सबसे पहले आप सब पाठकों को सादर प्रणाम!
मेरी इस सच्ची कहानी को पढ़ कर जिन पाठक दोस्तों के पास चूत का इंतजाम है तो वो अपना लंड चूत में डालेंगे और जिन पाठक दोस्तों के पास चूत का इंतजाम नहीं है वो मुट्ठ मारकर अपना बीज निकालेंगे। उसी तरह जिन पाठिका दोस्तों के पास लंड का इंतजाम है तो वो अपनी अपनी चूत में लंड डलवायेंगी और यदि लंड का इंतजाम नहीं है तो उन्हें अपनी उँगली से ही काम चलाना पड़ेगा।
तो दोस्तो, वैसे तो मैं आपका जाना पहचाना ही हूँ लेकिन जो नए पाठक और पाठिका दोस्त हैं वो शायद मुझे नहीं जानते होंगे तो उनके लिये मेरा परिचय देना आवश्यक हो जाता है।
मैं आगरा से एक 25 वर्षीय वीशु कपूर नाम का सजीला नौजवान हूँ लेकिन एक साल से अपनी मौसी के साथ अहमदाबाद में रह रहा हूँ और वहीं रह कर एक लेडीज मसाज पार्लर में एक मसाज बॉय की हैसीयत से काम कर रहा हूँ जिसमें मुझे हर लड़की या औरत की फुल बॉडी मसाज और उनकी जरूरत के हिसाब से चुदाई भी करनी पड़ती है। कभी कभी मैडम मुझे ग्राहक के घर भेज कर मसाज और चुदाई भी करवाती थी। मेरा जिम जाने के कारण मेरा बदन गठीला है और मेरे लंड की लंबाई और मोटाई घोड़े के लंड जैसी है।
मैं आपको बोर न करते हुए अपनी कहानी पर आता हूँ। तो दोस्तो जब मैंने रेहाना और मिंकी की सील तोड़ी थी तभी मैंने जान बूझ कर अपने घर की दोनों खिड़कियाँ खुली छोड़ दी थी ताकि मेरे घर के सामने वाली कोठी वाली भाभी और उनकी कुँवारी बहन रेहाना और मिंकी की चुदाई स्पष्ट रूप से देख सकें।
दोस्तो, आपको शायद याद होगा कि मेरी मौसी के घर के सामने एक 10 फुट का रोड है और रोड के दूसरी तरफ उन भाभी का घर जहाँ से मेरा कमरा बिल्कुल उनकी किचन के सामने पड़ता है और अगर मेरे घर की सामने वाली खिड़की अगर खुली हो मेरा पूरा कमरा दिखाई देता है।
दोस्तो, मैंने आपको अपनी पिछली कहानी में बताया था कि इन सामने वाली भाभी ने मुझे चाय देते समय गिर जाने के कारण मेरा लंड कुछ समय के लिये बुरी तरह से झुलस गया था जिस वजह से मैं अपने पार्लर के ग्राहक तक को नहीं चोद पाया था।
उन्ही भाभी की एक छोटी बहन थी जो एकदम दूध सी गोरी और बहुत सुन्दर थी जिसे मैं काफी समय से चोदना चाहता था, वो अपनी बहन के यहाँ ग्रेजुएशन में पढ़ने के लिये आई हुई थी। उसे मैं काफी समय से अपना खड़ा लंड दिखाना चाहता था लेकिन सही मौका नहीं मिल रहा था.
तभी 21 फरवरी को सुबह सुबह रेहाना और मिंकी मुझसे चुदने के लिये आई तभी मेरे दिमाग में एक विचार आया कि क्यों न सामने वाली खिड़की खोल दी जाये जिससे पूरे नज़ारे का दर्शन वो आराम से कर सकें क्योंकि भैया सुबह 7 बजे स्कूल जाता था और भैया अपने बेटे को स्कूल छोड़ने के बाद अपनी दुकान पर चले जाते थे. इसलिये उस घर में कोई जेंट्स के न होने के कारण ही मैंने अपनी वो खिड़की खो लकर ही मैंने उन दोनों की चुदाई की थी, उसी दौरान भाभी की बहन दिशा (बदला हुआ नाम) रसोई में चाय बनाने के लिये आई और उसने हमें देख लिया।
उस दिन शाम के समय घर जल्दी ही आ गया और घर आकर कपड़े चेंज कर रहा था, मैं अंडरवीयर नहीं पहनता हूँ तो मैंने शर्ट और पैन्ट उतार दी क्योंकि घर पर कोई था नहीं था; मौसी और मौसाजी एक शादी समारोह में राजकोट गए थे.
तभी सामने वाली भाभी के फोन से दिशा का फोन आ गया तो नंगा ही चल के मैंने फोन उठाया.
दिशा बोल रही थी- इधर मेरे घर की रसोई की तरफ देखो, मैं अभी रसोई में हूँ और चाय बनाने आई हूँ लेकिन तुम नंगे होकर क्या कर रहे हो?
तब मैंने तौलिये से अपना लंड छुपाया और उससे कहा- मैं अपने कपड़े चेंज कर रहा हूँ। तुम अपना काम बताओ?
तो दिशा ने जवाब दिया- आपको दीदी पूछ रही है कि आप खाना कितनी देर में खाओगे?
मैंने कहा- अभी मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं.
तो दिशा ने कहा- तो आ जाओ… दीदी बुला रही हैं खाने के लिये!
मैंने कहा- बस कपड़े बदल कर अभी आ रहा हूँ!
और मैं कपड़े बदल कर खाना खाने के लिये सामने वाली भाभी के यहाँ पहुँच गया.
उस समय घर में केवल भाभी, उनका बेटा और दिशा ही थे। थोड़ी देर सोफे पर बैठा ही था मैं कि दिशा खाना परोस कर ले आई और सोफे के सामने स्टूल पर थाली रखते हुए मेरे पास सोफे पर ही बैठ गई और मुझे खाना खाने के लिये कहा.
मैंने भी खाना खाना शुरू कर दिया।
दिशा का ध्यान मेरी थाली पर ना होकर मेरे पजामे के उस हिस्से पर था जहाँ लंड होता है और वो मेरे लंड वाली जगह पर बड़ी गौर से देख रही थी.
तभी मेरी थाली में रोटी खत्म हो गई तो मैं भी दिशा की तरफ देखने लगा लेकिन दिशा का ध्यान मेरे लंड पर था और मेरा दिशा पर।
फिर कुछ देर बाद भाभी ने ही रसोई से दिशा को आवाज दी, तब वो दौड़ी दौड़ी गई और रोटी लेकर भाभी के साथ वापस आई, उसने मेरी थाली में रोटी रखी और भाभी के साथ मेरे सोफे पर बैठ गई।
जब मैं खाना खा चुका था तो दिशा मेरे झूठे बर्तन उठाकर ले गई और वापस आकर मेरे बगल में बैठ गई.
तभी भाभी मुझसे बोली- वीशु जी, कल मैं और ये राजकोट शादी में जायेंगे तो दिशा घर में अकेली रह जायेगी, इसलिये कल आप सुबह और शाम को समय से खाना खा जाना! ओ के?
मैंने हाँ में अपना सिर हिला दिया.
तभी दिशा ने कहा कि मैं प्रीति और दीक्षा को बुला लूँगी जिससे मैं अकेली भी नहीं रहूँगी और मेरी उन लोगों के साथ पढ़ाई भी हो जायेगी.
तो भाभी ने ओ के कहा।
कुछ देर बाद दिशा ने प्रीति और दीक्षा के घर फ़ोन कर दिया, तभी मैं अपनी बाइक लेकर अपने पार्लर चला गया और जब शाम को लौट कर घर आया और हाथ मुँह धोकर फ्रेश हुआ और मैं अपने कपड़े चेंज ही कर रहा था, तभी मेरे फोन पर घंटी बजी तो मैंने पजामा पहने बिना फोन उठा लिया.
भाभी ने मुझे खाना खाने के लिये फोन पर कहा तो मैं पजामा और टी-शर्ट पहन कर मैं भाभी के यहाँ खाना खाने के लिये चला गया.
जैसे ही मैं भाभी के यहाँ पहुँचा, वहाँ मुझे दो गजब की खूबसूरत लड़कियाँ मिली जिन्हें देख कर मेरे मन में उनकी चूत चुदाई की इच्छा जागने लगी लेकिन मैंने अपने मन पर कंट्रोल किया, मतलब मैंने उन लोगों को यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं उन सबको चोदना चाहता हूँ।
खैर तब तक दिशा आ गई और उसने उन दोनों का परिचय मुझे दीक्षा और प्रीति के रूप में करवाया। उसके बाद हम सबने साथ साथ खाना खाया और इधर उधर की बातें की, फिर मैं अपने घर आ गया और उन दोनों को चोदने की तरकीब सोचने लगा.
उसी दौरान मेरा लंड पजामे में खड़ा हो चुका था इसलिये मैंने उन दोनों के नाम की दो बार मुट्ठ मारी और टी वी देखते हुए सो गया।
अगले दिन सुबह करीब 8 बजे भाभी, भैया और उनका 6 साल का बेटा ट्रेन से राजकोट के लिये निकल गए। तभी थोड़ी देर बाद ही मेरे फ़ोन की घंटी बजी तो एकदम से मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की दिशा की कॉल है, मैंने उससे बिस्तर से ही बात की।
दिशा बोली- आपका नाश्ता तैयार है, आकर कर लो।
मैंने ओ के कहा और फ्रेश होने टॉयलेट में घुस गया, फिर पेस्ट किया उसके बाद मैं दिशा के यहाँ पहुँच गया.
वहां मुझे केवल दिशा, दीक्षा और प्रीति मिली तो मैंने दिशा से अनायास भी पूछ लिया- भैया और भाभी नहीं दिख रहे, शायद वो राजकोट चले गए क्या?
तो दिशा ने धीमे से कहा- हाँ, तभी तो आज पूरे दिन हम तीनों तुमसे मजे लेंगी।
उसके बाद दिशा मुझे अपने कमरे में ले गई और बोली- वीशु जी, मैं आपका लंड देखना चाहती हूँ.
और उसने पजामे के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ लिया और उन दोनों को आवाज दी तो वो दोनों आ गई।
फिर प्रीति ने मेरे दोनों हाथ मजबूती के साथ पकड़ लिये और दीक्षा ने मेरे दोनों पैर पकड़ लिये और हवा में उठा दिया तभी दिशा ने मेरा पजामा खींच दिया. मैं पजामा, पैंट या जीन्स के नीचे कुछ भी नहीं पहनता हूँ, इस वजह से मैं नीचे से एकदम नंगा हो गया.
उसके बाद उन दोनों ने मुझे जमीन पर छोड़ दिया तभी दिशा ने दीक्षा और प्रीति से पूछा- लंड कौन कौन चूसना जानती है?
तब तक प्रीति ने मेरा लंड अपनी हथेली में भरा और सहलाने लगी फिर सुपारे की खाल को हटा कर मेरे लंड को उसने अपने मुँह के पास ले जाकर एक जोरदार चुम्मा मेरे लंड पर जड़ दिया और उसे अपने मुँह में लेकर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।
तब तक दिशा और दीक्षा दोनों एकदम नंगी हो चुकी थी, दीक्षा मेरे पोते चूसने लगी तो दिशा बोली- तुम दोनों भी तो मेरे चूसने के लिये कुछ तो छोड़ो!
मैंने प्रीति और दीक्षा से कहा- तुम दोनों पीठ के बल सीधी लेट जाओ और मैं चूतड़ों के बल जमीन पर बैठ जाता हूँ जिससे प्रीति मेरा लंड चूस सकेगी और दीक्षा मेरे पोते चूस सकेंगी. और दिशा तुम दोनों की चूत चाट सकेगी, ऐसे तुम तीनों को कुछ न कुछ चाटने को मिलेगा. बताओ कैसी कही?
मैंने उन तीनों से पूछा तो तीनों ही खुश हो गई और जो पोजीशन मैंने बताई थी वैसी ही हो गई।
दिशा प्रीति और दीक्षा की बारी बारी से चूत चाटने लगी जिससे वो दोनों सिसियाने लगी और मस्त होकर मेरे लंड और पोते चूसने लगी. कुछ देर बाद दीक्षा और प्रीति ने अपनी अपनी पोजीशन बदल ली, मतलब प्रीति मेरे लंड को छोड़ कर पोतों पर आ गई और दीक्षा मेरा लंड चूसने लगी. दिशा को प्रीति और दीक्षा की चूत चाटने का काम मिला जिसे वो बखूबी निभा रही थी, जिससे प्रीति की चूत ने दिशा के मुख में अपना कामरस छोड़ दिया. और कुछ देर बाद ही दीक्षा की चूत ने भी काम रस छोड़ दिया।
उसके बाद मेरे लंड और पोते चूसने की कमान दिशा ने संभाल ली और उसके दूध प्रीति दबाने और चूसने लगी, दीक्षा ने दिशा की चूत पकड़ ली, उसमें एक उंगली डाल कर अंदर बाहर करने लगी और चूत के दाने पर अपनी जीभ चलाने लगी जिससे दिशा भी सिसियाने लगी.
इधर जैसे ही दिशा की चूत के दाने पर दीक्षा की जीभ लगी, दिशा ने मेरे लंड के सुपारे की खाल को हटा दिया और मेरे लंड पर अपनी जीभ से चाटने लगी तो मैं भी जन्नत की सैर करने लगा और 10 मिनट बाद मेरे सब्र का बाँध टूट गया. मतलब मेरे लंड ने भी अपनी पिचकारी दिशा के मुँह में छोड़ दी जिससे दिशा का मुँह मेरे बीज से भर गया, जिसे दिशा पूरा निगल गई और चूस चूस के एक एक बून्द निचोड़ ली और तब तक चूसती रही जब तक मेरा लंड दुबारा नहीं तन गया.
मेरा लंड लोहे की गरम रॉड की तरह हो गया और उसका सुपारा एक बड़े मशरूम की तरह फूल गया और टमाटर की तरह लाल हो गया।
तभी प्रीति बोली- वीशु जी, अब मुझसे बरदाश्त नहीं हो रहा है, अब अपना लंड मेरी चूत में डाल दो!
चूँकि तीनों की चूत अनछुई थी, मतलब तीनों की चूत सील बंद थी, इसलिये मैंने किसी भी तरह की कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई और सब्र से काम लेना उचित समझा.
मैंने दीक्षा को प्रीति के होंठ चूसने को कहा और दिशा को प्रीति के दूध चूसने और दबाने को कहा तो दोनों ही आज्ञाकारी बच्चे की तरह अपने अपने काम में लग गई. तभी मैं प्रीति की चूत के सामने आ गया और अपना लंड प्रीति की चूत पर घिसने लगा तो प्रीति सिसकारी भरने लगी.
तभी मैंने अपना लंड प्रीति की चूत के छेद पर रखा और एक जोरदार धक्का पूरी ताकत से लगा दिया जिससे मेरे लंड का सुपारा प्रीति की चूत में करीब 4 इंच तक घुस गया. इधर दर्द की वजह से प्रीति के होंठ दीक्षा के होंठ में फँसे होने के कारण गूँ गूँ की आवाज़ निकाल रही थी लेकिन मैंने उस पर किसी भी तरह का कोई भी रहम नहीं किया और उसी जगह रूक कर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा.
इधर मेरे धीरे धीरे धक्के लगाने के कारण और दिशा द्वारा प्रीति के दूध चूसने और दबाने के कारण प्रीति का दर्द धीरे धीरे मजा में बदलने लगा जिसकी वजह से वो नीचे से अपनी कमर हिला कर अपनी चूत में मेरा लंड लेने लगी.
तभी मैंने अपना लंड उसकी चुत से पूरा बाहर खींच लिया और दुगनी ताकत से दूसरा जोरदार धक्का लगा दिया जिससे मेरा लंड प्रीति की चूत में करीब 7 इंच तक घुस गया लेकिन इस बार प्रीति को इतना तेज दर्द हुआ कि उसकी एकदम से आँखें ही बाहर को आ गई थी।
थोड़ी देर के लिये मैं रुक गया और 7 इंच तक ही अपने लंड को धीरे धीरे आगे पीछे धकेलता रहा. कुछ देर बाद ही प्रीति को मजा आने लगा तो मैंने फिर से उस पर बिना रहम किये दो ताबड़तोड़ धक्के लगा दिये जब तक कि मेरा पूरा लंड प्रीति की चूत में जड़ तक नहीं घुस गया।
उसके बाद मैं दो मिनट के लिये रुक गया और उसके दूध को एक हाथ से दबाने लगा और दूसरे दूध को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा जिससे प्रीति को कुछ कुछ मजा आने लगा और वो नीचे से अपनी कमर हिला हिला कर मेरा लंड अपनी चूत में लेने लगी और तेज तेज धक्के लगा कर मुझे उकसाने लगी.
मैंने भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए अपने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी, उसे शताब्दी की स्पीड से पेलने लगा और उसे अलग अलग मुद्राओं में काफी तक चोदा.
अंत में जब मैं झड़ने को हुआ तभी मैंने प्रीति से पूछा- प्रीति, अब मैं झड़ने वाला हूँ, इसलिये बताओ कि मैं अपना बीज कहाँ निकालूं?
प्रीति ने कहा- वीशु जी, अभी कोई खतरा नहीं है इसलिये आप अपने लंड की पिचकारी मेरी चूत में ही छोड़ दो।
उसके बाद मैंने करीब 3 मिनट तक धक्के और मारे होंगे कि मेरे लंड ने प्रीति की चूत में अपनी पिचकारी छोड़ दी और मैं उसके ऊपर धम्म से गिर पड़ा.
हम दोनों की साँसें ऐसे चल रही थी जैसे कोई इंजन चल रहा हो. तभी प्रीति ने मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी और मुझसे कसकर लिपट गई.
जब उसने मुझे ढीला छोड़ा तो मैंने उसकी चूत से अपना लंड निकाला तो उस पर प्रीति की चूत का खून और रज और मेरा बीज का मिश्रण लगा हुआ था और प्रीति की चूत का छेद काफी हद तक खुल गया था और उसके चूतड़ों के नीचे खून का एक गोल घेरा बन गया था जिसे वो गौर से देख रही थी और फिर मुझसे बोली- वीशु जी, आपके लंड ने मेरी चूत फाड़ दी.
तभी दीक्षा बोली- पागल, लंड तो चूत को फाड़ कर ही अंदर घुसता है।
फिर प्रीति को पेशाब लगी लेकिन उससे बिस्तर से उठा नहीं गया तो मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और बाथरूम में ले जाकर उंगली डाल कर उसकी पानी से चूत साफ की और अपना भी लंड धोया।
करीब आधा आधा घंटे के रेस्ट के साथ मैंने दीक्षा और दिशा की चुदाई भी बिल्कुल उसी तरह से की.
तो दोस्तो आपको मेरी कहानी कैसी लगी? आप अपने विचार अवश्य दें!
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