अंधेरे में चुद गई अनजान मर्द से

अंधेरे में चुद गई अनजान मर्द से

दोस्तो, मेरा नाम सुनीता शर्मा है, और मैं अभी 37 साल की हूँ।
37 साल ये वो उम्र है, जब आपके बच्चे बड़े हो चुके होते हैं, वो अपनी बहुत सी जिम्मेवारियाँ खुद उठा लेते हैं और आप काफी हद तक फ्री हो जाते हो।

मैं 22 साल की थी, जब मेरी शादी हुई, शादी के 3 साल बाद एक बेटा हुआ और फिर दो साल बाद एक बेटी हुई। अभी दोनों स्कूल में पढ़ रहे हैं। पति का अपना बिज़नस है।

शादी के बाद तो हमने 4-5 साल खूब ऐश करी, बहुत घूमे, बहुत खाया पिया और ज़िंदगी का हर मज़ा लिया, मगर वक्त के साथ साथ पति अपने बिजनेस में और बिज़ी होते चले गए। कुछ काम भी उनका जम नहीं रहा था तो काफी चिड़चिड़े से भी हो गए थे।
मगर सबसे बुरी बात ये हुई के अपने काम की टेंशन की वजह से सेक्स में कमजोर होते चले गए। पहले तो कभी कभी ही था, मगर अब हो हर बार यही होता, कभी उनका खड़ा नहीं होता, और ठीक से खड़ा होता तो जल्दी झड़ जाता।

मैं हर कोशिश करती उनको बढ़िया सेक्स देने की, उनके सामने रंडी बन के नाचती, उनके पूरे बदन को सहलाती, खूब लंड चूसती, ताकि ये ठीक से खड़ा हो और मेरी तसल्ली करवाए।
मगर एक दो बार तो मेरे चूसने से ये मेरे मुँह में ही झड़ गए।
मैंने फिर भी बुरा नहीं माना।

मगर मुझे भी तो कामुक संतुष्टि चाहिए. फिर ये अक्सर मेरी फुद्दी चाट कर या उंगली से मेरा पानी पहले निकाल देते और फिर मुझे चोदते। मगर मुझे तो लंड से चुद कर, अपने पति को अपनी जीभ चुसवाते हुये पानी छोड़ने में मज़ा आता था।
ये तो कोई तरीका नहीं कि पहले मैं पानी गिरा दूँ, और बाद में वो।

मैं अक्सर कहती- अपनी इस फुलझड़ी का इलाज करवा लो, इसे फिर से बम बनाओ। मुझे इस मुर्दा लुल्ली से कोई मज़ा नहीं आता।
मगर पति ने कभी मेरी बात सुनी ही नहीं। उन्हें शायद अपनी मर्दाना कमजोरी की बात चुभती थी, तो वो हमेशा मुझे डांट देते। मैं मन मसोस कर रह जाती।

धीरे धीरे मेरे मन में उठने वाली काम ज्वाला अब हर वक्त धधकने लगी। और जब पीरियड्स होते तो उसके बाद तो मुझे खुद को संभालने में बड़ी मुश्किल आती। अक्सर मेरे हाथ मेरे स्तनों को, मेरी फुद्दी को सहलाने लग जाते। कभी कभी मुझे बड़ी शर्मिंदगी भी होती यह सोच कर कि अगर कोई देख ले तो क्या सोचे कि साली बहुत गर्म है, हमारे सामने ही अपने मम्मे मसल रही है।

मगर फुद्दी में इतनी आग लगी थी कि जितना भी पानी अंदर से आता, फुद्दी आग ना बुझा पाता।

आपको एक किस्सा बताती हूँ, एक बार मैं अपने ब्यूटी पार्लर गई, वहाँ पर मैंने अपनी फुल बॉडी की वेक्सिंग कारवाई। जब मैं बिकनी वेक्स करवा रही थी और उस लड़की ने मेरी दोनों टांगें फैला कर जब मेरी फुद्दी पर वेक्स लगाई तो उसके नर्म नर्म हाथों की छूअन से मेरी फुद्दी में पानी आ गया, और एक बूंद उस नमकीन पानी की मेरी फुद्दी से बाहर चू गई जो उस लड़की ने देख ली और नेपकिन से साफ कर दी.

मगर उसके साफ करने के बावजूद मेरी फुद्दी से और पानी आता रहा।

उस लड़की ने जब वेक्स लगाने के बाद जब उसने पट्टी उखाड़ी तो मुझे दर्द कम हुआ और मज़ा ज़्यादा आया। उसने जल्दी जल्दी मेरी फुद्दी के सारे बाल वेक्सिंग से उखाड़ दिये, मगर मेरी तो फुद्दी खड़ी हो गई। जैसे मर्दों की लुल्ली खड़ी होती है न, वैसे ही मेरी फुद्दी भी खड़ी होती है।
मेरा दिल किया कि मैं उस लड़की से ही कह दूँ कि बेटा अगर तू थोड़ी देर मेरी फुद्दी चाट ले तो मैं तुझे एक्सट्रा पैसे भी दे सकती हूँ।

शायद उस लड़की ने भी भाम्प लिया था कि मेरे अंदर कुछ गड़बड़ चल रहा है। वेक्सिंग करने के बाद वो बोली- और कुछ मैडम?
मैंने कहा- और कुछ, क्या और कोई सेवा भी तुम कर सकती हो?
वो बोली- आप बोलें तो, अगर कर सकती हुई तो कर दूँगी।

मैंने पहले लड़की को देखा, अच्छी गोरी चिट्टी, किसी अच्छे घर की लगी।
मैंने कहा- कितने पैसे कमा लेती हो यहाँ?
वो बोली- मुझे 7 हज़ार मिलते हैं, एक महीने के।

मैंने कहा- एक घंटे में सात हज़ार कमाना चाहोगी?
वो बोली- क्यों नहीं, मुझे तो वैसे भी पैसे की ज़रूरत है।
मैंने कहा- तो ठीक, पैसे तुम्हारे काम मेरा।
वो बोली- ओके, कहिए?

मैंने अपनी उंगली से अपनी फुद्दी को छूकर उस लड़की को कहा- अगर मैं कहूँ, तो क्या खा जाओगी इसे?
उस लड़की ने पहले मेरी तरफ देखा, फिर मेरी ताज़ी ताज़ी वेक्स की हुई फुद्दी को देखा।

मैंने अपना पर्स खोला और उसके में से 500-500 के 14 नोट निकाले और उस लड़की को दिखा कर वो नोट गिनने लगी।
लड़की मेरे सामने आई, और मेरे दोनों टांगें फैला कर मुझे आगे को खींचा जिससे मेरी फुद्दी उस कुर्सी के बिल्कुल किनारे पर आ गई। वो लड़की मेरे सामने बैठ गई और मेरी फुद्दी को देखने लगी।

मैंने अपने हाथ की दो उंगलियों से अपनी फुद्दी के होंठ खोले और दूसरे हाथ उस लड़की का सर खींच कर अपनी फुद्दी से लगा दिया। नर्म ठंडे होंठ मेरी गर्म फुद्दी से लगे और फिर उसकी कुलबुलाती हुई जीभ मेरी फुद्दी के दाने पर घूमी।
मुझे तो नशा छा गया, मैंने आँखें बंद करी और कुर्सी पर पीछे को को निढाल हो कर बैठ गई।

पहले धीरे धीरे मगर फिर बड़े जोश और मज़े से उस लड़की ने मेरी फुद्दी चाटनी शुरू कर दी। मैंने अपनी एक टांग से उसके मुँह को अपनी फुद्दी से चिपकाए रखा, तब तक, जब तक मैं खुद अपनी फुद्दी को उसके मुँह पर रगड़ने नहीं लग गई.

और फिर मुझ पर आनंद की बरसात हो गई। मेरी फुद्दी ने भर भर कर पानी छोड़ा, दो तीन धारें तो उस लड़की के मुँह पर भी गिरी और मेरे इशारे पर वो मेरी फुद्दी का नमकीन पानी वो चाट भी गई। स्खलित होकर मैं कुछ देर उसी उन्मान्द में उस कुर्सी पर लेटी रही।

फिर उठ कर अपने आप को सेट किया। जब जाने लगी तो लड़की बोली- मैडम, फिर कभी सेवा की ज़रूरत हो तो बताना।
मैंने उसे पैसे दिये और घर वापिस आ गई।

मगर घर आकर जब मैं नहाई तो बाथरूम में लगे फुल साइज़ शीशे में अपने आप को नंगी देखकर मेरी काम ज्वाला फिर से भड़क गई। मेरी फिर से इच्छा हुई कि उस लड़की को बुलवा कर फिर से अपनी फुद्दी चटवाऊँ। न सिर्फ फुद्दी, बल्कि उसके साथ पूरी तरह से लेसबियन सेक्स करूं, मैं भी उसकी फुद्दी चाटूँ, उसके मम्मे चूसूँ, उसके होंठ चूमूँ। दोनों बिल्कुल नंगी हो कर समलैंगिक संभोग का आनंद लूँ।

मगर साथ में 7000 रुपये भी देने पड़ते। अभी तो 7000 की गांड मरवा कर आई हूँ, इतनी जल्दी फिर से नहीं।
मैंने जल्दी से अपना बदन पोंछा, और कपड़े पहन कर बाहर आ गई।

शाम को हमारे एक पुराने मित्र थे, उनकी लड़की की शादी में हमको जाना था। मैं बड़ा सज धज कर तैयार होकर अपने पति के साथ शादी में गई।

मेरे पति भी बड़े रोमांटिक मूड में थे, गाड़ी में भी वो मेरे बदन से खेलते, मुझे छेड़ते गए। पार्टी बड़ी शानदार थी। डीजे चल रहा था, शोर शराबा था। हाँ हाँ, शराब भी थी।
तो पति ने नेपकिन में लपेट कर एक पेग मुझे भी दिया और मैंने गटक लिया।
उसके बाद एक मैंने खुद ही ले लिया। चिकन मटन सब उधेड़ा। दो पेग ही मेरी लिमिट है। इस से ज़्यादा मैं लेती नहीं वरना मैं डगमगाने लगती हूँ।

मगर दो पेग ने मुझे बहुत ही अच्छे सुरूर में ला दिया। अब तो मैं बिना किसी की परवाह किए इधर उधर मस्त हुये फिर रही थी। मैंने हर तरह की आइटम चख कर देखी शादी का खूब मज़ा लिया। बहुत से लोग मुझे घूर रहे थे, शायद उन्हे पता चल गया था कि मैंने पी रखी है और मैं नशे में हूँ।

शायद वो इस फिराक में थे कि मैं कहीं पर अटकूँ, गिरूँ, और वो मुझे संभालने उठाने के बहाने मेरे गोरे बदन को सहला सकें।
चाहती मैं भी यही थी मगर ऐसा को मौका ही नहीं बन रहा था।

पति तो अपने दोस्तों के साथ दारू पीने में मस्त था और मैं अकेली इधर उधर धक्के खा रही थी।

फिर मुझे पेशाब लगी, मैं वाशरूम गई, पहले तो मूता और फिर बड़े सारे शीशे के सामने खड़े होकर खुद को निहारा। थोड़े बाल सेट किए, अपनी साड़ी का पल्लू सेट किया। साले ने ज़्यादा ही ढक रखा था, मैंने दोबारा से ब्रोच लगाया, ताकि थोड़ा तो एक्सपोज हो।
हाँ अब ठीक था, अब सामने से तो नहीं मगर बगल से मेरे क्लीवेज के दर्शन हो रहे थे।

मैं वाशरूम से निकली कि तभी अचानक लाइट चली गई, एकदम से अंधेरा छा गया। मैं डर गई, मगर तभी अंधेरे में किसी ने मेरा हाथ थामा। अरे ये तो मेरे पति का हाथ था। मैंने भी कस कर हाथ पकड़ा और उस हाथ के सहारे मैं एक तरफ को जा कर खड़ी हो गई।

और फिर दूसरा हाथ मेरे कंधे से होता हुआ मेरे ब्लाउज़ में घुस गया और मेरे मम्मों को सहलाने लगा। मैंने भी मस्ती में आ कर पैन्ट की ज़िप खोली और अपना हाथ अंदर डाल कर लंड को पकड़ लिया और दबाने लगी।
मेरे हाथ लगाते ही लंड खुशी से अकड़ने लगा।
मैंने कहा- चलो किसी और जगह चलते हैं अंधेरे कोने में। अगर लाइट आ गई, तो सब देख लेंगे।

तो हम दोनों चुपचाप से वहाँ से निकल कर पार्किंग में से होते हुये पैलेस के पीछे की तरफ चले गए।
तभी लाइट आ गई, शायद जेनेरेटर चला दिये होंगे.

मैंने दीवार के साथ दोनों हाथ लगा दिये और मेरी साड़ी उठा कर मेरी चड्डी नीचे सरका कर उन्होंने अपना लंड मेरी फुद्दी में घुसा दिया।
“उम्म्ह… अहह… हय… याह…” मेरे मुँह से निकला- मज़ा आ गया यार, पूरा डाल दो।

और जब अगले दो तीन धक्कों से वो लंड पूरा मेरी फुद्दी में उतरा तो मुझे लगा ‘यार कुछ गड़बड़ है। मेरे पति का लंड इतना मोटा तो नहीं है।’
मैंने पीछे मुँह घुमा कर देखा। हल्की रोशनी में मैं उसे पहचान तो नहीं पाई मगर यह पता चल गया के वो मेरे पति नहीं हैं।

मैंने पूछा- कौन हो तुम?
वो बोला- अब पूछ कर क्या फायदा, अब तो पूरा लंड घुस चुका है तेरी चूत में।
मैंने कहा- जानते हो … मैं एक शादीशुदा औरत हूँ, और मेरे पति एक बहुत बड़े ऑफिसर हैं। तुम्हें जेल करा देंगे।
वो बोला- इतनी शानदार औरत की फुद्दी मार कर तो जेल जाने का भी गम नहीं.
और वो मुझे धीरे धीरे पेलता रहा।

बेशक मैं उस से बात कर रही थी, मगर मैंने उसका लंड अपनी फुद्दी से बाहर निकालने की कोई कोशिश नहीं की। मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर उठाये और मुझे अपनी बांहों में भरे वो चोदता रहा और मैं उसे फालतू की गीदड़ भभकियाँ देती रही।
मगर न वो रुका, न ही मैंने उसे रोका। सिर्फ जुबानी धमका रही थी।

वो पेलता रहा और मैं ढीठों की तरह उसको गालियां देती और चुदती रही। उसने मेरा ब्लाउज़ और ब्रा ऊपर उठा कर मेरे मम्मे बाहर निकाले और इतनी बेदर्दी से दबाये के मुझे बहुत तकलीफ हुई। मैंने उसे डांटा भी- अरे इतनी ज़ोर से मत दबाओ, नींबू नहीं हैं जो निचोड़ रहे हो। आराम से दबाओ, मुझे दर्द होता है।

मगर उसने मेरी एक न सुनी।

थोड़ी देर की चुदाई के बाद मुझे भी मज़ा आने लगा, मैं भी अपनी कमर आगे पीछे को हिलाने लगी, तो वो बोला- क्यों मादरचोद मज़े ले रही है यार के लौड़े के?
मैंने कहा- क्यों क्या मज़ा सिर्फ तुम ले सकते हो?
वो बोला- भैंन की लौड़ी, लगता है तेरा ख़सम फुस्स है।
मैंने बोली- उसकी बात मत कर, अगर वो काम का होता, तो तुझे बिना देखे ऊपर चढ़ने न देती।

वो हंसा- साली छिनाल … पति के साथ आई और पति को ही धोका दे रही है।
मैंने कहा- तू ज़्यादा ज्ञान मत झाड, जल्दी कर मेरा होने वाला है, ज़ोर से पेल!

वो ज़ोर ज़ोर से पेलने लगा और अगले कुछ ही पलों बाद मेरा पानी निकल गया।
और क्या मस्त पानी निकला। मैंने खुद महसूस किया के पानी की तीन चार धारें मेरी फुद्दी से निकल कर मेरी जांघों से होती हुई मेरे घुटनों से भी नीचे तक बह कर गई। अभी हल्की ठंड से चूत का पानी भी ठंडा हो गया, तो जब वो बह कर जांघों से होता हुआ, घुटनो तक पहुंचा, तो बाद ही सुखद एहसास हुआ मुझे।

जब मेरा हो गया तो मैंने कहा- चल ठीक है जाने दे मुझे … मेरा तो हो गया।
तो वो गरजा- रुक, साली, मेरा हो गया। मेरा माल क्या तेरा बाप निकालेगा? बस थोड़ा सा रुक, मैं भी जाने वाला हूँ।

और कुछ और घस्से मारने के बाद उसने मेरी फुद्दी में ही अपना सारा माल झाड़ दिया।
मैंने कहा- अरे यार ये क्या किया, बाहर करना था, साला अंदर ही झाड़ दिया।
वो बोला- अरे कुछ न हो रा, यूं ही मत घबरा।
और मेरे चूतड़ पर चपत मार कर अपना लंड अपनी पैन्ट में डाल कर वो चलता बना।

मैंने भी अपने कपड़े सेट किए और जब पीछे मुड़ कर देखा तो वो गायब था।

मैं वापिस पार्टी में आई और मैंने बहुत ढूंढा उसे ताकि आगे भी कभी मैं उस से मिलना चाहूँ, तो उससे कांटैक्ट कर सकूँ। पर वो नहीं मिला। और मैं बिना उसकी शक्ल देखे, बिना उसका नाम जाने, किसी अंजान से ही यूं ही अंधेर में चुद कर अपने घर वापिस आ गई।
मैं आज भी उसका इंतज़ार करती हूँ कि कभी तो वो मुझे मिल जाए।

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