माय सेक्स स्टोरी विद शाय गर्ल रेलवे स्टेशन के पास एक होटल के कमरे में एक शादीशुदा लड़की के साथ की है. मैं उसे पहले ही चोद चुका था, अब होटल में भी चोदने के लिए ही लाया था.
कहानी के पहले भाग
शर्मीली लड़की की खामोशी
में आपने पढ़ा कि मैं अपने रिश्ते में लगी बहन को मायके लिवाने उसके घर गया. असल में मैं उसे एक साल पहले चोद कर माँ बना चुका था. अब भी मैं उसकी चूत के लालच में गया था कि 2-3 दिन रह कर उसे खूब पेलूँगा, फिर घर लेकर आऊंगा.
मगर वहां पर उसका पति भी था तो मेरी उम्मीदों पर पानी फिरता नजर आया.
मैं मोनी के साथ रेलवे स्टेशन पर आ गया ट्रेन लेने.
अब आगे माय सेक्स स्टोरी विद शाय गर्ल:
रिजर्वेशन काउँटर के बाहर मैं अब आया ही था कि तभी एक आदमी ने मेरे पास आते हुए कहा- होटल रूम चाहिये क्या साहब?
“नही नहीं … तुम अपना काम करो!” मैंने उससे पीछा छुड़ाने के लिये कहा और आगे बढ़ गया.
क्योंकि रेलवे स्टेशन के बाहर होटल वालों के ऐजेन्ट ग्राहक ढूँढने के लिये ऐसे ही घूमते रहते हैं।
मैं एक दो कदम आगे चला तो उसने अब पीछे से फिर से आवाज दी- एक दो घण्टे आराम करने के लिये चाहिये तो बोलो साहब, सस्ते में रूम दिलवा दूँगा.
एक दो घण्टे आराम का नाम सुनते ही मुझे अब अचानक झटका सा लगा क्योंकि मेरी ट्रेन तो रात को नौ बजे थी और अभी तो बस सुबह के साढ़े नौ ही बजे थे।
मैं तब तक यहाँ क्या करुँगा?
क्या करुँगा … मतलब मोनी के साथ कुछ …
अब यह बात मेरे दिमाग में आते ही अचानक मेरे दिमाग की बत्ती भी जल उठी और चलते चलते ही मेरे कदम अचानक अब वहीं के वहीं रुक गये.
तब तक वह आदमी फिर मेरे पास आ गया- बोलो साहब, रूम चाहिये क्या?
“कितने में पड़ेगा?” मैंने पूछा।
“ए०सी० चाहिये या नोन ए०सी०? एसी वाला 700/ में मिलेगा और नोन एसी 500/ में लग जायेगा.” उस आदमी ने कहा।
“नहीं ये बहुत ज्यादा है.” कहते हुए मैं आगे चल पड़ा।
“आप बताओ तो सही कौन सा चाहिये?” उस आदमी ने मेरे पीछे आते हुए कहा.
जिससे मैं अब फिर से रुक गया।
अब दो सौ रूपये के लिये गर्मी में क्यों मरना … यह सोचकर मैंने उसे ए०सी० वाले रूम का सही से रेट लगाने के लिये कहा।
“सही बताया है साहब, आप 650/ दे देना!” उस आदमी ने कहा।
मुझे पता था ये लोग कुछ बढ़ा चढ़ा कर पैसे माँगते हैं इसलिये:
“तुमको देना है तो सही बताओ, नहीं तो मैं कही और देख लूंगा.” कहते हुए मैं फिर से चलने लगा।
“आपको कब तक के लिये चाहिये?” उस आदमी ने फिर से मेरे पीछे आते हुए पूछा।
“हमारी ट्रेन रात में नौ बजे है, आठ बजे खाली कर देंगे.” मैंने बताया।
“साहब ये तो पूरा ही किराया लग जायेगा. चलो आप छः सौ दे देना, इससे कम में नहीं होगा.” उस आदमी ने कहा।
“ठीक है तो मैं कोई और होटल देख लेता हूँ.” कहते हुए मैं फिर से चल पड़ा।
“मन्दा चल रहा है तब इतने में मिल रहा है. नहीं तो ए०सी० वाला रूम आठ सौ, हजार से कम में नहीं मिलेगा.” उस आदमी ने मेरे पीछे चलते चलते ही कहा।
“ठीक है तो रहने दो!” मैं आगे बढता रहा।
“बाकी होटल वाले आपको छोटा सा रूम देकर बेवकूफ बना देंगे साहब … और कोई फेसिलिटी भी नहीं देंगे। हमारे होटल के रूम भी बड़े है और उसमें आपको सब सुविधायें मिलेंगी। अटैच बाथरूम, फ्रिज, टीवी, डबल बैड, सोफा सैट और रूम सर्विस की भी सारी सुविधा है.” वह आदमी मेरे पीछे आते हुए अब अपने होटल की सुविधाएँ बताने लगा।
“सही से किराया लगाना है तो बताओ, नहीं तो दिमाग क्यों खराब कर रहे हो?” मैंने चलते चलते ही कहा।
“सही बताया है साहब.” मुझसे बात करते हुए वह आदमी भी मेरे साथ साथ ही चलता रहा।
“नहीं मुझे नहीं चाहिये … मैं कहीं और देख लूंगा.” मैंने कहा।
“कितने लोग रहेंगे?” उसने अब फिर से पूछा।
“बस हम दो लोग है!” मैंने कहा।
“और बच्चे? बच्चे भी हैं क्या?” उसने कहा।
“क्यों तुमको इससे क्या करना है? तुमको बस रूम देना है.”
“नहीं साहब … वो बच्चे होने से रूम को ज्यादा खराब करते है इसलिये रूम सर्विस के भी पैसे लगते हैं ना … इसलिये पूछ रहा हूँ.” उस आदमी ने कहा।
“हाँ है … पर वो तो बस अभी तीन महीने का ही है.” मैंने कहा।
“ठीक है तो साहब आप 500/ दे देना!” उस आदमी ने कहा।
“नहीं चाहिये, मैं कहीं और देख लूंगा.” मैंने चलते चलते ही कहा।
“देख लो साहब, 500/ में लग जायेगा. अब इससे कम नहीं होगा. ये भी मैं अपना कमीशन छोड़ रहा हूँ, तब है. नहीं तो आप कहीं भी पता कर लो, इतने में ए०सी० रूम कहीं भी नहीं मिलेगा.” यह बोलकर वह आदमी वहीं रुक गया।
अब तो मुझे भी लगने था कि वह अब लगभग सही किराया बता रहा है.
इसलिये मैं भी रुक गया।
मेरे रुकते ही वह आदमी फिर से मेरे पास आ गया.
मैंने उसे ए०सी० रूम के लिये पूछ तो लिया था पर मुझे पैसे भी देखने थे कि इतने पैसे मेरे पास हैं भी या नहीं … इसलिये मैंने जल्दी से अपना पर्स निकाल कर देखा.
पर्स में कुल साढ़े तेरह सौ रूपये थे।
मेरा काम बन सकता था.
“चलो ठीक है, होटल कहाँ है तुम्हारा?” मैंने उस आदमी की तरफ देखते हुए पूछा।
“बस पास में ही है साहब चलिये, आपका सामान और मैडम कहाँ हैं?” उस आदमी ने अब खुश होते हुए कहा और जल्दी से मेरे पास आकर खड़ा हो गया।
उसके अब “मैडम कहाँ हैं?” कहने से मुझे कुछ अजीब सा लगा क्योंकि शायद वह यह समझ रहा था कि मैं अपनी बीवी के साथ हूँ।
चलो मेरे लिये यह अच्छा ही था.
इसलिये मैंने भी उसे कुछ कहा नहीं और उसे साथ में लेकर जहाँ मोनी बैठी थी, उस ओर आ गया।
मोनी अपने बच्चे को दूध पिला रही थी.
मगर मुझे देखते ही उसने बच्चे को दूध पिलाना बन्द करके अब जल्दी से अपने ब्लाउज को सही कर लिया और बच्चे को गोद में लेकर खड़ी हो गयी।
हमने जिस ट्रेन से जाने की सोची थी उसके आने का समय हो गया था।
शायद मोनी सोच रही थी कि हमें अब ट्रेन में चढ़ना है इसलिये वह बच्चे को गोद में लेकर खड़ी हो गयी थी.
“वो दो सीट का रिजर्वेशन मिल गया है इसलिये हम अब इस ट्रेन से नहीं जा रहे। हमारी ट्रेन रात को है.” मैंने मोनी के पास जाते हुए कहा।
वह होटल वाला आदमी मेरे साथ ही था।
अब तक वह भी समझ गया था कि मोनी मेरे साथ है इसलिये उसने अब मोनी के पास रखे उसके बैग को उठा लिया और मेरी तरफ देखते हुए पूछा- बस यही सामान है साहब या कुछ और भी है?
“नहीं नहीं … बस ये ही है.” मैंने उस आदमी से कहा.
पर मोनी अब मेरी तरफ तो कभी उस आदमी की तरफ थोड़ा हैरानी से देखने लगी.
“व … वो हमारी ट्रेन रात को है तब तक यहाँ गर्मी में परेशान होने से अच्छा होटल में आराम कर लेंगे!” मैंने अब ये बात थोड़ा धीरे से और मोनी से नजरे चुराते हुए कही.
क्योंकि जब से मेरे और मोनी के सम्बन्ध बने थे, तब से हम वैसे ही बात नहीं करते थे.
फिर आपको तो पता ही है कि मेरे दिल में अब क्या चल रहा था और मैं मोनी को होटल में क्यों ले जाना चाह रहा था।
एक कहावत है ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’
बस वही हालत उस समय मेरी थी।
वैसे तो मेरे और मोनी के बीच इतना कुछ हो चुका था कि अब तो उसकी निशानी भी पैदा हो गई थी।
मगर अभी तक हम दोनों की झिझक व शर्म नहीं निकली थी क्योंकि मोनी ने मुझे कभी ऐसा मौका ही नहीं दिया था।
आपने अगर मेरी पहले की कहानी पढ़ी होगी तो आपको पता होगा की मेरे और मोनी के सम्बंध बस रात के अन्धेरे में ही बनते थे और वो भी एक दूसरे से बिना कोई बात किये।
हमारी एक दूसरे से बात बस दिन में ही होती थी और वो भी बस हाँ ना से ही काम चलता था.
नहीं तो मेरे और मोनी के बीच जब से सम्बन्ध बने थे तब से हमारी बातचीत ना के बराबर हो गयी थी।
अब यह होटल वाली बात मैं उससे कैसे कह सकता था।
क्योंकि अभी तक एक तो मेरी झिझक नहीं निकली थी इसलिये मैं अभी भी उससे डरता था।
अब मेरे दिल की बात तो आप समझ ही चुके होंगे पर मोनी तो अभी भी इस बात से अनजान ही थी.
“होटल किस लिये … यहीं बैठे रहाते हैं ना!” मोनी ने असमँजस की सी स्थित में कहा।
एक तो गर्मी भी बहुत थी ऊपर मोनी ने बच्चे को दूध पिलाना बन्द कर दिया तो उसने अब रोना शुरु कर दिया था।
“यहाँ बहुत गर्मी है और फिर गर्मी में ये भी तो परेशान हो रहा है.” मैंने बच्चे की ओर इशारा करते हुए कहा।
“क्या मैडम … पाँच सात सौ के लिये क्यों गर्मी में परेशान हो रहे हो! फिर आपके साथ ये छोटा बच्चा भी तो है, इसे क्यों परेशान कर रहे हो. चलो, बढ़िया होटल है, आपको किसी भी चीज दिक्कत नहीं होगी!” अबकी बार उस होटल वाले ने कहा।
आपको तो पता होगा कि पैसे के मामले में मोनी के घर की हालत इतनी ठीक नहीं थी।
पाँच सात सौ रूपये से तो मोनी अपने घर का आधे से ज्यादा महीने का खर्चा चला लेती थी. इसलिये छः सात घण्टे के लिये होटल वाले को इतने पैसे देने की बात से वह घबरा सी गयी।
तभी होटल वाला आदमी मोनी का बैग उठाकर आगे चल दिया और उसने पूछा- मैडम के लिये रिक्शा करना है क्या साहब?
इस बात पर मोनी ने मेरी ओर अजीब सा मुँह बनाकर देखा जैसे वह कहना चाह रही हो कि मैं क्यों इतना खर्चा कर रहा हूँ.
फिर न न … नहीं …” कहते हुए उस आदमी के पीछे पीछे ही चल पड़ी।
स्टेशन निकलकर हम बाहर आ गये।
होटल ज्यादा दूर नहीं था, स्टेशन से डेढ़ दो सौ मीटर ही था।
वैसे तो अधिकतर रेलवे स्टशन और बस स्टॉप के पास इतने ज्यादा अच्छे होटल नहीं होते, पर यह होटल बिल्कुल खुला खुला और साफ सफाई के मामले में भी ठीक लग रहा था।
शायद यह नया नया ही खुला था, इसलिये चमक रहा था।
चार मंजिल के उस होटल में नीचे तो बस रिसेप्शन और खाने पीने के लिये खुला हाल था और ऊपर की मंजिलों पर रहने के लिये कमरे बने हुए थे।
हमारे साथ जो आदमी आया था, उसने अब रिसेप्शन पर जाकर बात की फिर उसने मेरी ओर देखते हुए कहा- सर, आप अपना नाम और पता लिखवा दिजिये!
होटल में कमरा लेते समय नाम पता इन्ट्री करने की और आईडी प्रुफ की फोरमल्टी तो हर जगह ही होती है इसलिये मैंने भी अपना नाम पता लिखवाकर आईडी प्रुफ में अपने ड्राइविंग लाईसेंस की एक कोपी दे दी।
मैंने अपना आईडी प्रूफ दे दिया मगर रिसेप्शनिस्ट ने मोनी की तरफ देखते हुए कहा- सर, वो मैडम का भी आईडी प्रूफ?
मैं अब मोनी की ओर देखने लगा।
उस समय साथ में कौन आईडी प्रूफ लेकर चलता था.
फिर मोनी तो वैसे ही इन सब में पीछे थी.
इसलिये मोनी के कुछ कहने से पहले ही मैं बोल पड़ा- नहीं, इनका तो कुछ नहीं है.
उसने अब एक बार तो मोनी की तरफ देखा फिर मेरी तरफ देखते हुए पूछा- सर, मैडम आपकी वाईफ हैं?
इस सवाल से मैं थोड़ा सा घबरा गया, मेरी नजरें अब सीधा मोनी की ओर चली गयी।
मोनी भी मेरी ओर ही देख रही थी जिससे मेरी नजर मोनी की नजरों से जा मिली.
“ह ह हअ हाँआआ …” मैं थोड़ा हकला गया।
मेरी ओर मोनी की नजर कुछ देर के लिये ही मिली थी पर इतनी ही देर में मैंने देखा कि मोनी के चेहरे पर एक साथ ना जाने कितने भाव आये और आकर चले गये।
उसका चेहरा डर और शर्म से लाल हो गया था … उसने नजरें नीचे झुका ली।
मोनी के पहनावे व उसके टिक्की, बिन्दी व मांग के सिन्दूर से ही पता चल रहा था कि वह शादीशुदा है. फिर हम दोनों की उम्र भी इतना कुछ ज्यादा अन्तर नहीं था। हम दोनों देखने में भी पति पत्नी ही लग रहे थे इसलिये उस रिसेप्शनिस्ट ने इस बारे में कुछ नहीं कहा.
उसने अब फिर से मेरी तरफ देखते हुए कहा- सर, हम बिना आईडी के रूम नहीं देते. पर आप शरीफ आदमी लग रहे हो. वैसे आपको कब तक के लिये रूम चाहिये?
“हमारी ट्रेन नौ बजे है इसलिये खाना खाकर आठ साढ़े आठ बजे तक रूम खाली कर देंगे.” मैंने कहा।
“ठीक है सर, आप पेमेन्ट कर दीजिये.” कहते हुए उसने दराज से एक चाबी निकालकर जो आदमी हमारे साथ आया था, उसे पकड़ा दी।
पेमेंट के बाद वह आदमी हमें अब ऊपर पहली मंजिल पर एक कमरे में ले आया.
‘यह देखिये सर, इतना बड़ा रूम आपको हजार, आठ सौ से कम में कहीं नहीं मिलेगा.” उस आदमी अब अपने होटल की तारीफ करते हुए कहा और बैग को मेज पर रख कर ए०सी० को चला दिया।
सच में रूम काफी बड़ा था, अटैच लैट्रीन बाथरूम के साथ बड़ा सा डबल बैड, कलर टीवी, ए०सी०, फ्रिज यहाँ तक कि सोफा सैट से लेकर खाने पीने के लिये टेबल तक लगे हुए थे।
रूम को देखने का बाद मेरे मुँह से भी अब हम्म्म् की आवाज निकल गयी.
जिससे वह आदमी खुश हो गया.
“ठीक है तो सर मैं चलता हूँ! अब कुछ हमारा भी चाय पानी?” उसने चापलूसी करते हुए कहा।
उसका इशारा मैं समझ रहा था, उसे टिप चाहिये थी इसलिये मैंने उसे पर्स से बीस का एक नोट निकालकर थमा दिया।
मेरे हिसाब से तो उसके लिये बीस रूपये काफी थे.
पर उसके लिये शायद ये कम थे जिससे वह ज्यादा खुश तो नहीं हुआ.
पर फिर भी उसने जाते जाते पूछा- सर, कुछ खाने पीने के लिये ऑर्डर करना है क्या?
मैंने मोनी की तरफ देखा तो मोनी ने कुछ कहा तो नहीं बस “ऊहूँ…” की सी आवाज के साथ ना में गर्दन हिला दी।
मोनी ने मना कर दिया था मगर फिर भी मैंने उसे एक माजा और मेरे लिये एक कोक लाने को कहा।
उसने ‘जी सर, और कुछ चाहिये या रूम सर्विस के लिये नौ नम्बर पर काल कर देना.” कहा और दरवाजा बन्द करके चला गया।
उस आदमी के जाने के बाद मैं और मोनी होटल के कमरे में अकेले रह गये थे.
कहानी के कुल 6 भाग हैं.
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