दोस्तो, मेरा नाम अनीष है। मैं एक छोटे से गांव में रहता हूं। कद-काठी, रंग जानने की आवश्यकता नहीं है, बस इतना जान लो कि लौड़ा 7 इंच का है।
सीधे कहानी पे आता हूं। दोस्तो, मेरी सेक्स कहानी यूं ही कुछ 1-2 महीने पहले की है। मैं और मेरे भैया मवेशियों (पालतू जानवर) को लेकर जंगल की ओर चल दिए थे. आते वक्त किसी काम से मैं रुक गया था। शायद मुझे सुसु लगी थी, मैं झाड़ियों में मूतने चला गया. तब तक मेरे भैया मुझसे कुछ दूर चले गए थे.
काफी शाम हो चली थी। मैंने अपनी पैन्ट की जिप खोली और मूतने लगा. जब सुसु ख़त्म हुई तो आँखें खोली तो सामने एक कुंवारी कमसिन कली जो वहीं सुसु कर रही थी, मुझे देख जल्दी से उठी और अपने कपड़े ठीक करने लगी।
उसकी पैंटी घुटनों तक उतरी हुई थी. मुझे देखते ही उसने अपनी ऊपर पेंटी चढ़ा ली।
लेकिन तब तक मैंने उन 2 सेकण्ड में उसकी नाजुक, गुलाबी, पावरोटी के जैसी फूली हुई चूत के दर्शन कर लिए।
उसने मुझे देखा तो वो वहाँ से जाने लगी। जैसे ही वो जाने को हुई, मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा।
खींचते ही वो मेरी बांहों में समा गई।
लेकिन मेरी बांहों में आते ही उसने मुझे जोर का धक्का दिया और मुझसे दूर जाने को हुई.
तभी मैंने एक जोर के झटके के साथ उसे फिर से अपनी बांहों में जकड़ लिया और उसे चूमने लगा। पहले तो ऊपर से ही गालों को 4-5 बार चूमा। और फिर बाल पकड़ कर उसके कोमल गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नाजुक होंठों को चूमने लगा। वो मुझसे दूर हटने की नाकाम कोशिश करने लगी।
अब मैं उसे होंठ और गाल को चूमते हुए धीरे-धीरे उसके गले को चूमने लगा, साथ ही उसके बोबों को भी मसलने लगा। मुझे दस मिनट हो चुके थे ऐसा करते हुए। कुछ टाइम लगा मुझे उसे गर्म करने में! लेकिन थैंक गॉड वो जल्दी ही गर्म हो गयी और चूमा चाटी में मेरा साथ देने लगी।
खड़े खड़े मैंने उसकी कुरती उतार फेंकी, उसने अंदर से ब्रा नहीं पहनी थी। मैं उसकी चुची को जोर जोर से मसलने लगा।
वो कामुक होती जा रही थी, मैं उसे लगातार किस किये जा रहा था, कभी होंठों पे तो कभी गले पर … कभी उसके गालों पर लगातार! वो और गर्म होती जा रही थी।
फिर मैंने उसे घुमाया और पीछे से उसके बदन से चिपक कर लंड उसकी गांड की दरार में सटा कर उसके बोबों को मसलने लगा।
फिर कुछ देर बाद उसे अपने से थोड़ा दूर धकेला और वापस उसके बालों को पकड़कर अपनी ओर खींचा और उसके घाघरे को उतार फेंका. उसने पेंटी पहनी हुई थी और अब वो सिर्फ पेंटी में मेरे सामने खड़ी थी।
अभी तक मैंने अपना एक भी कपड़ा नहीं उतारा था।
अब मैंने उसकी उंगलियों को अपनी उंगलियों में फंसाया और दोनों हाथों को ऊपर करके एक बड़े से पत्थर से टिका दिया और पूरे जोर से उसके निप्पलों को चूसने लगा, चाटने लगा।
वो जोर जोर से सिसकारियां ले रही थी।
अब उसकी पैंटी गीली हो चुकी थी, मैं उसक़ी पेंटी के ऊपर से उसकी चूत को सहलाने लगा, मसलने लगा.
मेरे ऐसा करने से वो तड़पने लगी, काँपने लगी।
अब तक लगभग हल्का सा अँधेरा हो चुका था।
अब मैंने उसकी चूत से वो छोटा सा कपड़ा भी हटा दिया जो पेंटी के रूप में उसकी चूत की रक्षा कर रहा था। मैं नीचे बैठा और अपनी जीभ से उसकी चूत की गहराई मापने लगा.
वो सी सी … करके सिसकारियां भर रही थी।
मैं अपने दोनों हाथों से उसकी कमर पकड़कर उसकी चुत में छुपे दाने को दांतों से धीरे धीरे काट रहा था। गुदगुदी होने के कारण से वह मुझसे दूर हटने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी। कुछ देर मैंने ऐसे ही उसकी चूत को चाट कर साफ किया उसका पूरा पानी पी गया। शायद वो एक बार झड़ चुकी थी।
उधर मेरा भी हाल बुरा हो गया था, मेरा लंड भी खड़े होकर फटने को हो रहा था।
फिर मैं खड़ा हुआ, उसने कामवासना के वशीभूत होकर मेरे पूरे कपड़े उतार फेंके।
मैंने उसको चुम्बन करते हुए एक हाथ से उसकी एक टांग ऊपर को उठाया और अपना लंड उसके हाथ में देते हुए दूसरे हाथ से उसके गले के ऊपर पीछे के बाल पकड़ते हुए उसे पीछे की और झुकाया और फिर मैं अपना औजार उसकी चूत के नजदीक लेकर गया और उसकी तरफ झुक गया.
तब तक उसने मेरे लंड को उसकी चूत में सेट कर दिया था तो मैं उसकी गर्म चूत की गर्मी को महसूस करने लगा.
फिर मैंने अपने लंड को उसकी चूत के अंदर डालना शुरू किया.
मैं हर नाकाम कोशिश कर रहा था, मेरा लंड उसकी चूत के अंदर जा ही नहीं रहा था, उसकी चूत एकदम टाइट थी।
जब मैंने जोर लगाया तब उसे दर्द होने लगा था, अब वो दर्द से चिल्लाने लगी थी. तो मैं अपने होंठों को उसके होंठों पर रखकर चूसने लगा और अपने लंड को उसकी चूत में दबाने लगा. मेरा लंड धीरे धीरे उसकी गीली चूत के अंदर जाने लगा था. मैंने ज़रा ज़रा लंड अंदर बाहर करना शुरू किया तो बाद में उसे भी आनन्द आने लगा तो मैं भी पूरी तरह से उसकी चूत की चुदाई करने लगा.
हम बीस मिनट तक यों ही चुदाई का खेल खेलते रहे और तब तक वो 1-2 बार झड़ गयी थी. और उसके कुछ मिनट के बाद मैंने भी अपना पूरा पानी उसकी चूत के अंदर ही डाल दिया और फिर हम दोनों वहीं घास में लेट गये.
फिर करीब 10 मिनट के बाद दूसरी बार मैंने उसके साथ चुदाई का खेल फिर से शुरु किया, मैंने उसके बूब्स को सहलाया, फिर मैंने उसके निप्पल चूसे और उसके ऊपर चढ़कर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और पूरा ज़ोर लगाकर अपना लंड उसकी चूत के अंदर किया. वो मेरे नीचे लेटी अपने चूतड़ उछाल उछल कर अपनी चूत चुदवा रही थी. कुछ देर बाद मैं दोबारा उसकी चूत में झड़ गया.
दस पन्द्रह मिनट आराम करने के बाद हम दोनों ने अपने कपड़े पहने और साथ साथ गाँव की ओर चल पड़े. चलते चलते अब मैंने उससे उसका नाम पूछा.
उसने अपना नाम साधना बताया। मैंने नोटिस किया कि उसका कद 5’6″ तो होगा. रंग उसका गोरा था गाय के दूध की तरह और बदन का साइज 30-28-32 लगभग।
उसने बताया कि वो हमारे ही गाँव की है, हमारी बिरादरी से अलग दूसरी बिरादरी की है तो मैं उसे नहीं पहचानता था. वो जंगल में कुछ जड़ी बूटी की तलाश में आई थी लेकिन वो बूटी उसे नहीं मिली थी.
मैंने उसे कहा- साधना, तुम कल दिन में आना, मैं भी आऊंगा और बूटी खोजने में तुम्हारी मदद करूंगा.
मेरी बात सुन कर वो हंस पड़ी और मेरे कूल्हे पर एक चपत मार कर बोली- बूटी खोजोगे या मेरी …
उसने बात अधूरी ही छोड़ दी.
मैं बोला- यार सारे काम कर लेंगे.
आशा करता हूँ आपको मेरी कहानी पसन्द आई होगी।
कमेंट्स में मुझे बताएं.
धन्यवाद।
लेखक के आग्रह पर मेल आईडी नहीं दिया जा रहा है.