ज्यादा भाव नहीं देती थी।
मैं पढ़ाई के कारण हमेशा ही गाँव से बाहर रहा था, कभी-कभी ही गांव आ पाता था।
जिस वक्त की यह घटना है.. उस समय मैं अपने दोस्त की शादी में गाँव गया था।
उसी समय मेरी नजर उस देसी लड़की पर पड़ी थी, वो वहाँ डांस कर रही थी। वास्तव में वो बहुत सेक्सी और मदमस्त लड़की थी। उसके स्तन छोटे थे, पर एकदम कड़े थे। उसकी टांगें लंबी पर सेक्सी थीं, बिना नेल पॉलिश के नाख़ून बिल्कुल साफ, काली सैंडिल में सिर्फ उसका पाँव, जबकि उसका पूरा पैर सलवार से ढका था। बस उसके पैर की उंगलियां सैंडल से झांक रही थीं।
उसे इतने साधारण मेकअप में देख कर भी मैं मस्ती से भर गया और मुझे पहली नजर में ही वो ऊपर से तक एक माल किस्म की लौंडिया लगी, उस देसी लड़की का शरीर मुझे उसको प्यार करने को लालायित कर रहा था।
वो लड़की पूरी ढकी होने के बावजूद इतनी कामुक लग रही थी कि मुझे अपनी चुस्त जीन्स में बेचैनी होने लगी थी।
हम वैसे तो एक-दूसरे को जानते थे, पर कभी बात नहीं की थी और उसका ये रूप भी मैंने आज एक जवान निगाहों से देखा था।
वो मुझे देख तो नहीं रही थी, पर वो सही से इग्नोर भी नहीं कर पा रही थी।
मैंने उसे प्रपोज करने का सोचा। शादी रात को थी.. वो भी फेरों की लिए रुकी थी। मैंने उसे अकेला देख कर सिर्फ इतना कहा कि मुझे तुमसे कुछ काम है।
फिर मैं उसे ये आग लगाकर शहर आ गया। वो शायद कुछ सोचती रही, फिर जब मैंने कुछ नहीं कहा और बात नहीं की.. तो उसने खुद मेरे दोस्त से पूछा कि मुझे उससे क्या काम था।
यह बात मुझे दोस्त ने बताई। मैं अगले दिन गांव पहुँच कर उसे दोस्त के घर बुलाया और कहा- हम एक-दूसरे को ज्यादा नहीं जानते हैं, तो मैं चाहता हूँ कि हम दोनों कम से कम एक-दूसरे को ठीक से जाने तो सही, ये भी तब अगर तुम चाहो तो।
मेरी बात सुनकर वो चुप रही, तो मैंने आगे कहा- मैं तुम्हें कल कॉल करूँगा तुम चाहो तो मुझे अपना जवाब दे देना।
वो बिना कुछ बोले अपना नम्बर देकर चली गई।
मैंने अगले दिन कॉल किया, उसने उठाया और कहा- मैं सिर्फ आपकी दोस्त बन सकती हूँ।
मैंने भी ‘हां’ कह दी।
इसके बाद कुछ महीनों तक बातें होती रहीं। हम दोनों की बातें लम्बी होती गईं.. अब तो रात के दो-तीन बज जाते थे। इन्हीं बातों में कुछ गर्म किस्म की हल्की-फुल्की बातें भी हो जातीं। वो कभी-कभी गर्म भी हो जाया करती थी।
फिर वो धीरे-धीरे खुलने लगी और अपनी गुप्त बातें भी बताने लगी। जैसे उसे आज मासिक धर्म हो गया या आज उसका रात को स्खलन हो गया।
मैं भी बताने लगा।
अब हमारे बीच यही बातें होतीं। वो शायद उंगली भी करती थी इसलिए अब हमारे बीच कोई शर्म नहीं रही थी।
हम अब फोन से संतुष्ट नहीं हो पा रहे थे, तो मैंने उससे मिलने का ऑफर किया। उसने सोच कर बताने के लिए कहा।
एक दिन उसने कहा कि वो किसी एग्जाम के लिए शहर आ रही है.. तो वो मिल सकती है।
मैंने कहा- ठीक है, हम मिलेंगे।
उसने भी ‘हाँ’ कर दी। मैं उसे लेने चला गया और एग्जाम होने के बाद उसे अपने साथ होटल खाने के लिए ले गया।
खाने के बाद हमारे पास समय था, तो हम दोनों मेरे रूम पर आ गए। वो मेरे पास ही बैठी थी। उसका हाथ मेरे हाथ में था, अजीब सा सन्नाटा था।
वो जानती थी कि क्या होने वाला है। मैं भी जानता था कि क्या करना है, पर शुरूआत ही नहीं हो पा रही थी।
वो थोड़ी घबराई हुई भी थी, पर वो कुछ वो कुछ चाहती भी थी।
मैंने उसके परफ्यूम की तारीफ की और उसे सूंघने के लिए उसके करीब आ गया। उसके कानों लौ पर जैसे ही मैंने अपनी साँसों को छोड़ा और वापस अपनी सांस को भरा तो उसने अपने हाथ को मेरी जांघों पर भींच दिया। उसने आँखों को बंद कर लिया और मदहोश होने लगी। मानो यही उसकी स्वीकृति हो।
मैं थोड़ा दूर हटा और उसकी गोद में सोने की बात कह दी, वो थोड़ी सकपकाई, पर मान गई।
मैं उसकी गोद में सर रख कर लेट गया और उसके आधे खुले बालों से खेलने लगा.. उन्हें सूंघने लगा। फिर धीरे से मैंने उसके बालों को पूरा खोल दिया।
उसकी मुस्कराहट कह रही थी कि मानो वो ये सब वो खुद चाहती हो।
वो नीचे मुँह कर क़रके मुझसे बात कर रही थी.. तो उसके होंठ मेरे होंठों से बहुत करीब थे.. इतने करीब कि वो खुद उसे मेरे होंठों पर रखना चाहती हो, पर शायद एक नारीसुलभ लज्जा ने उसे रोके रखा था। वो सब कुछ एक मर्यादा में चाहती थी। उसकी उखड़ी साँसें मुझे महसूस हो रही थीं। मैं उन्हें अपनी साँसों में भरने लगा, जिससे उसके जिस्म की खुशबू मेरी साँसों में भर गई।
अब मैंने बात करते-करते उसके गले पर अपने हाथों को बाँधा और अपने होंठ उसके उसके होंठों से मिला दिए, बिना किसी विरोध के उसके होंठ भी मेरे होंठ से मिल चुके थे।
वो अपने होंठों को चला तो नहीं रही थी, पर हटाना भी नहीं चाहती थी।
कुछ ही पलों में मैंने उसके सूखे होंठों को पूरी तरह गीला कर दिया। उसके एक हाथ ने मेरी बांह और दूसरे हाथ को बिस्तर पर भींच रखा था।
मैंने होंठों को छोड़ उसकी आँखों से आँखें मिलाईं। उसने आँखें खोलीं और अपनी मुस्कराहट के साथ मुँह पर हाथ रख मुँह फेर लिया और मुझे पीठ दिखा दी।
मैं उठा और पीछे से उसके कानों को अपने होंठों से सहलाने लगा, उसकी पीठ को कुर्ती के ऊपर से चूमने लगा। मेरे होंठों का अधूरा स्पर्श उसे मदहोशी देने लगा। मैंने कान की लौ को चाटना शुरू किया.. फिर चूसना शुरू किया।
उसकी बाली मेरे मुख से पूरी तरह भीग गई थी.. वो कान की लौ मुझे अनंत आनन्द की अनुभूति दे रही थी। उसे चूसने से वो पूरी तरह सिहर उठी थी। वो अब मर्यादाओं को भूलने लगी थी, पर अभी भी उसने आपको सम्भाल रखा था।
मैंने अपना हाथ उसकी कमर पर रखा.. मेरे हाथ के ऊपर उसका हाथ था। हम दोनों आलिंगन में थे और मैं उसका सर खींच कर अपनी गर्दन से टकरा रहा था। मेरे चुम्बन बढ़ रहे थे, उसके गले पर चुम्बन करने पर वो कसमसा गई, अपने आप को समेटने लगी। पर कुछ ही पलों में अब वो अपनी खुद प्रतिक्रिया देने लगी। उसकी साँसें उखड़ गईं, पेट जोर-जोर से अन्दर-बाहर होने लगा, वो झटके भी लेने लगी।
मैंने उसे निर्वस्त्र करना चालू किया। जैसे ही मैं उसकी कुर्ती उठाने लगा.. वो बोली- चादर ओढ़ा कर करो।
वो अभी भी लज्जा के पाश में बंधी थी। हम दोनों ने एक चादर ओढ़ ली और मैंने उसकी कुर्ती को आजाद कर दिया।
अब वो ब्रा में थी, जो नई थी। वो शायद पहले ही इस सब के लिए तैयार थी। उसके स्तनों के फूल जाने से उसकी ब्रा पूरी तरह से टाइट हो चुकी थी। उसका पेट, गर्दन, उसकी कांख में पसीना ही पसीना निकल रहा था, वो पूरी तरह भीग चुकी थी।
मैंने उसे चादर के साथ ही लिटाए रखा और उस पर बैठ गया कर किस करने लगा.. वो मचल रही थी। उसका सारा बदन मैं चाट चुका था, उसकी हर जगह मैंने चुम्बन किया था। उसे लेटा कर उसकी कमर पर, उसके नितम्ब के ठीक ऊपर, बालों के नीचे, उसकी ब्रा पर खूब किस किए। उसकी ब्रा को मैंने बहुत चूसा, जिससे वो मुझे बहुत हैरानी से देख भी रही थी और मेरा साथ भी दे रही थी।
फिर मैंने उसकी ब्रा को भी आजाद कर दिया। ब्रा से जुदाई मिलते ही उसके वो मस्त छोटे से चुचूक मेरे सामने थे, जिन्हें मैं अपने होंठों से हाथों से उंगलियों से अधूरे स्पर्श करवा कर उसे अति आनन्द की सीमा पर ले जा रहा था।
मैंने उसे इस अधूरी प्यास के बाद उन स्तनों का बहुत जोर से मर्दन किया, जिससे उसकी मादक चीखें और कामुक सिसकारियां निकल पड़ीं। उसके स्तन छोटे होने के कारण पूरी तरह से पकड़ में होकर मसले जा रहे थे.. जैसे कोई नन्हें से फूल को मसलता है।
अब वो पूरी तरह तैयार थी। उसने अपना हाथ अपनी योनि पे रखा और अपनी सलवार को थोड़ा सा रग़ड़ा। उसने उंगलियों से अपनी पेंटी को एक बार उठाया भी.. शायद पेंटी उसके रति रस में भीग कर उसकी योनि से चिपक गई थी।
मैंने उसका हाथ पकड़ ऊपर किया। अब उसके दोनों हाथ मेरे दोनों हाथों में कसे थे। मैंने उसके पेट को चूसना चालू किया, फिर उसकी कमर को चाटा, उसकी नाभि पर जीभ घुमाई, फिर नीचे उसकी सलवार की लाइन.. जो कि उसकी कमर पर थी, उसे भी चुम्बन किए। इससे उसकी पेट की गति बहुत अधिक हो गई.. वो फड़फड़ाने लगी।
मैंने अपने होंठ उसकी योनि पर सलवार से लगाए तो उसकी सलवार रति रस में भीगी थी और बहुत मादक खुशबू दे रही थी। मैंने उसको चाट लिया, वो ये सब बहुत आश्चर्य से देखती रही।
अब वो और आनंदित होकर अपने हाथ को मेरे सर पर रखकर और चूसने के लिए प्रोत्साहित करने लगी। वो मेरे शिश्न को अपने अन्दर लेना चाहती थी।
मैंने उसकी सलवार नीचे की और गीली पैंटी को, जांघों को, उसके घुटनों के पीछे, उसके मादक पैर, उसके पैर की उंगली.. अंगूठा सब कुछ चूसा।
अब वो मर्यादा भूल बस मेरे लिंग को अन्दर लेना चाहती थी। मैं भी अब नंगा हो गया और मेरा लिंग उसके बदन को छू रहा था.. जो कि बहुत कामुक स्थिति थी।
कमरे में एक अजीब सी मादक खुशबू फैल गई थी। मैं उसे चाटे जा रहा था और वो पानी छोड़ती जा रही थी। वो पागलों की तरह तड़प रही थी। मैंने उसे मुँह में अपना लिंग देना चाहा, पर वो नकार गई, मैंने कोई जबरदस्ती नहीं की।
अब उसने अपने पाँव फैला लिए। मैंने अपने होंठ वहाँ रखे और बस चाटना शुरू कर दिया.. उसकी योनि का झरना और तेज हो गया, उसे कहना ही पड़ा- ओन्न्ह.. अब डाल दो न.. क्या कर रहे हो!
मैं उठा और अपने शिश्नमुंड को उसकी योनि पर रगड़ कर उसकी योनि रस से गीला किया.. कुछ थूक भी लगाया। अब लिंग को उसके योनि द्वार पर रखा और झटका दे दिया.. पर लिंग अन्दर नहीं गया। थोड़ा प्रयास करने पर भी वो अन्दर नहीं गया, वो मेरी झुंझलाहट पर मुस्कुरा रही थी।
फिर मैंने उसकी योनि को थोड़ा और चाटा.. इस बार जैसे ही मैंने उसकी भगनासा को सहलाया और उंगली डाली.. तो वो चिल्ला पड़ी उम्म्ह… अहह… हय… याह…
कुछ पल बाद मैंने कहा- अपनी इस महारानी का मुँह थोड़ा खोलो ना..!
उसने दोनों हाथ से उसे खोला और मैंने लिंग मुंड को उस पर जमाया और धक्का दे दिया। इस बार वो एक ही झटके में एक इंच अन्दर चला गया।
वो चिल्लाने लगी- ओह.. निकालो प्लीज़ प्लीज़ नहीं करना मुझे।
मैंने उसके होंठ अपने होंठों से पकड़े और शांत किया कुछ देर उसको चूम कर सहलाया। फिर उसके कहने पर धीरे से गहराई तक लिंग को पहुँचाया। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे और वो होंठ दबे होने के कारण गूंगूं की आवाजें कर रही थी।
इतनी टाइट महारानी में मैं भी ज्यादा टिकने वाला नहीं था। मैंने स्पीड बढ़ाई, तो वो थोड़ी चिल्लाई.. पर मजा भी लेने लगी और साथ भी देने लगी। उसकी मादक सिस्कारियां मुझे अंत तक ले जा रही थी। कुछ ही मिनट की चुदाई करने में मेरे शिश्न की हालत खराब हो गई.. क्योंकि उसकी योनि बहुत कसी हुई थी।
‘आअह्ह्ह रुक जाओ अह.. उम्म्म्म.. करोऊऊ.. उह्ह्ह्ह् रोज मिलना.. मुझे मत छोड़ना..’
उसकी इस तरह की कराहों के अतिरिक्त वो और बहुत कुछ बड़बड़ा रही थी, उसे अपना कुछ भी ध्यान नहीं था।
फिर अचानक मैं तेजी में आ गया और उसके दर्द को भूल कर पूरी ताकत से उसे पेलने लगा। उसकी आँखें बेहोशी की हालत की वजह से बन्द थीं।
‘उह्ह.. दर्द हो रहा है.. दर्द हो रहा है.. धीरे करो..’ वो बस यही कहे जा रही थी। कुछ देर बाद मेरा वीर्यपात हुआ और मैं उसकी योनि में ही झड़ गया।
जैसे ही मैंने लिंग बाहर निकाला, वो बोली- उंगली डाल दो।
मैंने उंगली डाली और अन्दर-बाहर करने लगा.. उसमें दस-बारह बार उंगली चलाई होगी कि उसमें अजीब सी अकड़न आ गई। अब वो सिर्फ सर के बल पड़ी थी, बाकी का शरीर हवा में उठा हुआ था। वो एकदम दोहरी सी हो गई थी और जोर से अपने और अपने अन्दर घुस चुके मेरे वीर्य को बाहर निकालने लगी। मेरा जो सारा पानी उसके अन्दर था.. बाहर आ गया।
इस दौरान उसकी वो कामुक चीखें बहुत ही मादक थीं।
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मैं उस पर ही लेट गया और अनगिनत चुम्बन दे डाले। अब वो भी मुझे बिना सोचे-समझे चूम रही थी।
कुछ पलों में ही हम दोनों शांत हो गए और एक-दूसरे को देखते हुए करीब आधे घण्टे नंगे ही लेटे रहे। मेरा सारा वीर्य उसकी योनि से चादर पर आ गया था, मेरा लिंग भी गीला था और वो अब भी बिस्तर गीला कर रहा था।
हम दोनों उठे और एक-दूसरे को साफ करके कपड़े पहने।
वो बहुत खुश थी.. पर कुछ बोल नहीं रही थी। शायद उस देसी लड़की की वो मर्यादा फिर लौट आई थी, जिस मर्यादा पर मैं आकर्षित हुआ था।
आपकी मेल का इंतजार रहेगा। आपके पत्र मेरी अगली सेक्सी स्टोरी के लिए प्रोत्साहन स्वरूप होंगे।
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