स्कूल टीचर सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि मैं स्कूल में पढ़ाने के लिए जाने लगी और स्कूल के दो मास्टरों से चुद गयी। उन्होंने कैसे मेरी चूत गांड मारी? फिर मैंने क्या किया?
दोस्तो, मैं सविता अपनी स्कूल टीचर सेक्स स्टोरी आपको बता रही थी जिसके दूसरे भाग
मजदूरों से बगीचे में चुद गयी मैं
में आपने देखा कि मैं अपनी जॉब वाली जगह पर ही शिफ्ट हो गयी थी।
रात में मुझे गर्मी लगने लगी तो मैं पास के गार्डन में घूमने चली गयी। वहां पर दो मजदूरों ने मुझे चूचियां और चूत सहलाते देख लिया और उन दोनों ने मेरी चूत और गांड चोद दी। मैं लंगड़ाती हुई अपने घर आयी और सो गयी।
यह कहानी सुनें.
अगले दिन मेरी आंख करीब सुबह ग्यारह बजे खुली क्योंकि पिछली रात मैं उन दोनों से चुदने के बाद एकदम थककर चूर हो गयी थी।
उठने के बाद मैं सब से पहले नहाने गयी।
जैसे ही मैं नहा कर बाथरूम से निकल कर आयी तो किसी ने दरवाजे पर दस्तक दे दी।
मैं तौलिया बांध कर दरवाजा खोलने गयी। दरवाज़ा खुलते ही मैंने पाया कि मेरे मकान मालिक महेंद्र जी सामने खड़े थे और वो मुझे इस सेक्सी अवतार में देखते ही रह गए।
मैंने उनकी तंद्रा तोड़ते हुए कहा- बताइये क्या काम है?
तो वो सकपकाती आवाज में बोले- आपके रूम का दरवाजा सुबह से खुला नहीं था। मैंने सोचा कि कहीं कुछ दिक्कत न हो गयी हो इसलिए पूछने चला आया।
मैंने उनको अंदर आने को बोला और फिर उनको बताया कि रात में बहुत ज़्यादा गर्मी थी इसीलिए सो नहीं पायी। इसी कारण सुबह देर से आंख खुली और अभी स्कूल से दो दिन की छुट्टी मिली है तो मैं फिर देर तक सोती रही।
वो बात तो मुझसे कर रहे थे लेकिन उनकी नज़र मेरी नंगी टांगों और मेरी गांड पर थी। बार वो मेरे तौलिया के ऊपर से काफी ज्यादा बाहर निकले उरोजों को ताड़ रहे थे।
मैंने मौके का फायदा उठाया और उनसे कहा- महेंद्र जी, आप मुझे गैस सिलेंडर दिलवा दीजिये। देखिये अभी तक मैंने चाय भी नहीं पी है। खाना भी रोज रोज बाहर से ही खाना पड़ रहा है।
वो बोले- चाय तो मैं अभी ले आता हूं।
वे जल्दी से मेरे लिए चाय बिस्कुट ले आये, फिर कहने लगे कि अपने स्कूल से लिखवा ले आइयेगा तो मैं आपको सिलेंडर दिलवा दूंगा।
फिर वो चले गये और मैं भी जीन्स टॉप पहन कर अपने स्कूल चली गयी।
मैं लिखवा कर ले आयी।
घर आते समय मैंने महेंद्र जी को कॉल किया तो वो बोले- घर के बाहर ही रुको मैं आता हूं।
वो दो मिनट में आये और मुझे एजेंसी पर लेजाकर सिलिंडर दिला दिया।
वो दिन मेरा इसी तरह बीता.
अगले दिन मैं सुबह छह बजे उठ गई.
स्कूल मेरा आठ से दो बजे का था। मैंने घर की साफ सफाई की और अपने लिए टिफ़िन और सुबह का नाश्ता बनाया और मुझे सात बज गये।
फिर मैं नहाने चली गयी। नहाकर मैं तैयार होने लगी। मैंने साड़ी पहनने के लिए पेटीकोट पहना। उसको ऐसे बांधा कि मेरा पेट और कमर ज्यादा से ज्यादा दिखे। फिर मैंने बिना बाजू वाला ब्लाउज पहना।
ब्लाउज में सामने केवल दो हुक थे और पीछे की ओर एक बड़ी सी पट्टी के सहारे रुका था। बाकी की पूरी पीठ मेरी नंगी ही थी। मेरे उरोजों की गहराई उसमें खूब दिख रही थी।
वो ब्लाउज काफी फिटिंग वाला था। मैंने ब्रा भी नहीं पहनी थी तब भी मेरे चूचे एकदम से कस गये थे।
मैंने साड़ी भी सेक्सी अंदाज वाली बांधी और पल्लू को ऐसे सेट किया कि एक चूचा तो बाहर ही दिखता रहे।
मैंने हल्का मेकअप किया और फिर होंठों पर लाली लगायी।
मैंने खुद को आईने में देखा तो मैं कई कोई बहुत बड़ी हाई क्लास की रांड लग रही थी जो कि मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मैं अब घर से निकल कर स्कूल आयी तो सब की नज़रें मेरे पर ही टिकी थीं।
छात्र, अध्यापक, स्कूल स्टाफ के पुरूष, माली, नौकर सब एक बार को तो मेरी ओर ही देख रहे थे।
सुबह की वंदना हुई और उसके बाद मैं प्रिन्सिपल के रूम में गयी।
उन्होंने मुझे बताया कि मुझे कौन सी क्लास और कब पढ़ानी है। दूसरे से चौथे पीरियड तक मुझे सात से कक्षा 9 के छात्रों को पढ़ाना था और दोपहर के भोजन के बाद 5 से 7 पीरियड कक्षा दस से बारह के छात्रों को इंग्लिश पढ़ाना था।
अब मैंने पहले पहर के बच्चों को पढ़ाया तो ज़्यादा कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन दूसरे पहर के बड़े बच्चों की क्लास में जैसे ही मैं गयी तो वो सब मुझे घूरते रह गए।
ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के 18 साल के ऊपर के छात्र मुझे बहुत ताड़ते थे और जब मैं पीछे घूम कर ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखती तो वो अब मेरी लचीली हिलती हुए गांड और मेरी नंगी पीठ को देखने लगते।
जब मैं पढ़ाते हुए उनके बगल से गुज़रती तो वो मेरी नाभि और मेरी कमर को ताड़ते। जब मैं झुक कर कुछ बताती तो उन सब की नज़र मेरे पल्लू के अंदर से झांकते मेरे 38 के मोटे और बड़े बड़े उरोजों पर होती थी।
प्रिन्सिपल से बात करने के बाद मुझे मेरा केबिन भी दे दिया गया।
मैं छुट्टी होने के बाद घर आ गयी और फिर कुछ खाकर कपड़े उतारे और ऐसे ही नंगी सो गयी।
जब शाम को मैं उठी और किचन जाने लगी तो मैंने देखा कि किचन के बाहर बरामदे के ऊपर जाली के ऊपर पतली चादर ढकी थी। अब वो हट चुकी थी और मैं तुरंत समझ गयी कि ये काम मेरे मकान मालिक महेंद्र जी का है।
मुझे अब और आसानी हो गयी उनको सेट करने में। तो मैं अब अपने घर में हमेशा नंगी ही रहने लगी। खाना, सोना और सब कुछ अब बिना कपड़ों के होता था और महेंद्र जी भी चुपके से ऊपर से मेरे नंगे बदन और मेरी हिलती हुई चूचियों और मटकती गांड को देखा करते थे।
स्कूल में मुझे मेरा केबिन मिल गया था। उसकी चाबी देने प्रिन्सिपल मेरे पास आये और चाबी मुझे थमा दी।
मैं खुश हो गयी।
मगर इस खुशी के बदले प्रिन्सिपल मुझसे कुछ चाह रहे थे।
मैंने उनकी नजरें पढ़ लीं और खुशी के बहाने उनके गले से लग गयी।
मेरी चूचियां उनके सीने सट गयीं और उन्होंने मेरी नंगी पीठ पर हाथ फिराते हुए मुझे अपने सीने से कस लिया।
ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरे पूरे बदन को सहलाने के लिए तड़प उठे हों।
न चाहते हुए भी उनको मुझसे अलग होना पड़ा।
फिर उस दिन मैंने क्लास में पढ़ाते हुए बड़े बच्चों को खूब कामुक अंदाज में गर्म किया।
छुट्टी होने के समय में मैं अपने केबिन मैं बैठी तो तभी चपरासी आया और मेरे गिरे हुए पल्लू को देखकर सकपका गया।
मैंने ऊपर देखा तो वो लड़खड़ाती आवाज में बोला- मैडम आपको प्रिन्सिपल सर बुला रहे हैं।
इतना बोलकर वो मुड़ा और अपने लंड को सहलाते हुए चला गया।
उसके जाते ही मैं भी प्रधानाचार्य के कक्ष में गयी तो वहां पहले से दो अध्यापक बैठे थे.
एक 30 साल के आस पास का नाटे कद का आदमी था।
दूसरे की लम्बाई ठीक ठाक थी।
दोनों ही हरामी लग रहे थे और दोनों की ही नजर मेरी छाती पर थी।
फिर प्रधानाचार्य ने मेरा परिचय उनसे करवाया तो दोनों ने मुझसे हाथ मिलाया।
अब आगे प्रधानाचार्य जी ने मुझे बताया कि कल हमारे स्कूल का ऑडिट है और जो अकाउंटेंट थे उनके घर में किसी की मृत्यु हो गयी है जिसके लिए वो छुट्टी पर हैं। उन्होंने अपने स्कूल की सालाना होने वाली ऑडिट फ़ाइल तयार नहीं की है तो आपको इन दोनों टीचरों के साथ मिल कर आज वो फाइल तैयार करनी है। शायद ये काम खत्म होते होते शाम हो जाएगी।
फिर प्रिन्सिपल सर ने चपरासी के हाथों सारी फाइल हमें सौंप दीं और हमें काम शुरू करने के लिए कहा।
मैं उन दोनों अध्यापकों के साथ अपने केबिन में आई।
एक को मैंने कंप्यूटर का काम करने को बोला और दूसरा मेरी सहायता गणना करने में करने लगा। अब ये काम करते करते मेरा पल्लू बार बार सरक जाता और काफी बार तो मैं उठाती भी नहीं थी।
वो दोनों लगातार काम के साथ साथ मेरे भरे भरे स्तनों को भी देख रहे थे। उनका हाथ कभी मेरी कमर को तो कभी मेरे पेट को छू जाता था।
इसी तरह काम करते हुए हमें शाम हो गयी।
7 बजे का समय हो गया था।
हम थक चुके थे और सबने चाय पीने का सोचा।
फिर वो नाटे कद का टीचर चाय लेने चला गया।
मैं अपने हाथों से अपने कंधे दबाने लगी। मेरी गर्दन और कंधे बैठे बैठे दुखने लगे थे।
दूसरा टीचर बोला- मैडम, मैं आपके कंधे दबा देता हूं। आपको थोड़ा आराम मिलेगा।
वो मेरी कुर्सी के पीछे आकर मेरे कंधे दबाने लगा और इसी बीच फिर एक बार मेरा पल्लू सरक गया।
अबकी बार मैंने जान बूझकर उसको सही नहीं किया।
इससे उस आदमी को मेरी चूचियों के साफ दर्शन होते रहे और उसके हाथ भी अब और ज़्यादा सख्ती से मेरे कंधे से होते हुए मेरी पूरी नंगी पीठ पर दबाने लगे।
अब उसके हाथों का स्पर्श मेरे शरीर मे एक अनजानी उत्तेजना को जगाने लगा और अब अपने आप मेरी आँखें बंद हो गयीं और मैं एकदम निढाल हो गयी।
शायद इस भाव को वो भी जान गया और अब वो मेरे कंधे को थोड़ा आगे तक दबाते हुए मेरी चूचियों के पास अपने हाथ को लाने लगा।
मेरी कोई प्रतिक्रिया न पाकर उसके हाथ मेरे स्तनों के और पास आने लगे।
एक समय ऐसा आ गया कि उसके हाथ मेरे दोनों स्तनों पर आ पहुंचे।
फिर उसने उनको हल्के हल्के से दबाना शुरू कर दिया जिससे मेरी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गयी और मैं हल्की हल्की सिसकारियां भरने लगी।
वो मुझे गर्म कर ही चुका था तो वो मेरे सामने से आ गया और झुक कर मेरी दोनों चूचियों की दरार में अपना मुंह डालकर चूमने लगा।
अब तक मैं भी उसके आगोश में जा चुकी थी। तो मैंने भी उसके बालों को पकड़ कर उसके सिर को अपनी चूचियो में घुसा लिया।
फिर कुछ देर बाद उसने मेरे चूचों से मुंह निकाला और ब्लाउज का हुक खोल कर मेरी चूचियों को आजाद कर दिया।
वो मेरे निप्पल और पूरे बोबे को जोर जोर से मसलने और चूसने लगा।
अब इसके बाद वो खड़ा हुआ और मैंने झट से उसकी पेंट की चेन खोल कर उसका लौड़ा बाहर निकाल लिया।
उसका लंड 6 इंच का था।
उसको मैं अपने पूरे मुंह में भर कर चूसने लगी।
इतनी देर में वो दूसरा वाला आदमी भी आ गया और हम दोनों को इस अवस्था में देख कर वो कुछ न बोला बल्कि वो भी अपनी पैंट की चेन खोलकर अपना लन्ड मेरे मुंह के सामने लाकर खड़ा हो गया।
मैंने भी उसका लन्ड झट से अपने मुंह में ले लिया और चूस चूसकर खड़ा किया तो उसका लन्ड साढ़े सात इंच का हो गया।
अब पहले वाला आदमी मेरे नीचे बैठ गया और मेरी साड़ी उठाकर मेरी चूत चाटने लगा।
फिर कुछ देर बाद वो खड़ा हुआ और मुझे भी खड़ी करके मेरी भट्टी सी जलती चूत में लंड देने लगा।
जैसे ही उसने अपना लन्ड घुसेड़ा तो मेरी चूत को थोड़ी शांति मिली।
तब तक दूसरा वाला भी मेरे पीछे आकर मेरी गांड को चाटकर गीली करने लगा। गांड गीली करने के बाद उसने साढ़े सात इंच का अपना लंड मेरी गांड में पीछे से पेल दिया।
कुछ ही देर में वो दोनों मेरी सैंडविच चुदाई करने लगे और उन दोनों के बीच में पिसकर चुदने में मुझे भी बड़ा आनंद आ रहा था।
फिर उन दोनों ने अपनी जगह बदल ली।
अब बड़े लंड वाला मेरी चूत चोदने लगा और दूसरा मेरी गांड चोदने लगा।
इस तरह उन दोनों ने 30 मिनट तक मेरी चुदाई की।
फिर दोनों ने बारी बारी से अपना अपना माल मेरे मुंह में खाली करके मुझे पिला दिया।
चुदाई करके हम तीनों थक कर बैठ गये।
मैं बोली- मैं थक गयी हूं.
तो वो कहने लगे- अब मैडम आप घर जाओ। थोड़ा ही काम बचा है और हम ये खुद ही कर लेंगे।
मैं उनको केबिन की चाबी देकर घर आ गयी।
घर आते ही के साथ मैं थोड़ी देर के लिए सो गई और मेरी आँख खुली तो मेरा फ़ोन बज रहा था। कुछ देर मैंने अपनी सास से बात की और करीब आठ बजे नंगी ही उठी।
मैं किचन की तरफ जाने लगी तो सामने लगे शीशे में मुझे दिखा कि मेरे मकान मालिक ऊपर खड़े होकर मुझे ताड़ रहे थे।
मैंने भी अपनी गांड मटकाते हुए और इस बात से एकदम अनजान बन कर कि ऊपर से मुझे महेंद्र जी देख रहे हैं, खाना बनाया।
इस दौरान वो मेरे नंगे बदन को ताड़ते ही रहे।
करीब साढ़े नौ बजे खाना खाने के बाद जब मैं बैठी थी तो बाहर मुझे कुछ आहट सुनायी दी।
मैंने झांककर देखा तो महेंद्र जी बाहर टहल रहे थे।
तो मैंने मौका देखा और जल्दी से ब्रा पैंटी पहन कर उनके सामने आ गयी।
मैंने अपने शॉल से खुद को ढका और उनको सॉरी कहा।
मुझे इस हाल में देख उनकी आंखें जैसे फैल गयीं।
हम दोनों बातें करने ही लगे थे कि ऊपर से उनकी बीवी ने आवाज दे दी।
वो मुंह बनाकर वहां से चले गये।
अब मैं भी अंदर आ गयी और दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया जिससे थोड़ी ठंडी हवा आती रहे।
मैं ब्रा-पैंटी उतार कर नंगी होकर सो गई।
जब सुबह मेरी आँखें खुलीं तो मेरी चूचियों पर कुछ लगा हुआ था। जब मैंने देखा तो वो वीर्य था जो कि अब सूख चुका था।
मैं तुरंत समझ गयी कि रात में मेरे मकान मालिक ने मुझे नंगी देख कर मुठ मारी और माल मेरे बूब्स पर गिराकर चले गये।
फिर तैयार होकर मैं अपने स्कूल चली गयी और फिर प्रिंसिपल ऑफिस में गयी तो पीछे से वो दोनों अध्यापक भी आ गए जिन्होंजे कल मुझे चोदा था।
उनमें से एक प्रिंसिपल को फ़ाइल दिखाने लगे और दूसरा मेरे बगल में खड़ा होकर अपना हाथ पीछे करके मेरी गांड को सहलाने लगा।
मैंने भी उसको देखकर स्माइल कर दिया।
उसके कुछ देर बाद प्रिंसिपल ने उन दोनों अध्यापकों को जाने को बोला और मुझे रोक लिया।
वो बोले- ये फाइल आपको ही ऑडिट वाले को दिखानी होगी।
मैंने हां कर दी और फिर अपनी क्लास में चली गयी।
तीसरे पीरियड में मैं जब पढ़ा रही थी तभी एक चपरासी मुझे बुलाने आया।
जब मैं वहां अंदर पहुंची तो वहां चार आदमी बैठे थे और मुझे देखते ही उन सब की आंखें चौड़ी हो गयीं क्योंकि मैंने अपना पल्लू अपने चूचे से काफी नीचे कर लिया था।
जब मैंने उन सब को बताना शुरू किया तो वो सब मेरे स्तन और मेरी कमर को ही निहार रहे थे।
मैं उनको फ़ाइल दिखाने टेबल पर झुकती तो उनकी नज़र फ़ाइल के बजाए मेरे स्तनों की बीच की घाटी पर होती।
सबको मेरा काम बहुत अच्छा लगा। फिर वो संतुष्ट होकर मुझसे हाथ मिलाकर चले गये।
उन सबके जाते ही प्रधानाचार्य मेरे पास आये और मुझे शुक्रिया कहने लगे।
जैसे ही मुझे लगा कि वो मेरे गले लगना चाह रहे हैं तो मैंने खुद आगे बढ़कर उनको गले से लगा लिया।
उन्होंने मेरी पीठ पर हाथ लगा कर हल्का सा सहला दिया।
इतनी देर में उनका सामान भी खड़ा होने लगा था।
वो बोले- आज रात का खाना मेरी तरफ से!
उन्होंने मुझे एक रेस्तरां में चलने के लिए पूछा।
मैंने हामी भर दी।
शाम का टाइम फिक्स करके मैं बाहर आ गयी। उसके बाद मैंने क्लास ली और घर आ गयी।
शाम को मैंने एक बहुत चुस्त फिटिंग का हल्के लाल रंग का गाउन पहना जो काफी बड़े गले का था। उसके नीचे एक नीली और काली मिक्स रंग की बहुत फैंसी ब्रा और काली रंग की पैंटी पहनी।
वो गाउन मेरी जांघों तक ही था बस।
फिर मैं तैयार हो गयी और शाम को 7 बजे उनका कॉल आया कि मैं आपके घर के बाहर ही खड़ा हुआ आपका इंतजार कर रहा हूं।
मैं जल्दी से अपना पर्स लेकर निकली और फिर उनकी गाड़ी में जाकर बैठ गयी।
वहां दोनों साथ में बैठे और खाना ऑर्डर करने के बाद वो मेरे कपड़ों और मेरी तारीफ करने लगे।
उन्होंने मेरी जांघ पर एकदम से हाथ रख दिया जिसका मैंने भी कोई विरोध नहीं किया।
वो मेरी उस नंगी जांघ को हल्के हल्के से सहलाते रहे और हम दोनों ने साथ मिलकर खाना खाया।
अब खाना खाकर बाहर आते ही उन्होंने मुझसे पूछा कि अब क्या इरादा है?
तो मैंने भी उनको साफ बोला- जो आप चाहें!
वो बोले- तो आपके घर चलें या होटल में?
मैं बोली- घर नहीं, मेरे मकान मालिक थोड़े टेढ़े हैं।
फिर हम गाड़ी में बैठे और एक अच्छे होटल में पहुंच गये। हमने जाकर वहां पर रूम ले लिया। जल्दी से सर ने सारी औपचारिकता पूरी कर दी।
मैं देख रही थी कि जब से हम होटल के लिए निकले थे तब से लेकर अब तक एक बार भी मैंने उनके लंड को नीचे बैठा हुआ नहीं देखा था।
आप स्कूल टीचर सेक्स स्टोरी पर अपनी राय देते रहें। मुझे आप लोगों की प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।
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स्कूल टीचर सेक्स स्टोरी का अंतिम भाग: टीचर के रूप में एक रण्डी- 4