कहानी का पहला भाग:
सप्ताह भर बाद दोनों अपने प्रधानाध्यापक से मिलने घर आये, दोनों की जुगलबंदी ही बता रही थी कि अब फिर से चंद्रमुखी स्टेज में आ गये हैं, पहले जो दूर दूर चलते थे अब दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चल रहे थे, शरीर आपस में टकराते चल रहे थे और सबसे ज्यादा दोनों के चेहरे पर तृप्ति का भाव बता रहा था कि दोनों ने मन भर कर चुदायी की है।
दोनों ने बड़ी आत्मीयता से हम लोगों के पाँव छूकर आर्शीवाद लिया. सुंदरी ने तो मेरे पैरों में चिकोटी ही काट ली; शायद उसके धन्यवाद देने का यही तरीका रहा हो।
सुंदरी को भौजायी तुरंत अंदर लेकर चली गयी, शायद भाभी को भी पूरी कहानी जानने की इच्छा सता रही थी।
इधर सुधीर ने बताना शुरु किया- सर न जाने का भाड़ा लगा, न रूम का, न खाने का! सर की चिट्ठी पढ़ते पढ़ते छाबड़ा सर न जाने किन ख्यालों में खो गये थे; आँखों के कोर में आँसू छलक आये थे जिसे हम लोगों से छुपाते हुये पौंछ लिये, हाल चाल पूछा और जब मैंने कहा कि दिनेश सर भी वहीं हैं तो पता नहीं आवेश में बहुत कुछ कहे और कहे ये सब केवल दिनेश को कहना।
मास्टर साहब इस पर उन्मुक्त हँसी हँसे, बोले- पता है, 20-25 गाली दिया होगा।
मैं सुधीर को खींच कर अपने रूम में ले आया और कहा- जल्दी से उगलो अपनी कहानी?
वह सकुचाते हुये आगे बोला- उन्होंने ठहरने का कोई पैसा भी नहीं लिया, कह रहे थे छत पर रूम हम सब दोस्तों ने मिल कर बनवाया है. इसलिये हमारे दोस्त या सगा संबंधी आकर इसी में ठहरते हैं और ऊपर से एक रूपया भी लिया तो दिनेश भार्इ 100 खर्च करवा देगा।
वह मेरे रूम में आकर चहक रहा था, वो पूरी बात बताने लगा:
सर, छाबड़ा सर अपने संग हम दोनों को छत पर बने रूम में लेकर गये, पीछे से सामान भी आ गया। दो रूम का सेट था. बाद में पता चला कि वह सर का रूम है, वे रुकते हैं या उनका कोई गेस्ट ही ठहर सकता है। होटल के एक तरफ माइका माइंस (अभ्रक की खान) की घाटी थी। रात में चाँद की रोशनी अबरक से टकरा कर पूरे रूम को जगमग कर देता तो सूरज की रोशनी में करोड़ो सूरज घाटी में उतर जाते थे। हम लोगों का खाना भी छाबड़ा सर के घर से ही आता था।
होटल रूम में पहुँचने के साथ ही मैंने सुंदरी से कहा कि सुनो दिनेश सर को पहचानती हो न? वही जो सर के साथ अपने घर आये थे।
वह चिढ़ कर बोली- तो क्या मैं नाचूँ?
मैं बोला कि पूरा सुन तो लो फिर जो करना है सो करना. और मैंने एक साँस में पूरी बात कह डाली और साथ ही कह दिया कि यहाँ कोई सेमिनार नहीं है, यह उनका ही आइडिया था और कह रहे थे कि हम लोग इसे हनीमून ट्रिप ही समझ लें, वे इतना ही कर सकते थे।
वह उठी, उसके चेहरे पर सैकड़ों हाव भाव आ जा रहे थे, थोड़ा सा मुस्कुरायी और गांड मटकाते हुये, उससे पहले वह कभी उस तरह से नहीं चलती थी, एकदम से मदहोश कर देने वाली चाल थी, आकर मुझसे लिपट गयी, बोली- यह आप पहले भी तो कह सकते थे?
मैं बोला- सर ने कहा था कि यह सरपराइज उसे होटल में ही देना।
वो बोली- अब तो सचमुच में नाचने का मन कर रहा है।
फिर पूछने लगी- और क्या कहा उन्होंने?
तो मैंने सारी बात विस्तार से बता दी।
वह एक कातिल मुस्कान के साथ आगे बढ़ने लगी, उसके दिमाग में क्या चल रहा था, समझना मुश्किल लग रहा था, सचमुच औरत को समझना पहाड़ हटाने के बराबर है, वह मेरे नजदीक आकर मेरी गर्दन पर हाथ रखते हुये सर को नीचे की और पलक झपकते मेरे होंठ को अपने दोनों होंठों के बीच में लेकर चूसने लगी.
मैं मदहोश होने लगा था, स्वतः र्स्फूत मैं भी उसके होंठों को चूसने लगा। अपनी जिह्वा को उसके मुंह में लेजाकर उसकी जिह्वा से टकरा रही थी। हम दोनों के होंठ चूसायी के कारण लाल लाल हो गये थे था मानो लिपस्टिक ही लगा ली हो।
वहां से ध्यान हटाते हुये मैं उसके कान को छेड़ने लगा, कान के नीचे चुम्मी लेते ही वह चुहिया की तरह चिहुंकी और मेरे शरीर में सट गयी, थोड़ा और छेड़ने पर तो मेरी गर्दन में लटक कर मेरे शरीर में सांप की तरह लिपट गयी थी। उसी अवस्था में वह एक हाथ से मेरे शर्ट के बटन खोलने लगी, शर्ट हटाते हुये मेरे बनियान को भी अलग कर दी मेरी नंगी छाती उसके सामने थी।
सुंदरी ने मेरे निप्पल को चूसना शुरु कर दिया, स्वाभाविक रूप से मेरा लंड खड़ा होने लगा, मेरे हाथों ने बढ़ कर उसके ब्लाउज का बटन खोल दिया, साथ ही साथ ब्रा का हुक भी … और दोनों को एक साथ उतार दिया।
उसकी दोनों छोटी छोटी चूचियाँ कूद कर बाहर आ गयी, मैं उसकी दोनों चूचियों को मसलने लगा तो वि मेरे निप्पल चूसते चूसते ही कहने लगी- हाँ … और जोर से ! तब बड़ा होकर और सेक्सी लगेगा. मेरे राजा मेरा दूद्दू पीयेगा? भूख लगी है बोल दूद्दू पीयेगा?
मैंने उसे उठा कर बगल में एक छोटे स्टूल पर खड़ा कर दिया और उसकी चूचियों को पीने लगा. जितना मैं चूसता, उतने जोर से वह अपनी चूची मेरे मुँह में ठेल रही थी. उसकी आँखें हल्की गुलाबी हो चली थी, वह अपने पूरे शवाब पर थी, पता नहीं क्या क्या बोल रही थी।
उसने नीचे झुक कर मेरी पैन्ट चड्डी एक साथ उतार दी और लंड को हाथ में लेते हुये कहने लगी- हाय मेरा मुन्ना कितना मुरझा गया है. इसे अभी तक ठीक से प्यार भी नहीं कर पायी थी. प्यार क्या अभी तक तो ठीक से देख भी नहीं पायी थी. मेरा प्यारा राजा अभी तक तो ठीक से घूमा भी नहीं है, केवल गुफा में घुस कर दो बूंद गिरा कर भाग आता था. क्यों गुफा में डर लगता था? चलो जंगल की सैर करवा आती हूँ! बोल मेरे मुन्ना, जंगल की सैर करेगा?
मैंने लंड को दो बार ऊपर नीचे किया तो चहक कर बोली- अच्छा, मेरा मुन्ना इशारा से कह रहा है कि वह जंगल की सैर करेगा. चलिये मेरा पेटीकोट उतारिये, मेरा मुन्ना आज खुल कर देखेगा अलौकिक सुंदरता … आज यह खुल कर जन्नत की सैर करेगा.
और पेटीकोट पैंटी को उतारते ही वो मेरा लंड पकड़े ही लेट गयी। उसकी चूत के चारों तरफ झांटें थी, साफ करने की जहमत नहीं उठाती थी क्योंकि घर में इस तरह से चुदने का मौका नहीं मिलता था तो हो सकता है कि यह एक तरह से विद्रोह भी था.
मैंने उसके चूतड़ों के नीचे तकिया लगाया और लंड को उसके चूत की फांकों के बीच में रगड़ने लगा। उत्तेजना के कारण उसकी चूत से सैलाब उमड़ रहा था, पूरी चूत रस से चप चप कर रही थी।
वह फिर से बड़बड़ाने लगी- अच्छा मेरा मुन्ना बेटा जंगल में टहलेगा! इस्स आह … और रगड़ के मुन्ना प्यारे … हाँ इसी तरह से।
भगनासा पर पड़ते ही ‘इस्स इस्स …’ की स्वर लहरी और तेज होती चली गयी। उसकी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि थोड़ी ही देर में लंड अपने आप रास्ता तलाशते हुये चूत के अंदर चला गया वह चिहुँक उठी- अरे इत्ती जल्दी गुफा भी ढूँढ ली?
और अपने दोनों हाथों को मेरे चूतड़ पर रखते हुये मेरे रिदम के साथ मेरे चूतड़ को और जोर से अपने चूत पर धक्का देती और कहते जा रही थी- वाह मेरे मुन्ना, कुछ मिला? और खोजो मिलेगा मिलेगा! हँः हँः आह !और जोर से … जोर लगा कर हँः हँ!
मुझे आश्चर्य हो रहा था कि यह सुंदरी घर में कहाँ थी? बस कुछ ही देर बाद वह अपनी दोनों टाँगों को मेरी कमर के चारों तरफ लपेट ली मेरी गर्दन पर बाँहों का फेरा लगाते हुये अपनी तरफ खींचते हुए मेरे नीचे के होंठ को अपने मुँह में लेते हुये चूसने लगी.
इस पोजिशन में चोदना मुश्किल हो रहा था.
एकाएक मैंने महसूस किया कि उसका चूत का घेरा कस रहा है, ढीला हो रहा है … यह दो तीन बार हुआ और हर बार उसका शरीर कांपा!
धीरे धीरे उसका बंधन ढीला पड़ने लगा, मैंने भी जल्दी जल्दी पेलाई पूरा कर उसकी चूत में ही वीर्य उगल दिया और निढाल उसकी बगल में लेट गया।
थोड़ी सी तन्मयता आने पर उसने बड़ी कातिल अंदाज से मेरे तरफ फ्लाईंग किस भेजी फिर अपने दोनों पैरों एवं हाथों को हवा में उठाते हुये चिल्लाई- थैंक यू दिनेश अंकल … लव यू!
और सैकड़ों हवाई किस आपको भेजी और सच में नंगधड़ंग ही नाचने लगी, बोली- इसकी तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा मौका कभी मिलेगा भी।
उस समय वह एक नन्हीं लड़की लग रही थी जिसे अभी अभी कुछ मिला हो, जिसकी तमन्ना उसे बहुत समय से हो। मेरी बीवी की छोटी छोटी चूचियाँ बहुत ही प्यार से कांप कांप कर उछल रही थी, नदी में उठती तरंग की रिदम की तरह उसके चूचियाँ काँप रही थी, बाल उसके कभी सर के आगे तो कभी पीछे सचमुच बहुत ही प्यार आ रहा था सुंदरी पर उस समय।
सुधीर के मुख से उसकी बीवी की चुदाई कहानी सुन कर मेरा चेहरा लाल हो गया.
सुधीर आगे बोला- सर, यह सुन्दरी का उदगार था … मेरी तरफ से भी थैंक्स सर।
मैंने कहा- चल आगे सुना?
“सच सर, अगर आप यह रास्ता नहीं दिखाते तो सुंदरी का यह सुन्दर रूप तो मैं कभी देख ही नहीं पाता।” सुधीर फिर आगे कहना शुरु किया:
हम लोगों ने अभी कपड़े पहने ही थे कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजे पर छाबड़ा आंटी शायद बहुत देर से खड़ी थी, वे अंदर से आ रही आवाज के कारण रूक गयी थी या शायद आनंद उठा रही थी।
वह आयी और पूछने लगी कि क्या खाना पसंद करते हो? वेज या नान वेज?
हम दोनों एक साथ बोले- नान वेज खाते हैं।
तभी मेरे मुँह से निकल गया- भाभी जी!
वो अपना बड़ी बड़ी आँखें तरेड़ते हुये बोली- मैं भाभी हूँ मास्टर और दिनेश की … तुम्हारी आंटी ही हूँ!
और हँस दी फिर बाथरूम गयी और चली गयी, बाहर निकलते वक्त वे सुन्दरी को अपने साथ ले गयी और बोली- सभी सामान भिजवा देती हूँ, जिदंगी जी ले, गृहस्थी संभालते ही मौका न मिलेगा।
बाहर से नौकर एक पैक में सामान लाकर सुंदरी को दिया और बोला- मेम साहब ने भेजा है।
खोल कर देखा तो उसमें रेजर, नया ब्लेड, वीट क्रीम एक छोटा तौलिया था।
मैं आश्चर्य में था कि उनको कैसे पता चला कि हम लोगों के जंगे मैदान में घास है और वो भी बड़ी बड़ी उग गयी है।
तब सुंदरी बोली- देखिये, बेडशीट पर एक दो घुंघराले बाल पड़े हुये हैं जिनसे वे समझ गयी।
हम दोनों ने बाथरूम में जाकर एक दूसरे के जंगलों में वीट क्रीम लगा कर बालों को साफ किया फिर दूसरी पारी की तैयारी करने लगे।
आंटी ने रात का खाना तथा केसर युक्त दूध थर्मस में डाल कर भिजवा दिया था. उसमें शायद उनका अनुभव मिला था जिसे पीते ही हमारी थकान को उड़न छू … और दूसरी पारी के लिये हमेशा तैयार।
उस रात फिर चुदायी हुयी. पहले चक्र की तरह उत्तेजक नहीं थी पर गहरापन था, एक दूसरे में खो गये थे एक दूसरे को बिना कहे महसूस कर रहे थे, लग रहा था अथाह समुद्र में गोते लगा रहे हों, बस सर एक दूजे में खो गये थे, पूरे नग्न एक दूसरे को पकड़े … कब नींद आयी पता ही नहीं चला।
दूसरे दिन घाटी में चमकते अभ्रक को हम दोनों देख रहे थे, हम दोनों ज्यादातर गाउन लपेटे रहते थे जिससे कि कपड़े खोलने में समय व्यर्थ न हो, वहीं दूर में एक कुत्ता एक कुतिया पर लाइन मार रहा था. फिर स्वभाविक रूप से कुत्ता महाराज कुतिया पर चढ़ कर पेलाई करने लगे, मैंने भी उसी की नकल करते हुये सुन्दरी को पीछे से पकड़ लिया, उसका गाउन उतारते हुये चूचियों को मसलने लगा. मेरी बीवी भी कुतिया का पेलायी देख देख कर कामुक हो चुकी थी, उसकी चूत मस्त गीली हो चुकी थी, उसे थोड़ा और झुका कर मैंने पीछे से लंड को चूत में पेल दिया, लंड मुहाने पर थोड़ा रुका, फिर अपना रास्ता तलाशता हुआ अंदर चला गया।
सुंदरी बोली- पेलिये मत … इसी तरह लंड डाल कर खड़े रहिये।
मैं खड़ा खड़ा उसकी चूचियों को पीछे से ही मसल रहा था चूचियों के निप्पल को खींच रहा था और वह अपनी चूत को सिकोड़ रही थी, ढीला कर रही थी. गजब का मजा आ रहा था. कुछ न करते हुये भी सब कुछ कर रहे थे।
उधर दोनों जानवरों की पेलायी जारी थी जिसे अपलक वह देख रही थी।
मैं पूछ बैठा- क्यों, इससे पहले जानवरों का पेलायी नहीं देखी थी?
वह कहने लगी- मौका कहाँ मिलता था! अगर संयोग से रास्ते में जानवर पेलते दिखते भी तो हुड़दंग मचाने के लिये लड़कों का फौज हमेशा तैयार रहती, हम लोग नजरें नीचे किये भाग जाती। आज देखने दीजिये।
इतने में जानवरों का कार्यक्रम समाप्त हो गया, कुत्ता पीछे पलटा तो उसका लंड कुतिया की चूत में फंस कर रह गया। यह देख सुंदरी हँस पड़ी, बोली- उधर कुत्ता का लंड फंसा हुआ है इधर आपका लंड मेरी बुर में फंसा हुआ है। उसके मुँह से लंड बुर कहना अच्छा लग रहा था वह पूरी तरह से खुल कर जिंदगी जी रही थी।
मैं उससे पूछ बैठा- क्या कुत्ता कुतिया की पेलायी अच्छी लगती है? हम लोग इसी स्टाइल में चुदायी पूरा करते हैं.
तो वह बोली- नहीं, इस तरह नहीं! क्या आपने बकरी बकरा का रति क्रीड़ा देखी है? जब बकरा बकरी का चूत सूंघता है और अपना मुँह बनाता है, फिर उसे चाटता है और फिर बक बक कर उस पर चढ़ता है तो बहुत अच्छा लगता है। मेरी फैंटेसी हमेशा से रही थी कि मेरी शादी होगी तो अपने पति से एक बार उस तरह से चुदने का प्रयत्न करुँगी।
मैंने पूछा- कोशिश करें?
वह बोली- आपको घिन नहीं आयेगी?
मैंने कहा- कोशिश करने में क्या हर्ज है? सर ने भी तो कहा है कि अपनी फैंटेसी पूरा कर लेना, छोड़ना नहीं! तो घिन आयेगी तो छोड़ दूँगा!
वह खिड़की से हट कर बेड पर आ गयी, अपने दोनों पैरों को फैला कर लेट गयी। उसकी चूत आज अपने पूर्ण वैभव पर थी गुलाबी आभा लिये मखमली … उस पर हल्का सा चूतरस उसे और चमकीला कर रहा था. मैंने धीरे से उसकी चूचियों को पीना शुरु किया, वह सिसकारी लेने लगी थी. मैं जीभ को निकाले उसे चाटते हुए नाभि पर आया, नाभि के चारों तरफ जीभ को गोल गोल घुमाने लगा, उसकी सिसकारी भी बढ़ती जा रही थी।
उसके चूतड़ के नीचे तकिया रखा तो चूत और खुल कर मेरे मुँह के सामने आ गई, मेरे लिये यह पहला प्रयास था तो हिचक भी रहा था. पहले मुँह को गोल कर उसकी चूत पर अपनी गर्म गर्म हवा फेंकने लगा, उसके बाद अपनी नाक को उसकी भगनासा के पास ले जाकर उसको सहलाने लगा, चूत से निकलती गंध अच्छी लगने लगी थी, लग रहा था कि बरसात की पहली बूँदें धरती पर गिरी हो और उसकी सोंधी महक सीधे मेरे नाक में घुस गई हो।
हिम्मत करके मैंने जीभ निकाली और पहले उसकी भगनासा को सहलाया, नमकीन का सा स्वाद महसूस हुआ. उसकी दरार को और चौड़ी करते हुये जीभ को नीचे से उपर तक ले गया, वह सुखद अनुभूति से कुहक बैठी. अब जीभ को भी चूत का स्वाद लग गया था, वह धारा प्रवाह ऊपर नीचे, कभी भीतर, कभी बाहर चलने लगी.
इतने में कुछ बाल जैसी चीज मेरे जीभ से टकरायी, मैंने निकाल कर देखा तो सफेद सूत सा कुछ था.
वो बोली- घबरायें नहीं … करीब करीब हर लड़की को वह निकलता है.
उत्तेजजना बढ़ने के साथ ही वह मेरे बाल पकड़ कर अपनी चूत पर जोर से दबा रही थी, उसकी चूत रस और मेरे जीभ से निकल रहे लार के कारण जोर जोर से चट चट की ध्वनि निकाल रही थी. वह बोली- लगता है सैकड़ों चींटियाँ मेरी बुर के अंदर चल रही हैं. अब ऊपर आइये … मेरी चूत रानी आपके लंड राजा से मिलने के लिये बेकरार है. वही खोज खोज कर इन हरामी चींटियों को मारेगा।
इस बार चूत काफी देर से प्रहार को झेल रही थी, पहले केवल लंड अंदर जा कर विश्राम कर रहा था, फिर जीभ का प्रहार … अब फिर से लंड का प्रहार … दोनों के बीच में घात प्रतिघात का खेल शुरु था। वातावरण में गजब की मादकता थी, चट् चट् पच पच की आवाज के साथ सुंदरी का कहना और जोर से हय्या और जोर से हय्या दम लगा कर हय्या चुदायी का आनंद हजार गुणा बढ़ा रहा था।
थोड़ी देर में दोनों योद्धाओं ने अपना अमृत रस एक दूसरे पर उडे़लते हुये लड़ाई समाप्ति की घोषणा कर दी।
दोपहर में हम लोग एक दूसरे से लिपट कर लेटे हुये थे, वह अपने हाथ से मेरे लंड को सहला रही थी और मैं उसकी चूचियों को।
वो कहने लगी- मेरी एक और फैंटेसी है, अगर आप हंसे नहीं तो कहूँगी … प्लीज आप मना मत करना।
मैं कहा- उसे भी पूरा कर लो।
वह उठी, अपने बैग से मधु निकाल कर ले आयी और मेरे लंड पर उड़ेल दिया, फिर अपनी जीभ से मधु को चाटने लगी. मेरा लंड महाराज फूल कर कुप्पा हो गया, नसें दिखने लगी थी.
मैंने कहा- ऐसा करो, तुम अपनी चूत मेरे मुँह के उपर ले आओ, मैं तुम्हारी चूत चूसूँगा, तुम मेरा लंड!
उसने कूद कर मेरे नाक के ऊपर अपनी चूत रख दी और प्रेम से लंड को चूसने लगी. मेरी तो हालत ही खराब हो रही थी, मैं भी धड़ाधड़ उसकी चूत चूसने लगा. उस समय महसूस किया कि जब वो नीचे थी तो मेरी ढेर सारी लार उसकी चूत में समा रही थी और बहुत ही थोड़ा कामरस निकल रहा था. पर जब वह ऊपर थी तो जीभ के प्रहार से बूंद बूंद कामरस टपक टपक कर मेरे मुँह में आ रहा है, हर बूंद का स्वाद लेकर मैं उदरस्थ करता जा रहा था।
उत्तेजना बढ़ने के साथ ही उसका लंड को जोर जोर से चूसना तथा मेरी जीभ का उसके भगनासा तथा फांक में रगड़ना तेज होता चला गया। घर्षण इतना जबरदस्त था कि इस बार दोनों ने एक दूसरे के मुँह में अपना रस उड़ेल दिया।
वाउ … क्या नमकीन है! ओह ओ … इसलिये लड़कियों को नमकीन चीजें अच्छी लगती हैं.
सुंदरी वीर्य पीने के बाद बोली- और मेरा रस कैसा है?
मैं बोला- कल्पना करो कि राख तुम्हारे मुँह में चली गयी हो, वैसा ही टेस्ट है. ऐसा करते हैं कि तुम मेरे होंठ चूस कर देखो, मैं तुम्हारे … दोनों को अपना अपना टेस्ट मालूम हो जाएगा।
इसी तरह से कब एक सप्ताह बीत गया, पता ही नहीं चला, आते समय आंटी ने विदायी भी दी और बोली- जल्दी ही खुशखबरी सुनाना बच्चो।
इस तरह से सुध्हिर ने अपनी बीवी की चुदाई की मस्त कहानी समाप्त की.
इतने में कूदते कूदते सुंदरी भी पहुँच गयी, मुझसे लिपटते हुये किस करने लगी, बोली- पहला किस एक सुंदर से रोमांटिक ट्रिप के लिये और ये दूसरा पापाजी से कहकर हम लोगों के लिये अलग रूम की व्यवस्था करवाने के लिये!
सुधीर मेरे बगल में खड़ा पूछ रहा था- सर मेरी भी एक फैंटेसी रह गयी है, आप अनुमति दें तो मैं भी उसे पूरा कर लूँ?
मैंने पूछा- अब क्या रह गया?
तो वो बोला- सर, मैं भी आपको हग करना चाहता हूँ!
मैंने उन दोनों को अपने कलेजे से सटा लिया- आशीर्वाद है तुम दोनों को कि खूब फूलो खूब फलो! जब मन भर जाये तो गुड न्यूज सुनाओ! आखिर हम भी तो पोते पोतियों के साथ खेलें।
तो मेरे प्रिय पाठको, आपको कैसी लगी यह रचना? जरूर बताइयेगा।
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