एक नर्स से फोन सेक्स के बाद चुदाई-1
मंगल की सुबह हम दोनों ने दोपहर में मिलने का तय किया और मैंने समय से पहले ही होटल पहुंच कर अपनी तैयारी कर ली. कंडोम, वेसलीन, पानी, पेन किलर और बाकी जिस भी चीज़ की जरुरत पड़ सकती थी, सब मैंने पलंग के सिरहाने इकट्ठा कर लिया.
करीब ढाई बजे मानसी का फ़ोन आया, उसने कहा कि वो होटल के बाहर है.
मैंने उसको अपना कमरा नंबर बताया और उसको सीधे लिफ्ट लेकर ऊपर आने को बोला. मेरे दिल की धड़कन बहुत तेज़ी से चल रही थी पर मुझे पता था कि अगर मलाई खानी है तो मुझे थोड़ा संयम बनाये रखना होगा.
कुछ ही पलों में मेरे कमरे की घंटी बजी, मैंने दरवाज़ा खोला और मेरे सामने मेरे सपनों की रानी खड़ी थी. पंजाबी सूट और पटियाला सलवार पहने मानो कोई हुस्न पारी खड़ी हो. तीखे नयन नक्श और गुलाबी होंठों वाली जानलेवा सुंदरी. मैं आपको बता दूँ कि वो पिछली बार भी पंजाबी सूट और पटियाला सलवार ही पहने थी और उसके कपड़ों की फिटिंग कुछ ऐसी थी जैसे उसके चूचे अभी उसके सूट को फाड़ कर बाहर आने को बेताब हैं. पेट इतना सुडौल की उसकी नाभि को ऊपर से महसूस किया जा सकता था. मैंने उसका कमरे में स्वागत किया और वो अंदर आकर सोफे पर बैठ गई.
मैंने उसको पानी दिया और खाने के लिए पूछा. उसने ना में सिर हिलाते हुए मुझे घूर के देखा और बोली- इतने भाव क्यों खा रहा था दोबारा मिलने में?
मैं- सिर्फ तेरी कसम की वजह से मिलने आया हूँ वरना नहीं आने वाला था. बता क्या कहना था तुझे आखरी बार मिलकर. वैसे भी, हमारे पास सिर्फ 10 मिनट ही हैं.
मानसी- यार मेरा ऐसा कोई मतलब नहीं था कि तू इतना बुरा मान गया. तू मेरा बहुत अच्छा दोस्त है और हर चीज़ को करने के लिए थोड़ा समय चाहिए होता है. हम अच्छे दोस्त बने पर उसके लिए भी करीब एक साल लगा ना. जो कुछ कर सकती हूँ, तेरे लिए कर रही हूँ ना.
मैं- मेरे लिए कुछ मत कर, कुछ करना ही है तो अपने लिए कर या हमारे लिए.
मानसी और मेरी बातों में समय कैसे बिता पता ही नहीं चला पर बात आगे नहीं बढ़ी. वो अब भी सोफे पे थी और मैं पलंग पे. मैंने अपना मास्टर स्ट्रोक खेला और उसको बोला- चल अब बहुत देर हो गई है. मुझे भी घर पहुंचना है और तुझे अपने पी जी!
इतना कहकर मैं उठकर दरवाज़े की तरफ बढ़ा.
मानसी ने मुझे जाते देख भाग कर मुझे रोकना चाहा पर इस जल्दबाज़ी में वो लड़खड़ाई और मेरे ऊपर आ गिरी जिससे मैं दीवार से टकराया और अब हम एक सैंडविच के जैसे थे जिसमें मैं बीच में था, एक तरफ दीवार और दूसरी तरफ मानसी. हमारी नज़रें आपस में लड़ीं और हम एक दूसरे में खोते चले गए. हमारे होंठ एक दूसरे से मिले और एक कहर जैसे हम दोनों पे बरसने लगा. हमारी जीभ आपस में कबड्डी खेलने लगी थीं और हम एक दूसरे के जिस्म की गर्मी को महसूस कर रहे थे.
मेरे हाथ मानसी के जिस्म पर हर तरफ घूम रहे थे और मैं उसके पूरे शरीर को सहला रहा था. वो बिना किसी विरोध के मेरे होंठों को चूस रही थीं पर आगे बढ़ना ही मेरी लालसा थी. आज मैंने इसके सारे नखरे चूर चूर जो करने थे.
मैंने मानसी को बेमन से अपने से अलग किया और बिस्तर पे जा बैठा. मैंने उसको कहा- ये सब गलत है मानसी और फिर तू मुझसे प्यार भी तो नहीं करती. तुझे ये सब करने को मिलना था क्या आखरी बार? अब तू जा और दोबारा कभी मत मिलना मेरे से.
मानसी मेरे पास आई और मेरे बराबर में बैठ कर मुझे मनाते हुए बोली- ऐसी बातें क्यों कर रहा था तू? मैं सिर्फ मिलने आई थीं. ये तो अपने आप होता चला गया यार. तू ऐसे मत कर मेरे साथ. थोड़ी देर तो साथ में बैठ. और तू तो ऐसे कर रहा है जैसे तूने मेरे साथ कुछ ना किया हो. फ़ोन पे तो बहुत बड़ी बड़ी बातें करता है तू!
मैं- देख, मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ और जो कुछ आज तक फ़ोन पे हुआ, वो सब हकीकत में करना चाहता हूँ पर तेरी मर्ज़ी से… अगर तू मुझसे प्यार करती है तो, वरना नहीं. और तू मुझे बोल चुकी है कि हम दोनों अच्छे दोस्त हैं और कुछ नहीं.
मैं मानसी के पैरों को कांपते हुए महसूस कर सकता था. अभी थोड़ी देर पहले जो हम दोनों के बीच हुआ उससे उसकी चूत बहने लगी थीं और मैं जानता था कि बस एक हथोड़ा और… और फिर इसकी चढ़ाई पक्की है.
मेरी बातें सुनकर उसकी आँखों में आंसू भर गए तो मैंने उसकी जांघ पर हाथ रख उसको सहलाना शुरू किया और धीरे धीरे मेरे हाथ उसकी चूत की तरफ बढ़ रहे थे पर ऐसे कि उसको महसूस ना हो.
मैं उसको सांत्वना देते हुए बोला- किसी भी हाल में अपनी दोस्ती यूँ ही बनी रहेगी जैसी है, पर शायद मैं ही कुछ ज्यादा उम्मीद लगा बैठा.
इतना कहते ही मानसी रोने लगी और मैंने उसको अपने गले लगा कर शांत करने की कोशिश की.
मैं उसके नथुनों से निकलती गर्म साँसों को अपनी गर्दन पे महसूस कर रहा था और बहुत खुश था क्योंकि ये सब मेरी ही तो प्लानिंग थी. मैंने अपने कांपते हाथों से उसकी ठुड्डी को ऊपर उठाया जिससे उसके और मेरे होंठ एक दूसरे के आमने सामने हुए और बिना एक पल गंवाए उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिया. यह पहली बार था कि वो मुझे पप्पी दे रही थीं वरना अब तक हर बार मैंने ही शुरुआत की थी.
उसके होंठ चूसते चूसते मैं उसको लेकर पीछे को लेट गया और हम एक दूसरे से कुछ ऐसे लिपटे हुए थे जैसे साँपों का कोई जोड़ा. मेरे हाथ धीरे धीरे मानसी के वक्ष की तरफ बढ़ रहे थे और मेरा बदन अब उसके बदन पे हावी होने लगा था. मैं करीब पूरा मानसी के ऊपर चढ़ चुका था और मानसी की तरफ से अब नाम मात्र का भी विरोध नहीं था.
थोड़ी देर बाद ही मानसी के हाथ मेरे बालों में घूमने लगे और उसने अपने पेट को हल्के से हिलाना भी शुरू कर दिया था.
मैंने खुद को मानसी से अलग किया तो पाया कि मानसी के होंठ बेतहाशा काँप रहे थे और वो मदहोशी की हालत में कुछ बड़बड़ा रही थी. मैंने धीरे धीरे मानसी के दोनों चूचों पर अपना पूरा अधिकार जमा लिया था और उनका खुल कर मर्दन कर रहा था. मानसी अपनी अधखुली आँखों से मुझे प्यार से देख रही थी और उसका पूरा शरीर काँप रहा था. उसके चूचे मेरे हाथों में समा नहीं पा रहे थे और मैं महसूस कर रहा था कि अब तक उसके निप्पल तन कर खड़े हो चुके थे.
हम दोनों के बदन का ताप इतना बढ़ गया था कि अब रुकना नामुमकिन था. अब तो रेलगाड़ी स्टेशन से छूट चुकी थी और रफ़्तार पकड़ती जा रही थी.
मैंने अपने एक हाथ को नीचे ले जाकर उसके शर्ट के अंदर से उसके पेट पर रखा तो मानसी के मुँह से कंपकंपाती सिसकारियाँ निकलने लगीं. वो ऐसे तड़प रही थी जैसे बिन पानी मछली. मैंने धीरे धीरे अपने हाथ को आगे बढ़ाया और कुछ ही देर में मेरा हाथ उसकी ब्रा के ऊपर से उसके एक चूचे का रस निचोड़ रहा था. मानसी मुझे पागलों की तरह चूम रही थी और अब वो कभी ना लौटने वाली गाड़ी में सवार हो चुकी थी. उसका एक हाथ मेरे सिर को कस कर पकड़े था और दूसरा मेरे बदन पर ऊपर से नीचे घूम रहा था.
सीधे कहूँ तो दोनों तरफ आग बराबर लगी थी या शायद उसमें मेरी सोच से भी बहुत ज्यादा लगी थी. अब मैंने उसके सूट को उतारने के लिए दोनों हाथों से उसका शर्ट पकड़ कर ऊपर उठाया तो वो साइड से उधड़ गया पर वो इतनी गर्म हो चुकी थी कि अब उसको किसी चीज़ की परवाह नहीं थी.
मैंने भी आव देखा ना ताव, उसके सूट को पूरा उतार दिया और अब मेरे हाथ उसके दोनों चूचों को मसल रहे थे. उसके निप्पल इतने सख्त हो गए थे कि ब्रा के अंदर होने के बाद भी खड़े थे और ऊपर से भी उनको चूसा जा सकता था.
मैंने देर न करते हुए उसके निप्पल को मुँह में ले लिया और इतना चूसा कि उसकी ब्रा गीली हो गई.
उसकी सिसकारियों की आवाज़ बढ़ती जा रही थी और साथ में उसके बदन का ताप भी. अब वो मुझे नोचने लगी थी और इससे पहले कि वो मेरी टी-शर्ट को फाड़े, मैंने उसे खुद ही उतारना ज्यादा बेहतर समझा.
मेरे टी-शर्ट उतारते ही वो मुझ पर ऐसे झपटी कि मुझे अपना बनियान उतारने का मौका नहीं मिला और उसको फाड़ते हुए उसने मेरी छाती पे उभरी घुंडियों को बारी बारी से चूसना और काटना शुरू कर दिया. मुझ पर वो कुछ ऐसे हावी हो रही थी जैसे कोई शेरनी अपने शिकार पर होती है.
मैंने भी देर ना करते हुए उसकी ब्रा को उसके जिस्म से अलग किया और ये क्या, मेरी आँखें फटी की फटी रह गई. उसके निप्पल गुलाबी रंग के थे और चूचे मेरे अनुमान से भी बड़े थे. उसका एक एक चूचा मेरे दोनों हाथों की पकड़ से भी बड़ा था.
अब मैंने फिर पलटी मारी और उसको अपने नीचे ले उसके चूचों पर टूट पड़ा. मैंने उनको इतनी बेरहमी से चूसा कि उनका रंग गुलाबी से लाल होने में ज्यादा समय नहीं लगा. जब मैं उसके निप्पल चूस रहा था तो उसने अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया और उसको सहलाने लगी. मेरा लंड तो कई दिनों से मेरे काबू में नहीं था और अब जब मानसी ने मेरे लंड को पकड़ा तो मेरे लंड में खून दुगनी तेज़ी से दौड़ने लगा. मैंने आज तक अपने लंड का इतना विकराल रूप महसूस नहीं किया था.
आज मानसी की चूत की धज्जियाँ उड़ने वाली थी और मेरे लंड की वो दावत होने वाली थी जो इसकी कभी ना हुई थी और ना कभी ज़िन्दगी में दोबारा होनी थी.
मानसी जैसी लड़की कुछ ही नसीब वाले लंडबाज़ लौंडों को मिलती हैं, इतना तो मैं अब तक समझ चुका था और बस अब यह जानना बाकी था कि मैं इस घोड़ी की सवारी करने वाला पहला लंड हूँ या नहीं. किस्मत आजमाइश… हा हा हा हा…
कहानी जारी रहेगी.
नर्स गर्लफ्रेंड के साथ चुदाई की सेक्सी कहानी जारी रहेगी.
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