गांड मराने का शौक क्या क्या न कराए- 2

गांड मराने का शौक क्या क्या न कराए- 2


आप गे सेक्स कहानी का मजा ले रहे थे.
पहले भाग
गांडू ने मकान मालकिन भाभी चोदी
में अब तक आपने पढ़ा था कि नईम सर रनवीर के साथ कमरे में चुदाई का मजा ले रहे थे. मैं बाजार चला गया था.
अब आगे :
जब मैं लौट कर आया तो दरवाजा अभी भी बंद था. मेरे मकान मालिक प्रमोद ने एक छोटे से छेद से अन्दर का नजारा दिखाया.
नईम सर तब तक निपट चुके थे … रनवीर अपने लंड पर थूक लगा कर चूत में लंड पेल रहा था. फिर उसने लंड चुत में डाल कर चुदाई चालू कर दी.
उसने तो धक्कम पेल धक्कम पेल मचा दी. बन्दा एक्सपर्ट था और साले का लंड भी मस्त था. अपनी कमर का पूरा जोर लगा कर चुदाई कर रहा था.
चुत में लंड अन्दर बाहर अन्दर बाहर चल रहा था और लौंडिया भी गांड हिला हिला कर लंड ले रही थी.
मैं और प्रमोद बारी बारी से देखते रहे जब वह चिपक कर रह गया, तो समझ गए कि अब ये झड़ने वाला है.
हम दोनों दरवाजे से दूर होकर आराम से बैठ गए.

कुछ देर बाद दरवाजा खुला और लौंडिया अपनी सलवार के ऊपर से ही चुत सहलाती हुई चली गई.
इसी तरह सर ने दो-तीन बार मेरे कमरे में आकर लौंडियां निपटाईं. कई बार चुदाई की मगर हर बार वही लड़की होती. एक बार बदल कर नया माल लाए तो प्रमोद के साथ उसे शेयर किया.
रनवीर मेरा बहुत अहसान मानता बोला- सर आपको चुत दिलवाऊं?
मैंने संकोच तोड़ कर कह दिया- यार दे सके तो अपनी दे दे!
प्रमोद मेरे से तो कह रहा था कि रनवीर की दिलवाऊंगा, पर शायद उसने कहा नहीं.
रनवीर को भी मालूम नहीं था कि मैं गांड मारने का शौक रखता हूं.
वह मेरी बात सुनकर झट से तैयार हो गया.
उस दिन कमरे पर हम दोनों ही थे प्रमोद बाहर गया था.
उसने अपना पैंट उतार कर हैंगर पर टांग दिया और अंडरवियर घुटनों तक करके खाट पर लेट गया.
मैं सोच ही नहीं सका था कि वह इतनी जल्दी तैयार हो जाएगा.
मेरे लिए तो मुँह मांगी मुराद थी.
मैं उसके ऊपर चढ़ बैठा और चैन खोल कर लंड निकाल लिया. लंड पर थूक लगा कर उसकी गांड में पेल दिया.
वह मुस्करा दिया और बोला- अरे सर कम से कम पैंट तो उतार लेते … इतनी जल्दी भी क्या है. अब तो डाल लिया ही है, मैं पूरी मरा कर ही हटूंगा.
मैं उसके ऊपर से उतर कर खड़ा हो गया. अपनी पैंट उतारी, साथ ही चड्डी भी उतार फैंकी और फिर से चढ़ बैठा.
इस बार मैं घुटनों के बल उसकी जांघों पर बैठ गया. उसके दोनों चूतड़ देखे, तो एकदम मक्खन जैसे गोरे और मस्त गोल गोल थे.
जब चूतड़ हाथ से अलग किए तो उसकी गुलाबी गांड झांकने लगी दुबारा लंड पर थूक लगाया और फिर गांड पर टिका कर सुपारा अन्दर कर दिया.
वह हंसने लगा- अरे आप हड़बड़ा गए … अब तो ठीक है.
मैंने कहा- हां यार अब ठीक है. मेरी हडबड़ी इसलिए है कि सोचा न था कि इतने माशूक नमकीन लौंडे की मारने को मिलेगी. तुम्हारी गांड में मेरा लंड, मैं बता नहीं सकता कितना रोमांच हो रहा है. तुम बस थोड़ी ढीली रखना, कॉपरेट करना … इतने माशूक लौंडे की मिलना किस्मत की बात है.
ये कह कर मैंने उसका एक जोरदार चुम्बन ले लिया और पीछे से बांहें डाल कर उसे कसके पकड़कर पूरा लंड गांड में पेल दिया.
वह ‘आ आ ..’ करने लगा- आह सर … आपका बहुत बड़ा है, मस्त है थोड़ा धीरे कीजिए … जल्दी झड़ जाएंगे.
मैं लंड डाले लेटा रहा.
फिर मैंने उससे पूछा- अब, चालू करें?
उसके दांत बाहर आ गए मैंने इसे उसकी हां समझी और धक्के देना शुरू कर दिए.
मैं धीरे धीरे कर रहा था. मुझे डर था कि वो नाराज न हो जाए.
मेरी सांसें जोर से चल रही थीं, हाथ पैरों में सनसनाहट हो रही थी. मैंने अपने होंठ उसके गुलाबी होंठों पर रख दिए.
फिर मैंने पूछा- कोई तकलीफ तो नहीं हो रही?
वह हंसा- अरे सर, कितनी बार पूछोगे … कैसे मरे मरे तो कर रहे हो, खुल कर करो न!
उसकी बात सुनी तो अब मैं जोरदार झटके देने लगा. दे दनादन दे दनादन धच्च पच्च धच्च पच्च ..
उसकी गांड गीली सी हो गयी और लंड चलने से चप्प चप्प की आवाज आने लगी.
वह भी जोश में आ गया और अपनी गांड चलाने लगा. बार बार ढीली कसती ढीली कसती करने लगा. चूतड़ों का पूरा जोर लगा कर लंड की चुसाई कर रहा था.
मैं भी अपनी कमर चला रहा था.
वह- वाह सर वाह … मजा बांध दिया क्या रगड़ाई की.
अब हम दोनों थक गए थे. मैं लंड डाले पसर गया और उसके चुम्में लेने लगा. उसकी जीभ अपने मुँह में लेकर चूसने लगा.
मेरा पानी छूटने लगा और कुछ पल बाद हम दोनों अलग हो गए.
वह मुस्करा रहा था- वाह सर … आज तो आपने मजा बांध दिया.
मैंने कहा- यार तुम जैसे मस्त लौंडे की गांड मारने मिली, ये मेरी किस्मत थी. सच में आज मैं भी पूरी तरह से तृप्त हो गया.
वह बोला- हां सर मैं भी, अपन मिलते रहेंगे.
फिर एक दिन शाम के समय मैं हॉस्टल गया तो देखा कि मेस का रसोईया नईम सर के रूम के सामने हंगामा कर रहा था.
असल में मेस में कुछ नई उम्र के लड़के थे, यही कोई 18-19 साल के. वे खाना परोसने में सहयोग करते थे, काम करते थे … और जो लेबर थे, वे बदलते रहते थे.
उन्हीं लड़कों में में एक लड़का प्रेम नया नया आया था.
रसोईया कह रहा था कि नईम साहब ने प्रेम की गांड मार दी.
आरोप गम्भीर था प्रेम उनके कमरे में कुछ चाय व नाश्ता लाया था. जब वो बड़ी देर तक नहीं लौटा, तो रसोईया आया, उसने देखा कि नईम साहब प्रेम को दीवार से चिपकाए खड़े हैं और उसकी गांड में लंड पेल कर धक्के दे रहे थे.
मैंने जाते ही रसोईए को पकड़ा और जोर से कहा- अरे सर को किसी की गांड ही मारना थी, तो क्या उसी की मारते? अरे उनका ज्यादा सुरसुरा रहा था … तो मेरी गांड में लंड पेल देते. साले! अभी तेरे को सुप्रिंटेंडेंट साहब से कह कर हटवा देते हैं. तभी तेरा इन लड़कों से काम लेना बंद हो जाएगा.
मेरी इस बात को सुनकर जो लड़के ट्रेनी अब तक चुप थे, वो बाहर आ गए और मेरा सपोर्ट करने लगे.
जरा सी देर में में चालीस-पचास लड़के इकट्ठे हो गए.
रसोईया समझ गया कि कुछ गड़बड़ हो गई है.
वह बोला- यही कह रहा था.
मैंने सवाल किया- कौन कह रहा था, बुलाओ उसे!
लड़का बदल गया, उसने कुछ भी नहीं कहा. तो रसोईया मुँह सा लेकर चला गया.
ये प्राईवेट मेस थी तो इस मामले के बाद उसे निकाल दिया गया. ठेकेदार ने आकर माफी मांगी.
अगले दिन ठेकेदार रसोइए को लेकर मेरे कमरे में आया.
हम सब नईम सर के पास गए.
उसे सर ने माफ कर दिया.
मैंने कहा- समझ ले … अब ऐसी हरकत न करना.
असल में हॉस्टल में ऐसा चलता रहता था. उन सारे लड़कों की ही गांड मारी गई थी … खुद ठेकेदार ही लौंडेबाज था. सर पर और ट्रेनीज पर मेरा सिक्का जम गया था.
एक दिन मैं बाजार गया था. वहीं पर नईम सर मिल गए.
हम दोनों ऑटो से मेरे कमरे तक आए.
उस दिन भी प्रमोद गांव गया था.
मैंने उन्हें कमरे में आने को कहा, वे अन्दर आए और बैठ गए.
मैं कपड़े बदलने लगा, कमरे मैं टेबिल कुर्सी और खाट थी. कुर्सी पर सबेरे नहाने के बाद मैंने गीले अंडरवियर बनियान सूखने डाल दिए थे.
वे खाट पर बैठ गए. टेबल पर कपड़े एक ढेर में तितर-बितर से रखे थे.
मैंने शर्ट उतार कर टांग दी … फिर पैंट उतार दिया.
मैं उनसे बातें करता जा रहा था, देखा ही नहीं कि मैंने पैंट के नीचे कुछ नहीं पहना था.
पैंट उतार कर टांग दिया, तब देखा. वे हंसने लगे, मैं शर्मा गया.
मैं इस समय केवल सेन्डो बनियान में था.
वे बोले- अरे, तेरा तो बहुत बड़ा लौकी सा लटक रहा है … खड़ा होकर तो नौ-दस इंच का होगा.
उन्होंने हाथ से लंड पकड़ कर दो तीन बार आगे पीछे किया, तो लौड़ा खड़ा हो गया.
वे बोले- वाह क्या मस्त हथियार है … मेरे से भी बड़ा है … कितना मोटा है. उस दिन बेकार झैंप गए, मजा ले लेते.
मेरी शर्म कम हुई तो मैंने कहा- सर, अपना भी तो दिखाएं.
ये कहते हुए मैंने उनके पैंट की चैन नीचे कर दी व हाथ डाल कर उनका लंड बाहर निकाल कर सड़का मारने लगा.
उनका लंड मेरे हाथ में था, तो वे रोकने लगे- नहीं बेकार दिमाग खराब होगा, रहने दो.
मैंने कहा- सर बेकार नहीं, मैं चूस लूंगा.
मैंने उनका लंड मुँह में ले लिया और चूसने लगा.
दो-तीन मिनट तक लप लप करके लंड चूसा तो उनका फूल कर तन गया.
फिर मैंने मुँह से लंड निकाला और उनकी ओर देखा.
वे ‘बस बस ..’ कर रहे थे.
सर ने कहा- अब अपने कपड़े पहन लो.
मैं टेबिल पर कपड़े ढूंढने लगा, उनकी तरफ मेरे चूतड़ थे. मैं कुछ टेबिल पर झुका था.
वे पास आए और बोले- तुम्हारे चूतड़ तो बहुत मस्त हैं, अब भी कितने गोल गोल हो रखे हैं.
सर चूतड़ सहलाने लगे- तुम्हारी जांघों में मछलियां दौड़ रही हैं. क्या बॉडी बना रखी है, कसरत करते हो क्या?
वे मुझ पर मर गए थे, अब उनका लंड टनटनाने लगा था.
सर मेरी गांड पर उंगली फिराने लगे. मेज पर एक क्रीम की शीशी रखी थी, उसे खोल कर उंगलियों में क्रीम लेकर मेरी गांड पर मलने लगे.
फिर अपनी क्रीम में लिपटी उंगली मेरी गांड में ठूंस दी. अब वे उंगली गांड में घुमा रहे थे.
फिर उन्होंने उंगली हटा ली तो मैंने पीछे मुड़ कर देखा.
अब वे अपने लंड पर क्रीम मल रहे थे.
मैंने पहली बार उनका लंड ध्यान से देखा. क्या भयंकर सुपारा था … फूला मूसल सा था. कितना मोटा लंड था, मेरी तो देख कर ही जान निकल गई.
तब तक उन्होंने लंड मेरी गांड पर टिका ही दिया.
अपने दूसरे हाथ से मेरे सिर के पीछे से मुझे टेबिल पर झुकने को इशारा किया.
मैं कोहनियों के बल टेबल पर झुक गया.
वे बोले- बस, ऐसे ही बने रहो, शाबाश … अभी हुआ जाता है.
मेरी हालत अजब हो गई थी. इतना बड़ा लंड देख कर गांड फट रही थी. बहुत दिनों से कोई लंड नहीं लिया था, तो लंड का मजा लेने को गांड लुकलुका भी रही थी.
उन्होंने धक्का दिया और वह भयंकर सुपारा मेरी गांड के अन्दर था.
मैं बिलबिला उठा, दर्द से जान सी निकल गई.
मैं छोटा नहीं था, जवान मर्द था. गांड मराने का पुराना तजुर्बा था. ये ठीक है बीच में बहुत दिनों से प्रैक्टिस छूट गई थी.
फिर भी दर्द हुआ. बहुत दिनों से कोई लंड गांड में डलवाया नहीं था, सो दर्द ज्यादा हो रहा था.
उधर सुपारा अन्दर पेल कर थोड़ी देर तो वे रूके, फिर एक दम से सरसराता हुआ पूरा हथियार अन्दर कर दिया.
एक हाथ उनका मेरी कमर को लपेटे था, दूसरे हाथ से मेरी गर्दन जकड़े थे. एकदम लंड पूरा पेले हुए चिपक कर रह गए.
मैं फड़फड़ा भी नहीं पा रहा था.
वैसे मैं उनसे मजबूत था, ज्यादा मस्कुलर था … तगड़ा था, पर इस समय उनका लंड मेरी गांड में था. वे पीछे से पकड़े थे.
मैं छूटना भी नहीं चाहता था. गांड मराने में दर्द तो होता है और लगती भी है. पर मजा भी देता है, जो गांड मराने का शौक रखता है, इसे वही समझ सकता है.
जिन्होंने कोई लम्बा मोटा सख्त लंड गांड में डलवाया हो, उन्हें ही इसकी लज्जत का अंदाजा होगा.
करीब एक मिनट के लिए वे रुके, जब उन्होंने समझा कि अब गांड थोड़ी ढीली पड़ गई, तो चालू हो गए.
पहले तो धीरे धीरे धक्के दिए, फिर तो मानो हथियार उनके कन्ट्रोल में ही नहीं रहा; जोर जोर से धक्कम पेल मचा दी.
धच्च फच्च धच्च फच्च … गांड फाड़ू झटके चालू हो गए.
वे स्वयं कह रहे थे- थोड़ा सब्र करो, बस दो मिनट.
पर वो दस मिनट तक धूम मचाए रहे. जब हांफने लगे, पसीने पसीने हो गए … तब धीमे पड़े.
लंड तब भी नहीं निकाला बस रुक गए.
मेरी गांड को भी चैन मिला.
मगर तभी सर फिर से चालू हो गए, पर अब वो जोर नहीं रहा था. सर ढीले पड़ गए थे … पर छोड़ नहीं रहे थे. न जाने कबके प्यासे थे.
अब मुझे मजा आने लगा था, मेरा दर्द कम हो गया था. लंड की टक्करों से गांड ढीली हो गई थी.
अब मैंने अपनी कलाकारी दिखाई. गांड थोड़ी कसी ढीली की, तो वे ‘अश अश ..’ कर उठे.
उनसे रिस्पांस पाकर मैं जोर जोर से चूतड़ भींचने लगा और ढीले करने लगा.
वे बोले- अरे क्या मार ही डालोगे … गांड मराने की भी इतनी कलाकारी … मैं तुम्हें मान गया यार … सलाम करता हूं.
मेरी गांड जलन कर रही थी, दर्द हो रहा था … पर मैंने उनको मस्त कर दिया.
दोस्तो, गांड मराना भी एक आर्ट है. करीब चार पांच साल पहले नसीम भाईजान से करवाई थी. उनका (नसीम भाईजान का) नईम सर जैसा ही मस्त लंड था, पर गांड मारने का अनोखा अंदाज था. उन्होंने किस कलाकारी से मेरी मारी थी, अब तक याद है. लौंडे को मस्त कर देते थे.
अब सर जी ढीले पड़ गए और उनका रस छूट गया.
मैं उनसे अलग हुआ तो वे बोले- अब बस सीधे हॉस्टल जाऊंगा.
मैंने रिक्वेस्ट की- रात हो गई, यहीं रुक जाएं … सुबह चले जाना.
वे रुक गए.
सुबह सात बजे हम दोनों उठे, फ्रेश हुए, नहाए, तैयार हो गए.
वे पैंट पहन रहे थे कि मैंने छेड़ा- एक बार और हो जाए?
वे न न करने लगे, फिर खुद ही पैंट उतार का टांग दी.
मैंने अपना अंडरवियर उतारा. उन्होंने तेल लगा कर गांड में लंड डाला.
उन्होंने मेरी गांड में पूरा पेला ही था कि प्रमोद दिखाई दे गया.
वह बोला- सर आप भी लंड का मजा लेते हैं.
मैं- तो यार क्या केवल तू लेना जानता है!
सर ने मेरी गांड में से अपना लंड निकाल लिया.
मैंने प्रमोद का अंडरवियर उतार दिया- यार आज तुझे साहब को खुश करना ही होगा.
उसने बहुत नानुकुर की, पर तैयार हो गया.
जब साहब ने उसकी गांड में डाला तो वह बहुत उछल कूद मचा रहा था.
पर नईम साहब भी पुराने खिलाड़ी थे. पूरा लंड डाल कर ही माने. तबियत से उसकी गांड मारी.
वह बार बार चूतड़ हिला कर लंड निकाल देता था तो उसे पकड़ कर फिर से लंड डालना पड़ता.
आखिर उनकी टांगों के नीचे वो औंधा लेट गया था. बच कर कहां जाता.
दो चार झटकों में चिल्लाने लगता- फट गई … फट गई छोड़ दो.
पर सर जी ने तब तक नहीं छोड़ा, जब तक पानी न निकल गया.
इससे देर भी ज्यादा लगी और ज्यादा रगड़ाई भी हुई.
फिर साहब तैयार होकर नाश्ता करके निकल गए.
मैं समझा प्रमोद नाराज हो गया होगा.
पर वह शाम को खींसे निपोरता मेरे पास बैठा था- सर जी … जैसे मस्ती से आप करते हैं … वैसा मजा उन साहब से नहीं आया. आपकी स्टाइल ही कुछ और है. मैंने आपके गेस्ट को मजा दिया, सिर्फ आपकी वजह से.
मैं- यार प्रमोद, रोज रोज एक ही मिठाई अच्छी नहीं लगती, कभी लड्डू, कभी पेड़े, कभी बर्फी.
प्रमोद- बुरी तरह रगड़ दी, जल्दी झड़ भी गए थे.
मैं- अपनी अपनी स्टाइल है, जैसी उन्हें ट्रेनिंग मिली वैसी की. जाने कहां से सीखा होगा. अब तो उनका टाईम गया.
प्रमोद- तो उन्होंने भी कहीं से मरवा कर सीखा होगा. उनका ट्रेनर सही नहीं रहा होगा. बुरी तरह रगड़ दी … अब तक दर्द कर रही है. मजा तो बस आपके साथ आया था.
मैं- अरे यार, तुम ठीक हो जाओ, फिर देखेंगे. अपनी अपनी पसंद है. उन्होंने भी मेरा हथियार देखा और सराहा कि वाह क्या मस्त है, मेरे से भी बड़ा. पर मेरी गांड पसंद की और मारी.
प्रमोद- उन्ह … मेरी अभी भी परपरा रही है.
मैं- प्रमोद भाई, तुमने मेरी गांड देखी. मैंने तुमसे कहा था कि मार लो. मगर तुमने रिजेक्ट कर दी. मेरे चूतड़ बड़े बड़े हैं इसलिए उन्हें मेरा लंड भी पसंद आया.
ये गांड मराने की सेक्स कहानी यूं ही मेरे जीवन में चलती रहेगी. आप मुझे मेल करते हैं, तो मुझे भी सेक्स कहानी लिखने में मजा आता है.
आपका आजाद गांडू
लेखक के आग्रह पर इमेल आईडी नहीं दिया जा रहा है.

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