मेरा नाम विकास है, मैं देवास जिले का रहने वाला हूँ पर काम के सिलसिले में मुझे अक्सर उज्जैन में रहना पड़ता है।
मेरी हाइट 5’4″ है, कद काठी एवरेज है, लिंग की तो बात ना पूछो पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास करो।
अन्तर्वासना कुछ महीने पहले मैंने पढ़ना चालू की है, मुझे अन्तर्वासना की हिंदी सेक्सी स्टोरी पढ़ने में बहुत आनन्द आता है, बैठे बैठे मुझे मेरी सेक्सी स्टोरी याद आने लगी तो सोचा मैं भी लिख दूँ।
किस्मत भी जब देती है तो सब कुछ फाड़ के देती है।
दोपहर के एक बजे गर्मी से परेशान में सड़क पर पैदल चल रहा था, चलते चलते सामने एक गन्ने के रस की दुकान आ गई, मुझे तो जैसे अमृत मिल गया, मैं दुकान के अंदर जा कर कूलर के सामने बैठ गया, कूलर की ठंडी हवा में मेरी आँखें धीरे धीरे बंद होने लगी।
कुछ मिनट बाद एक आवाज़ ने मुझे उठा दिया, वो दुकान के अंदर का कर्मचारी था, बोला- यहीं सोने का इरादा है क्या?
मैंने कहा- नहीं यार… एक गन्ने का रस ला देना!
वो चला गया और एक गिलास ठंडा गन्ने का रस ला कर मुझे दे दिया, रस पीते पीते मेरी आँखें फिर बंद हो गई, फिर एक आवाज़ ने मुझे उठा दिया पर इस बार यह आवाज़ उस लड़के की नहीं थी।
मैंने आँखें खोल कर सामने देखा, 30-32 साल की एक महिला गर्मी से परेशान होकर अपने चेहरे से पसीना पौंछ रही थी, उसके हाथों के कंगन की आवाज़ ने मुझे उठा दिया था।
जैसे ही उसने अपने चेहरे से रुमाल हटाया, मैं एक हाथ में गिलास लेकर उसे देखता ही रह गया, सांवली सी सूरत, सांवला जिस्म, और सांवले जिस्म पर पर्पल साड़ी… ह्म्म्म देखता ही रह गया मैं और गन्ने के रस को भूल गया।
वो अंदर आई और मेरे पीछे वाली स्टूल पर आकर बैठ गई, अब मैं उसे देख नहीं पा रहा था।
फिर उसने भी एक गिलास गन्ने का रस मंगाया और पीने लगी।
तभी अचानक मेरे पैर में मुझे कुछ टकराया मैंने नीचे देखा तो एक मोबाइल फोन था, मैंने उसे उठाया और देखने लगा।
शायद ऑफ था, फिर वो महिला खड़ी होकर कुछ ढूंढने लगी, शायद यह मोबाइल उसी का होगा, मैंने उसे कहा- क्या आपका मोबाइल गिर गया है?
महिला- हाँ अभी आई थी तब तो मेरे पास था!
मैंने उसे दिया और कहा- यही है क्या?
महिला- हाँ यही तो है, पर आपको कहाँ से मिला?
मैं- अभी जब आप गर्मी से परेशान हो कर यहाँ बैठी थी शायद तब गिर गया होगा।
महिला- ओह हां, थैंक यू!
मैंने उसे उसका मोबाइल दिया और वह फिर उस जगह पर बैठ कर किसी को फ़ोन लगाने लगी, पर उसका मोबाइल ओन नहीं हो रहा था, मैंने उसे कहा- शायद गिरने के कारण बंद हो गया है!
महिला- हाँ, पर मुझे फ़ोन करना है।
मैं- लाइए दीजिये, मैं चेक करता हूँ।
महिला- ये लीजिये।
मैंने मोबाइल के स्विच को प्रेस किया, वो स्टार्ट नहीं हो रहा था, शायद गिरने के कारण बैटरी ढीली हो गई होगी। मैंने बैटरी को निकाला और फिर लगा कर स्विच ओन किया तो वह पासवर्ड मांगने लगा।
मैं- यह पासवर्ड मांग रहा है।
महिला- पासवर्ड है 12345
मैंने जैसे ही पासवर्ड डाला, फ़ोन स्विच ओन होते ही उस पर एक बहुत खूबसूरत सा वालपेपर आ गया और मैं उसे भी देखता रह गया।
यह वालपपेर उस महिला का ही था सिर्फ एक शर्ट ही पहने हुए जिस्म पर… बहुत ही हॉट वालपेपर था।
मैं- यह लीजिये, आपका फ़ोन स्टार्ट हो गया।
महिला- ओह थैंक यू!
मैं- यो’र वेलकम!
फिर वो किसी को फ़ोन लगाने लगी- हेलो, कहाँ हो तुम? मैं यहाँ सिटी में आई हूँ, मेरे पास गाड़ी नहीं है, तुम मुझे घर तक ड्राप कर दोगे क्या?
…
…
‘अरे यार, अब मैं घर कैसे जाऊँगी?’ कहते हुए फ़ोन काट दिया।
महिला- सॉरी मेरे कारण तुम्हारा गन्ने का रस गर्म हो गया।
मैं- इसमें सॉरी की क्या बात है।
महिला- आप एक गिलास और ले लीजिए।
मैं- नहीं रहने दीजिये, इट्स ओके!
महिला- ले लीजिये, गर्मी भी बहुत है।
मैं- ओके पर आपको भी एक लेना पड़ेगा।
मैं मज़ाकिया अंदाज़ में बोला।
महिला- एक क्या, मैं तो 2-3 गिलास और पी लूँ अगर कोई साथ में बैठा हो तो!
मैं- भैया दो गिलास रस और देना!
और हम साथ में बैठ कर पीने लगे।
महिला- गर्मी के दिनों में एक गिलास गन्ने का रस पूरे शरीर में ताज़गी ला देता है।
मैं- सही बात है। लगता है आपको गन्ने का रस बहुत पसंद है?
महिला- गन्ने के रस से बढ़िया कोई रस नहीं है। तुम्हें पसंद नहीं है क्या?
मैं- ऐसी कोई बात नहीं, मुझे गन्ने से ज्यादा मोसम्बी का रस पसंद है।
महिला- सब की अपनी अपनी पसंद है, मैं तो गर्मी में रोजाना योगा के बाद दो गिलास पी जाती हूँ।
मैं- अरे वाह, तुम योग करती हो?
महिला- हां जी!
मैं- तभी इतनी फिट हो।
महिला मुस्कुराते हुए- थैंक यू!
शायद उसे पता चल गया था कि मैं उसका हॉट फोटो देख चुका हूँ।
मैं- कहाँ रहती हैं आप?
महिला- ***
मैं- अरे यह तो काफी दूर है यहाँ से!
महिला- हाँ और मेरे पास आज गाड़ी भी नहीं है।
मैं मन ही मन सोचता रहा कि गाड़ी तो मेरे पास भी नहीं है- फिर आप कैसे जाएँगी?
महिला- ऑटो है ना!
मैं- ओह्ह!
और बात करते करते हम दोनों खड़े हो गए, मैंने दुकान वाले को जाकर पैसे दिए।
महिला- अरे रुको, पैसे में दे रही हूँ।
मैं- नहीं आप क्यों दे रही हैं। मैं दे दूंगा।
महिला- अपने मेरा मोबाइल ठीक कर दिया, नहीं तो मैं फ़ोन कैसे करती… इस लिए ये मेरी तरफ से!
मैं- आप अपनी तरफ से तो मुझे गन्ने का रस पिला रही हो, पर मैं आपके पैसों से कैसे पी सकता हूँ।
महिला- अगली बार तुम्हारे पैसों से पी लेंगे।
एक कातिलाना मुस्कुराहट के साथ…
मैं- ठीक है, वैसे भी तुम्हें गन्ने का रस ज्यादा पसंद है।
महिला- आई लव गन्ना!
होठों पर ज़ुबान फेरते हुए…
फिर हम दुकान के बहार आकर रिक्शा का इंतज़ार करने लगे, उसने धूप के कारण अपनी साड़ी का पल्लू सर पर डाल लिया, जैसे ही उसने साड़ी के पल्लू को ऊपर किया उसकी सांवली सी कमर मेरी नज़र के सामने आ गई और मैं उसे देखता रह गया।
शायद उसने मेरी निगाहों को देख लिया था।
महिला- क्या देख रहे हो?
मैं- कुछ नहीं!
महिला- काफी देर हो गई रिक्शा नहीं आया, वैसे आपको कहाँ जाना है?
मैं- ###
महिला- ये तो पास में ही है।
मैं- हाँ!
महिला- अरे रिक्शा आ गया।
मैं- अरे भाई *** तक चलोगे क्या?
रिक्शा वाला- कितनी सवारी है।
मैं- महिला की तरफ देखते हुए बोला फ़िलहाल तो एक ही है।
और मैंने महिला से कहा- आप चली जाइये।
महिला- फिर आप कैसे जायेंगे?
मैं- मैं दूसरा रिक्शा कर लूंगा।
महिला- इतनी देर में तो यहाँ एक रिक्शा आया है, पता नहीं दूसरा कब आएगा।
मैं- ये बात तो सही है।
महिला- आपका घर तो मेरे रास्ते में ही आ जायेगा, चलिए साथ में चलते हैं।
मैं- ठीक है।
और हम दोनों रिक्शा में बैठने लगे।
मैं- आप बैठिये।
वो बैठने लगी और में पीछे से उसकी कमर को देखने लगा, क्या क़यामत थी, मेरी पैंट के अंदर हलचल होने लगी और मेरा लिंग गन्ने के जैसा टाइट हो गया।
महिला बैठते हुए- आइये, बैठ जाइये।
उसकी नज़र मेरी पैंट पर पड़ी, उसने मुझे एक कातिलाना मुस्कराहट से देखा।
फिर रिक्शा चलने लगा।
मैं- तुमने अपना नाम क्या बताया था?
महिला- मैंने नाम ही नहीं बताया अभी!
मैं- ओह्ह… वैसे मेरा नाम विश्वास है।
महिला- और मेरा निशा!
मैं- नाम अच्छा है।
निशा- तुम्हारा भी।
रिक्शा चल रहा था और हमारी बातचीत का दौर भी आगे बढ़ा।
मैं- क्या करती हो?
निशा- फ़िलहाल तो कुछ नहीं, और तुम?
मैं- फ़िलहाल तो मैं भी कुछ नहीं कर रहा हूँ।
निशा- ### में कहाँ रहते हो?
मैं- आशियाना मल्टी में चौथे माले पर!
निशा- और कौन कौन रहता है तुम्हारे घर में?
मैं- अभी तो अकेला रहता हूँ।
निशा- ओके।
मैं- तुम्हारे घर में कौन कौन रहता है।
निशा- मैं, मेरे पति, और मेरे बच्चे!
मैं- क्या करते हैं तुम्हारे पति?
निशा- प्रॉपर्टी डीलर है।
मैं- वो तुम्हें लेने नहीं आये, क्या तुम उन्ही को फ़ोन कर रही थी?
निशा- नहीं, मैंने मेरे एक फ्रेंड को फ़ोन किया था, मेरे पति तो एक डील के सिलसिले में जयपुर गए हैं।
मैं- और बच्चे?
निशा- बच्चे उनकी नानी के यहाँ गए है गर्मी की छुट्टियाँ मनाने!
मैं- तो तुम्हारा दोस्त नहीं आया।
निशा- उसे कुछ काम आ गया।
इतने में मेरा घर आ गया, मैं- रिक्शा वाले भाई साहब, रोक दीजिये।
मैं उतरा और पैसे देने लगा।
निशा- अरे रहने दो, मैं दे दूंगी पैसे!
मैं- नहीं, तुम गन्ने के रस के पैसे दे चुकी हो, अब मुझे देने दो।
निशा- अरे मुझे आगे तक जाना ही था, तुम्हारा घर तो रास्ते में था।
मैं- अब गन्ने के रस का क़र्ज़ रहा तुम्हारा मुझ पर!
निशा- कभी भी उतार देना!
मैं- क्या पता कब मिलोगी, और मैं इस क़र्ज़ में डूबा रहूँगा।
निशा- ऐसा है तो अभी उतार दो।
मैं आँखों में चमक के साथ- आ जाईये।
निशा- पर यहाँ आसपास कोई गन्ने के रस की दुकान तो नज़र नहीं आ रही है।
मैं- थोड़ी दूर है।
निशा- तुम्हारा घर इस बिल्डिंग में है।
मैं- हां, चौथे माले पर… चलो मैं आज तुम्हें मोसम्बी का रस पिलाता हूँ।
निशा- कहाँ?
मैं- तुम्हें ऐतराज़ न हो तो मेरे घर पर!
निशा- मुझे क्या ऐतराज़ होगा।
और रिक्शा वाले को पैसे देकर हम चल पड़े घर की ओर!
वहाँ जाकर मैंने उसे घर में बैठाया और कूलर चालू कर दिया।
वो आराम से बैठ गई, मैं उसके लिए फ़्रिज़ में से पानी की बोतल ले कर आया, उसने मुँह से लगा कर पानी पिया और बोतल वहीं रख दी।
मैं- तुम्हें घर जाने की कोई जल्दी तो नहीं है?
निशा- घर पर कोई है ही नहीं तो जल्दी कर के क्या करुँगी?
मैं- मैं वाशरूम होकर आता हूँ तुम बैठो!
मैं वाशरूम से बाहर आया तो देखा की निशा कूलर की ठंडी हवा में आँखें बंद किये बैठी है और कूलर की हवा से उसकी साड़ी उड़ कर उसके चेहरे पर जा रही है, उसकी कमर और स्तन दिख रहे हैं।
मैं उन्हें देखता ही रह गया और मेरे गन्ने का आकार कड़क और लम्बा हो गया, मैंने उसे धीरे से आवाज़ दी और वो उठ गई।
मैं- क्या हुआ? नींद आ गई क्या?
निशा- हां, कूलर की हवा है ही इतनी ठंडी!
मैं- तुम्हें वाश रूम जाना है?
निशा हाथ में मोबाइल लेते हुए- हाँ जी, पर ये मोबाइल फिर से बंद हो गया।
मैं- लाओ, ये मुझे दे दो, मैं इसे स्टार्ट करता हूँ, तब तक तुम वाशरूम होकर आ जाओ। अरे इसका पासवर्ड तो बता दीजिये।
निशा- 12345 और गैलेरी का उल्टा!
कहते हुए वो बाथरूम में चली गई।
मैंने उसके मोबाइल को स्टार्ट किया, उसका वॉलपेपर जैसे ही मेरी आँखों के सामने आया, मैं उसे देख कर अपने लिंग को पैंट के ऊपर से ही पकड़ कर दबाने लगा, फिर मैंने सोचा गैलरी खोलता हूँ, मैं मोबाइल की गैलेरी में गया और मैंने 54321 किया और लॉक खुल गया।
जैसे ही गैलेरी को मैंने खोला, मेरी आँखें फटी की फटी रह गई, उसमें उसके हज़ार से भी ज्यादा फोटोज थे और सब एक से बढ़ कर एक… कसम से उन फ़ोटो में वो ऐसी लग रही थी कि खुद मेनका ही स्वर्ग से उतर आई हो।
इतने में उसने मुझे वाशरूम से आवाज़ दी- जरा मेरे पर्स में से मेरा हेंकी मुझे दे देना!
मैं उसके पर्स में से उसे हेंकी देने लगा।
वो वाशरूम से उसका चेहरा हैंकी से पोंछते हुए बाहर आ गई।
उसकी साड़ी गीली हो गई थी।
मैं- तुम्हें चेंज करने के लिए कुछ चाहिए क्या?
निशा- यहाँ क्या होगा मेरे पहनने के लायक।
मैं- जो तुम पर अच्छा लगता है, वो ही है।
और मैंने मेरे बेडरूम से एक पिंक शर्ट निकल कर उसे दिया।
निशा- ओह्ह्ह तो तुम्हें पता चल गया कि मुझे क्या पसंद है और क्या नहीं।
मैं- हाँ जी!
और उसे मोबाइल देकर में किचन में चला गया।
वहाँ मैंने मोसम्बी का रस बनाया और उसे लेकर मैं उसके पास आ गया। तब तक वो चेंज करके शर्ट पहन चुकी थी।
मैंने उसे देखा तो देखता ही रह गया, जी कर रहा था कि अभी मसल दूँ।
निशा- क्या हुआ जी, क्या देख रहे हो?
मैं- जी देखने की चीज ही देख रहा हूँ! हा हा हा!
निशा- देख लीजिये पर हमें हमारा रस तो पिला दीजिये।
मैं- ओह्ह हां… यह लीजिये ताजा मोसम्बी का रस!
निशा- तुम्हें मोसम्बी का रस ज्यादा पसंद है।
मैं- सबकी अपनी अपनी पसंद है।
निशा- हा हा हा!
मैं- सॉरी, पर तुम्हारी पसंद का गन्ने का रस मैं तुम्हें नहीं पिला पाया।
निशा शरारती अंदाज़ में- हां यह बात तो है!
मैं- अगली बार जरूर पिला दूंगा, अभी मोसम्बी का पी लो।
निशा- जो मज़ा गन्ने के रस में है वो मोसम्बी में कहाँ!
मैं- अभी कहाँ से लाऊँ तुम्हारे लिए गन्ना?
निशा- ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाते हैं, यह तो गन्ना ही है।
मैं- ढूंढ कर लाऊँ?
निशा- नहीं, रहने दो, मैंने ढूंढ लिया है।
मैं- यहाँ कहाँ ढूंढा?
इतना कहते ही निशा सोफे पर से उठ कर खड़ी हो गई और मेरे पास आकर मेरे गिलास को मेरे हाथ से लेकर रख दिया और मुझे सोफे पर धक्का दे कर मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे जिस्म पर हाथ फिरने लगी।
मैं- यह क्या कर रही हो?
निशा- गन्ना ढूंढ रही हूँ।
हाथ फेरते फेरते उसके हाथ मेरे लिंग के ऊपर आकर रुक गए, उसने अपनी कातिलाना मुस्कराहट के साथ मुझे कहा- मुझे मेरा गन्ना मिल गया है!
और मेरी पैंट को खोल कर मेरे लिंग को हाथ में लेकर चूमते हुए बोली- आई लव गन्ना!
यह हिंदी सेक्सी स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
मैं उसकी इस हरकत से पागल हुआ जा रहा था, फिर उसने मेरे लिंग को मुँह में ले लिया और बड़े प्यार से उसे चूसने लगी- उम्मह्ह… ओह ह्ह्ह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… येस्स स्स…
उसकी आवाज़ मुझे और मदहोश किये जा रही थी, उसने मेरे लिंग को 10 मिनट तक हर तरह से चूस कर चाट कर मुझे पागल कर दिया, अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
मैं- मेरा रस निकलने वाला है।
निशा- उम्ममाह्ह… तो निकाल दो मेरी जान… मैं इस गन्ने के रस को पीने के लिए कब से पागल हुई जा रही हूँ, पिला दो मुझे ये रस उम्म ह्ह्ह…
और उसके इतना कहते ही मैंने अपने गन्ने का पूरा रस उसके मुँह में डाल दिया।
वो मेरे गन्ने के रस की एक एक बून्द मुँह में पी गई और मैं निढाल सा होकर लेट गया।
निशा- क्या हुआ जान?
मैं- तुमने तुम्हारा प्रिय रस तो पी लिया पर मेरी प्यास तो अधूरी है!
निशा- तो तुम भी ढूंढ लो अपनी मोसम्बी!
उसके बोलते ही मैं उस पर टूट पड़ा, उसने जो मेरी शर्ट पहनी थी, मैंने उसके सारे बटन तोड़ कर उसे निकाल फेंका, अब उसका सांवला सलोना सुन्दर जिस्म मेरे हाथों में था, जी कर रहा था खा जाऊँ पूरा!
मैंने शर्ट को उसके तन से जैसे ही अलग किया तो देखा कि उसने अंदर कुछ नहीं पहना है, न ब्रा न पेंटी!
मैंने उसे देखा, क्या जिस्म था उसका… तराशा हुआ… हर अंग निखरा हुआ था, कमाल की दिख रही थी वो अप्सरा!
निशा- क्या हुआ जी?
मैं- अभी हुआ कहाँ है, अभी तो बाकी है।
निशा- तो करो न… रुके क्यों हो?
मैं: तुम्हारे जिस्म को निहार तो लूँ!
निशा- निहार लो… ये तो अब तुम्हारा है।
मैं- क्या फिगर है यार तुम्हारा!
निशा- 38-32-36 है। बड़ी मेहनत से बनाया है।
उसके बोलते ही मैंने उसके नाज़ुक से स्तनों को अपने हाथ में ले लिया और उन्हें सहलाते हुए अपने मुँह में ले लिया ‘उम्म्ह ह्ह्ह… उम्म्म म्म्ह्ह ह्ह्ह…’ और उन्हें बड़े प्यार से चूसने लगा!
‘हाय रे मोसम्बी, उम्म्ह्ह्ह ह… उम्म ह्ह्ह…
निशा- चूसो चूसो मेरे जनू… और जोर से चूसो, निकाल लो पूरा रस इनका!
मैं- आज तो ज़िन्दगी में पहली बार इतनी रसीली मोसम्बी हाथ आई है, कैसे छोड़ूँ!
निशा- हा हा हा… वाह मेरे जानू… चूसो!
यह कहते कहते मैंने उसके होठों को अपने मुँह में ले लिया और उन्हें भी जोर से चूसने लगा। निशा भी मेरे होठों को चूस कर मेरा साथ देने लगी, कभी मैं उसके ऊपर के होंठ को चूसता, कभी नीचे के होंठ को… चूसते चूसते उसने अपनी जुबान मेरे मुँह में डाल दी और मैं उसे भी चूसने लगा।
क्या स्वाद था उसके लबों का और जुबान का!
निशा- अब अपनी जुबान मेरे मुंह में दे दो!
और मैंने उसके मुँह में अपनी जुबान डाल दी और वो उसे गन्ने की तरह चूसने लगी, उसका हाथ मेरे लिंग पर चला गया और सहलाने लगी।
वो फिर हरकत में आने लगा और कड़क हो गया।
निशा- जानू ,तुम्हारे गन्ने में फिर से रस आ गया।
मैं- जानू, तुमने होठों को चूम कर उसमें फिर से रस भर दिया।
निशा- मुझे और पीना है।
मैं- अब मेरी रस पीने की बारी है!
निशा- तुमने पी तो लिया मोसम्बी का रस!
मैं- ये तो मोसम्बी थी, अब मुझे इसकी फांकों का रस पीना है।
निशा- अरे तो वो कहाँ मिलेगा?
मैं- जैसे तुम्हें तुम्हारा गन्ना मिल गया, वैसे ही मुझे मेरी मोसम्बी की फांकें मिल गई हैं।
और कहते ही मैंने उसकी चूत पर अपना हाथ रख दिया।
निशा की चूत इतनी नर्म और मुलायम थी मानो अभी किसी ने रेशम के कपड़े से बनाया हो, मैंने हाथ फेरते फेरते ही उसे सोफे पर लेटा दिया और उसके जिस्म को चूमते चाटते उसकी नाभि को अपनी जुबान से चाटने लगा।
वो कसमसा के उछलने लगी, धीरे धीरे चाटते हुए में उसकी चूत तक पहुंच गया और उसकी चूत पर अपने होंठ रख कर चाटने लगा।
निशा- ओह्ह ह्ह्ह येस्स कम्म ओन न्न्न्न सक्क ककक म्मीईईई… ओह्ह ह्ह्ह् जानू सक मीईई… चूसो! और जोर से चूसो, बहुत रस है इन फांकों में, चूस लो, पूरा चूस लो।
और मैं उसकी चूत को अंदर तक चूसने और चाटने लगा। क्या चूत थी उसकी… मखमली! उसे छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था।
कुछ मिनट चाटने के बाद निशा- ओह्ह जानू, मैं जाने वाली हूँ।
मैं- मुझे भी यह रस पीना है।
और कहते कहते वो मेरे मुँह में पूरी झड़ गई, मैं उसके रस को पी गया और उस मखमली योनि को चाट कर साफ कर दिया।
फिर वो भी निढाल हो गई, हम दोनों एक दूसरे से चिपक कर लेटे रहे कूलर के सामने!
अचानक एक आवाज़ ने मेरी आँखें खोल दी। यह आवाज़ थी उसके कंगन की!
मैंने नंगी निशा को उठाया और उसे वाशरूम ले गया, वहाँ मैंने उसे और उसने मुझे नहलाना शुरू किया और फिर शुरू हो गया गर्मी में बारिश का खेल…