एक बार फिर में लव आप सभी प्यारे पाठकों का स्वागत करता हूँ दूध वाला राजकुमार के अगले भाग में। इसके अलावा इस कहानी को लेकर आपका जो प्यार मिल रहा है उसके लिए आपका और अन्तरवासना का धन्यवाद।
कहानी के पिछले भाग
गे सेक्स स्टोरी: दूध वाला राजकुमार-2
में आपने पढ़ा कि दूध वाले सेक्सी चोदू राजकुमार सर्वेश के लन्ड और जिस्म का आनन्द लेने में मैं सफल हो चुका था लेकिन लालची दिल अब सर्वेश के बड़े भाई रत्नेश राजपूत के कसरती जिस्म और मज़बूत लन्ड का प्यासा हो गया था और इसी उधेड़बुन में लगा था कि कैसे मेरी प्यास बुझ सके।
बीते दिन हुए रत्नेश भैया के जिस्म के दीदार ने मानो शेर के मुँह में खून लगा दिया था और जैसे शेर यदि खून का स्वाद चख ले तो वह खाकर ही मानता है कुछ वैसा ही आज मेरे साथ हो रहा था, मेरे दिमाग पर रत्नेश भैया का लन्ड ही छाया हुआ था।
कल शाम की थकान के बाद शाम को जल्दी नींद आ गयी थी और अब सुबह जल्दी ही मेरी नींद खुल गयी और कड़ाके की ठंड में लन्ड फिर खड़ा हो गया और रत्नेश भैया के राजपूताना जिस्म और मस्त लन्ड की भूख मुझे फिर से सताने लगी, मुझे रह रह कर आंखों के सामने बस उनकी 4 इंच उभरी सख्त छाती और उनका चोदू अंदाज़ दिखाई दे रहा था।
सुबह के 7 बजे और सर्वेश दूध लेकर आया, भाभी ने दूध लिया और मैं भी उसके साथ सड़क तक घूमने निकल गया। सर्वेश ने बताया कि वह आज शाम को कुछ काम से गाँव जा रहा है और कल लौटेगा।
यह जानकर मैं बिल्कुल खुश नहीं था, समझ नहीं आ रहा था कि आज का दिन कैसे कटेगा और क्या होगा आगे?
दिन गुजरा, शाम हुई मैं रत्नेश भैया की डेयरी पर पहुँचा, मुझे देखकर रत्नेश भैया बोले- आज तो तेरा दोस्त नहीं है यार! गांव गया है।
मैंने कहा- हाँ भैया, पता है… अकेला बोर हो रहा था तो घूमता हुआ यहाँ चला आया!
“अच्छा किया तूने जो आ गया, मैं भी सुबह से यहीं बैठा बोर हो रहा हूँ, सर्वेश नहीं है तो कही दुकान से बाहर जा ही नहीं पाया.” दूध की थैली बांधते हुए रत्नेश भैया ने कहा और काउंटर का गेट मुझे अंदर आने के लिए खोल दिया।
रत्नेश भैया ने गहरे लाल रंग की शर्ट और हल्की नीली जीन्स पहन रखी थी, शर्ट की आस्तीन आधी चढ़ी हुई थी जिससे उनकी मोटी मज़बूत गोरी कलाइयाँ जिन पर उभरी हुई नसें और उन पर हल्के बाल और अंत में एक भारी भरकम पीतल का कड़ा मानो दुनिया के सबसे सेक्सी जवान मर्द होने का एहसास करवा रहे थे।
वास्तव में आज तक इतने सेक्सी हाथ मुझे दिखाई नहीं दिए, जबकि अब इस बात को लगभग पांच साल हो चुके हैं।
हम लोग बातचीत करते हुए हंसी मजाक कर रहे थे, तभी एक स्कूटी डेयरी के सामने आकर रुकी और एक 21-22 साल की लड़की काउंटर पर 25 रुपये रखते हुए बोली- एक लीटर दूध देना!
और मुझे देखते हुए हल्के से मुस्कुराई।
उस समय 25 रुपये का एक लीटर दूध आ जाता था।
रत्नेश भैया ने उसके वी शेप गले वाले कुर्ते में थोड़े से दिखाई देते मम्मों दो देखने की नाकामियाब कोशिश की और पीछे रखे दूध के डीप फ्रीजर से दूध निकालकर पॉलीथिन में भरने लगे। वास्तव में वह लड़की देखने लायक थी 32-28-32 का फिगर होगा उसका, अंडाकार गोरा चहरा जिस पर छोटे छोटे होंठ।
रत्नेश भैया के पीछे मुड़ जाने पर वह लड़की एकटक रत्नेश भैया को निहार रही थी, आखिर रत्नेश भैया थे ही इतने सेक्सी… मैं उस लड़की की सब हरकत देख रहा था। जैसे ही उसे ध्यान आया कि मैं उसे देख रहा हूँ उसने तुरंत अपनी नज़रें उन पर से हटा ली।
रत्नेश भैया ने जल्दी ही एक लीटर दूध उसके हाथों में थमा दिया और वह वहाँ से चली गयी। उसके थोड़े आगे चले जाने पर रत्नेश भैया ने अपने दांतों को आपस में भींचते हुए और अपने लन्ड को खुजाते हुए बड़े ही सेक्सी टोन में कहा- हाई जान! दूध के बदले दूध तो देती जाती!
इस घटना के बाद मेरे सामने रत्नेश भैया का एक नया रूप उजागर हुआ और उनके लन्ड खुजाने और कामुक अंदाज़ को में देखता ही रह गया। उन्होंने मेरी ओर देखा और पूछा- तेरी तरफ बड़ा मुस्कुरा रही थी… लन्ड लेगी क्या तेरा?
मैंने हँसते हुए कहा- अरे भैया, यह तो हमारे ही अपार्टमेंट में रहती है, थोड़ी बहुत बात हो जाती है बस, इसीलिए शायद मुस्कुरा रही थी।
“वाह भाई! गजब लौंडिया रहती है यार तेरे अपार्टमेंट में तो। देगी क्या? पूछना यार भाई!” अपनी आरामदायक कुर्सी पर आराम की मुद्रा में बैठते हुए रत्नेश भैया ने कहा।
उन्हें नहीं पता था कि वह लड़की भी उन्हें ताड़ रही थी।
आज सर्वेश के ना होने पर रत्नेश भैया बिल्कुल अलग ही तरह की बातें कर रहे थे। उनकी सेक्सी बातें सुनकर और आज का उनका रंगीन चोदू मिजाज़ देखकर दिल कर रहा था कि महाराजा रत्नेश की खिदमत में अभी इसी वक्त चुदाई का मेला लगा दूँ; खुद भी उनके लन्ड का आनन्द लूं और रास्ते की सभी आती जाती लड़कियों को बंदी बनाकर किसी क्रूर बिगड़ैल शहज़ादे रत्नेश की रखैल बनाकर चुदाई करवाऊँ और रत्नेश भैया के फड़फड़ाते कड़क लन्ड की प्यास बुझा दूँ।
यही सब सोच में डूबा हुआ मैं मानो अन्तरवासना के समंदर में और मेरी नज़रें उनके मज़बूत कलाइयों पर टिकी हुई थी जिन्हें में चाटना चाहता था।
मैंने बात बनाते हुए कहा- भैया, हाथ का कड़ा मस्त है यार आपका! दिखाना ज़रा?
“अरे भाई! यह ले देख ले! अच्छा लग रहा है तो भले ही ले ले कड़ा लेकिन तेरी बिल्डिंग वाली की दिलवा दे यार!” कहते हुए रत्नेश भैया ने अपना हाथ मेरे हाथ में दे दिया।
उनके भारी मज़बूत हाथ को मैंने महसूस किया और उसकी उभरती नसों को सहलाया जिसका एहसास उन्हें नहीं हो पाया क्योंकि वो उस लड़की की बातों में लगे हुए थे। अब मुझमे आत्मविश्वास आ गया था और मैंने ठान लिया कि महाराजा रत्नेश का लन्ड तो मैं लेकर रहूंगा।
शाम के 7:30 बज चुके थे। भाभी ने खाना खाने के लिए फोन किया और मैं वहाँ से घर आ गया। घर आने से पहले मैंने रत्नेश भैया को विश्वास दिलाया कि मैं उन्हें उस लड़की की चिकनी चूत जरूर दिलवाऊंगा। यह बात सुनकर उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मैं लम्बी सांस लेते हुए उनके जिस्म की खुशबू को पी गया और उनकी उभरी छाती पर एक छोटी सी पप्पी लगा दी।
घर आकर बस लन्ड की भूख ही सताए जा रही थी इसीलिए खाना नहीं खा पा रहा था, जैसे तैसे थोड़ा खाना खाया और रत्नेश भैया को दिमाग से निकालने की नाकाम कोशिश करने लगा। थोड़ी देर बातचीत की भैया भाभी से, बच्चों के साथ खेला, टीवी देखी लेकिन दिल दिमाग सब कुछ बस रत्नेश भैया के लन्ड में ही उलझ गए थे।
लन्ड को भूल जाने की सभी ज़द्दोज़हद बेकार साबित हुई और रात के लगभग साढ़े नौ बजे मैं घर से रत्नेश भैया की दूध डेयरी की ओर निकल पड़ा। आगे क्या होने वाला है इसके बारे में मुझे कुछ पता नहीं था लेकिन अनायास ही मेरे कदम उस जवान के मज़बूत लौड़े की महान चुदाई के लिए आगे बढ़ रहे थे।
ठंडी हवा चल रही थी और दूध डेयरी वाला इलाका थोड़ा सुनसान था क्योंकि वहाँ नए प्लाट और नई बिल्डिंग बन रही थी और कड़ाके की ठंड ने लोगों को रज़ाई में दुबक जाने पर मजबूर कर दिया था। इसलिए उस सुनसान सड़क पर में अकेला चलता जा रहा था।
डेयरी के पास पहुंचकर चाल थोड़ी धीरे हुई और मैं आहिस्ता आहिस्ता डेयरी के सामने से गुज़र गया और थोड़ा आगे जाकर रुक गया क्योंकि में अब क्या करने वाला था मुझे खुद भी पता नहीं था।
डेयरी के आसपास इक्का दुक्का दुकानें थी जो अब बंद हो चुकी थी। सड़क सुनसान था और दुकान के सामने की तरफ पड़े मैदान में अंधेरा था जहाँ से आते ठंडी हवा के झोंके मानो कम्पकपा देते थे।
काफी दूरी पर एक स्ट्रीट लाइट हल्की रोशनी कर रही थी और दूध डेयरी में भी अब एक छोटा सा बल्ब हल्की रोशनी दे रहा था। मैंने हिम्मत की और मैं आहिस्ता से डेयरी के थोड़ी नज़दीक गया और दुकान के शटर के बिल्कुल नज़दीक दीवार से पीठ लगाकर चुपचाप खड़ा हो गया, जैसे पुलिस वाले फिल्मों में बंदूक लेकर दीवार से पीठ लगाकर खड़े हो जाते हैं।
मेरे दाएं वाली दुकान बंद थी और बायें में डेयरी के काउंटर के अंदर कुर्सी पर रत्नेश भैया आराम से कुर्सी पर बैठे हुए फोन पर किसी से बात कर रहे थे। जैसा कि दूध डेयरी सामान्यतः 10 बजे के बाद ही बंद होती है इसलिये रत्नेश भैया बैठे हुए थे।
उनकी आवाज़ मुझे साफ सुनाई दे रही थी जबकि फोन के दूसरी तरफ की आवाज़ सुनने में परेशानी हो रही थी। रत्नेश भैया उनकी पत्नी से बात कर रहे थे और दोनों ही सेक्स के लिए काफी उत्तेजित हो चुके थे।
दोनों ही गंदी गन्दी बातचीत कर रहे थे और रत्नेश भैया अपने रॉड जैसे कड़क हो चुके लन्ड को जीन्स के ऊपर से ही मसल रहे थे।
उनकी पत्नी बोली- 15 दिन हो गए जी! इस बार तो आप रविवार की चुदाई के लिए भी नहीं आये, चूत में हलचल मच रही है आजकल… अपना अजगर लेकर जल्दी आओ जानू… तड़प रही हूं मैं! बोलते हुए मानो वह अपनी चूत में उंगली करने लगी।
रत्नेश भैया बोले- हाई जानू… लन्ड तो तड़प रहा है तुम्हारे लिए… सामने होती तो अभी गले तक घुसा देता, तृप्त कर देता तुम्हारी चूत!
बोलते हुए वह अपने लन्ड को तेजी से खुजाने लगे।
यह माहौल देखकर तो मैं मानो बेकाबू हो गया और मेरी अन्तरवासना के समंदर में सुनामी सी आ गयी। इतना सेक्सी माहौल, सेक्सी बातें और देसी चोदू जवान तने हुए मूसल लन्ड के साथ हल्का उजाला।
अब मैंने आव देखा ना ताव, मैंने अपना एक हाथ धीरे से काउंटर पर रखा जिससे रत्नेश भैया का ध्यान मुझ पर गया, इतने मैं ही मैंने अपना दूसरा हाथ उनके लन्ड वाली जगह पर रख दिया और उनके लोहे की रॉड से कड़क हो चुके लन्ड को ज़ोर से मसल दिया।
यह सब मात्र 4-5 सेकेंड में हुआ था उन्हें कुछ समझ नहीं आया और थोड़ा हड़बड़ाते हुए वो खड़े होने लगे लेकिन इस बात का अहसास शायद वो अपनी पत्नी को नहीं होने देना चाहते थे इसलिए पत्नी के पूछने पर उन्होंने बिल्ली के होने का बहाना बना दिया।
मैंने उनके लन्ड को जीन्स के ऊपर से ही रगड़ना जारी रखा, क्योंकि जब खड़े फ़नफ़नाते लन्ड को कोई सहलाने लगे तब कोई भी मर्द चाहकर भी आपको मना नहीं कर पाता और सोचता है कि जो हो रहा है हो जाने दो।
मैंने अपनी उंगली उनके होंठों पर रखते हुए ‘श…’ की आवाज़ निकलते हुए उन्हें चुप रहने का इशारा करते हुए फिर से कुर्सी पर बिठा दिया और बातचीत जारी रखने का इशारा किया और काउंटर पर से होते हुए अंदर दाखिल हो गया और उनके बिल्कुल सामने एक कुर्सी लगाकर बैठ गया और लगातार उनके लन्ड को सहलाने लगा।
आज मानो मेरी हिम्मत रंग लाती सी दिखाई दे रही थी और लग रहा था कि आज इस दानवी मोटे ताज़े लंड का कमरस मुझे पीने को मिलने वाला है और इस जवान राजपूत के राजपूताना अंदाज़ में चुदाई होने वाली है।
हाथ से सहलाते हुए मुझे रत्नेश भैया के मोटे और लम्बे लन्ड का अंदाज़ा लगने लगा था, जो अंडरवियर और जीन्स के अंदर ही काफी फनफना रहा था और झटके मार रहा था क्योंकि मेरे सहलाने के बाद वो बिल्कुल गन्दगी पर उतर आये थे, अपनी बीवी के साथ और बहुत ही सेक्सी बातें कर रहे थे।
मुझे 5 मिनट हो चुके थे और अब रत्नेश भैया से रहा नहीं जा रहा था और बाहर से कोई देख न ले इसीलिए वो खड़े हो गए और एक हाथ से फ़ोन पर बात करते हुए ही दूसरे हाथ से दुकान का शटर गिराने लगे जिसमें मैंने उनकी मदद की और अब हम दोनों दुकान में बन्द हो चुके थे।
शटर लगाकर वो काउंटर से थोड़ा टिक गए और उनकी फोन पर बातचीत जारी रही। शटर बन्द हो जाने से मैं भी बेफिक्र हो चुका था और अब मैं बस उस राजपूताना जिस्म और गंडफाड़ू लन्ड के सागर में डूब जाना चाहता था।
अब मैं घुटनों के बल रत्नेश भैया के सामने बैठ गया और जीन्स के ऊपर से ही उनके लन्ड के उभार को अपने चेहरे से रगड़ने लगा और कभी कभी उनके लन्ड के नीचे के गोटे वाले हिस्से में ज़ोर से अपना मुँह भर देता और फिर से उनके लन्ड के आसपास अपना चेहरा रगड़ने लगता और कभी कभी जीन्स के ऊपर से ही उनके लन्ड को दांतों से ही काट लेता।
यह सब करने से रत्नेश भैया काफी कामुक हो चुके थे क्योंकि मेरे अलावा उनको उनकी पत्नी भी गंदी बातें करके उकसा रही थी, उनकी पत्नी की सेक्सी बाते भी मुझे साफ सुनाई दे रही थी।
लेकिन गज़ब की बात तो यह थी कि इतना कुछ होने के बावजूद रत्नेश भैया ने मुझे किसी भी तरह से उकसाया नहीं ना ही मुझे कुछ करने के लिए मज़बूर किया न दबाव बनाया जबकि किसी मर्द के लन्ड के साथ ऐसा करने पर अब तक वह जबरदस्ती अपना लन्ड मेरे मुँह में डाल चुका होता।
जो कुछ कर रहा था, मैं अपने आप ही कर रहा था, मानो उन्होंने अपने आपको मेरे सुपुर्द कर दिया हो।
अब रत्नेश भैया दुकान से ही अटेच छोटे से कमरे में आ गए जो छोटा 10×10 का गोदाम था। यहाँ पर 5 वाट के पुराने ज़माने वाले बल्ब की हल्की रोशनी में दूध की खाली टंकियाँ, छाछ से भर हुआ तपेला, एक दूध का फेट चेक करने की मशीन दिखाई दे रही थी।
दीवार पर लगी कीलों पर 3-4 कपड़े टंगे थे और दीवार के एक साइड एक खटिया खड़ी हुई रखी थी। अब रत्नेश भैया दूध की एक खाली टंकी पर बैठ गए, मुझसे भी अब रहा नहीं जा रहा था इसलिए मैंने बिना देर किये जीन्स की चेन को खोल दिया और चेन में से ही अपनी उंगलियां जीन्स के अंदर डाल दी और उनके लन्ड को चड्डी के ऊपर से ही पकड़ने और सहलाने की कोशिश करने लगा।
जीन्स की चेन काफी छोटी होती है और वो बैठी अवस्था में थे इसीलिए मेरा पूरा हाथ उनकी चेन के अंदर घुसा नहीं पा रहा था, लेकिन कोशिश जारी थी और मैं अपनी उंगलियों से ही उनके लन्ड को सहला रहा था।
उन्हें शायद मेरी परेशानी का एहसास हुआ इसीलिए अब उन्होंने खटिया को बिछा दिया और उस पर बिल्कुल लम्बे चौड़े होकर लेट कर बातचीत जारी रखी। वाह क्या समां था… एक जवान मदमस्त हट्टा कट्टा मर्द मेरे सामने लेटा हुआ अपने लन्डपान का न्योता दे रहा था मानो।
मैंने बिना देर किये रत्नेश भैया के बेल्ट का हुक और बटन खोला और जीन्स को नीचे खीच दिया… वाह… जॉकी की फ्रेंच कट पहन रखी थी जिसमें एक मोटे खीरे की तरह लन्ड साफ दिखाई दे रहा था, ग्रामीण होते हुए भी ब्रांडेड कपड़ों का काफी शौक था उन्हें। और खास बात यह थी कि लन्ड अंडरवियर के अंदर सीधा नाभि की दिशा में नहीं था बल्कि तिरछा होते हुए कमर की ओर होते हुए बिल्कुल चड्डी की इलास्टिक तक पहुँचा हुआ था।
मतलब यदि लन्ड को चड्डी में बिल्कुल सीधा नाभि की दिशा में सेट किया जाए तो लन्ड लगभग एक या डेढ़ इंच अंडरवियर की इलास्टिक से बाहर निकल जाए, साइड में होने की वजह से वह अब तक जाल में कैद था… ऐसा खूंखार लन्ड था सामने।
आपको बता दूं कि बंटी भैया का लन्ड भी इतना ही बड़ा है, बंटी भैया के बारे में किसी ओर कहानी में बताऊंगा।
अब मैंने अपनी जुबान से उनके लन्ड के उभार को आहिस्ता चाटना शुरू कर दिया, और अब इसका असर उनके चेहरे पर दिखने लगा था, मेरी हर जुबान के साथ उनके चेहरे पर आनन्द और सुकून का झोंका सा आ जाता और हर बार लन्ड में एक लहर सी भी आती…
और अब वो ज्यादा बोल भी नहीं रहे थे, बस उनकी बीवी ही कुछ बोल रही थी और वह बस हूँ हाँ से उनका जवाब दे रहे थे; उनकी आंखें बन्द हो चुकी थी, उनके पूरे बदन में मानो काम का रति रस घुल चुका था और अपना रति रस निकाल कर वो मुझे भी तृप्त कर देने वाले थे, जिसे सोच सोच कर मैं भी बड़े ही सिस्टेमेटिक तरीके से उनके लन्ड के उभार को चाट रहा था।
पुरानी बात एक बार फिर आपको याद दिला दूं कि लन्ड के झटके मारने के बावजूद भी उन्हें कोई जल्दी नहीं थी ना ही वो उतावले हो रहे थे अपने लोहे की रॉड से कड़क हो चुके लन्ड को मेरे मुँह या गांड में घुसाने के लिए…
अब फोन भी उन्होंने कट करके साइड में रख दिया था। अब वो बिल्कुल आराम की मुद्रा में थे और ऐसा लग रहा था मानो अब वो सो चुके हैं।
में भी बड़ा असमंजस में था क्योंकि मेरे आने से अबतक लगभग 30 मिनट हो चुके थे लेकिन रत्नेश भैया ने मुझसे कोई बात नहीं की और ना ही मेरे किये काम पर कोई प्रतिक्रिया दी थी, बल्कि अब तो वह मानो आंखें बन्द करके सो ही गए थे। लेकिन एक बात ज़रूर थी कि उनको आनन्द ज़रूर मिल रहा था।
लन्ड के मोटे सुपारे से निकले प्रीकम ने अंडरवियर पर एक गोल घेरा बना दिया था जिस पर मैं अपनी नाक को रगड़ते हुए लम्बी सांसों से सूंघने लगा, जहाँ से वीर्य, पसीने और मूत्र की मिक्स मनमोहक महक आ रही थी।
वाह… क्या खुशबू थी… मेरी ज़िन्दगी की सबसे मनपसन्द महक… हर 3-4 सेकेंड में लन्ड में एक लहर आती और लन्ड लगभग 1 इंच ऊपर उछल जाता।
पता नहीं क्या बात थी जो रत्नेश भैया मेरे साथ कुछ भी नहीं कर रहे थे, सब कुछ मैं ही कर रहा था। क्या रत्नेश भैया मेरे साथ सेक्स नहीं करना चाहते थे। क्या एक लड़के के साथ सेक्स करने से उन्हें एतराज़ था। क्या मुझे उनके लन्ड का काम रस मिल पाया या फिर मुझे प्यासा ही इंदौर से लौटना पड़ा.
ये सब आप जानेंगे कहानी के अगले भाग में, जुड़े रहिये अन्तरवासना के साथ।
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