जन्नत की हूर की चूत के लालच में मैंने एक स्वामी के दिशानिर्देश पर एक साधना की तो मुझे एक परी ने दर्शन दिए. वह मेरी पत्नी की तरह सेवा करने को तैयार थी.
मेरा नाम निशांत है.
मेरी उम्र 32 साल की है और कद 6 फुट का है.
मैं दिल्ली में रहता हूं और एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में पिछले 10 साल से कार्यरत हूं.
पिछले 10 वर्षों में मैंने एक भी छुट्टी लिए बिना लगातार कार्य किया है.
कार्य की अधिकता होने से मेरे स्वास्थ्य पर असर पड़ा और मैं बीमार पड़ गया.
मेरे बड़े मैनेजर ने मुझसे कहा- तुम्हें दो-तीन महीनों की छुट्टी लेकर कहीं घूमने जाना चाहिए, जिससे तुम फिर से तरोताजा होकर काम पर वापस लौट सको.
मेरे डॉक्टर ने भी यही सलाह दी.
तो मैंने सोचा कि ठीक है छुट्टी पर कहीं घूमने चलते हैं.
बताता चलूं कि 32 वर्ष का होने के बावजूद मेरी अभी तक शादी नहीं हुई है और मैं अभी तक कुंवारा हूं.
मुझे पहाड़ों पर घूमने का बहुत शौक है तो मैंने तय किया कि मैं देवभूमि उत्तराखंड की यात्रा पर जाऊंगा.
मैंने उत्तराखंड की यात्रा के लिए अपनी कार तैयार की और दिल्ली से उत्तराखंड की तरफ निकल पड़ा.
दो-तीन दिन उत्तराखंड में घूमने के बाद ही मेरा मन इतनी भीड़ भाड़ देखकर कुछ भर सा गया.
मैं अपने होटल में बैठा हुआ था.
तभी उस होटल का मैनेजर मेरे पास आया.
हमारी बातचीत होने लगी.
तो मैंने उसे बताया कि यहां तो बहुत भीड़ भाड़ है और मुझे यहां भीड़ में अच्छा नहीं लग रहा है. मुझे कोई शांत और एकांत जगह चाहिए.
उसने मुझे बताया- आप द्रोणागिरी पर्वत की ओर चले जाएं. वहां एक स्वामी चिन्मयानंद (काल्पनिक नाम) का आश्रम है. वहां आप एकांत में रहकर पहाड़ों का आनन्द ले सकते हैं.
मैं उससे पता लेकर अगले दिन ही उनके आश्रम की ओर निकल पड़ा.
स्वामी चिन्मयानंद जी का आश्रम पहाड़ों में अन्दर था.
वहां तक मुझे पहाड़ की चढ़ाई करके जाना पड़ा.
आश्रम में पहुंचते ही मुझे बहुत अच्छा लगा. आश्रम पहाड़ों के बीच में स्थित था.
चारों तरफ खुली खुली वादियां और चारों तरफ हरियाली थी.
लोग नाम मात्र के थे.
मैं स्वामी नित्यानंद जी के पास जाकर उनसे बोला- महाराज, मैं आपके आश्रम में रहकर योग तथा आराम करना चाहता हूं.
वे बोले- ठीक है, आप कुछ राशि देकर यहां जब तक चाहें, तब तक रह सकते हैं.
मैं तैयार हो गया.
आश्रम में मैं सुबह उठकर स्वामी जी के साथियों के साथ योग करता और पहाड़ों को निहारता.
स्वामी जी के आश्रम में एक छोटी सी कुटिया में ढेर सारी पुस्तकें रखी हुई थीं जो योग तथा साधना से जुड़ी हुई थीं.
एक दिन मैंने उन किताबों को पढ़ने का सोचा.
उन्हीं किताबों में से एक अप्सरा साधना की किताब ने मुझे बहुत आकर्षित किया.
मैं उसे लेकर पढ़ने लगा.
उसमें अप्सराओं व किन्नरियों को साधना द्वारा वश में करने का तरीका दिया था.
काफी देर पढ़ने के बाद मैंने सोचा क्यों ना मैं भी अप्सरा साधना करूं!
मैं वह किताब लेकर स्वामी जी के पास गया और उनसे वैसी साधना के बारे में पूछा.
उन्होंने मुझे सभी साधनों में से सबसे उत्तम साधना उर्वशी साधना के बारे में बताया कि मैं उर्वशी की साधना कर उसे अपने वश में कर सकता हूं.
परंतु यह साधना कठिन है. इसके लिए मुझे एकांतवास में 49 दिनों तक साधना करनी होगी.
मैंने कहा- मैं तैयार हूं.
उन्होंने कहा- यहां से 2 किलोमीटर दूर घने जंगलों में एक गुफा है, जो मेरी ही है. वहां पर तुम्हारी साधना के लिए सारे इंतजाम मिलेंगे. तुम वहां जाकर साधना करो … मैं तुम्हें बता देता हूँ कि साधना कैसे करनी है.
स्वामी जी ने मुझे विस्तार से सब बता दिया कि क्या कैसे करना है.
मैं अगले दिन स्वामी जी के एक साथी के साथ कुछ गुफा की ओर निकल पड़ा.
उसी गुफा के पास पहुंचकर उस साथी ने मुझे एक उपवन भी दिखाया जिसमें फूल एवं फल लगे हुए थे.
उसने कहा- आप इन फूल एवं फलों का इस्तेमाल पूजा तथा स्वयं के खाने के लिए कर सकते हैं.
फिर वह वहां से वापस लौट गया.
मैं गुफा के अन्दर गया तो वहां रहने का सारा इंतजाम था.
जमीन पर बिस्तर लगा हुआ था.
गुफा के अन्दर लालटेन, अगरबत्ती, चांदी का थाल और बाकी पूजा की चीजें रखी हुई थीं.
मैं पास ही बहती नदी में नहा कर तैयार होकर पूजा की तैयारी करने लगा.
रात के 9:00 बजे ही मैं उर्वशी साधना करने लगा.
यह साधना कठिन थी.
रात के 9:00 बजे से 12:00 बजे तक यह साधना करनी थी.
मैं हर रात यह साधना एकांतवास में रहकर करने लगा.
ऐसे ही दिन गुजरते गए.
फिर 17 दिन बाद मुझे गुलाबों की खुशबू महसूस हुई और पायल की झंकार भी.
परंतु स्वामी जी ने मुझे बिना किसी कारण अपनी साधना न तोड़ने का बोला गया था.
इसी तरह मुझे 25वें दिन किसी स्त्री का स्पर्श महसूस हुआ; उसके कोमल हाथ मेरी पीठ पर चलते हुए प्रतीत हुए.
उसके बाद 36वें दिन एक औरत मेरे गोद में आकर बैठ गई मगर फिर भी मैं अपनी साधना में मगन रहा.
यह कठिन था पर मैं अपनी साधना करता रहा.
इसी तरह 49 दिन रात के 12:00 बजे एक दिव्य प्रकाश मेरी आंखों पर पड़ा.
इसके बाद मुझे आवाज आई- स्वामी, मैं आपकी साधना से बहुत प्रसन्न हूं. कृपया आंखें खोलें.
मैंने आंखें खोलीं.
तो मैं देखता ही रह गया.
जैसा कि हम सोचते हैं, उर्वशी वैसी बिल्कुल नहीं दिखती है.
उसका शरीर हल्का गुलाबी बैगनी सा था … जो दिखने में बहुत खूबसूरत लग रहा था.
उसके बड़े बड़े नयन मुझे एकटक देखे जा रहे थे.
उर्वशी के काले घने बाल उसकी गांड तक फैले हुए थे और हवा में लहरा रहे थे.
उसके लाल सुर्ख बड़े-बड़े होंठ थे.
गले में सोने का हार था. गर्दन किसी सारस की भांति पतली और खूबसूरत थी. उसके स्तन बड़े-बड़े चुस्त एवं कसे हुए थे.
निप्पल ऐसे, जैसे कोई काला बड़ा अंगूर हो.
कमर छरहरी और नाभि में रिंग पहनी थी.
उसके स्तन कपड़ों से ढके नहीं थे, सिर्फ निप्पल पर सोने की रिंग थी … जो उसे नाममात्र को ढके हुई थी.
कमर पर सोने की हार था, जो उसकी चूत को ढके हुए था.
Jannat Ki Pari
वह जन्नत की हूर मुझसे फिर से बोली- आप मुझसे डरे नहीं, मैं आपसे सिद्ध हो चुकी हूं. आप मुझे किस रूप में धारण करना चाहते हैं.
स्वामी जी के कहे अनुसार मैंने उससे कहा- हे सुंदरी अप्सरा उर्वशी, आप मेरी पत्नी रूप में सिद्ध हों और पत्नी रूप में मेरे साथ जिंदगी भर रहें.
वह बोली- ठीक है स्वामी, मैं आपके साथ पत्नी रूप में बनकर रहूंगी.
उर्वशी मेरे पास आकर बैठ गई और हम दोनों धीरे-धीरे बातें करने लगे.
वह मुझे स्वर्ग की बातें बताने लगी और मुझसे बोली- क्या आज्ञा है मेरे लिए … मैं आपके लिए क्या कर सकती हूं!
मैं हमेशा उसे नाचते हुए देखना चाहता था इसलिए मैंने उसे अपने लिए नृत्य करने का आदेश दिया.
उसने मुस्कराते हुए कहा- हां मेरे भगवान … अभी लीजिए.
उसने आनन्द के साथ नृत्य करना शुरू कर दिया.
उसका नृत्य इतना मोहक था कि क्या ही कहूँ.
उसके कूल्हे हिल रहे थे और उसके स्तन उछल रहे थे.
उसकी हर चाल और हार ठुमक से मेरा लंड मेरी धोती में एक बड़ा तंबू बना रहा था.
वह कई बार मेरे पास आई और मैं उसे छू नहीं सका.
मैंने पूछा कि क्या वह मेरी पत्नी के रूप में मेरी सेवा करेगी?
उसने कहा- हां मेरे भगवान आप मुझे जैसे चाहो, वैसे इस्तेमाल कर सकते हो.
मैंने कहा- मेरे लंड को कामदेव के लंड जितना बड़ा बना दो.
उसने कहा- जो आज्ञा मेरे स्वामी.
कुछ ही सेकंड में मेरा लंड घोड़े की तरह होने लगा. यह 13 इंच लंबा और 4 इंच चौड़ा हो गया जिस पर बड़ी-बड़ी नसें दिखाई दे रही थीं.
साथ ही मेरे शरीर के अन्दर एक गजब सा शक्ति संचार हो गया.
वह मेरे पास आई और मैंने उसकी कमर पकड़ ली.
मैंने उसकी कमर को चूमना और चाटना शुरू कर दिया.
उसकी प्यारी मोहक सी कराह निकली- आहह ह्ह्ह्ह् … आहह हह!
उसने पीछे से मेरा सिर पकड़ लिया और अपनी कमर पर दबा दिया.
मैंने कमर को चाटा और चूसा, मैं उसकी नाभि और उसकी कमर काटने लगा.
मैंने उसकी बड़ी सी गांड को पकड़ लिया और उस जन्नत की हूर की गांड को निचोड़ने सा लगा.
मैं देख सकता था कि वह संभोग के पूर्व होने वाली काम क्रीड़ा का आनन्द लेने लगी है.
मैंने उसे बिस्तर पर लेटने का इशारा किया.
वह लेट गई तो मैं उसके करीब आया और कहा- तुम बहुत सेक्सी हो उर्वर्शी!
मैंने उसके होंठों के साथ खेलना शुरू कर दिया, अपनी उंगली उसके मुँह में डाल दी.
उसने मेरी उंगली चूस ली और मेरे होंठ उसके लाल होंठों में शामिल हो गए.
हम एक दूसरे के होंठ चूसने लगे.
उसके होंठ बड़े ही रसीले थे.
मैं उसके होंठों को काट रहा था और वह मेरे मुँह में अपने होंठ दिए कराहती रही ‘आहह हह हह ह्ह …’
उसके लाल होंठ मैं चबाने सा लगा.
मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाली.
उसने खुशी-खुशी मेरे अनुरोध को स्वीकार कर लिया.
मैंने उसके रसीले होंठों को अपने दांतों के बीच निचोड़ा और उसके होंठों को बाहर की तरफ खींचा.
उसके मुँह से बड़ी सी कराह निकली- आहह हह!
उसने मुझे कसकर पकड़ लिया.
हम दोनों की जीभ आपस में लड़ने लगीं … हम एक दूसरे की जीभ का स्वाद लेने लगे.
कभी वह मेरे मुँह के अन्दर जीभ डालकर मेरे मुँह का रसपान करती, तो कभी मैं.
हम दोनों एक दूसरे का रसपान आधे घंटे तक करते रहे.
तब हम एक दूसरे में खोए हुए थे.
एक दूसरे के शरीर का शरीर के घर्षण का आनन्द ले रहे थे.
आगे बढ़ते हुए मैंने उसके कान को काटना शुरू कर दिया और उसकी बैंगनी गर्दन को चाटने लगा.
मेरी छाती उसके स्तन को दबा रही थी.
मैं उसके बड़े खुले स्तन की मालिश सी करने लगा.
मैंने उसकी स्तन मेखला (चूचियों की दरार) को चाटना शुरू कर दिया.
मैं बड़े रसदार गोल गहरे बैंगनी स्तन देख सकता था, जिनमें निपल्स एक बड़े रसदार अंगूर की तरह खड़े थे.
मैंने अपनी जीभ को बड़े रसदार निपल्स के चारों ओर लपेट लिया और उसे चूसकर काटा.
उर्वशी के मुँह से जोर से कराह निकली ‘आहह हह ह्ह्ह स्वामी धीरे … दर्द होता है!’
इसी के साथ मैंने दूसरे स्तन को निचोड़ना शुरू कर दिया.
मेरे अन्दर जोश की नदियां बहने लगीं.
खून किसी ज्वालामुखी के लावा की तरह प्रतीत होने लगा था.
मेरी सांसें गर्म थीं और शरीर में आग लग रही थी.
अतिजोश के साथ मैंने उसके दूसरे निप्पल को भी काट लिया.
वह जोर से कराह उठी ‘आहह हह ह् आहह …’
उसने मेरी पीठ पर अपने बड़े बड़े लाल नाखून घुसा दिए.
मैं दर्द और खुशी से चिल्ला रहा था.
हमारे शरीर के बीच एक गर्म तूफान चल रहा था जो हम दोनों को आनन्द और संभोग की भूमि में ले जाने की कोशिश कर रहा था.
वह भी अत्यंत जोश में आ चुकी थी और मुझे अपनी ओर खींच रही थी.
उसने मेरे कान काटने शुरू कर दिए. उसने मुझे ऊपर की ओर घसीटा और मुझे जोश के साथ मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया.
मुझे उस जन्नत की हूर की यौन ऊर्जा बढ़ती प्रतीत हुई.
उसने मेरे होंठ, कान को काटा. मैं उसके कोमल स्तनों को निचोड़ रहा था और उसके चूचुक को खींच रहा था.
मैंने उसके निप्पल को अपनी उंगलियों के बीच खींचा और वो मेरे मुँह में कराह उठी ‘आहह ह्ह् आहह ह्.’
हम दोनों ही बहुत आनन्द में थे.
सारी दुनिया को भूलकर बस एक दूसरे के शरीर का आनन्द ले रहे थे.
मैंने फिर से उसके स्तनों को चूमा, उसके एक स्तन पर काट लिया और उसके निपल्स को अपने दांतों के बीच खींच लिया.
वह लगातार मेरी पीठ और मेरी गांड को खरोंच रही थी.
उसने मुझे नीचे की ओर धकेला.
मैं और नीचे को आ गया और उसकी जांघों को चाटने और उसे काटने लगा.
मैंने उसके पैर को चाटा और उसे मुड़ने का इशारा किया.
वह पलट गई.
मैंने उसकी जांघों पर काटना शुरू कर दिया और मैं उसकी बड़ी गोल गांड के पास पहुंच गया.
तब मैंने उसकी गांड पर एक जोर का थप्पड़ मारा.
वह बहुत मस्ती में थी और कामुक स्वर में कराह रही थी ‘आहह हह.’
मैंने उसे गांड पर चूमा और उसकी मोटी सी गांड को काटना शुरू कर दिया.
साथ ही मैं थप्पड़ मार मार कर उसकी मादक आहों और कराहों के मजे लेता रहा.
फिर मैंने ऊपर को आकर उसकी पीठ को पूरी तरह से चाटा, काटा और चूम लिया.
उसके कंधे को काटा और उसके निप्पल पकड़ लिए.
हम दोनों सेक्स के सागर में गहराई तक डूबे हुए एक दूसरे के शरीर का आनन्द ले रहे थे.
हम एक-दूसरे को गले लगा रहे थे.
दोस्तो, मुझे उम्मीद है कि आपको इस काल्पनिक सेक्स कहानी में मजा आ रहा होगा.
अगले भाग में जन्नत की हूर की चूत चुदाई की कहानी का शेष रस लिखूँगा.
आप मुझे मेल कर सकते हैं.
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जन्नत की हूर की चूत की कहानी का अगला भाग: आसमानी परी के साथ सम्भोग आनन्द- 2