यह हिंदी सेक्सी स्टोरी मेरे दोस्त की भाभी की चुदाई की है! इंसान कई बार लाख यत्न करके कुछ हासिल करना चाहता है लेकिन उसको निर्धारित लक्ष्य मिलता नहीं… लेकिन कई बार अचानक वह खुशी हासिल हो जाती है जिसके बारे में पहले न तो कभी प्रयास किया होता और न कभी सोचा ही होता है।
मेरे साथ ही ऐसा ही कुछ हुआ जो आपके साथ इस कहानी में सांझा करने जा रहा हूँ।
मेरा नाम कमल है, मेरी उम्र 45 वर्ष है, पंजाब के जालंधर शहर से हूँ, काम सिलसिले में अकसर चंडीगढ़ जाता रहता हूँ।
गत वर्ष दिसंबर में अचानक शाम को चंडीगढ़ जाने का प्रोग्राम बन गया।
आम तौर पर जब रात रुकना पड़े तो मैं वहाँ अपने एक पुराने दोस्त के यहाँ रुक जाता हूँ। शाम पांच बजे के करीब मैंने गाड़ी निकाली तो अचानक याद आया कि कुछ दिन पहले मेरे पड़ोसी दोस्त रमन ने कहा था कि जब चंडीगढ़ जाऊँ तो बताकर जाऊँ क्योंकि उसने अपने भाई भाभी के यहाँ कुछ सामान भेजना था।
सोचा कि जा तो रहा हूँ सामान भी ले जाता हूँ… तुरंत रमन को फोन लगाया मैंने तो उसने कहा कि उसने अपने भाई भाभी को जयपुरी रजाई भेजनी है, अगर मैं गाड़ी में ले जाऊँ तो आसानी से उन तक पहुंच सकती है।
गाड़ी में मैं अकेला ही जा रहा था तो मैंने पिछली सीट पर रजाई रखवा ली और रमन के भाई अमन का पता ले लिया, फोन नंबर तो पहले से मेरे पास था। अमन भी मेरा परिचित था लेकिन काफी सालों से जालंधर छोड़ चंडीगढ़ सैटल हो चुका था और कभी कभार जालंधर आता था।
अमन जिस सेक्टर में रहता था, मेरा दोस्त राजीव भी वहाँ से ज्यादा दूर नहीं रहता था तो मैंने कोई दिक्कत महसूस नहीं की। चलने से पहले मैंने राजीव को फोन जरूर कर दिया कि मैं आज आ रहा हूँ और उसके पास ही रुकूँगा।
करीब साढ़े पांच बजे मैं जालंधर से चंडीगढ़ को रवाना हो गया। आठ बजे चंडीगढ़ पहुंचकर मैंने सोचा पहले रजाई वाला काम निपटा लूं।
अमन को फोन किए बिना ही उसके घर तक मैं आसानी से पहुंच गया। गेट के पास लगी डोर बैल बजाई तो अमन की बीवी साक्षी ने अंदर का दरवाजा खोला और गेट पर पहुंची।
काफी देर बाद देखा था मैंने साक्षी भाभी को… पहले से ज्यादा आकर्षक लग रही थी वह!
साक्षी मुस्कुराते हुए बोली- आइये भाई साहिब, नमस्ते!
उसे मेरे आने के बारे पहले से ही फोन पर रमन ने सूचित कर दिया लगता था।
मैंने भी मुस्कुराते हुए नमस्ते का जवाब देते हुए कहा- जी, रजाई लाया हूँ आपके लिए!
और मैंने गाड़ी का पिछला दरवाजा खोलकर रजाई उठा ली।
करीब 38 वर्षीय साक्षी ने उस समय टाईट जीन्स और काले रंग की जैकेट पहन रखी थी। चुची का उभार साफ नजर आ रहा था। मैंने मन ही मन अंदाजा लगाया कि 36 नंबर होगा।
गेट के अंदर घर का दरवाजा खोलने जब साक्षी की पीठ मेरी तरफ हुई तो चूतड़ों का उभार देखकर लंड थोड़ा हरकत में आ गया। खुले बालों में उंगलियाँ फेरते हुए साक्षी ने दरवाजा खोला और ड्राइंग रूम में लगे बैड की तरफ इशारा करके बोली- आइये न, यहाँ रख दें इसको!
साथ ही बोली- बैठिये भाई साहिब!
मैं रजाई को ड्राइंग रूम में लगे बैड पर रखकर सोफे पर बैठ गया, साथ ही मैंने पूछा- भाभी जी, अमन जी कहाँ हैं?
‘वे तो अभी फैक्ट्री में होंगे, देरी से ही आते हैं।’
‘ओह, और बच्चे?’
‘गुडिय़ा तो अपनी नानी के पास गई है और सचिन अपने दोस्तों के साथ शिमले गया बर्फ का नजारा लेने… कल आयेंगे दोनों!’
यह कहकर साक्षी किचन की तरफ चली गई। मेरे खुराफाती दिमाग में कुछ विचार आने लगे कि यदि साक्षी की चुदाई का मौका मिल जाये तो यह टूर सफल हो जाये।
इतने में साक्षी पानी लेकर आई और सामने सोफे पर बैठ गई। मैंने नोट किया कि जब मैं उनके घर पहुंचा था तो साक्षी की जैकेट की जिप आगे से ऊपर तक बंद थी और अब जिप कुछ खुली थी। जैकेट के नीचे उसने हल्के नीले रंग का टाइट स्वेटर पहना हुआ था।
मेरे घर की खैरियत पूछते हुए साक्षी बोली- चाय लेंगे या काफी?
‘नहीं भाभी जी, बस चलता हूँ।’
‘अरे ऐसे कैसे, इतनी ठंड है, थोड़ी चाय तो लीजिये।’
बस इतना कहते हुए साक्षी खुद ही उठकर रसोई की तरफ चल दी।
इस बीच मैं टेबल पर पड़े अखबार के पन्ने पलटता रहा। मेरा भी कहाँ दिल था कि जल्दी चला जाऊँ… मन में उथल पुथल होती रही।
इतने में साक्षी चाय की ट्रे में दो कप चाय और कुछ बिस्कुट लेकर आई, मुझे चाय का कप पकड़ाते हुए बोली- आप आते रहते हैं चंडीगढ़?
‘महीने में एक चक्कर तो लग जाता है।’
‘अकेले आते हैं? अनु भाभी को भी साथ ले आया करो। उन्हें भी घुमा फिरा दिया करो!’
‘भाभी जी, खुद के काम में ही समय निकल जाता है, या तो स्पेशल आया जाये किसी दिन!’
‘हाँ यह तो है… किसी छुट्टी वाले दिन परिवार सहित आईये आप, मुझे भी अनु दीदी से मिले काफी देर हो गई है।’
‘जरूर भाभी जी, और बच्चों को भी तो आपस में मिलना चाहिए, वे भी तो एक दूसरे को जान पहचान जायें।’
इसके साथ ही बच्चों की, परिवार की बातें चलती रहीं और चाय खत्म हो गई।
‘अच्छा भाभी जी, चलता हूँ, अमन को मेरी नमस्ते कहना… मुलाकात तो हो नहीं सकी।’
‘अरे, उनके आने का कोई टाइम थोड़ा है। देरी से ही आते हैं। मैं फोन पर बात करवाती हूँ आपकी उनसे!’
इतना कहकर साक्षी ने फोन लगाया- सुनो जालंधर से कमल भाई साहिब आये हैं।
‘अरे हाँ, मेरी बात करवा दो, मुझे तो आज फिर वापिस आते 11 बज जाने हैं। इन्हें चाय पिलाकर भेजना!’ फोन के स्पीकर की आवाज काफी ऊँची थी जिससे मुझे अमन की आवाज सुनाई दे गई।
इतने में साक्षी ने फोन मुझे थमा दिया।
अमन ने बात तो अच्छे ढंग से की लेकिन लग रहा था कि काम में काफी बिजी है इसलिए जल्दी ही बात खत्म करके फोन काट दिया।
मुझे इतना तो पता चल ही गया कि वह 11 बजे से पहले आने वाला नहीं, लिहाजा दिमाग के घोड़े दौड़ाने शुरु कर दिये कि कैसे पता चले कि साक्षी की चुदाई संभव है या नहीं।
और कोई बात करने को तो थी नहीं, मैंने साक्षी से कहा- अच्छा भाभी जी चलता हूँ फिर!
‘आप खाना खाकर जाना भाई साहिब!’
‘नहीं भाभी जी, बस थैंक्स… अमन होता तो एक साथ डिनर करते लेकिन अब तो वह देरी से आयेगा न!’
‘आप कहाँ रुकते हो चंडीगढ़? ‘साक्षी ने सवाल किया।
‘मेरा दोस्त है पास वाले सेक्टर में ही… उसके यहाँ ही रुकता हूँ जब भी आता हूँ। वो भी घर आने वाला होगा।’ इतना कह कर मैं खड़ा हो गया और अपने इस जवाब का प्रतिक्रम देखना चाहता था जिससे आभास हो जाये कि साक्षी मेरे में कितनी रुचि ले रही है।
‘अरे पास वाले सेक्टर ही तो जाना है आपने, इतनी जल्दी क्या, बैठिये न थोड़ी देर।’
साक्षी का जवाब सुनकर लगा कि आग उधर भी सुलग चुकी है बस भडक़ाने की जरूरत है।
‘ओके, थोड़ी देर बैठता हूँ।’ इतना कहकर मैं दोबारा सोफे पर बैठ गया।
‘आप इस कोठी में काफी देर से रह रहे हैं?’ मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा।
‘यहाँ आये तो हमें एक साल हो गया। पहले वाली किराये पर थी, पिछले साल ही खरीदा हमने इसको!’ साक्षी बोली।
‘2 बैड रूम सैट वाली है न?’ मैंने पूछा।
‘तीन बैड रूम हैं। एक बैड रूम ऊपर है। आईये मैं दिखाती हूँ आपको।’
यह कहते हुए साक्षी उठी और मैं उसके पीछे चल पड़ा। पास के कमरे की तरफ इशारा करके बोली- यह कमरा बच्चों के पास है।’
कमरे में कपड़े और किताबें बिखरी पड़ी थीं।
इसके बाद वह मुझे दूसरे वाले बैडरूम में ले गई जो उनका अपना था। साक्षी ने लाइट आन की ही थी कि मेरी नजर सीधे बैड पर पड़ी। बैड पर एक गुलाबी रंग का सलवार सूट और पास ही ब्रा पेंटी का गुलाबी रंग का एक नया सैट पड़ा था। ब्रा पेंटी तो बिल्कुल खोल कर रखे हुए थे, दोनों पर टैग भी लगा था जिससे पता चलता था कि बिल्कुल नये हैं।
मैंने जरा सा इन सब की तरफ देखने के बाद साक्षी की आँखों में झांक कर देखा तो हल्की सी मुस्कुराहट के साथ आँखें झुकाते हुए बोली- कल एक पार्टी में जाना है, बस ड्रैस फाइनल करके रखी थी।
‘बहुत खूब, सब कुछ गुलाबी गुलाबी!’ मैंने हिम्मत करके कह ही दिया।
इतना सुनते ही साक्षी एकदम से लाइट आफ करके बाहर की तरफ हो ली और मैं भी पीछे!
वह दोबारा ड्राइंग रूम में सोफे पर पहले वाली सीट पर बैठ गई और मैं भी सामने वाली सीट पर!
सोचने लगा कि अब क्या बात करूं?
इतने में साक्षी बोली- आप चाय लेंगे एक कप और? या काफी बनाऊँ?
मैं समझ नहीं पाया कि वह मुझे यहाँ रुका देखना चाहती है या चाहती है कि मैं चला जाऊँ।
‘नहीं बस, थैंक्स!’ इतना कहकर मैंने पूछा- कल किसी शादी में जा रहे हैं आप?
‘मेरी मौसी के बेटे के साले की शादी है। कल रात का फंक्शन चंडीगढ़ ही है।’
‘जो पिंक सूट आपने पहनना है, वह खूब जंचेगा।’ मैंने कहा।
‘सोच रही हूँ सूट पहनूं या साड़ी… समझ नहीं आ रहा!’
‘वैसे मैं सजेस्ट करूं, अगर आप बुरा न मानें तो?’ मैंने साक्षी की आँखों में आँखें डालते हुए पूछा।
‘जी बताईये ना… अमन के पास तो वक्त ही नहीं मेरे लिए! आप सजेस्ट करें।’ साक्षी ने जवाब दिया।
‘आप साड़ी ही पहनें। खूब जंचेगी आपके ऊपर, आपके फिगर के अनुसार।’ मैंने बोल दिया।
थोड़ा सा शरमाते हुए साक्षी बोली- ऐसा क्या मेरे फिगर में भाई साहब?
साक्षी का मुझे भाई साहिब कह कर संबोधन करना मुझे अच्छा तो नहीं लगा लेकिन मैंने जवाब दिया- फिगर परफेक्ट हो तो साड़ी खूब जंचती है।
‘फिर ठीक है, मैं साड़ी ही पहनूंगी।’
‘लेकिन अब यह डिसाइड कैसे करूं कि कौन से कलर की पहनूं?’
‘मेरे ख्याल से आप गुलाबी ही पहनना।’
‘वो क्यों भला?’
‘वो… पूरी मैचिंग होगी न, सब कुछ पिंक पिंक!’
‘धत्त, कैसी बातें करते हैं आप!’
‘अच्छा यह बताइये पिंक साड़ी है भी आपके पास?’ मैंने थोड़ी बात बदलते हुए कहा।
‘जी बिल्कुल, सभी रंगों की साडियाँ हैं मेरे पास… दिखाऊँ क्या?’
‘जरूर!’
मैं समझ नहीं पा रहा था कि साक्षी के दिल में क्या है? या तो वह मेरे साथ टाइम पास कर रही है या मेरी पहल का इंतजार कर रही है।
इतने में वह उठकर बैडरूम गई और आवाज लगाई- सुनिये, यहीं आकर देख लीजिये न!
मैं फौरन बैड रूम जा धमका। बैड पर सूट और ब्रा पेंटी वैसे ही पड़े थे और साक्षी ने उठाने की जहमत नहीं की थी। मेरी हिम्मत और बढ़ गई, सोचा अब ज्यादा देरी नहीं करनी चाहिए।
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इतने में साक्षी ने अलमारी खोल दी।
काफी साड़ियाँ थी उसमें… एक एक करके वह उन्हें बैड पर रखने लगी।
ब्रा पेंटी वैसे ही पड़े थे।
मैंने बैड पर पड़ी एक साड़ी देखने के बहाने ब्रा पेंटी को उठाकर थोड़ा एक तरफ रख दिया, तिरछी नजर से साक्षी की तरफ देखा तो वह बस मुस्करा दी।
‘यह ठीक रहेगी?’ उसने एक बढिय़ा से गुलाबी रंग की सिल्क की साड़ी निकाल के दिखाते हुए पूछा।
‘परफेक्ट, वैसे तो हर रंग जंचेगा आप पर लेकिन यह सबसे अच्छी रहेगी।’
‘ओके.. डन… यही पहनूंगी! थैंक्स!’
‘अरे थैंक्स किस बात का भाभी जी? और हाँ अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ?’
‘कहिये।’ अब साक्षी की बातों में से भाई साहब शब्द गायब था।
‘आप यह गुलाबी वाली साड़ी पहन कर दिखायें, फिर बताऊँगा कि कहीं कोई कमी पेशी तो नहीं!’
एक मिनट तो साक्षी कुछ बोली नहीं, फिर कहने लगी- चलो ठीक है, आप ड्राइंग रूम में बैठें। मैं पहन कर आती हूँ।
मेरे मन में लड्डू फूटने लगे, सोफे पर बैठकर साक्षी का इंतजार करने लगा।
साक्षी करीब 15 मिनट बाद आई। ये 15 मिनट 15 घंटे से भी ज्यादा लगे।
जैसे ही साक्षी सामने आई, मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, ड्राइंग रूम में इत्र की मादक महक फैल गई। उम्म्ह… अहह… हय… याह… गुलाबी साड़ी और खुले बालों में एक अप्सरा मेरे सामने खड़ी थी… गले में हार, तने हुए स्तन, गहरे गले वाले ब्लाऊज में स्तनों का दिखता कट और सेक्सी नाभि… बस देखता ही रह गया… कुछ बोला ही नहीं जा रहा था मुझसे… मेरा दिल तेजी से धडक़ने लगा।
‘अरे क्या हुआ? बोलिये ठीक लग रही हूँ?’
मैं उठा और साक्षी के सामने खड़ा हो गया।
वो फिर बोली- बताइये न?
मैं अपलक साक्षी को निहारने लगा, बिना कुछ बोले… कदम खुद ब खुद उसकी तरफ बढ़े… पता नहीं कहाँ से हिम्मत आ गई, आँखों में आँखें डालकर मैंने धीरे से कहा- हुस्न की देवी लग रही हो आप!
साक्षी ने आँखें झुका लीं।
मै सुधबुध खो चुका था, मैं थोड़ा और करीब पहुंच गया।
अब उसने मेरी आँखों में आँखें डाल दीं लेकिन कुछ नहीं बोली।
बिना पलकें झपके आँखों में आँखें डाले हम एक दूसरे के सामने खड़े थे, दोनों की सांसें तेज… साक्षी की तेज सांसें, उसके कसे हुए ऊपर नीचे होते स्तन… दो मिनट ऐसे ही रहे हम!
मैंने अपना हाथ साक्षी की तरफ बढ़ाया लेकिन करीब एक मिनट तक हम दोनों जैसे पत्थर की मूरत बन गए थे।
साक्षी ने मेरा हाथ थाम लिया और जोर से लिपट गई मेरे साथ! उसको आगोश में लेते ही लबों से लब मिल गए।
तेज गर्म सांसें… एक दूसरे के लब हम ऐसे चूस रहे थे जैसे जन्मों से प्यासे हों।
अचानक साक्षी ने मेरा हाथ पकड़ा और बैडरूम की तरफ हो ली।
दोनों खामोश!
बैड रूम में पहुंच कर एक बार फिर से लिपट गए एक दूसरे के साथ हम… एक दूसरे को कस के आलिंगन…
न साक्षी कुछ बोल रही थी न ही मेरी जुबां से कोई शब्द निकल रहा था।
आखिर मैंने खामोशी तोड़ी- साक्षी, यह अचानक क्या हो गया यह सब?
बस इतना ही बोली- कमल, मुझ में समा जाओ।
मैंने उसकी साड़ी को धीरे धीरे से उतारना शुरु किया, साक्षी के मुंह से निकलती सिसकारियाँ मेरी काम वासना को चरम पर ले जा रही थीं।
अब हम दोनों निर्वस्त्र थे।
कुछ भी कहने की जरूरत नहीं पड़ी एक दूसरे को!
साक्षी की साफ सुथरी चूत को चाटते हुए उसकी भिंची हुई हाथों की मुट्ठियाँ, चूतड़ उठाकर ऊपर की ओर दिये गए झटके, अधखुली आँखें..
करीब दो घंटे दो जिस्म एक जान बने रहे। वही सब हुआ हमारे बीच जो आप अन्तर्वासना की हिंदी सेक्सी स्टोरी में पढ़ते हैं.
घड़ी पर वक्त देखा तो थोड़ा होश आया और हम दोनों वापिस पुरानी दुनिया में पहुंचे।
साढ़े दस बज चुके थे… अमन कुछ देर बाद आने वाला था।
फोन उठाया तो देखा राजीव 13 मिस्ड काल थीं।
साक्षी और मैंने फोन नंबर एक्सचेंज किए और मैं उस अप्सरा के एक लंबा चुम्बन व आलिंगन के साथ विदा हो गया।
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