कमसिन कुंवारी लड़की की बुर का मजा- 1

कमसिन कुंवारी लड़की की बुर का मजा- 1

सेक्सी देहाती लड़की की कहानी में पढ़ें कि मेरी कामवाली कभी कभी अपने जवान बेटी को मेरे यहाँ काम करने भेज देती थी. एक दिन मैंने उसे चोरी करते पकड़ लिया.

अन्तर्वासना की इस साईट की सभी पाठिकाओं, पाठकों को मेरा नमस्कार.

मित्रो, मैं विभोर देव हूँ. अन्तर्वासना की इस साइट से पिछले सिर्फ पांच छह माह से ही जुड़ा हूं.
यहां की अधिकांश कहानियां बहुत ही मनोरंजक और उत्तेजक लगीं तो मेरा मन भी हुआ कि मैं भी कुछ अपने कुछ अनुभव यहां लिखूं.

आगे बढ़ने से पहले कुछ अपने बारे में भी बताता चलूं तो सबको सेक्सी देहाती लड़की की कहानी की भावना को समझने में आसानी होगी.

मैं एक अत्यंत साधारण सा इंसान हूं, विवाहित हूं और सरकारी कार्यालय में अच्छे पद पर कार्यरत हूं.
मेरी पोस्टिंग के पास के ही शहर में है.

मेरा अपना घर है, पत्नी है और एक साल का बेटा भी है.
वृद्ध माता-पिता और थोड़ी खेती के चलते मेरी पत्नी को पैतृक घर में ही रहना पड़ता है.

सप्ताहांत में मैं घर चला जाता हूं बाकी दिन यहीं पर रहता हूँ.
यहां एक सोसायटी में मैंने फ़्लैट किराए से ले रखा है.
यह अच्छी साफ सुथरी जगह है और नीचे गाड़ी रखने के लिए गैराज भी है.

मुझे सुबह साढ़े नौ बजे ऑफिस के लिए निकलना होता है और शाम को लौटते हुए साढ़े सात या आठ तक बज जाते हैं.

ऑफिस से लौट कर फ्रेश होकर एक लार्ज ड्रिंक बना कर उसे सिप करते हुए टीवी पर न्यूज़ देखना मेरा इकलौता काम है.
फिर साढ़े नौ दस तक खाना गर्म करके खा लेता हूं.

मन हुआ तो कोई सेक्स कहानी पढ़ कर या पोर्न देख कर मुठ मार लेता हूँ और बस फिर खुद को गुड नाईट विश करके सो जाता हूं.

इस सच्ची कहानी में मैंने पात्रों के नाम बदल कर लिखे हैं.

घर के काम के लिए एक मेड लगा रखी है, उसका नाम रती है.

वो कोई पैंतीस छत्तीस साल की ग्रामीण परिवेश से आई सुंदर नयननख्श वाली, गदराई हुई विधवा स्त्री है.
उसका पति किसी कंपनी में सिक्यूरिटी गार्ड था और कोई दो साल पहले एक रोड एक्सीडेंट में चल बसा था.

रती की एक ही कन्या संतान है, उसका नाम भावना है. पर सब उसे गुनगुन कह कर ही बुलाते हैं.
वो अठारह उन्नीस वर्ष की जवानी की दहलीज पर खड़ी इंटरमीडिएट की छात्रा है.

परीक्षा देकर वो अब रिजल्ट की प्रतीक्षा में थी.

मैं इन दोनों मां बेटी के काम से सन्तुष्ट हूं और तीज त्यौहार को इन्हें कपड़े वगैरह गिफ्ट करता रहता हूं.

एक बात और मैंने इन दोनों मां बेटी को कभी भी उस गंदी नज़र से नहीं देखा क्योंकि ज़िन्दगी का वो दौर तो कब का निकल चुका था, जब नयी उम्र की नयी फसल का मज़ा लेने की बेकरारी रहती थी.
ताजी कली पर भंवरे की तरह मंडरा कर उसका रस चूस कर उसे कली से फूल, कुंवारी से औरत बनाने की; वो सब बातें कबकी छूट चुकी थीं.

वो सब कॉलेज लाइफ की बातें थीं.

अच्छा जॉब मिलने के बाद शादी, फिर बाप बनने के बाद जिंदगी में गंभीरता और दायित्व का बोध आ ही जाता है.
फिर वो सब छिछोरापन अपने आप छूट जाता है.

मैं अपनी मेड के बारे में बता रहा था.

रती सुबह आठ बजे आ जाती थी और घर की साफ सफाई करके मेरा नाश्ता और रात का खाना बना कर चली जाती.
कभी कभी उसकी बेटी भावना या कहो गुनगुन भी काम में हाथ बंटाने मां के साथ ही आ जाती थी.

जब रती को कोई काम होता था, तो वो अपनी बेटी को भेज देती थी.
जैसा कि मैंने बताया कि इन दोनों मां बेटी के काम से मैं पूर्णतः संतुष्ट था और सबसे बड़ी बात कि इन मां बेटी के हाथ से बने खाने का स्वाद ही लाजवाब था.

अब बात उस वाकिये की, जो इस कहानी का आधार बनी.
मेरा दूधवाला पास के ही गांव से आता है.

दूध के पैसे वो हर महीने नहीं लेता है, वो कहता है कि साब खर्च हो जाते हैं इसलिए तीन चार महीने के इकट्ठे लूंगा, तो बचत होती रहेगी. दो साल बाद बिटिया की शादी करनी जो है.

इस प्रकार एक दिन उसका फोन आया और बोला- साबजी, मैं पैसे लेने कल ऑफिस आऊंगा.
मैंने भी उसे हां बोल दिया.

उसी दिन मैंने मोटा मोटा हिसाब लगाया, तो उसके कोई साढ़े तीन हजार से कुछ ज्यादा के करीब देना थे.
बाकी हिसाब वो खुद ही बता देगा, ये सोच कर मैंने दिमाग नहीं लगाया.

मैंने एटीएम से चार हजार रुपये निकाल लिए, पांच पांच सौ के आठ नोट गिन कर मैंने वालेट में रख लिए.

मैं ज्यादा कैश अपने पास नहीं रखता क्योंकि ज्यादातर खर्च या खरीदारी मैं डिजिटली ही करता हूं.

अगले दिन दोपहर में दूधवाला अपने पैसे लेने ऑफिस आ गया तो मैंने उसे बिठाया और वॉलेट में से वो पांच सौ के नोट निकाल कर उसे दे दिए.
मैंने बोला कि बाकी जो बचें, वो हिसाब में लिख लेना और अगले बिल में एडजस्ट कर देना.

दूधवाले ने वो नोट गिने और बोला कि साब जी ये तो साढ़े तीन हजार ही हैं. मुझे तो सैंतीस सौ पचास लेने हैं.

उसकी बात सुन कर मैंने उसके हाथ से पैसे लेकर अच्छे से गिने तो पाया कि वो सात नोट ही थे.

मेरा दिमाग चकरा गया क्योंकि एटीएम से पैसे निकालने के बाद तो मैं सीधा घर चला गया था और कहीं खर्च करने का प्रश्न ही नहीं था.
मैंने सर झटकते हुए दूधवाले से कह दिया- ठीक है … अभी ये रख लो, बाकी अगले बिल में जोड़ लेना.

उसके जाने के बाद मेरा दिमाग चकरा रहा था कि पांच सौ का एक नोट कहां गया?
बहुत दिमाग लड़ाया पर कुछ याद नहीं आया.

फिर कुछ कुछ याद आया कि पहले भी मुझे ऐसा कई बार लगा था कि वॉलेट में पैसे कम से लग रहे हैं, पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया था.

ज्यादा सोचने पर शक की सुई कामवाली पर जा ठहरी.
पर मेरा दिल ये मानने को तैयार ही नहीं था कि वो चोरी करेगी.

फिर सोचा कि मैं तो घर में ही रहता हूं. मेरा वॉलेट मेरे सामने टेबल पर या बेड पर रखा रहता है, तो फिर?

तभी अचानक से दिमाग की बत्ती जली कि जब मैं नहाने वाशरूम जाता हूं, उस टाइम कोई घर में कुछ भी कर सकता है. क्योंकि पैसे ताला लगा कर रखने की आदत मेरी कभी नहीं रही.

हम्म्म् … तो ये बात हो सकती है.

फिर याद आया कि आज सुबह तो रती की बेटी गुनगुन काम करने आई थी.
तो क्या उसने पैसे निकाले या मां बेटी दोनों की मिली भगत है?

अब जो भी हो, मैंने चोर को पकड़ने के लिए कुछ सोच कर अपना प्लान बना लिया.

अगले दिन से मैंने नहाने जाने से पहले अपना वॉलेट तकिये के नीचे रखना शुरू कर दिया और अपना फोन एरोप्लेन मोड पर करके पास की मेज पर इस तरह से बुक्स में छिपा कर रखा कि किसी को नहीं दिखे और उसका वीडियो कैमरा ऑन करके रखने लगा.

नहा कर वापिस आने के बाद मैं वीडियो चला कर देखने लगा कि रूम में क्या क्या एक्टिविटीज हुईं.

शुरू के चार पांच दिन तो रती काम करने आती रही तो सब कुछ ठीक ठाक मिला.
फिर एक दिन गुनगुन काम करने आई.

जिस दिन रती नहीं आती थी, वो मुझे फोन करके बता देती थी कि वो नहीं आ पाएगी या उसकी जगह गुनगुन आएगी.

गुनगुन उस दिन जल्दी ही आ गई और फटाफट काम निबटाने लगी.
साढ़े आठ बजे मैं नहाने के लिए चला गया और लौट कर ऑफिस के लिए रेडी होने लगा.

गुनगुन ने भी अपना काम निपटा लिया था और वो मेरे ही सामने मुझे बता कर चली गयी कि वो जा रही है.
मैंने नाश्ता किया और अपना फोन चैक करने लगा.

इस बार के वीडियो में दिखा कि मेरे नहाने जाने के तुरंत बाद वो रूम में आई और वाशरूम के दरवाजे पर कान लगा कर भीतर की आवाजें सुनने लगी.
फिर उसने चारों तरफ देखा और उसने तकिया उठा कर देखा तो मेरा वॉलेट रखा था.

उसने तुरंत उसमें नोट देखे और पांच सौ का एक नोट निकाल कर झट से अपने कुर्ते के भीतर छिपा लिया. उसके बाद वॉलेट वैसे ही वापिस रख कर निकल गई.

यह सब नजारा देख कर मेरी झांटें सुलग उठीं और पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया था.
जिन कामवालियों पर मैंने भरोसा किया वही मुझे लूट रहे थे.

इस गुनगुन की मां रती अपने पति के निधन के बाद से ही मेरे घर में काम करने आती थी.

उस बात को अब लगभग डेढ़ साल हो गया, अगर डेढ़ साल से मेरे पैसे चोरी हो रहे हैं.
यदि मैं मोटे हिसाब से हजार रुपये महीना ही मानूं, तो अठारह हजार तो कम से कम होते ही हैं.

मैंने खुद को भी कोसा कि मैं भी कितना लापरवाह हूं कि मैंने इन लोगों पर आंख मूंद कर भरोसा किया.
अब बस मुझे सही मौके की तलाश थी कि चोर को पकड़ कर पुलिस के हवाले करूं.

वो वीडियो रिकॉर्ड करना मैंने जारी रखा और पाया कि रती जब भी आती तो पैसे चोरी नहीं हो रहे थे.

एक दिन चोरी के अलावा भी मैंने कुछ और देखा.
दरअसल मैं रात को एक सेक्स मैगजीन देख रहा था, जिसमें चुदाई की फोटो थीं. वो मेरे तकिए के एक ओर दबी रखी थी और दूसरी तरफ वालेट रख दिया था. मैं मैगजीन हटाना भूल गया था.

उस दिन बाद गुनगुन फिर काम पर आई और काम निपटाने लगी.
मैंने भी रोज की तरह अपना फोन वीडियो मोड पर करके छुपा दिया और बेड पर रखे मेरे वॉलेट के एरिया की रिकॉर्डिंग होने लगी.

मैं नहाने चला गया. मैं नहा कर टॉवेल लपेटे हुए निकला और फोन चैक किया.

वीडियो में साफ दिखा कि पिछली बार की ही तरह भावना चोर नज़रों से चारों तरफ देखती हुई बेडरूम में घुसी और उसने फुर्ती से मेरा वॉलेट उठा कर दो सौ का एक नोट निकाल कर झट से अपनी कुर्ती में चूचियों में घुसेड़ लिया.

उस दिन वॉलेट में दो सौ वाला ही सबसे बड़ा नोट था बाकी सब छोटे छोटे नोट थे.

उसके बाद उसने मैगजीन वाली तरफ से तकिया को उठाया और मैगजीन की नंगी फोटो को देखती हुई अपनी चूत सहलाने लगी.
उस दिन मुझे अहसास हुआ कि ये लौंडिया पक गई है.

खैर … उस समय मैंने ज्यादा ध्यान सिर्फ उसकी चोरी वाली हरकत पर ही दी.

मैंने फोन को वहीं बेड पर रखा और गुनगुन को आवाज लगाई ‘गुनगुन!’

वो आते ही बोली- जी साबजी, आपने बुलाया मुझे?
‘हां, गुनगुन मेरे पर्स में पैसे कुछ कम से लग रहे हैं, कहीं तूने तो नहीं लिए?’

वो तमक कर बोली- राम राम साबजी, आज आप कैसी बातें कर रहे हो. मुझे क्या पता आपके पर्स का … मैं तो अपना काम करके आपके सामने ही चली जाती हूं.
मैंने थोड़ा गुस्से में कहा- गुनगुन, पहले भी मेरे वॉलेट में से पैसे निकल रहे थे. अब मेरा शक तो तुम दोनों मां बेटी पर है. सोच लो और ठीक से बताओ. अगर तुमने पैसे निकाले हैं तो अभी बता दो!

वो बड़ी दिलेरी से बोली- साबजी, हम गरीब लोग हैं. अपनी मेहनत का खाते हैं, अगर आपको हम पर शक है तो वैसा बोल दो. हम लोग अब आगे यहां नहीं आएंगे.
मैंने भी इस बार चिल्ला कर कहा- हां, मुझे तुम लोगों पर पहले शक था और अब मेरे पास सबूत भी है कि तुम लोग मेरे घर में जब से आई हो, तभी से चोरी करती हो और अब तक कम से कम साठ सत्तर हजार चुरा चुकी हो. मैं अभी पुलिस में शिकायत करने वाला हूं.

“आपको जो करना हो करो. जब हमने कोई गलत काम किया ही नहीं, तो क्यों डरें किसी से; कर दो शिकायत, गरीब को सताने की सजा भगवान आपको भी देंगे; मैं जा रही हूं और कल से मेरी मम्मी या मैं यहां नहीं आऊंगी.’
गुनगुन बड़ी दिलेरी से मेरी आंखों में आंखें डाल कर बोली और मुँह बिचका कर जाने लगी.

“रुक, लो ये सबूत देख ले, फिर चली जाना.”
मैंने उसके सामने अपना फोन लहराया और उसके वो दोनों वीडियो बारी बारी से चला करके उसे दिखाये.

वीडियो देखते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया और उसके मुँह से एक भी बोल न फूटा.

“ठीक है अब जा तू. थोड़ी देर में पुलिस तेरे घर आकर तुम दोनों मां बेटी को जेल भेजेगी, तब वहीं चक्की पीसना!”
मैंने फोन बंद करके कहा.

गुनगुन का चेहरा फक पड़ गया; उसके मुँह से एक आवाज भी नहीं निकली और वो सिर झुकाए खड़ी रही.

“ठीक है, अब तुम जाओ और कल से यहां मत आना, मैं अभी पुलिस स्टेशन जाकर चोरी की रिपोर्ट लिखवाता हूं!”
यह सुनकर वो रो पड़ी और नीचे बैठ कर मेरे पैर पकड़ लिए.

वो बोली- साहब जी, मुझसे गलती हो गयी. मैं आपके पैर पकड़ कर माफ़ी मांगती हूं, मुझे माफ कर दो और जो सजा देनी हो आप ही दे दो. मैं उफ भी नहीं करूंगी, पर पुलिस को मत बताओ. मुझे जेल जाने की सोच कर ही घबराहट हो रही है.

मैंने गुस्से में कहा- मैं कुछ नहीं जानता, पैर छोड़ मेरे. चोरी करती हो तो सजा भी भुगत; मेरे घर से तूने और क्या क्या सामान चुराया है, वो सब पुलिस तुझसे उगलवा लेगी. फिर तेरी जिंदगी तो अब जेल में कटेगी और तेरी मां भी तेरे साथ ही जेल में चक्की पीसेगी.

वो रोते रोते हाथ जोड़ कर बोली- नहीं साब, मैंने आपके घर से और कुछ भी नहीं चुराया. आप कुछ भी सजा दे लो मुझे, चाहो तो मार ही डालो, पर पुलिस को मत बुलाओ साब; मेरी विनती मान लो, आगे से ऐसा काम कभी नहीं करूंगी.

मैंने उसकी ओर देखा.
उसका दुपट्टा गले में लिपटा था और उसकी आंखों से गिरते आंसू उसके गालों से होते हुए उसके बूब्स पर गिर गिर कर उसके पुष्ट स्तनों की गहरी क्लीवेज में समाते जा रहे थे.

गुनगुन के भरे भरे मम्मों की ऊपरी झलक ही मुझे दिख रही थी, पर वो उतना देख कर ही मेरी मुट्ठियां स्वतः ही ऐसी भिंच गयीं, जैसे मैं मन ही मन उन्हें मसलने मीड़ने और गूंथने लगा था.

मेरी निगाहें वो नजारा देख मेरे तन मन को बहकाने लगीं थीं.
मैंने कस कर अपनी आंखें मींच लीं ताकि उन स्तनों के आकर्षण से मैं मुक्त हो सकूं.

उसकी जवानी के पके होने का अहसास उसकी मैगजीन देखने वाली हरकत से ही होने लगा था और अब उसकी चूचियां मुझे बहका रही थीं.

अपने विवाह के बाद मैंने मन ही मन संकल्प लिया था कि बस अब कोई नया काण्ड नहीं करूंगा, जिंदगी में बहुत ऐश कर ली. बस अब से सिर्फ अपनी धर्मपत्नी का ही होकर रहूंगा.

पर जो परिस्थिति, जो मौका जो नजारा मेरे सामने था, उससे मन को दूर हटाना मेरे लिए अत्यंत कठिन हो रहा था.

जब ऐसी कड़क जवान अट्ठारह उन्नीस साल की पकी हुई कमसिन कली पुलिस कंप्लेंट न करने की बार बार विनती कर रही हो … और कोई भी सजा भुगतने को तैयार हो, तो ऐसे में सिर्फ एक ही ख्याल आ सकता है.

चाहे वो कोई भी हो मैं आप या और कोई भी कि भोग लो इसका जिस्म, अपने लंड से रौंद डालो इसकी कुंवारी चूत को.
कोई जितेन्द्रिय पुरुष ही ऐसी परिस्थिति में ऐसी ताजी जवान हुई छोकरी के जिस्म का भोग लगाने का मोह त्याग सकता है.

मैं एक आप सबकी तरह हाड़मांस का बना साधारण इंसान इस गुनगुन के जिस्म की आंच के सामने कब तक न पिघलता?
उसकी चुत रगड़ने की वासना को याद करके भी मेरा लंड विद्रोह पर उतारू होकर तौलिये के अन्दर से ही सिर उठाने लगा था.

अब यह तो सारा जग जानता है कि जब लंड सिर उठाता है, तो सारे आदर्श, सारा ज्ञान गांड में घुस कर दुबक जाता है और जीत लंड की ही होती आई है.

“साहब जी, कुछ तो बोलिए. रहम कीजिये मुझ गरीब पर. जो सजा आप देना चाहो दे दो मुझे, मैं उफ भी नहीं करूंगी.”
गुनगुन मेरे पांव अब भी पकड़े हुए आंसू बहाती हुई कह रही थी.

उसके बोलने से मेरी तन्द्रा भंग हुई.
मैंने कड़क कर कहा- अच्छा उठ, खड़ी हो पहले!

तब मैंने उसके सामने वो मैगजीन निकाली और उसके सामने लहराते हुए कहा- इसे देख कर भी तेरी टांगों के बीच में कुछ हो रहा था ना! वीडियो में मैंने देखा था.

वो और ज्यादा सकपका गई और मेरे सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी.

“अच्छा सुन, तेरी सजा ये है कि मैं तेरे साथ सेक्स करूंगा. तुझे पूरी नंगी करके चोदूंगा. अगर तू चुदवाने को तैयार है तो ठीक, वरना जो तुझे ठीक लगे वो करना … और जो मुझे करना होगा, वो मैं करूंगा.”
मैंने उसे शुद्ध हिंदी में अच्छी तरह से जता दिया.

दोस्तो, मैं किसी का नाजायज फायदा नहीं उठाना चाहता था मगर सामने उस छकड़ी और चुदासी लौंडिया की भरपूर जवानी को देख कर मेरे मन में वासना ने घर करना शुरू कर दिया था.

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