यह गाँव की चुदाई की कहानी है. इसमें मेरी माँ को गाँव के मुखिया और डॉक्टर ने खेतों के बीच में चोदा. मैंने सारा नजारा अपनी आँखों से देखा था.
लेखक की पिछली कहानी थी: सास के सामने ससुरजी का मोटा लन्ड लिया
नमस्कार, मेरा नाम गोपाल है. मैं एक छोटे से गाँव का रहने वाला हूँ, मेरी उम्र अभी 28 साल है.
मेरे घर में मेरे अलावा मेरी विधवा माँ चंदा रहती है जो 47 साल की है. मेरी माँ के अलावा मेरे दादाजी और दादीजी भी है घर में!
माँ की शादी कम उम्र में ही हो गयी थी और उसके एक साल बाद मेरा जन्म हो गया था.
मेरे पिता जी बहुत दारू पीते थे जिस कारण उनका लिवर खराब हो और उनका देहांत हो गया.
पिताजी की गांव में थोड़ी सी ही जमीन थी जहाँ पर मेरी माँ खेती करती जिससे हमारा घर चलता था।
माँ के बारे में मैं आपको बता देता हूँ.
मेरी माँ की लंबाई 5.5 फुट है और वो शुरू से ही भरे पूरे शरीर की मालकिन है, मेरी माँ के दूध का साइज 40”, कमर 32”, और चूतड़ 40” हैं. उनका रंग थोड़ा सा साँवला है।
तो अब मैं गाँव की चुदाई की कहानी पर आता हूँ.
कई साल पहले जब मेरे पिताजी का देहांत हुआ तो मेरी माँ ने अकेले ही पूरे घर की जिम्मेदारी को उठा लिया.
वो दिन रात खेत में काम करती रहती थी.
उस समय मैं स्कूल जाता था.
मैंने माँ को बोला कि मैं भी उनका खेत में हाथ बटाना चाहता हूँ.
पर उन्होंने मुझे मना किया और मुझे पढ़ाई करने को बोला.
मैं भी उनके लिए कुछ करना चाहता था तो मेरे गाँव में कुछ दोस्तों ने मुझे जुआ खेलने को बोला जिससे मैं पैसे कमा कर माँ की मदद कर सकूं.
मेरे पास जुआ खेलने के लिए पैसे नहीं थे तो मुझे किसी ने बताया कि गांव का मुखिया उधार पर पैसे देता है.
तो मैं मुखिया के पास गया और उससे कुछ पैसे उधार मांगे.
पर मुखिया ने मुझसे कहा– पैसे तो मैं तुझे दे दूँगा. पर तुझे उसके बदले में कुछ गिरवी रखना होगा।
मेरे पास गिरवी रखने को तो कुछ नहीं था तो मैं वहाँ से जाने लगा.
तभी वहाँ गाँव के डॉक्टर साहब आये वो मुझे देख पहचान गए और बोले– अरे तू तो वो चंदा का लड़का है ना? यहाँ क्या कर रहा है?
तो मैं बोला– वो मुझे मुखिया जी से कुछ काम था इसलिए उनसे मिलने आया था।
डॉक्टर साहब ने मुखिया जी से कुछ खुसुर पुसुर की.
उसके बाद मुखिया जी बोले– अरे सुन, चल तू पैसे ले जा।
तो मैं बोला– पर मुखिया जी, मेरे पास तो कुछ भी गिरवी रखने को नहीं है।
मुखिया जी बोले– उसकी कोई जरूरत नहीं है, डॉक्टर साहब ने तेरी गारन्टी दे दी है, पर ये पैसे तुझे अगले हफ्ते तक वापस करने है वरना मुझे पैसे निकलवाना आता है।
मैंने मुखिया जी से कहा– जी मैं आपके पैसे समय पर चुका दूँगा।
और मैंने डॉक्टर साहब का शुक्रिया किया.
वहाँ से पैसे लेकर मैं वापस चला आया.
उस पैसे से मैंने जुआ खेला पर मैं सारे पैसे हार गया.
एक हफ्ता निकल गया और पैसे चुकाने के समय आ गया.
पर मेरे पास चुकाने को पैसे भी नहीं थे.
ये सारी बातें मैंने अपनी माँ को नहीं बताई थी क्योंकि वो ओर ज्यादा परेशान हो जाती.
पर दिन में मुखिया जी का नौकर घर गया और बोला– चंदा, तेरे बेटे को मुखिया जी ने बुलाया है।
माँ ने पूछा– मुखिया को मेरे बेटे से क्या काम है?
तो वो नौकर बोला- अब ये तो मुखिया जी ही जाने!
माँ ने मुझसे पूछा- बेटा, तुझे पता है क्या कि मुखिया जी ने तुझे क्यों बुलाया है?
मुझे पता तो था पर मैंने माँ को नहीं बताया कि क्या बात है.
मैं बोला- मुझे नहीं पता माँ, शायद उन्हें मुझसे कुछ काम होगा, तो मैं जाऊ माँ?
माँ ने मुझे जाने को बोल दिया.
मैं भी मुखिया जी के घर पहुँच गया.
मुखिया जी- तो आज मेरे पैसे चुकाने के दिन है तुझे याद है या नहीं?
मैं- वो मुखिया जी …. वो बात कुछ ये है कि मेरे पास चुकाने को पैसे नहीं हैं।
मुखिया जी बोले- पैसे नहीं है मतलब?
मैं बोला- वो मुखिया जी बात ये है कि वो पैसे जुए में हार चुका हूँ अब मेरे पास एक भी पैसा नहीं है।
मुखिया जी- तू इतना सा होकर जुआ खेलता है?
अब मैंने उन्हें अपनी तकलीफ बताई और वो बोले- अच्छा तो ये बात है, कोई बात नहीं. एक बार जुए में हार गया तो क्या हुआ दूसरी बार जरूर तू जीतेगा।
फिर उन्होंने मुझे कुछ पर पैसे दिए और बोले कि- अगर तू जीत गया तो मुझे मेरे पूरे पैसे वापस कर देना जा।
मैं- पर अगर मैं हार गया तो?
तो मुखिया जी बोले- तू इस बार जरूर जीतेगा, जा!
और वैसा ही हुआ.
इस बार मैं जुए में जीत गया और जीते हुए पैसों से मैंने मुखिया जी का कर्जा चुका दिया.
पर वो कहते हैं ना कि जुआ किसी का नहीं होता!
कुछ दिनों तक तो मैंने बहुत पैसे जीते जुए में … और सारे पैसे अपने पास जमा करके रखे ताकि एक साथ मैं माँ को बहुत पैसे दे सकूं.
अब दीवाली भी आ गयी थी, मैंने सोचा कि आज भी मैं जुआ खेलता हूँ और जो भी पैसे मैंने अभी तक जीते हैं वो सब मैं माँ को दीवाली के तोहफे के रूप में दे दूँगा.
पर आज किस्मत ने मेरा साथ नहीं दिया और मैं सारे पैसे हार गया.
जिसके बाद मैं मुखिया जी से भी बहुत सारे पैसे उधार लाया.
पर वो भी मैं हार गया.
इससे मैं बहुत दुःखी हो गया और सारी रात घर ही नहीं गया.
सुबह हुई तो मैं घर पहुँचा तो देखा कि मुखिया जी मेरे घर पर ही मौजूद थे.
माँ मुझे देख मुझसे पूछने लगी- सारी रात कहाँ था? और ये मुखिया जी क्या बोल रहे हैं कि तूने उनसे पैसे उधार लिए है वो भी बहुत सारे?
तब मैंने माँ को सारी बात बताई कि मैं जुआ क्यों खेलने लगा और कल रात कैसे मैं सारे पैसे हार गया.
यह सुन माँ ने मुझे बहुत मारा और गालियाँ भी दी.
पर मेरी दादी जी और मुखिया जी ने मुझे बचा लिया.
अब मेरी माँ मुखिया जी से माफी मांगने लगी, बोली- मुखिया जी, मेरी बेटे ने ये सब नादानी में किया है. इस समय हमारे पास पैसे भी नहीं हैं कि मैं आपका कर्जा चुका सकूं।
तो मुखिया जी बोले- अरे चंदा, मुझे इन सब बातों से क्या मतलब है … मुझे तो अपने पैसे चाहियें. अब वो तू मुझे चाहे कैसे भी चुका! आज शाम तक मेरे पैसे मेरे पास होने चाहिए. वरना मैं तेरे खेत को बेच कर अपने पैसे वसूल कर लूंगा।
यह बोल मुखिया जी वहाँ से चले गए.
घर पर सब बहुत परेशान हो गए थे कि अब इतने सारे पैसे कहाँ से लायेंगे.
शाम भी हो गयी पर पैसे का कोई इंतजाम नहीं हुआ.
तो दादाजी बोले- बहू, मैं मुखिया जी से बात करके देखता हूँ शायद वो हमें कुछ समय दे।
तो माँ बोली- नहीं ससुर जी, मुझे पता है वो नहीं मानने वाला है. आप रहने दीजिए, मैं उनसे बात करके कुछ करती हूँ।
यह बोल माँ वहाँ से मुखिया जी के घर को निकल गयी.
पर मुझे माँ की चिन्ता हुई तो मैं भी उनके पीछे पीछे चला गया.
माँ हमारी पास वाली कमला आंटी को भी अपने साथ ले गयी थी.
वो दोनों मुखिया जी के घर के अंदर चली गयी.
पर मुझे देखना था कि उनकी क्या बात होती है.
इसलिए मैं बाहर की खिड़की से अंदर झाँकने लगा.
वहाँ मुखिया जी बैठे थे और माँ और कमला आंटी खड़ी हुई थी.
माँ- मुखिया जी, हम लोग इतनी जल्दी इतने पैसों का इंतजाम नहीं कर पाएंगे. अगर आप हमें थोड़ा समय दे दो तो आपके सारे पैसे हम चुका देंगे।
मुखिया जी- देख चंदा, मुझे अपने पैसे आज ही चाहियें. अब वो तू कहीं से भी लेकर आ … मुझे उससे कोई मतलब नहीं!
तो कमला आंटी मुखिया जी के पास आकर नीचे बैठी, उनके पैर दबाने लगी और बोली- मुखिया जी, देख लीजिये ना … अगर कुछ हो सकता हो तो! आपने तो मेरे पति का कर्जा भी माफ किया तो इसके बेटे का भी तो माफ कर सकते हैं।
मुखिया जी अपनी धोती को ऊपर सरकाते हुए- तेरे पति के कर्जे की कीमत क्या थी … तुझे पता है ना?
यह सुन माँ ने अपने नज़र झुका ली और कमला आंटी बोली- मुखिया जी, चंदा को पता है सब! अगर आप बोलो तो वो आपको अभी वो कीमत चुका सकती है।
मुखिया जी- क्यों चंदा, ये कमला सही बोल रही है क्या?
माँ थोड़ा घबराती हुई- जी, मुझे कीमत पता है और वो मैं चुका सकती हूँ।
मुझे उन तीनों की ये बाते समझ नहीं आ रही थी कि ये किस कीमत की बात हो रही है.
पर मैं अंदर झाँकता रहा।
मुखिया जी माँ को अपनी जाँघों पर बैठने का इशारा करने लगे.
पहले तो माँ नहीं गयी, पर कमला आंटी उन्हें बोली- अब शर्मा मत … आ भी जा!
और माँ जाकर मुखिया जी की जाँघों पर बैठ गयी
फिर कमला आंटी बोली- तो मुखिया जी, मैं चलती हूँ, आप मजे कीजिये।
मुखिया जी- ठीक है जा … पर तुझे पता है ना कि तुझे यहाँ से जाकर क्या करना है?
कमला आंटी- जी पता है।
यह बोल कमला आंटी माँ से बोली- तो मैं चलती हूँ. मुखिया जी को खुश कर देगी तो तेरी और तेरे परिवार की सारी परेशानी खत्म हो जाएगी. समझ गयी ना!
माँ थोड़ा घबराती हुई- हम्म्म!
फिर मुखिया जी ने अपना हाथ माँ के ब्लाउज़ पर रखा और उनके दूध को दबाने लगा.
माँ थोडी झिझक रही थी.
फिर मुखिया जी ने माँ को अपनी मजबूत बांहों में जकड़ लिया और उनके होंठों को चूमने लगा.
माँ मुखिया जी का इन सब में साथ तो नहीं दे रही थी पर इसका विरोध भी नहीं कर रही थी.
फिर मुखिया जी ने माँ को अपनी जाँघों से उठाया और माँ की साड़ी को खोलने लगे.
साड़ी को खोल कर उन्होंने एक ओर फेंक दी.
फिर उन्होंने माँ के पेटिकोट का नाड़ा खोला जिससे उनका पेटीकोट नीचे गिर गया.
पर माँ ने एकदम से अपने हाठों से अपनी चड्डी को ढक दिया.
फिर मुखिया जी ने माँ के ब्लाउज़ को भी खोल दिया.
तो माँ ने अपने दूध भी अपने हाथ से छुपा लिए.
तब मुखिया जी बोले- अब मुझसे क्या शर्म चंदा रानी!
ये बोल मुखिया जी ने माँ के दोनों हाथों को पकड़ा और हटा दिया.
मुझे खिड़की से माँ के दूध उनकी ब्रा से बाहर आते हुए नज़र आ रहे थे.
जिससे मेरे मन में भी माँ को ले कर वासना पैदा होने लगी थी.
फिर मुखिया जी ने अपने मोटे और काले लन्ड को अपनी धोती से बाहर निकाला और माँ को उसे मुँह में लेने का इशारा करने लगा.
माँ अपने घुटनों पर बैठी और मुखिया जी के लन्ड को अपने हाथों में लिया, उसे चाटने लग गयी.
मुखिया जी को बहुत मजा आ रहा था.
माँ धीरे धीरे लन्ड को अपने मुँह में लेने लगी.
लन्ड इतना लम्बा ओर मोटा था कि माँ को उसे मुँह में लेना मुश्किल हो रहा था.
फिर भी वो उसे मुँह में ले रही थी.
पहले तो वो आधा ही लन्ड चूस रही थी पर फिर मुखिया जी ने माँ का सिर पकड़ा और अपना पूरा लन्ड माँ के मुँह में डाल दिया.
माँ छटपटा रही थी, उनको सांस भी नहीं रही थी.
पर मुखिया जी नहीं माने ओर माँ के मुँह को चोदते रहे.
माँ के मुँह से थूक निकल रहा था और वो मुखिया जी का पूरा लन्ड अपने थूक से भीगा चुकी थी.
फिर अचानक से मुखिया जी का शरीर अकड़ने लगा और उन्होंने 5-6 जोरदार झटके मारे.
उनका लन्ड माँ के मुँह में ही झड़ गया.
फिर जैसे ही मुखिया जी ने माँ का सिर छोड़ा … माँ ने मुखिया जी का लन्ड अपने मुँह से निकाल ओर उनका सारा माल थूक दिया.
मुखिया जी का पूरा लन्ड थूक से भीग चुका था.
माँ हाम्फ रही थी पर जब उनकी साँसें नॉर्मल हुई तो उन्होंने मुखिया जी के लन्ड को एक कपड़े से साफ किया।
मुखिया जी बोले- आज रात मैं तेरे घर आऊँ या तू यहाँ मेरे घर आएगी?
माँ- मेरे घर नहीं मुखिया जी! और आपके घर भी अगर किसी ने मुझे आते हुए देख लिया तो मेरी गांव में बहुत बदनामी हो जाएगी. कहीं और मिलना पड़ेगा।
मुखिया जी- तू ही बता कहाँ मिलें?
माँ- मेरे खेत में एक छोटी सी झोपड़ी है, वहीं मिल लेंगे अगर आप चाहो तो!
मुखिया जी- ठीक है. रात में 10 बजे के बाद मुझे तू वहीं मिलना, चल अब जा तू!
फिर माँ ने अपने कपड़े पहने ओर वहाँ से चली गयी.
मैं भी घर वापस आ गया.
माँ थोड़ी देर बाद घर पहुँची.
जब माँ घर आई तो मेरे दादा ओर दादी जी ने उनसे पूछा कि मुखिया ने क्या बोला.
तो माँ बोली- उन्होंने हमारी मजबूरी समझी और हमें पैसे चुकाने के थोड़ा और टाइम दे दिया है।
उसके बाद माँ नहाने चली गयी.
रात में माँ खाना बना, खाकर खेत जाने लगी.
क्योंकि माँ अक्सर रात में भी खेत पर काम करने जाती थी तो दादा जी और दादी जी ने माँ से कुछ नहीं पूछा.
पर मुझे तो सच्चाई पता थी कि आज खेत में कौन सा काम होने वाला है तो मैं भी माँ के खेत के लिए निकलने के थोड़ी देर बाद निकल गया.
जब मैं खेत में पहुँचा तो वहाँ पर बहुत अंधेरा था.
पर झोपड़ी में से बल्ब की रोशनी आ रही थी.
जब मैं झोपड़ी के पास पहुँचा तो सुना कि झोपड़ी से कुछ आवाजें आ रही थी ‘अअ अह अआअ अह हम्म्म् ईषष ईईईआआ!’
तो मैंने झोपड़ी में झाँक कर देखा तो माँ और मुखिया जी दोनों बिलकुल नंगे थे.
माँ नीचे जमीन पर एक चटाई पर लेटी थी और मुखिया जी माँ की चूत को चाट रहे थे.
थोड़ी देर चूत चाटने के बाद मुखिया जी ने अपने मोटे से लन्ड को माँ की चूत पर रखा और उसे चूत पर रगड़ने लगा.
माँ किसी जलबिन मछली सी मचलने लगी.
फिर मुखिया जी ने अपने लंड और माँ की चूत पर बहुत सारा थूक लगाया और अपने लन्ड को माँ की चूत में डालने की कोशिश करने लगे.
पर उनका लन्ड इतना मोटा था कि चूत में नहीं जा पा रहा था और फिसल रहा था.
तो माँ बोली- मेरे पति के जाने के बाद मेने कोई लन्ड नहीं लिया है. इसलिए छेद कस गया है. आराम से डालिये मुखिया जी।
यह सुन मुखिया जी ने माँ को एक मुस्कान दी.
माँ की चड्डी को माँ के मुँह में डाल उनका मुँह बन्द किया, चूत पर वापस अपने लन्ड लगाया और इस बार उन्होंने अपनी पूरी ताकत से अपने लन्ड को चूत में डाल दिया.
उनका लन्ड माँ की चूत को चीरता हुआ अंदर चला गया.
माँ को बहुत दर्द होने लगा, वो चिल्लाने को कोशिश करने लगी पर उनके मुँह में उनकी चड्डी होने के कारण उनकी आवाज नहीं निकल रही थी.
उनकी आंखों से आँसू निकल रहे थे और वो मुखिया जी को अपने से दूर करने की कोशिश करने लगी.
पर मुखिया जी की मजबूत पकड़ से वो छूट नहीं पायी.
अब मुखिया जी भी अपने लन्ड को चूत में अंदर बाहर करने लगे.
यह देख मेरा लन्ड भी खड़ा हो गया और मै भी बाहर खड़ा होकर मुठ मारने लगा.
कुछ देर बाद जब माँ का दर्द कुछ कम हुआ तो उन्होंने अपने हाथों को मुखिया जी के चूतड़ों पर रख उनको ऊपर नीचे करने लगा.
अब शायद माँ को भी मजा आने लगा था.
लगभग 10 मिनट ऐसे ही चुदाई करने के बाद मुखिया जी ने अपने लन्ड को माँ की चूत से बाहर निकाला.
फिर उन्होंने माँ को घोड़ी बनाया और पीछे से उनकी चूत चोदने लगे.
माँ भी मजे ले लेकर अपनी गांड को आगे पीछे करने लगी और लन्ड को अपनी चूत के अन्दर लेने लगी.
उस पूरी झोपड़ी में उन दोनों की चुदाई की आवाज गूँजने लगी थी.
मुखिया जी के धक्के माँ के दूध को हवा में झुलाते थे.
वो बहुत आकर्षक नज़ारा था.
फिर पंद्रह मिनट बाद मुखिया ने अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी और माँ की चूत में ही अपना पानी छोड़ दिया और ऐसे ही उनके ऊपर लेट गए.
उन दोनों का पूरा बदन पसीने से तरबतर हो रहा था.
थोड़ी देर में जब वो दोनों नॉर्मल हुए तो मुखिया जी ने अपना लन्ड माँ चूत से बाहर निकाला.
माँ की चूत से खून और मुखिया जी का वीर्य दोनों निकल रहे थे.
और मेरा भी लन्ड अब माल निकालने को तैयार था.
मैंने झोपड़ी के दरवाजे पर ही अपना माल गिरा दिया.
मुखिया जी ने अपना पसीना माँ की साड़ी से पौंछा और अपने कपड़े पहनने लगे.
तो माँ भी अपने कपड़े पहनने लगी.
तब मुखिया जी बोले- अभी कहाँ कपड़े पहन रही है चन्दा!
माँ- जी, मैं कुछ समझी नहीं?
तो मुखिया जी ने अपने मोबाइल से एक कॉल किया और बोले- मेरा काम हो गया है. अब तू आ जा!
यह सुन माँ चौंक गयी और बोली- ये आपने किसे फ़ोन किया है?
मुखिया जी- कोई नहीं … बस मेरे जैसा तेरा एक आशिक है. उसको भी अपनी गर्मी तेरे अन्दर निकालनी है।
यह सुन माँ घबरा गई और बोली- मुखिया जी, मैं कोई रांड नहीं हूँ. मेरी मजबूरी थी आपके साथ सोना … आप मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे हैं.
मुखिया जी कुछ नहीं बोले.
थोड़ी देर बाद कोई बाइक से आया तो मैं दरवाजे से हटकर खेत में छुप गया.
अंधेरे में उस आदमी का मुझे चहरा नहीं दिख पाया.
जब वो आदमी अंदर गया तो मैं वापस दरवाजे पर आ गया और अंदर देखने लगा.
तब मुझे उस आदमी का चेहरा दिखा. जिसे मैं देखता रह गया.
यह आदमी वही डॉक्टर था जिसने मुखिया जी को मुझे पैसे देने के लिए कहा था.
डॉक्टर माँ को नंगी देख अपना लन्ड मसलने लगा और बोला- जब से चन्दा मैंने तेरी गांड को देखा है, तब से मुझे तेरी गांड मारनी थी. पर आज वो मौका मिला है मुझे … सारी कसर आज पूरी करूंगा मैं!
यह बोल डॉक्टर ने अपने कपड़े उतार दिए और वो माँ के पास चटाई पर जा कर बैठ गया और उनके दूध से खेलने लगा.
डॉक्टर का लन्ड मुखिया जी के लन्ड से छोटा था पर उसने माँ को बहुत बेरहमी से चोदा.
माँ डॉक्टर को मना भी नहीं कर सकती थी.
डॉक्टर ने भी अपना पानी माँ की चूत में ही छोड़ दिया था.
माँ की चूत बहुत दर्द कर रही थी, उनसे खड़ा भी नहीं हो पा रहा था.
तो डॉक्टर से माँ को एक गोली दी और बोला- ये ले, इससे दर्द कम हो जाएगा।
फिर मुखिया जी और डॉक्टर वहाँ से चले गये और माँ वहीं चटाई पर नंगी ही लेटी रही.
मैं घर वापस आ गया.
पर मेरे दिमाग में माँ का नंगा बदन ही घूम रहा था. अब मुझे माँ की चुदाई करने की इच्छा होने लगी.
पर मुझे मौका नहीं मिल रहा था.
बस मैं रोज रात को माँ को खेत पर मुखिया जी और डॉक्टर से चुदते देखता क्योंकि अब माँ को भी सेक्स की लत लग गयी थी. वे दोनों माँ को कुछ सामान पैसे भी दे देते थे.
आपको गाँव की चुदाई की कहानी कैसी लगी? आप मुझे मेल करके बतायें.
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